साल 2013. जब लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव नेता नहीं क्रिकेटर बनने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे. कोशिश कामयाब नहीं हो रही थी. रणजी के 7 मैचों में सिर्फ 37 रन. विकेट भी मिला तो सिर्फ एक. IPL में तो तीन साल टीम में रहने के बावजूद प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं मिली. तभी बिहार में एक बड़ी घटना घटी. पिता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला केस में जेल हो गई. पार्टी और परिवार दोनों की हालत खराब. मां राबड़ी देवी ने बेटे को वापस बुला लिया.
कौन हैं 'तेजस्वी के संजय' जिनकी मौजूदगी से लालू परिवार में महाभारत छिड़ गई है?
संजय यादव और तेजस्वी यादव में इतनी करीबी है कि उनका खुद का परिवार ‘इनसिक्योर’ हो गया है. संजय यादव, तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार हैं. दावा किया जाता है कि तेजस्वी पर उनका ऐसा प्रभाव है कि लालू यादव की सबसे बड़ी उम्मीद बने बेटे के निजी फैसलों में भी संजय शामिल रहते हैं.


फिर क्या था. तेजस्वी ने क्रिकेट को हमेशा के लिए अलविदा कहा और राजनीति की नई पारी खेलने के लिए वापस पटना लौट आए. लेकिन वह अकेले नहीं आए. पटना पहुंचते ही अपने एक हरियाणवी दोस्त को भी फोन करके बुला लिया. दोस्त, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर था. और जिससे उनकी मुलाकात क्रिकेट ग्राउंड पर प्रैक्टिस के दौरान हुई थी.
अब कट टू 2025. तेजस्वी बिहार अधिकार यात्रा निकाल रहे हैं. उनका वही ‘दोस्त’ अब उनकी ‘सीट’ पर बैठ गया है. सीट एक बस की है. जिस पर राष्ट्रीय जनता दल की राजनीतिक यात्रा निकाली जा रही है. लेकिन बस में भी तेजस्वी की सीट पर उसका बैठना लालू परिवार के कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया. तेजस्वी के बहन-भाई की भौंहें टेढ़ी हैं. खुलकर नाराजगी जताई जा रही है, लेकिन ‘दोस्ती’ टस से मस नहीं हो रही. नौबत ये है कि लालू परिवार में ‘महाभारत’ होने की आशंका है.
इस दोस्त का नाम है संजय यादव. आप मनोज झा की तरह RJD के राज्यसभा सांसद हैं. तेजस्वी यादव के तो इतने ज्यादा करीबी हैं कि उनका खुद का परिवार ‘इनसिक्योर’ हो गया. संजय यादव, तेजस्वी के राजनीतिक सलाहकार हैं. दावा किया जाता है कि तेजस्वी पर उनका ऐसा प्रभाव है कि लालू यादव की सबसे बड़ी उम्मीद बने बेटे के निजी फैसलों में भी संजय शामिल रहते हैं. ‘नए तेजस्वी’ के शिल्प में भी उनकी बड़ी भूमिका मानी जाती है.
संजय यादव चर्चा में क्यों?दरअसल, बीते दिनों एक फोटो सोशल मीडिया पर सामने आई. RJD की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ वाली बस में तेजस्वी की, यानी सबसे आगे की सीट पर संजय यादव बैठे दिखाई दिए. इसी बात पर हंगामा खड़ा हो गया. तेजस्वी की बहन रोहिणी आचार्य ने सीट पर बैठने वाले का नाम लिए बिना इतना कुछ सुना दिया कि मामला ‘डैमेज कंट्रोल’ तक आ पहुंचा. इसी सीट पर दो दलित समुदाय से आने वाले नेताओं को बैठाकर उनकी फोटो शेयर की गई और कहा गया कि लालू जी भी यही चाहते हैं कि ‘वंचित वर्ग के लोग आगे आएं.’
