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'20000 का ATM कार्ड, पलायन और बेरोजगारी', बिहार में आखिर कौन सा खेल कर रहे प्रशांत किशोर?

Bihar Vidhan Sabha Chunav: Prashant Kishor पिछले तीन साल से बिहार में डटे हैं. 'बिहार बदलाव सभा' के जरिए जिले जिले खाक छान रहे हैं. लोगों के बीच जा रहे हैं. संवाद कर रहे हैं. इस दौरान वो तमाम मुद्दों पर बात करते हैं. लेकिन पलायन और बेरोजगारी उनकी यात्रा की सेंट्रल थीम है.

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प्रशांत किशोर चुनावी तैयारी में जुट गए हैं. (जन सुराज)

कांग्रेस, लालू जी, नीतीश जी, बीजेपी. सभे बारी बारी ठगले बा. अब प्रशांत जी आइन बानी. कह तानी बिहारे में नौकरी दिहें. कवन दो कार्ड भी बनवावत बाड़े. देखके बा अब इ का करिहें. अब केहू से आस त नइखे. उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच झूलते राकेश कुमार जब ये बोल रहे थे तब उनके चेहरे पर कोई भी भाव पढ़ पाना बेहद मुश्किल हो रहा था. वो रोजी रोटी के लिए बिहार से पलायन कर चुके हैं. नोएडा में ई-रिक्शा चलाते हैं. राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं. मोबाइल पर प्रशांत किशोर को सुना है. वो बिहारियों को वापस राज्य में लाने की बात कर रहे हैं. बता रहे हैं कि कोई कार्ड बनाने को कहे हैं.

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प्रशांत किशोर के वायदों का ‘ATM CARD’

राकेश जिस कार्ड की बात कर रहे हैं. बिहार में ये चर्चा में हैं. नाम है ‘परिवार लाभ कार्ड.’ जन सुराज इसके लिए एक फॉर्म भरवा रही है. दावा किया जा रहा है कि जन सुराज (Jan Suraaj) की सरकार आई तो पांच तरह के लाभ के जरिए हर परिवार को महीने में 20 हजार रुपये तक का फायदा दिया जाएगा.

जन सुराज पार्टी 27 अगस्त से युद्धस्तर पर परिवार लाभ कार्ड फॉर्म भरवा रही है. पूरे बिहार में 8 हजार कैनोपी लगी है. जन सुराज से जुड़े प्रोफेशनल्स की छुट्टी कैंसिल कर दी गई है. प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने फेस्टिवल्स से पहले 1.5 करोड़ फॉर्म भरवाने का टारगेट दिया है.

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एक परिवार से एक सदस्य को फॉर्म भरने की जरूरत है. जन सुराज के सूत्रों का दावा है कि 50 लाख रजिस्ट्रेशन फॉर्म आ चुके हैं. दावा इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि बिहार में लगभग 2.76 करोड़ परिवार हैं. एक तरह से जन सुराज पार्टी ये कह रही है कि हर पांच-छह में से एक परिवार ने फॉर्म जमा कर दिया है.

परिवार लाभ कार्ड के तहत नवंबर 2025 से हर परिवार को 20 हजार रुपये तक के लाभ का वादा किया है. इस कार्ड में रोजगार की गारंटी के लिए 12 हजार, वृद्धा, विधवा और दिव्यांग पेशन के लिए 2 हजार, नकदी फसलों की खेती में मुफ्त मजदूर सुविधा के लिए 2500, स्कूली शिक्षा के लिए 1 हजार और महिलाओं को 4 परसेंट सालाना ब्याज पर 5 लाख तक के कर्ज का वादा किया गया है. प्रशांत किशोर के लोग इसे जन सुराज का एटीएम कार्ड बताते हैं, जिसे उनकी सरकार आने पर भंजाया जा सकता है.

JAN SURAAJ
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पलायन और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश

प्रशांत किशोर पिछले तीन साल से बिहार में डटे हैं. बिहार बदलाव सभा के जरिए जिले जिले खाक छान रहे हैं. लोगों से मिलते हैं. संवाद करते हैं. अलग-अलग मुद्दों पर बात करते हैं, लेकिन सेंट्रल थीम पलायन और बेरोजगारी है. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने माना कि बेरोजगारी और पलायन दूर करना उनकी पहली प्राथमिकता है. हर चुनाव में पलायन और बेरोजगारी का मुद्दा उठता है लेकिन जातीय और सामाजिक समीकरणों की शोर में दब सा जाता है. मगर प्रशांत किशोर का पूरा कैंपेन पलायन और बेरोजगारी के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है. 

