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कतर ने किस जुर्म में 8 भारतीय अधिकारियों को फांसी की सजा सुनाई है?

भारत और कतर के बीच अच्छे रिश्ते हैं. और भारत की कोशिश है कि अपने नागरिकों को सुरक्षित वापस ले आए.

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पीएम मोदी के साथ कतर के राजा तमीम बिन हमद अल थानी

कैप्टन नवतेज सिंह गिल (रि.)

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कैप्टन सौरभ वशिष्ठ (रि.)

कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा (रि.)

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कमांडर पूर्णेंदु तिवारी (रि.)

कमांडर सुगुनाकर पकाला (रि.)

कमांडर संजीव गुप्ता (रि.)

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कमांडर अमित नागपाल (रि.)

सेलर रागेश गोपाकुमार

ये भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों के नाम हैं. उनसे जुड़ा एक एक भयावह आदेश 26 अक्टूबर की शाम को हमारे सामने आया. क़तर की कोर्ट ऑफ फर्स्ट इन्सटेन्स ने इन 8 लोगों को मौत की सजा सुनाई है. आरोप, धाराओं और सजा के आधार पर कोई जानकारी नहीं. जानकारी है बस सजा-ए-मौत की. खबर आने के बाद भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से बयान आया.

"अधिकारियों को मौत की सजा देने की खबर से हम स्तब्ध हैं और डीटेल जजमेंट की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसके साथ ही हम अधिकारियों के परिजनों और कानूनी टीम के संपर्क में हैं. साथ ही कानूनी विकल्प भी तलाश रहे हैं. मामले को हम काफी महत्वपूर्ण मानते हैं और इस पर बारीकी से नजर रखी जा रही है. अधिकारियों को कॉन्सुलर और कानूनी सहायता देना जारी रखेंगे. फैसले को कतर के अधिकारियों के सामने भी उठाएंगे."

विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि इस मामले की कार्रवाई की गोपनीयता के कारण, इस वक्त कोई और टिप्पणी करना उचित नहीं होगा.

अब जानते हैं कि मामला क्या है? इसको जानने के लिए पहले समझना होगा कि ये अधिकारी क़तर में कर क्या रहे थे. ये थे मिलिट्री एडवाइज़र. आसान भाषा में अनुवाद करें तो फौजी सलाहकार. ये सलाहकार युद्ध नहीं लड़ते हैं. लेकिन सेनाओं को ट्रेनिंग देते हैं. उपकरणों का रख-रखाव करते हैं, क्लाइंट को बेहतर रणनीति बनाने में मदद करते हैं. ये वैसा ही है, जैसे कोई भी दूसरी कंसल्टेंसी सर्विस होती है. जिसमें सेवा प्रदाता अपना कौशल बेचता है. ज़ाहिर है, इसके लिए पैसा लिया जाता है. और इसीलिए मिलिट्री अडवाइज़र्स या कंसल्टेंट को कई बार कॉन्ट्रैक्टर भी कहा जाता है.

अब अधिकारियों पर वापिस आते हैं. अभी जब हमने इन अधिकारियों के नाम अभी गिनाए, तो हमने इनके नामों के आगे रिटायर्ड कहा. यानी ये अधिकारी भारतीय नौसेना की सेवा छोड़ चुके थे. VRS यानी ऐच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर. इसके बाद इन लोगों ने 'दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज़ एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज़'' नाम की कंपनी में काम करना शुरू किया.  ये कंपनी कतर की नौसेना के साथ काम करती है. नौसेना के सैनिकों को ट्रेनिंग देती है. ये अधिकारी कंपनी के इसी ट्रेनिंग मॉड्यूल का हिस्सा थे. ये कंपनी ट्रेनिंग के साथ नौसेना के उपकरणों के मेंटेनेंस का भी काम देखती है. इस कंपनी में पास्ट में काफी सफलता और वाहवाही भी मिल चुकी है. भारत और क़तर के संबंधों को सुधारने में भी इस कंपनी का रोल रहा है. भारतीय दूतावास के कई अधिकारी भी इस कंपनी का दौरा कर चुके हैं. ये कोई ऐसा काम नहीं है, जो बस क़तर की नौसेना करती हो. भारत समेत कई देशों की सेनाएं इस तरह की कंपनियों के साथ काम करती रही हैं.

अब बात आती है इन सजायाफ्ता अधिकारियों के काम पर. हमने बात की नौसेना के पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी कैप्टन डीके शर्मा (रिटायर्ड) से. डीके शर्मा ने इन 8 में 7 पूर्व नौसैनिकों के साथ अलग-अलग समय पर काम किया है.