लेकिन इससे पहले रोहिणी आचार्य ने आलोक कुमार नाम के पार्टी कार्यकर्ता की उस पोस्ट से सहमति जताकर खलबली मचा दी, जिसमें संजय यादव को ‘अपने आपको शीर्ष नेतृत्व से भी ऊपर समझने’ की बात कही गई थी. इस पोस्ट में लिखा था कि ‘फ्रंट सीट नेतृत्व करने वालों के लिए होती है और उनकी अनुपस्थिति में भी किसी को इस सीट पर नहीं बैठना चाहिए.’
रोहिणी के आवाज उठाने के बाद तेज प्रताप भी उनके समर्थन में आ गए. शनिवार, 20 सितंबर को उन्होंने फिर संजय का नाम लिए बिना उन्हें ‘जयचंद’ बताया और आरोप लगाया कि वह ‘तेजस्वी की कुर्सी हथियाना चाहते हैं’. संजय पर सवाल उठाने के बाद रोहिणी सोशल मीडिया पर ट्रोल होेने लगीं. बाद में उन्हें ‘एक्स’ पर पोस्ट करके सफाई देनी पड़ी कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वकांक्षा नहीं है.
लेकिन इन सब चीजों से वह इतना आहत हो गईं कि अपने मां-पिता और भाई तेजस्वी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से ‘अनफॉलो’ कर दिया.
राजनीति में आज सीधे नाम लेकर निशाना साधने का चलन है. लेकिन बिना नाम लिए संजय यादव पर ‘शब्द बाण’ छोड़े जा रहे हैं तो समझ आता है कि पार्टी में उनकी पैठ कितनी मजबूत है. उनके खिलाफ शिकायत में ये खास ध्यान रखा गया कि तेजस्वी नाराज न हों और ‘असंतोष की बात’ भी सही तरीके से सही जगह पहुंच जाए. यानी सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.
अब सवाल है कि ये संजय यादव साहब कौन हैं, जिनके खिलाफ RJD में कोई खुलकर कुछ कह नहीं पा रहा.
हरियाणा के रहने वाले हैं संजयसंजय हरियाणा के रहने वाले हैं. भोपाल की माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी से BCA और MCA की पढ़ाई की है. तेजस्वी से उनकी मुलाकात पहली बार साल 2012 में हुई थी. वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह बताते हैं,
ये बात सच है कि संजय यादव की तेजस्वी से मुलाकात क्रिकेट खेलने के दौरान हुई थी. लेकिन एक बड़े परिवार के नेता के पुत्र ने दोनों को एक-दूसरे से इंट्रोड्यूस करवाया था. इसके अलावा, संजय सपा मुखिया अखिलेश यादव के पास बहुत जाया करते थे. सोशलिस्ट लिटरेचर सब पढ़ते थे. वहां इन दोनों की दोस्ती हुई. फिर दिल्ली के तुगलक रोड पर लालू जी के निवास पर भी दोनों की मुलाकातें होती रहती थीं.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र ने बताया,
संजय यादव पहले सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करते थे. तेजस्वी ने कई बार उन्हें अपने पास लाने की कोशिश की. लेकिन शुरुआत में संजय नहीं आते थे. फिर भी, जब तेजस्वी दिल्ली जाते तो उनसे जरूर मुलाकात करते. धीरे-धीरे यह सब चलता रहा और संजय तेजस्वी के लिए बाहर-बाहर से काम करते रहे. लेकिन एक समय बाद तेजस्वी ने कहा कि आपको आना ही पड़ेगा.
बिहार आकर संजय ने तेजस्वी को सुझाव दिया कि अगर आप अपने काम के तौर-तरीके बदलें और उनके बताए रास्ते पर चलें तो उनकी पार्टी बिहार में रिवाइव (Revive) कर सकती है.
तेजस्वी की हरी झंडी मिली तो संजय यादव काम पर लग गए. RJD को रिवाइव करने के काम पर.
