'जंगल में आग की तरह फैलना'
जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए इंसानों का सुधरना क्यों जरूरी है?
ये जंगल में आग लग कैसे जाती है और इसे बुझाने और रोकने के तरीके क्या हैं?

ये मुहावरा तो सुना ही होगा कि फलां बात तो जंगल की आग की तरह फैल गई. जमाने से इस्तेमाल हो रहे इस मुहावरे का मतलब भी पता ही होगा. लेकिन यहां बात मुहावरे की नहीं है. असल आग की है. जंगल में लगी आग. आपने कई बार जगलों में आग लगने की खबरें सुनी होंगी. ऐसी ही एक आग राजस्थान के अलवर के पहाड़ों पर लगी है. आग से इलाके में घूम रहे बाघों पर खतरा मंडरा रहा है. प्रशासन ने आग पर काबू पाने के लिए सेना से मदद भी मांगी है. आज बात करेंगे कि आखिर जंगल में आग लगती कैसे है और इसे बुझाया कैसे जाता है.
जंगल में आग लगती कैसे है?
आग जलने के लिए तीन चीजों की जरूरत होती है. ताप (हीट), ईंधन और ऑक्सीजन. इनमें से एक भी चीज अगर नहीं होगी तो आग नहीं लगेगी. इनमें ऑक्सीजन तो हमारे आसपास हवा में ही मौजूद है. पेड़ों की सूखी टहनियां और पत्ते ईंधन का काम करते हैं. वहीं एक छोटी सी चिंगारी हीट का काम कर सकती है.
ज्यादातर आग गर्मी के मौसम में लगती है. इस मौसम में एक हल्की चिंगारी ही पूरे जंगल को आग की चपेट में लेने के लिए काफ़ी होती है. ये चिंगारी जंगलों से गुज़रने वाली ट्रेनों के पहियों से भी निकल सकती है और पेड़ों की टहनियों के आपस में रगड़ खाने से भी. सूरज की तेज़ किरणें भी कई बार आग का कारण बनती हैं.
हालांकि जानकार बताते हैं कि ज़्यादातर बार जंगल की आग इंसानी लापरवाही के चलते लगती आई है. जैसे कैंप फायर, पटाखे और सिगरेट का जलता टुकड़ा. कई बार मौसम के बिगड़ने के चलते बिजली गिरने से भी जंगलों में आग लग सकती है. वैज्ञानिकों के हिसाब से जितनी ज्यादा गर्मी होती है उतनी ज्यादा बिजली गिरने की संभावना रहती है.
गर्मी में पेड़ों की टहनियां और शाखाएं सूख जाती हैं, जो आसानी से आग पकड़ लेती हैं. एक बार आग लगने पर इसे हवा बढ़ावा देती है. अगर हवा तेज़ गति से चल रही है तो आग तेज़ी से फैलती है. जंगल में अगर ढलान है तो आग और प्रचंड रूप ले सकती है. आग पहले सूखी घास में फैलती है, फिर पेड़ों को और धीरे-धीरे आसपास के जानवरों और इंसानों तक को घेर लेती है.
क्यों बढ़ रहीं आग लगने की घटनाएं?
जर्मन वेबसाइट DW
में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिक बताते हैं कि जंगल में आग लगने की 95 फीसदी घटनाएं इंसानों की वजह से शुरू होती हैं. पिछले 35 सालों से ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है जिसके लिए सीधे तौर पर इंसान जिम्मेदार हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि बढ़ती गर्मी ने
ही जंगलों में आगजनी की घटनाओं को बढ़ाया है. कोयले, तेल और गैस के जलने से हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगलों में आग का जोखिम 34 से 60 फीसदी तक बढ़ गया है.