इन लोगों को 30 अगस्त 2022 की रात जब क़तर में अरेस्ट किया गया, तो अरेस्ट के कोई कारण बताए नहीं गए. अव्वल तो ये ही नहीं बताया कि इन्हें अरेस्ट भी किया जा रहा है. घरों से बस उठाया लिया गया, और कहा गया कि एक मिलिट्री एक्सरसाइज़ होनी है, उसकी तैयारी के लिए फौरन निकलना है. तब लगा कि सब सामान्य है, तो इन अधिकारियों ने सहयोग किया और कतर के अधिकारियों के साथ चले गए. लेकिन उस रात के बाद इन अधिकारियों से उनके परिवार संपर्क ही नहीं कर पाए.  

कतर की सरकार कुछ कहने को तैयार नहीं थी. ये पता ही नहीं चल पा रहा था कि इन्हें अरेस्ट किया गया था या इन्हें अगवा कार लिया गया था. फिर कई सूत्रों के हवाले से ये बात सामने आई कि कतर के स्टेट सेक्योरिटी ब्यूरो ने इन्हें हिरासत में लिया है. आरोपों और धारों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई. इनके परिवार के लोग न मिल पा रहे थे, न बात कर पा रहे थे.

30 सितंबर को ये 8 अधिकारी पहली बार अपने परिवारों से फोन पर बात कर पाए. परिवार इस समय क़तर में मौजूद भारतीय काउंसुलेट के संपर्क में भी था. आखिरकार 3 अक्टूबर को इन अधिकारियों को काउंसुलेट एक्सेस मिला. क़तर की राजधानी दोहा में मौजूद भारतीय काउंसुलेट का एक अधिकारी जेल में बंद इन अधिकारियों से मिला. 30 सितंबर को ही दाहरा का मालिक खामिस अल-अजमी दोहा पहुंचा. उसका लक्ष्य था कि अपनी कंपनी के कर्मचारियों को बाहर निकाला जाए. लेकिन उसे भी हिरासत में ले लिया गया. और उसे सभी 8 भारतीय लोगों के साथ सालिटरी कॉनफाइनमेंट में रख दिया गया. जी. सभी भारतीय अधिकारी सालिटरी कॉनफाइनमेंट में थे. यानी जेल के सबसे अलग हिस्से में, जहां एक कैदी को एक तनहाई बैरक में रखा जाता है, जिसमें उसके अलावा और कोई कैदी नहीं रहता है. ये सजा अमूमन गंभीर अपराधों के कैदियों को दी जाती है.

नवंबर 2022 - कंपनी के मालिक खामिस अल-अजमी को जमानत पर रिहा कर दिया गया.

इस दौरान आठों भारतीय अधिकारी जमानत की अर्जी लगाते रहे, और बार-बार उनकी जमानत याचिका को खारिज किया जाता रहा. मार्च 2023 इन अधिकारियों की आखिरी जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई और इसी महीने में इन पर आरोप तय कर दिए गए. क्या आरोप? वो अब भी किसी को नहीं पता.

सुनवाई हुई और अब आई है मौत की सजा. अब तक आपने गौर किया होगा कि सजा-सुनवाई सब हो गई. लेकिन किसी को नहीं पता कि केस किन आरोपों के तहत चला? लेकिन कुछ कहानियाँ चल रही हैं. और एक शब्द है - espionage यानी जासूसी.

इल्ज़ाम है कि ये अधिकारी क़तर से खुफिया सूचनाएं जुटाकर इजरायल को पहुंचाते थे. दी प्रिन्ट में छपी प्रवीण स्वामी की रिपोर्ट का रुख करते हैं साल 2020 में कतर ने इटली से हाई टेक पनडुब्बी खरीदने के लिए एक समझौता किया था. इसको बनाने वाली कंपनी ‘फिनकेंटियरी एसपीए’का ऑफिस ट्राइस्टे में मौजूद है. इस कंपनी ने जो समझौता किया था, उसमें कुछ और भी चीजें शामिल थीं. जैसे  इसको कतर में नौसेना का एक बेस बनाना था, साथ ही नौसैनिक बेड़े की देखरेख भी करनी थी. कतर ने समझौते के तहत चार कॉर्वेट जहाज और एक हेलीकॉप्टर का ऑर्डर भी दिया था.

