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किताबें आयत के आकार की ही क्यों होती हैं? 3700 साल पहले की कहानी है वजह!

आज से करीब 3700 साल पहले भी खराब माल की डिलीवरी की कंप्लेंट के सबूत मिले हैं. ये कंप्लेंट बाकायदा मिट्टी की बनी पट्टी में लिखकर की गई थी. लिखने को लेकर पहले और अब क्या चीजें बदली हैं?

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कागज के इस्तेमाल से पहले चटाई नुमा घास की पत्तियों पर लिखा जाता था.

इराक़ की राजधानी बग़दाद में किताबों का एक अनोखा बाजार है. जहां सड़कों पर किताबें रात के सन्नाटे में भी खुले आसमान के तले रखी नजर आती हैं. इसके पीछे एक बड़ी प्यारी वजह भी दी जाती है. वहां के लोगों का मानना है, “पढ़ने वाले चोरी नहीं करते और चोर पढ़ते नही.” शायद यहां के लोगों को ‘मनी हाइस्ट’ शो के पढ़े-लिखे लुटेरों के बारे में नहीं मालूम. खैर, किताबों की बात चली है तो किताबों को लेकर एक बात, जो जेहन में आती है. ये ज्यादातर किताबें एकदम चौकोर क्यों नहीं होतीं. इनकी लंबाई चौड़ाई से ज्यादा ही क्यों होती है? इसके पीछे कुछ साइंस और इतिहास भी है क्या?

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कभी ऑनलाइन डिलीवरी में खराब सामान आ जाए तो कस्टमर केयर को समझाने में दिमाग भन्ना जाता है. लेकिन ये बात जानकर आपको खुशी होगी कि कंपनी से शिकायत का ये दौर आज से नहीं चल रहा है. यहां तक कि आज से करीब 3700 साल पहले भी खराब माल की डिलीवरी की शिकायत के सबूत मिले हैं. ये कंप्लेंट की गई थी बाकायदा मिट्टी की बनी पट्टी में.

मिट्टी की इस पट्टी पर इतिहास की पहली कस्टमर कंपलेंट के सबूत मिलते हैं. (Image: Wikimedia commons)

जाहिर सी बात है लिखने के पहले सुराग गीली मिट्टी की पट्टी और पत्थरों पर ही मिलते हैं. क्योंकि वक्त की मार से यही बच पाए. तो किताबों के इस खास आकार के पीछे की कहानी समझने से पहले समझते हैं कि इंसानों ने लिखने की शुरुआत किन चीजों पर की? या कहें, किताबों की जगह पहले क्या चीजें थीं? फिर समझते हैं कि किताबों के आयताकार होने के पीछे क्या विज्ञान और इतिहास हो सकता है.

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किताबों से पहले किन चीजों पर लिखा जाता था?

पत्थरों और मिट्टी की पट्टी के बाद प्राचीन मिस्र के लोगों के घास की पत्तियों को चटाई नुमा चीजों पर लिखने के सबूत मिलते हैं. जिनको पापायरस (papyrus) कहा जाता है. इनको एक के बाद एक जोड़कर एक लंबी चटाई बनाई जाती थी. लेकिन किताब बनाने की जगह इनको रोल करके रखा जाता था या फिर एक के ऊपर एक.

प्राचीन मिस्र में पापायरस पर लिखा जाता था. (Image: wikimedia commons)

इसके बाद प्राचीन चीन में बांस, लकड़ी वगैरह पर लिखने का काम किया गया. भारत में भी इन चीजों के साथ पेड़ों की छाल और पत्तों पर लिखने के सुराग मिलते हैं. फिर यूरोप में चमड़े को खींचकर पतला करके उस पर लिखने और उससे किताबें बनाने का सिलसिला शुरू हुआ. किताबों के आकार का आयताकार हो जाने का सिलसिला इसी से जुड़ा माना जाता है. 

क्या आयताकर किताब पढ़ना ज्यादा आसान है?

कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि किताबों की लंबाई और चौड़ाई का खास महत्व उनको पढ़ने में आसान बना पाने में है. बताया जाता है कि जब हम किसी किताब को पढ़ते हैं तो नजर किताब के इस कोने से दूसरे कोने तक लेकर जाते हैं. ऐसे में अगर किताबों के बीच लिखी लाइन ज्यादा लंबी होंगी, तो उनको पढ़ पाना इतना आसान नहीं होगा.

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एक्सपर्ट्स एक पन्ने पर 45-75 शब्दों को पढ़ने में आसान मानते हैं. ये शब्द सीमा बनी रहे इसलिए किताबों को ज्यादा चौड़ा नहीं रखा जाता. ये भी बता दें पहले किताबें जब सड़क के किनारे स्टैंड्स पर रखी जाती थीं, तब कुछ आज की आम किताबों से काफी लंबी होती थीं लेकिन चौड़ाई लगभग आज जैसी, ताकि स्टैंड पर आसानी से नजर आ जाएं.

 चौकोर लकड़ी के टुकड़ों को भी लिखने के लिए प्रयोग किया जाता था. (www.ucl.ac.uk)
चमड़े से बनी किताबों ने कागज की किताबों के आकार में क्या असर डाला?

जैसा कि हमने आपको बताया कि पहले किताबें घास की बनी चटाई नुमा स्क्रोल पर लिखी जाती थीं. जो काफी हद तक चौकोर भी होती थी. फिर वक्त आया चमड़े से बनी किताबों का, जिसे पार्चमेंट कहा जाता है. 

जानवरों की खाल को खींचकर ऐसे पार्चमेंट बनाया जाता था.

ऐसा माना जाता है कि जब पार्चमेंट पर लिखना शुरू किया गया, तब किताबों के पन्ने जहिर तौर पर आयत के आकार के हो गए. क्योंकि पार्चमेंट की लम्बाई ज्यादा और चौड़ाई कम होती थी. ऐसे में जब उसे मोड़कर पन्ने बनाए गए तो वो भी उसी आकार के हो गए. फिर जब कागज का आविष्कार हुआ, तो लोग आयताकार किताबों में लिखने-पढ़ने के आदी हो चुके थे. इसलिए कागज की किताबों का आकार भी ऐसा ही रखा गया. 

मतलब ऐतिहासिक वजह और पढ़ने में सहूलियत, इन सब बातों को मिला-जुला कर किताबों के आकार के पीछे की वजह को समझा जा सकता है. 

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