एक अनुमान के मुताबिक 21वीं सदी खत्म होते-होते धरती का औसत तापमान तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा. (सांकेतिक फोटो- साभार: Canva)
इसलिए, जंगलों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं के नियंत्रण के लिए इसके कारणों को जानना जरूरी है. मसलन, जब तापमान बहुत गर्म होता है तो मशीनी उपकरणों या वाहनों से निकलने वाली चमक सूखी घास या पत्तियों को प्रज्वलित कर सकती है. तेज हवाओं के कारण ये आग बड़े क्षेत्रों में छलांग लगा सकती है. जंगल की आग के साथ समस्या ये है कि रिमोट सेंसिंग के अलावा उन्हें पहचानना, उनके दायरे को समझना और कार्रवाई करना हमेशा संभव नहीं होता है.
जंगल की आग बुझाई कैसे जाती है?
पहले जब जंगलों में आग लगती थी तो आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोग आग बुझाने के लिए जाते थे. बाद में तकनीक के विकास के साथ आग बुझाने के नए तरीके भी अपनाए जाने लगे. जैसे हेलिकॉप्टर से पानी गिराकर और बड़ी फायरफाइटर गाड़ियों से आग पर काबू पाना. जब आग बुझाने की बात होती है तब ताप (हीट), ईंधन और ऑक्सीजन, इन तीन में से किसी एक को खत्म करने की कोशिश होती है ताकि आग का त्रिकोण खत्म कर इसे बुझाया जा सके.
आग बुझाने के तरीकों को हम दो तरह से समझ सकते हैं- पारंपरिक और आधुनिक.
- 'आग' से ही बुझती है आग!
पारंपरिक तरीकों की बात करें तो जब आग बुझाने के लिए पहाड़ों या घने जंगलों में फायर ब्रिगेड नहीं पहुंच पाती और पानी की कमी हो तो आग बुझाने के लिए आग का ही सहारा लिया जाता है. इसे 'क्रॉस फायर' कहते हैं. इसमें पहले जिस पहाड़ी में आग लगती है, उससे कुछ दूरी पर खाई खोदकर दूसरी आग लगाई जाती है. जैसे ही तेज हवा से पहले से लगी आग की लपटें खाई में जलाई गई आग तक पहुंचती हैं तो दोनों तरफ की आग आपस में मिलते ही शांत हो जाती हैं.
खाई खोदने से सूखी घास की चेन भी खत्म हो जाती है. इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण ये है कि आग को आगे बढ़ने के लिए चाहिए ऑक्सीजन. लेकिन क्रॉस फायर या कहें नई आग के कारण पहले से लगी आग को ऑक्सीजन मिल नहीं पाती. इससे वो शांत हो जाती है. साथ ही पारंपरिक तरीकों में हरे पत्ते व गीली लकड़ियों को फटकार कर भी आग बुझाते हैं. जिधर आग बढ़ रही होती है वहां हरे पत्ते व गीली टहनियां डाल दी जाती हैं. इससे घास में लगी आग आगे नहीं बढ़ती.
- आधुनिक तरीके
वाइल्ड फायर रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने का काम कर रही संस्था स्मोकीबियर
की वेबसाइट पर बताया गया है कि अब जब किसी जंगल में आग लगती है तो सबसे पहले एक्सपर्ट्स आग की संभावनाओं का पता लगाने के लिए एक स्पेशल टूल का इस्तेमाल करते हैं. ये तापमान, हवा की रफ्तार जैसे मानकों की जांच करता है. इससे ख़तरनाक स्तर पर पहुंचने से पहले आग को रोकने के प्रयास किए जाते हैं. जैसे जंगल के इलाक़ों में बीच-बीच में गड्ढे खोद देना ताकि आग आगे न फैल सके. साथ ही जंगलों से उन सभी चीज़ों को हटा दिया जाता है, जो चिंगारी पैदा करती हों.
इसके बाद हेलिकॉप्टर और एयर टैंकर की मदद ली जाती है. इसमें हेलिकॉप्टर किसी पास के जल स्त्रोत से पानी भरकर आग पर डालता है. इसके अलावा अगर आग लगने वाली जगह पर फायर ब्रिगेड का जाना संभव हो तो वहां फायर ब्रिगेड या स्पेशल वाइल्डलैंड फायर इंजन पहुंचता है. अगर वो ऐसा क्षेत्र है जहां गाड़ियां नहीं पहुंच सकतीं तो स्मोक जंपर्स की मदद ली जाती है. स्मोक जंपर्स पैराशूट की मदद से पानी के बड़े बैगपैक और जरूरी सामान के साथ जंगल में कूदते हैं. फिर आग बुझाने की कोशिश करते हैं.

जंगल में लगी आग बुझाते हेलिकॉप्टर की सांकेतिक फोटो (साभार-आजतक)
जंगल में आग लगने से पहले कैसे रोकी जाए?
जंगल की आग को बुझाने की नौबत न आए इसके लिए जरूरी है कि हम पहले ही ऐसा न होने देने के लिए रणनीति बना लें. इसके लिए आम लोगों में जागरूकता फैलाना, जिम्मेदारी और चिंता का भाव पैदा करने के साथ ही वन प्रबंधन के लिए सही योजनाओं का होना जरूरी है.
जंगल में आग को लगने से रोकने के लिए इन चीजों का विशेष दिया रखा जाता है-
प्राकृतिक कारणों से जंगल की आग के खतरों को जानना होता है. आगे मौसम की स्थिति का अनुमान लगाकर फिर उसके हिसाब से योजना बनाई जाती है.जंगल में काम करने वाले लोगों को गर्मी के मौसम में ऐसी मशीनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जो चिंगारी पैदा करती हों या उनके ज्यादा गर्म होने पर आग लगने का खतरा रहता हो.
जंगलों के पास जिन लोगों के घर हैं वे घरों से निकला कूड़ा खुले में ना जलाएं, क्योंकि इससे भी आग लगने का खतरा बना रहता है. कई बार इन घरों में रहने वाले लोग खेती के बाद बचा मलबा भी जला देते हैं. इससे भी आग लग सकती है.
खेती की जमीन को बढ़ाने के लिए स्लेश-एंड-बर्न वाली प्रथा से बचना चाहिए. इसमें जंगलों को काटकर सूखे पेड़ों और पत्तियों को जलाया जाता है. इससे भी कई बार आग कंट्रोल में नहीं रहती और पूरे जंगल में फैल जाती है.