ब्रिगेडियर खेत्रपाल अपनी जिंदगी में कई जंग लड़ चुके थे. 1965 में जिस पाकिस्तान से उन्होंने दो-दो हाथ किए थे, उसी का एक फौजी आज उनके सामने खड़ा था. लेकिन दुश्मन की तरह नहीं, बल्कि मेजबान की तरह. जिंदगी की संध्या होने को थी. 81 साल के ब्रिगेडियर एक आख़िरी बार अपनी जन्मभूमि को देखना चाहते थे. सरगोधा जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान के हिस्से चला गया था. यहां 3 दिन रहने के दौरान उनकी खूब मेजबानी हुई. पाकिस्तानी फौज के ब्रिगेडियर नासेर उनसे मिलने आए. उन्हें अपने घर खाने का न्योता दिया. खाने के बाद दोनों लॉन में टहलने लगे. ब्रिगेडियर खेत्रपाल ने देखा कि नासेर कुछ कहना चाह रहे हैं लेकिन कह नहीं पा रहे. उन्होंने नासेर से कहा, आप बेहिचक बताइए आपको जो कुछ भी कहना है. नासेर ने उन्हें जो बताया उससे अचानक उन्हें 30 साल पुरानी एक सुबह याद आ गई. एक खत आया था उस रोज़. जिसे उनकी पत्नी मिसेज़ खेत्रपाल ने रिसीव किया था. उस खत में लिखा था कि उनका 21 साल का बेटा युद्धभूमि में मारा गया है. अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे में हुआ था. वे एक फौजी परिवार से आते थे.
जलते टैंक में बैठा रहा लेकिन पाकिस्तान को आगे बढ़ने नहीं दिया!
सेकेण्ड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए 16 दिसंबर, 1971 को वीरगति को प्राप्त हुए. उनके शौर्य तथा बलिदान को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
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