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आखिर प्रशांत किशोर बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर इतने मुखर क्यों हैं? इसको बिहार की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़ कर देखना होगा. उनके सामने एनडीए और महागठबंधन की चुनौती है. दोनों गठबंधन का जातीय और सामाजिक आधार बेहद मजबूत है. और उसमें सेंधमारी करना प्रशांत किशोर के लिए आसान नहीं होगा. ऐसे में कोशिश पलायन और बेरोजगारी जैसे भावनात्मक मुद्दों को उठाकर अपना एक वोट बेस बनाने की है. 

प्रशांत किशोर की इस कोशिश को आंकड़ों के आइने में भी देखने की जरूरत है. केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के एक आंकड़े के मुताबिक, बिहार के 2 करोड़ 90 लाख लोग फिलहाल रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में रह रहे हैं. प्रशांत किशोर की नजर इस वोट बैंक पर है. पिछले कुछ सालों से लगातार बिहार से ग्राउंड रिपोर्ट कर रहे विष्णु नारायण बताते हैं,

 ये सुनने में सारे बिहारियों को अच्छा लगता है कि पलायन रुक जाएगा. लेकिन मौजूदा परिस्थितियां ऐसी नहीं कि लोगों को राज्य में रोका जा सके. साथ ही प्रशांत किशोर इतने बड़े फोर्स नहीं हैं, उनकी ऐसी रैंक एंड फाइल भी नहीं है कि उनकी सभी बातों पर यकीन किया जा सके.

नीतीश कुमार पर हमला कर स्पेस बनाने की कोशिश

प्रशांत किशोर अपने पूरे कैंपेन में नीतीश कुमार को लेकर लगातार हमलावर हैं. वो यहां तक दावा कर रहे हैं कि अगर जदयू को 25 से ज्यादा सीट आई तो वो सियासत छोड़ देंगे. पीके लोगों को बताते हैं कि लालू जी मुख्यमंत्री बने तब भी बिहार देश का सबसे गरीब, पिछड़ा, बेरोजगार और पलायन वाला राज्य था. साल 2005 में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तब भी यही हाल था. और आज 2025 में भी बिहार के लिए यही बातें कही जाती हैं. लोग ऊब गए हैं. और बदलाव चाहते हैं. इंडिया टुडे से जुड़े पुष्यमित्र बताते हैं,

 इस चुनाव में बीजेपी और राजद दो स्थिर पार्टी रहेगी. वहीं जन सुराज और कांग्रेस इमर्जिंग पार्टी है. जदयू अपना स्पेस खो रही है. नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर तमाम तरह की बातें चल रही हैं. जदयू लंबे समय तक बीजेपी के साथ रहने के बावजूद एक मध्यममार्गी पार्टी है. एक मध्यममार्गी पार्टी जब स्पेस खाली करेगी तो उस स्पेस को भरने की लड़ाई है. इस लड़ाई में कांग्रेस और प्रशांत किशोर दोनों हैं. प्रशांत किशोर नीतीश कुमार पर इसलिए हमलावर हैं क्योंकि वो उस स्पेस को भरना चाहते हैं, जो नीतीश कुमार ने लव-कुश, अतिपिछड़ो और सवर्णों व मुसलमानों का कुछ हिस्सा और महिलाओं को जोड़ कर बनाया है.

विष्णु नारायण बताते हैं कि प्रशांत किशोर को इस बात का इल्म है कि जो टाइम एंड स्पेस है उसमें नीतीश कुमार कमजोर हो रहे हैं. जेडीयू में असमंजस की स्थिति है. वो अपने परिवार से किसी को आगे नहीं कर पाए हैं. और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ ये मजबूरी दिखी है कि परिवार से कोई आगे नहीं आया तो परेशानी आती है पार्टी को आगे ले जाने में. ऐसे में उनको लग रहा है कि नीतीश कुमार का काडर वोट दरकेगा तो उसका कुछ हिस्सा उनकी ओर भी आएगा.

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बीजेपी पर तेज हुए है हमले

प्रशांत किशोर अपने कैंपेन में कई बार 35 साल की बात करते दिखे हैं. इस दौरान उनके निशाने पर नीतीश कुमार और लालू यादव या फिर तेजस्वी यादव होते हैं. कुछ महीने पहले तक वो बीजेपी को लेकर उस तरह से हमलावर नहीं दिखते थे. राजद समेत विपक्षी पार्टियों ने इसको मुद्दा बनाया. और उनको बीजेपी की बी टीम बताना शुरू कर दिया. इन आरोपों के बाद से प्रशांत किशोर की रणनीति बदली. और अब  ऑफ अटैक में बीजेपी से जुड़े नेता आ गए हैं. 