सबसे पहले उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के सोशल मीडिया का काम ठीक किया. ‘वॉर रूम’ वगैरह ठीक करने लगे. खुद पटना में ही रहने लगे. तेजस्वी से उनकी ऐसी करीबी रहने लगी कि अगर वह किसी को ‘वन-टू-वन’ इंटरव्यू भी देते हैं तो संजय यादव उनके साथ रहते हैं.
तेजस्वी यादव की राजनीतिक परिपक्वता जो भी आज दिखती है, उसके पीछे संजय यादव का बड़ा हाथ बताया जाता है. उन्होंने तेजस्वी के 'नेता तत्व' पर खूब काम किया. संतोष सिंह के मुताबिक,
"बड़े चैनल हों या अखबार, कहीं भी इंटरव्यू देने जाने से पहले वह तेजस्वी का मॉक इंटरव्यू करवाते थे. बड़े-बड़े नेताओं के, खासतौर पर सारे सोशलिस्ट नेताओं के स्पीच पढ़वाते थे. अगर उनका ऑडियो मौजूद है तो वो सुनाया करते थे. इनमें विपक्षी दलों के जॉर्ज फर्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेई जैसे बड़े नेताओं के भाषण शामिल होते थे. इस तरह से संजय यादव ने तेजस्वी की ‘ग्रूमिंग’ में बहुत मदद की. बाद में जाकर वह तेजस्वी के पॉलिटिकल एडवाइजर बने."
पुष्यमित्र का मानना है कि संजय यादव के आने से राजद को कई फायदे भी हुए. जैसे-
- सबसे पहला तो पार्टी में प्रवक्ताओं की नई फौज आई, जो आक्रामक तरीके से अपनी बात रखती है. पार्टी की सोशल मीडिया पर उपस्थिति बढ़ी. भाषा में बदलाव हुआ. पहले राजद की भाषा लालू की भाषा होती थी, लेकिन अब ट्वीट और पोस्ट ज्यादा व्यवस्थित और प्रभावी होने लगे हैं. इस बदलाव के साथ-साथ पार्टी में प्रफेशनलिज्म भी बढ़ा.
- दूसरी बात. पार्टी को फंडिंग मिलने लगी. जैसे RJD को इलेक्टॉरल बॉन्ड्स जेडीयू से ज्यादा मिलने लगे. संजय यादव ने ही तेजस्वी को सजेस्ट किया कि उन्हें नीतीश के साथ जाना चाहिए. नीतीश को लेकर उनके मन में सॉफ्ट कॉर्नर है. यही वजह है कि तेजस्वी अलग होने पर भी नीतीश के प्रति बहुत ज्यादा हमलावर नहीं होते. इसके पीछे संजय यादव हैं. इसका फायदा भी हुआ और पार्टी डगमगाने के बाद एक अच्छी स्थिति में आ गई.
भागवत के बयान पर 'खेल'साल 2015 के बिहार चुनाव के दौरान आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने ‘आरक्षण की समीक्षा’ को लेकर बहुचर्चित बयान दिया था. तब RJD ने चुनाव में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. नतीजा ये हुआ कि भाजपा का चुनाव में प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा और RJD को इसका फायदा मिला.
संतोष सिंह कहते हैं, “मोहन भागवत का रिमार्क कि ‘रिजर्वेशन का रिव्यू होना चाहिए’, सबने एक दिन लेट देखा था. भागवत बोल चुके थे और बात आई-गई हो गई थी. किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया था, लेकिन एक दिन बाद यह संजय यादव को दिखा. वह तुरंत इसे लपककर लालू प्रसाद के पास लेकर गए. लालू प्रसाद यह देखकर उछल पड़े. उसके बाद जो हुआ, वो सबने देखा. बिहार चुनाव का जो आखिरी यानी पांचवां फेज था, उसका रुख ही मुड़ गया.”
