साल 1920 में नानी पालकीवाला की पैदाइश हुई. पारसी परिवार से आने वाले नानी के पूर्वज पालकी बनाने का काम करते थे. जिसके चलते उनके परिवार के साथ पालकीवाला नाम जुड़ गया. सुप्रीम कोर्ट में दूसरे वकीलों की बोलती बंद करने वाले नानी बचपन में हकलाकर बोलते थे. मुंबई के सेंट ज़ेवियर कॉलेज से उन्होंने इंग्लिश में MA की डिग्री ली. आगे लेक्चरर बनाना चाहते थे. लेकिन किस्मत से उनकी जगह एक दूसरी लड़की को ले लिया गया. इसके बड़ा उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरू कर दी. किस्सा मशहूर है कि जब पालकीवाला आगे वकील के तौर पर मशहूर हुए, वो सालों तक उस लेक्चरर को डिनर पर ले जाते रहे. शुक्रिया अदा करने के लिए अगर उस दिन उस लड़की ने उनकी जगह न ली होती तो नानी वकील न बन पाते. 1944 में नानी पालकीवाला ने मुम्बई की एक लॉ फर्म ज्वाइन की. 1954 में उन्होंने अपना अपना पहल केस लड़ा. जिसमें उन्होंने एंग्लो-इंडियन स्कूल बनाम महाराष्ट्र सरकार केस में स्कूल की तरफ से अदालत में पैरवी की. ये केस अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. नानी वहां भी ये केस जीतने में कामयाब रहे. हालांकि ये सिर्फ आने वाले दिनों की झलकी थी. जल्द ही इस युवा वकील की दलीलें सुनने के लिए कोर्ट में भीड़ लगने वाली थी. देखिए वीडियो.
तारीख़: नानी पालकीवाला ने कैसे लड़ा था भारत का सबसे बड़ा केस?
सुप्रीम कोर्ट में दूसरे वकीलों की बोलती बंद करने वाले नानी बचपन में हकलाकर बोलते थे.
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