पिछले कुछ महीनों में उन्होंने बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल पर भ्रष्टाचार से जुड़े गंभीर आरोप लगाए हैं. यही नहीं बीजेपी नेता और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर भी परिवारवाद और उम्र को लेकर फर्जीवाड़ा करने के आरोप मढ़े हैं.

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सवर्ण वोटों में बढ़ा है प्रभाव 

प्रशांत किशोर जिस तरह से पलायन, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं. सवर्ण वोटर्स का एक तबका खासकर युवा वर्ग प्रशांत किशोर से प्रभावित हुआ है. प्रशांत किशोर खुद भी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. इसके साथ ही उन्होंने चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप और भोजपुरी अभिनेता रितेश पांडे जैसे लोगों को अपने साथ जोड़ा है, जिनकी एक अपनी अपील है. हालांकि ये अपील वोट में तब्दील होती है या नहीं ये भविष्य बताएगा. पुष्यमित्र का मानना है,

 सवर्णों का एक तबका बेहद तेजी से जन सुराज की ओर शिफ्ट हो रहा है. इसका नुकसान बीजेपी को भी होगा लेकिन ज्यादा नुकसान बीजेपी को होगा. जदयू वाली सीटों पर बीजेपी के समर्थक वोटर एकमुश्त प्रशांत किशोर की ओर शिफ्ट हो जाएंगे. ये परिस्थिति हम और लोजपा वाली सीटों पर भी बन सकती है.

pk
PTI
मुसलमान वोटों के लिए जोर आजमाइश

वक्फ बिल के दौरान विपक्ष मुसलमानों के साथ खड़ा हुआ. बिहार में बड़ी रैली हुई. इसके अलावा SIR में भी माहौल बनाया गया कि मुसलिम वोटर्स को निशाना बनाया जाएगा. इसके बावजूद भी मुस्लिम वोटर्स का एक बड़ा तबका इस बार कंफ्यूजन में है. उनको लग रहा है कि 18 फीसदी आबादी होने के बावजूद महागठबंधन में वैसी सियासी हिस्सेदारी नहीं मिल रही, जिसके वो हकदार हैं. मुख्यमंत्री के दावेदार तेजस्वी यादव हैं. डिप्टी सीएम के तौर पर मुकेश सहनी का नाम चल रहा है. सत्ता के शीर्ष पर दावेदारी करने वाला कोई मुस्लिम नाम न राजद की ओर से आ रहा है, न ही कांग्रेस में कोई बड़ा अल्पसंख्यक चेहरा उभर पाया है.

प्रशांत किशोर इस कंफ्यूजन का फायदा उठाना चाहते हैं. वो लगातार मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों से मिल रहे हैं. मुस्लिमों की बदहाली के लिए राजद पर निशाना साध रहे हैं. मुसलमानों को ताना दे रहे हैं कि कब तक लालेटन का केरोसिन बनकर लालू यादव और तेजस्वी यादव का घर रोशन करते रहेंगे. किशनगंज के मदरसा अंजुमन इस्लामिया ग्राउंड में आयोजित 'बिहार बदलाव इजलास' में प्रशांत किशोर ने कहा, 

राजद और महागठबंधन के लोगों को अगर मुसलमानों की चिंता है तो बताएं कि पिछले 30 सालों से क्यों नहीं मुस्लिम बच्चों के लिए पढ़ाई और रोजगार की व्यवस्था की? सिर्फ बीजेपी का डर दिखाकर मुस्लिमों का वोट लिया. 

प्रशांत किशोर यहीं नहीं रुके. मोतिहारी के बापू सभागार में आयोजित मुस्लिम एकता सम्मेलन में दावा किया कि अगर मुसलमान उन्हें समर्थन करते हैं तो वो बिहार में नीतीश और बीजेपी को ही नहीं, बल्कि दो साल बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को भी हरा देंगे. प्रशांत किशोर आबादी के हिसाब से मुसलमानों को टिकट देने का भी वादा कर रहे हैं. उन्होंने मुसलमानों को 40 सीट देने का वादा किया है. मुस्लिमों को जोड़ने की पीके की कवायद परवान चढ़ पाएगी या नहीं इसके बारे में वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल बताते हैं, 

कुछ दिन पहले तक ये माना जा रहा था कि मुसलमानों का एक खेमा महागठबंधन के साथ है. एक खेमा ओवैसी के साथ है. एक खेमा प्रशांत किशोर की ओर भी देख रहा है. और थोड़ा बहुत हिस्सा नीतीश कुमार के साथ भी है. लेकिन राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. मुसलिम वोटर्स महागठबंधन की ओर गोलबंद हो रहे हैं. प्रशांत किशोर ने मुस्लिमों को लेकर जो माहौल बनाया था वो कमजोर होता दिख रहा है. आप देख सकते हैं कि पिछली बार पांच सीट जीतने वाले ओवैसी छह सीटों पर लड़ने के लिए महागठबंधन का दरवाजा खटखटा रहे हैं.