प्रशांत किशोर ने इस मुद्दे का फॉलोअप किया और बहुत सारे पैंफलेट छपवाए कि कैसे दलित-पिछड़ों का रिजर्वेशन लेने की साजिश हो रही है. इसका रिजल्ट ये रहा कि बीजेपी के लाख डैमेज कंट्रोल करने के बाद भी उसे मुंह की खानी पड़ी. संतोष सिंह का मानना है कि कहीं न कहीं ये संजय यादव का कंट्रीब्यूशन था, जो इन सब में ‘बिहाइंड द सीन’ थे.
तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल के पुनरुद्धार में संजय यादव की भूमिका पर पुष्यमित्र कहते हैं,
लालू परिवार में 'कलह' के कारणतेजस्वी व्यक्तिगत रूप से एक असफल क्रिकेटर थे और राजद एक खत्म हो रही पार्टी थी. लेकिन संजय यादव के आने के बाद चीजें बदलीं. RJD की सीटें भी बढ़ीं. तेजस्वी दो बार डिप्टी सीएम बने. उन्हें लालू का उत्तराधिकारी माना गया. इन सबके पीछे एक ही आदमी है- संजय यादव. यही वजह है कि उन्हें तेजस्वी बहुत पसंद करते हैं. लेकिन इसका असर ये हुआ कि संजय ने तेजस्वी पर एकाधिकार कर लिया. इससे लालू परिवार के कुछ लोग असहज और असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि सत्ता और ध्यान तेजस्वी के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गया.
पुष्यमित्र के मुताबिक, तेज प्रताप जो बार-बार हमलावर होते हैं, उन्हें कमजोर करने और बदनाम करने में संजय यादव की बड़ी भूमिका है. जैसा राजघरानों में होता था कि राजा या राजकुमार का एक विश्वस्त सहयोगी होता है, जो बाकी सभी गद्दी के दावेदारों को काटकर अलग करता रहता है. कुछ जानकार संजय यादव को इसी रोल में देखते हैं.
साल 2021 की बात है. तेज प्रताप और पार्टी के नेता जगदानंद सिंह के बीच युद्ध जैसा माहौल था. इस मुद्दे पर बात करने के लिए तेज प्रताप राबड़ी देवी के घर गए. यहां पर तेजस्वी से मुलाकात होनी थी. थोड़ी देर बाद तेज प्रताप तमतमाए हुए आवास से बाहर आए. सामने मीडियाकर्मी पड़ गए तो वहीं उनके सामने ही बरस पड़े. तेज प्रताप ने बताया कि तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव ने उन्हें उनके भाई से बात करने से रोक दिया और तेजस्वी को साथ लेकर अंदर चले गए. भड़के तेज प्रताप बोले, “ये संजय यादव कौन होता है दो भाइयों के बीच होने वाली बातचीत को रोकने वाला.”
संजय को लेकर आरोप लगते हैं कि वह लोगों के लिए तेजस्वी की उपलब्धता के बीच दीवार बनकर खड़े हैं. जब तक पार्टी में लालू इस पोजिशन पर थे, उनसे मिलना कभी किसी के लिए मुश्किल नहीं रहा. आज भी लालू प्रसाद से मिल पाना आसान है, लेकिन तेजस्वी से मिलने के लिए किसी को भी संजय यादव से होकर गुजरना होगा.
इन सबसे तेजस्वी का खुद का परिवार भी अछूता नहीं है. लालू के कुनबे में इसे लेकर बेचैनी है.
पहले तेज प्रताप का ‘जयचंद-राग’ और अब रोहिणी आचार्य को भी ये लग रहा है कि संजय खुद को ‘शीर्ष नेतृत्व’ समझने लगे हैं. तो क्या मामला अब लालू प्रसाद यादव के हाथ से भी निकल गया है?