इल्ज़ाम है कि ये अधिकारी क़तर के इस प्रोग्राम की डीटेल जुटाकर इजरायल के साथ शेयर कर रहे थे. चूंकि इनकी कंपनी दाहरा भी क़तर की नौसेना के साथ काम कर रही थी, तो कतर-इटली डील की जानकारी जुटाना इनके लिए आसान था.

‘कतर स्टेट सिक्योरिटी’ ने दावा किया था कि उसने इन अधिकारियों के उस सिस्टम को इंटरसेप्ट कर लिया था, जिससे वो कथित रूप से जासूसी कर रहे थे.

लेकिन एक जिज्ञासा का प्रश्न ये भी है कि भारत की नौसेना से रिटायर्ड कर्मचारी इजरायल के लिए काम क्यों कर रहे थे? दी प्रिन्ट ने अपनी रिपोर्ट में इस प्वाइंट का जिक्र भी किया है. दरअसल जिन पनडुब्बियों को क़तर खरीदना चाहता है, उन्हें लंबे समय तक पानी की सतह पर आने की जरूरत नहीं होती है. इन्हें डिटेक्ट नहीं किया जा सकता है और इस पनडुब्बी से अन्डरवाटर ड्रोन भी रिलीज किए जा सकते हैं. दूसरी ओर पाकिस्तान की नौसेना भी इटली की बनाई पनडुब्बी का इस्तेमाल करती है. चूंकि क़तर और पाकिस्तान के संबंध अच्छे हैं, तो भारत को ये चिंता है कि अगर क़तर को नई पनडुब्बियां मिल गईं तो पाकिस्तान इन पनडुब्बियों में लगी टेकनीक प्राप्त कर सकता है. ये तो हो गई भारत की चिंता.  

इसमें एक चिंता इज़रायल की भी है. इजरायल भी फिलिस्तीन से लगातार चल रहे संघर्ष की वजह से अरब देशों के बीच बहुत पसंद नहीं किया जाता है. लिहाजा वो इस पूरे ज़ोन की फायरपॉवर अपने हाथ में रखना चाहता है. उसके लिए भी इस इलाके पर नजर रखना और सैन्य शक्तियों को मजबूत न होने देना जरूरी हो जाता है.

लेकिन ये सब कुछ अपुष्ट है. बस खबरों की भाषा है. क़तर और भारत की सरकारों ने न तो कोई बयान जारी किया है, न ही आपस में कोई डॉज़ियर या सबूत साझा किये हैं, जिनसे इन आरोपों की पुष्टि होती हो.

इस पूरे केस में भारत और क़तर के संबंधों पर भी चर्चा हो रही है. दोनों देशों के आपसी संबंध अच्छे हैं. उदाहरण देखिए

1- भारत जितना LNG यानी (Liquified Natural Gas)और LPG गैस दुनिया भर से मंगवाता है, उसका 40 फीसद हिस्सा क़तर सप्लाई करता है. और क़तर जितना गैस दुनियाभर को भेजता है, उसका 15 फीसद ही भारत को बेचता है. यानी इंडिया का 40 क़तर का 15 है.

2- भारत से बड़ी संख्या में स्किल्ड और नॉन-स्किल्ड लोग क़तर में काम करने जाते हैं. किसी भी वक्त में क़तर में भारतीय लोगों की संख्या लगभग 7 लाख के आसपास होती है.

3 - भारत ने क़तर के साथ कूटनीतिक संबंध भी बनाए हैं. साल 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क़तर की पहली यात्रा पर गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साल 2016 में क़तर की यात्रा कर चुके हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर भी तीन मौकों पर क़तर की यात्रा कर चुके हैं.

4 - दोनों देशों के नौसैनिकों ने एक साथ सैन्य युद्धाभ्यास किया है. दोनों नौसेनाओं के जवान एक दूसरे के यहां समय-समय पर विज़िट भी करते रहते हैं.

लेकिन दोनों देशों के बीच कुछ मौकों पर तनाव भी हुए हैं. जैसे साल 2022 में नूपुर शर्मा के विवाद के समय. नूपुर शर्मा ने इस्लाम विरोधी बयान दिया था, जिसके बाद कतर ने आपत्ति जताई. और भाजपा ने नूपुर शर्मा की प्राथमिक सदस्यता खत्म कर दी थी.