परिवारवाद का आरोप लगा रहे लेकिन परहेज भी नहीं

प्रशांत किशोर परिवारवाद को लेकर लगातार तेजस्वी यादव पर हमलावर हैं. अपनी सभाओं में बार-बार कहा कि तेजस्वी यादव अगर लालू यादव के बेटे नहीं होते तो उनकी कोई हैसियत नहीं होती. यही नहीं वो लालू यादव को सबसे अच्छा पिता बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपने बेटे बेटियों को राजनीति में सेट कर दिया. इसके अलावा पीके परिवारवाद को लेकर सम्राट चौधरी को भी घेरते दिखते हैं. और उनके राजनीतिक करियर का श्रेय उनके पिता शकुनी चौधरी को देते हैं. 

परिवारवाद को लेकर दूसरे दलों पर हमलावर प्रशांत किशोर का रुख अपनी पार्टी में इतना क्लियर नहीं है. उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह भी राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनकी मां और भाई सांसद रहे हैं. यही नहीं कई राजनेताओं के सगे संबंधियों को उनकी पार्टी में जगह मिली. कर्पूरी ठाकुर की पौत्री जागृति ठाकुर, बीजेपी के पूर्व सांसद लालमुनि चौबे के बेटे हेमंत चौबे, समता पार्टी के पूर्व सांसद और बिहार सरकार में मंत्री रामजीवन सिंह के पुत्र राजीव नयन, बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के नाती अमृतांश आनंद इस कतार में शामिल हैं. विष्णु नारायण बताते हैं,

 प्रशांत किशोर भले ही राजनीतिक परिवार से आने वालों लोगों को तवज्जो नहीं देने की बात कर रहे थे. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा. राजनीतिक रूप से स्थापित परिवारों के लोग इनके साथ जुड़ रहे हैं. यही नहीं ग्राउंड पर उनको जात-पात से भी कोई परहेज नहीं है. वो सारे समीकरण साधेंगे. इनके लोग जातीय समीकरण में फिट या फिर आर्थिक रूप से मजबूत उम्मीदवारों को अपने साथ जोड़ रहे हैं.

कई लोगों ने छोड़ दिया साथ 

प्रशांत किशोर लगातार अपने साथ नए लोगों को जोड़ रहे हैं. लेकिन उनसे जुड़े कई लोग अपने रास्ते अलग भी कर चुके हैं. इनमें बिहार की राजनीति के वेटरन देवेंद्र यादव और मोनाजिर हसन जैसे लोग हैं तो युवा चेहरे आनंद मिश्रा जैसे नाम भी. इन लोगों ने आरोप लगाया कि पार्टी में उनकी सुनवाई नहीं हो रही थी. और पार्टी में प्रोफेशनल्स का हस्तक्षेप बहुत ज्यादा है. विष्णु नारायण बताते हैं कि राजनीतिक व्यक्ति की अपनी महत्वकांक्षाएं होती हैं और तौर-तरीका भी अलग होता है. प्रोफेशनल्स उनको डिक्टेट कर रहे हैं. राजनीति केवल डेटा सेंट्रिक नहीं होती. भावनाओं की भी जगह होती है. उसको दरकिनार करके केवल डेटा-डेटा करने से काम नहीं बनेगा.

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अभी क्या कर रहे हैं प्रशांत किशोर?

प्रशांत किशोर फिलहाल बिहार की राजनीति में एनडीए और महागठबंधन से इतर खुद को तीसरे विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करने में जुटे हैं. उम्मीदवार फाइनल करने की कवायद चल रही है ताकि ग्राउंड पर जन सुराज की विजिब्लिटी दिखे. इसके लिए तमाम जातिगत समीकरणों को भी साधने की कोशिश हैं. साथ में पलायन, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं. अब वो अपने मिशन में कितना कामयाब हो पाएंगे इसके लिए चुनाव नतीजों का इंतजार करना होगा. खुद प्रशांत किशोर भी कह रहे हैं कि वो जो प्रयास कर रहे हैं इसके दोनों परिणाम हो सकते हैं या तो जन सुराज अर्श पर होगा या फर्श पर.

वीडियो: प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव के वायरल डांस पर तंज कसते हुए क्या कहा?

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