पुष्यमित्र कहते हैं कि रोहिणी आचार्य अपनी बात लालू यादव से मनवाती थीं. वह लालू के बहुत करीब हैं. उन्होंने पिता को किडनी दी है. वह कई मौकों पर तेजस्वी के पक्ष में भी खड़ी रहीं, लेकिन अब अगर वो शिकायत कर रही हैं तो इसका मतलब है कि लालू यादव के कंट्रोल में भी कुछ नहीं है. रोहिणी के अलावा मीसा भारती भी संजय यादव को लेकर असंतोष जता चुकी हैं.
क्या इसके पीछे टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी है?
पुष्यमित्र का मानना है कि ऐसा नहीं है कि रोहिणी टिकट चाहेंगी तो उन्हें नहीं मिलेगा. तेज प्रताप, मीसा, रोहिणी, इन लोगों को तो टिकट मिल जाएगा. लेकिन इनके आसपास रहने वाले जो उनके ‘चेले-संबंधी’ हैं, उनको टिकट नहीं मिल रहा होगा. यही नाराजगी की वजह हो सकती है.
कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तेजस्वी चाहते हैं कि आने वाले चुनाव में उनके परिवार के किसी सदस्य को टिकट न मिले. यह रणनीति राजद पर लगते परिवारवाद के आरोप और खुद तेजस्वी के नीतीश सरकार के खिलाफ ‘दामाद आयोग’ के दांव के अनुकूल नहीं है.
इसकी एक बानगी बिहार अधिकार यात्रा में दिखती है कि कैसे तेजस्वी के कार्यक्रमों से उनके परिवार की ‘विजिबिलिटी’ गायब है. लालू यादव के बड़े दामाद हैं, शैलेश. वह मीसा भारती के पति हैं. चुनाव लड़ने की इच्छा भी है. लंबे समय के बाद वह बीते दिनों बिहार अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी के साथ नजर आए. लेकिन साथ होते हुए भी 'अदृश्य' हालत में रहे.
शैलेश की स्थिति को लेकर दी लल्लनटॉप में पॉलिटिकल एडिटर पंकज झा कहते हैं, “लालू यादव के दामाद जी इस तरह से तेजस्वी के साथ रहते हैं कि उनकी एक भी फोटो नहीं आती.”
इससे पहले भी एक बार उनकी एक तस्वीर पर बड़ा विवाद हो गया था जब वह उस समय के वन मंत्री तेज प्रताप यादव की सरकारी बैठक में बैठ गए थे.
'तेजस्वी के बाद कौन का सवाल'पुष्यमित्र एक और बात की ओर ध्यान दिलाते हैं, जिसका 'डर' निश्चित तौर पर लालू परिवार के लोगों में होगा. वह ये है कि RJD तेजी से ‘लालू परिवार की पार्टी’ से ‘तेजस्वी की पार्टी’ की ओर शिफ्ट होती जा रही है. जाहिर है, इसके पीछे भी जिम्मेदार संजय यादव को ही माना जा रहा है.
दरअसल, RJD के ईकोसिस्टम में एक सवाल तेजी से पैठ बना रहा है कि ‘तेजस्वी के बाद कौन?’ पुष्यमित्र का कहना है कि ये सवाल इसलिए है क्योंकि इसकी बहुत आशंका है कि अगर तेजस्वी बिहार में सरकार बना लेते हैं तो उन पर केस लगाकर उन्हें जेल भेज दिया जाए. नया कानून बन ही गया है. अंदरखाने की खबर है कि कांग्रेस ने तेजस्वी को इसे लेकर ‘हिंट किया है’. खबर है कि ऐसी स्थिति में तेजस्वी अपनी जगह के लिए मीसा भारती का नहीं, तेज प्रताप का नहीं, रोहिणी आचार्य का भी नहीं बल्कि अपनी पत्नी राजश्री यादव का नाम आगे बढ़ाएंगे.
अगर ऐसा होता है तो राष्ट्रीय जनता दल लालू परिवार की पार्टी से तेजस्वी परिवार की पार्टी हो सकती है. और इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ होगा- ‘तेजस्वी के संजय’ का. संजय यादव का.
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