एक और मौका आया साल 2022 में, जब इस्लामिक प्रीचर और मोस्ट वांटेड अपराधी जाकिर नाईक क़तर में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप में देखा गया. भारत ने आपत्ति जताई. तो क़तर ने बयान दिया कि ज़ाकिर को कोई इन्वाइट नहीं दिया गया था. उसने अपनी कपैसिटी में आयोजन में शिरकत की थी. अब अक्टूबर 2023 में आया ये फांसी का फैसला एक नया अध्याय जोड़ता है. सवाल उठ रहे हैं कि क़तर ने एक दिन में पूरी सीक्रेसी के साथ फांसी का फैसला क्यों सुनाया?

अब बचाव की बात करते हैं. भारत के अधिकारियों को कैसे बचाया जा सकता है, इसकी एक समझ हमें अपने देश में हुए एक मामले से मिलती है. ये केस है इटालियन मरीन का केस. 15 फ़रवरी 2012 को केरल के दो मछुआरे जेलेस्टाइन और अजीश पिंकू केरल के नींदाकारा हार्बर से मछली पकड़ने निकले थे. वो सेंट एंटनी नाव से लक्षद्वीप की ओर गहरे समंदर में मछली पकड़ने गए. लौटते समय उनका सामना सिंगापुर से मिस्र जा रहे ऑयल टैंकर एनरिका लेक्सी से हुआ. यह इटली का जहाज़ था, जिसमें 19 भारतीयों समेत 34 क्रू सदस्य सवार थे. जहाज़ पर तैनात इटली के दो मरीन सल्वाटोर गिरोन और मसीमिलियानो लटोर ने जेलेस्टाइन और अजीश की गोली मारकर हत्या कर दी. अपने बचाव में उन्होंने कहा था कि उन्हें नाव में सवार लोगों के समुद्री लुटेरे होने का शक हुआ था और वो प्रोटोकॉल फ़ॉलो कर रहे थे. कोस्ट गार्ड ने दोनों मरीन को अरेस्ट कर लिया.

बाद में इटली और भारत के बीच एक राजनयिक किस्म का तनाव हुआ था. इटली भारत से केस खत्म करने की मांग करता, भारत मना कर देता. साल 2013 में भारत ने इटली के मरीन सैनिकों को वापिस जाने दिया. लेकिन वो वापिस नहीं आए. मामला आखिर में नीदरलैंड में मौजूद परमानेंट कोर्ट ऑफ़ आर्बिटरेशन (PCA)में चला गया. 21 मई 2020 को PCA ने आदेश दिया कि इतालवी मरीन्स पर भारत में कोई आपराधिक मुक़द्दमा नहीं चलेगा और उन पर क़ानूनी कार्रवाई इटली में होगी. इसके साथ ही इटली सरकार ने मारे गए मछुवारों के परिवारों को 10-10 करोड़ का मुआवजा देने की पेशकश की. भारत सरकार ने फैसला और मुआवजा स्वीकार किया.

जब ये मामला सुलझा तो इसे भारत की ग्लोबल स्टैन्डींग के लेंस से देखा गया. भारत अपने नागरिकों, अपने कानून के साथ-साथ विश्वभर में किस मजबूती के साथ खड़ा है, उस निगाह से इसे देखा गया. तो भारत की ये पहुंच अब कहां है, जब अपने देश के पूर्व नौसैनिक मौत के मुहाने पर खड़े हैं.

फांसी की खबर सामने आने के बाद राजनीतिक हमले भी शुरू हुए हैं. पूर्व कांग्रेस नेता और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने ये मुद्दा 7 दिसंबर 2022 को लोकसभा में उठाया था.

मनीष तिवारी ने आगे कहा कि अधिकारियों के परिवारों को कभी ये जानकारी नहीं दी गई कि उन पर क्या आरोप लगे हैं. उनके बचाव के लिए नियुक्त किया गया वकील भी परिवारों के साथ टालमटोल कर रहा है. ये काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अधिकारियों के परिवार के सदस्यों, एक्स सर्विसमैन लीग और यहां तक कि संसद के सदस्यों की बात को भी कभी गंभीरता से नहीं लिया.

इसके बाद मनीष तिवारी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर की चिट्ठी भी एक्स पर पोस्ट की. इस चिट्ठी का लब्बोलुआब था कि सरकार हर मुमकिन प्रयास कर रही है.

साल 2023 में जब मौत की सजा का फरमान आ गया, तो भी सरकार ने हर मुमकिन प्रयास करने वाली बात को दुहरा दिया. हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार अपने हर प्रयास में सफल हो. और देश के काबिल अधिकारी सकुशल और स्वस्थ घर लौट आएं. 

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