आज ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि फ्रांस में कुछ बड़ा हुआ है. वहां एक मैगज़ीन ने पैगंबर मुहम्मद और इस्लाम से जुड़े कुछ कार्टून्स छापे हैं. ये वही कार्टून्स हैं, जिनके कारण पांच साल पहले उस मैगज़ीन पर आतंकी हमला हुआ. इस हमले में 12 लोग मारे गए. इस घटना ने दुनिया को तीन हिस्सों में बांट दिया. एक धड़े ने हमले को सही ठहराते हुए कहा कि मैगज़ीन ने कार्टून्स छापकर ग़ुनाह किया और उसे इस ग़ुनाह की सज़ा मिली. दूसरे धड़े ने कहा कि मैगज़ीन का कार्टून छापना और उसपर हुआ हमला, दोनों ग़लत हैं. तीसरे धड़े ने कहा कि कार्टून्स छापना मैगज़ीन के अभिव्यक्ति की आज़ादी थी और उसपर हुआ आतंकी हमला उन्मादी है, डरावना है.
ये किस मैगज़ीन की कहानी है?
उसने ये स्केच क्यों छापे? एक बार इतना हंगामा होने के बाद मैगज़ीन ने दोबारा ये स्केच क्यों छापे? आज ये सब विस्तार से बताएंगे आपको.
ये बात 60 साल पुरानी है. साल था 1960. इस बरस फ्रांस में एक मैगज़ीन शुरू हुई. इसका नाम था- हारा किरी ऐब्दो. ये एक व्यंग्य पत्रिका थी. ये सरकारों, मंत्रियों, अधिकारियों, जजों, सिलेब्रिटीज़ सबपर व्यंग्य करती थी. धार्मिक मान्यताओं की भी खिल्ली उड़ाती थी. ऐसा नहीं कि कोई एक धर्म इनके निशाने पर हो. ये हर तरह की धार्मिक मान्यताओं पर सटायर छापते थे. कभी आर्टिकल लिखते, कभी कार्टून्स बनाते. इसके अलावा ये मैगज़ीन महिला अधिकार जैसे प्रगतिशील मुद्दों पर भी स्टैंड लेती थी.

हारा किरी पत्रिका.
हारा किरी ऐब्दो फ्रांस की इकलौती सटायर मैगज़ीन नहीं थी. फ्रेंच पत्रकारिता में व्यंग्य की पुरानी परंपरा है. व्यंग्यनुमा पत्रकारिता का ये इतिहास 1789 में हुई फ्रेंच क्रांति के समय से जुड़ा है. उस समय सटायर के निशाने पर होती थी राजशाही. तब राज परिवार से जुड़े लोगों के स्कैंडल्स और उनसे जुड़े विवादों को कार्टून्स के माध्यम से जनता के आगे रखा जाता था. राजशाही के जाने के बाद जब देश में लोकतंत्र आया, तो नई संस्थाएं बनीं. मसलन- सरकार, पुलिस, न्यायपालिका और बैंक जैसे वित्तीय संस्थान. अब ये संस्थाएं व्यंग्यकारों के निशाने पर आ गईं. आप समझिए कि हारा किरी ऐब्दो इसी फ्लेवर का जर्नलिज़म करती थी.
10 साल के बाद हारा किरी पर बैन क्यों लग गया?
अब आते हैं 1970 के साल पर. इस बरस हारा किरी ऐब्दो पर बैन लग गया. क्यों? इसकी दो वजहें थीं. पहली थी एक आगजनी की घटना. हारा किरी ऐब्दो ने इस आगजनी पर हुई मीडिया कवरेज़ की खिल्ली उड़ाई. बैन लगाए जाने के पीछे दूसरी वजह बनी, पूर्व राष्ट्रपति शार्ल ड गोल की मौत. शार्ल की मौत पर मैगज़ीन ने अपने फ्रंट पेज पर छापा- ट्रैजिक डांस ऐट कोलोम्बे, वन डेड. कोलोम्बे उत्तर-पूर्वी फ्रांस का एक इलाका है. यहीं पर था पूर्व राष्ट्रपति शार्ल का घर.

फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति शार्ल ड गोल. (फोटो: एएफपी)
इन दोनों बातों को आपत्तिजनक मानते हुए हारा किरी ऐब्दो पर बैन लगा दिया गया. बैन से बचने के लिए हारा किरी ऐब्दो ने अपना नाम बदलकर रख लिया- शार्ली ऐब्दो. कई लोग इसे 'चार्ली हेब्दो' भी कहते हैं.
नए नाम के साथ ये मैगज़ीन अपने पुराने काम में फिर से जुट गई. ये वो दौर था जब फ्रांस में फ्रीडम ऑफ स्पीच और प्रेस की आज़ादी को और गंभीरता से लिया जाने लगा था. शार्ली ऐब्दो के लिए ये स्थिति मुफ़ीद थी. मगर दिक्क़त ये थी कि इसकी कॉपीज़ ज़्यादा नहीं बिकती थीं. घाटे के कारण 1981 में इसका पब्लिकेशन बंद करना पड़ा. 11 साल तक बंद रहने के बाद 1992 में फिर से इसका पब्लिकेशन शुरू हुआ. इस वक़्त इसके संपादक थे, फिलिप वाल. फिलिप 1992 से 2009 तक मैगज़ीन के एडिटर रहे. फिलिप के एडिटर रहते हुए ही 2006 में शार्ली ऐब्दो पर एक बड़ा विवाद हुआ.

1992 से 2009 तक शार्ली ऐब्दो के एडिटर फिलिप वाल. (फोटो: एएफपी)
इस्लाम में अल्लाह की तस्वीर और मुस्लिम समाज
इस विवाद का संबंध था डेनमार्क के एक अख़बार ईवलान पोस्टेन से. 30 सितंबर, 2005 को इस डैनिश अख़बार ने 12 कार्टून छापे. इनमें से कुछ कार्टून पैगंबर मुहम्मद के थे. अल्लाह या फिर पैगंबर मुहम्मद की तस्वीर बनाना इस्लाम में एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है. मुस्लिम मानते हैं कि अल्लाह के स्वरूप की कल्पना करना इंसानी दिमाग के बस की बात नहीं. अल्लाह की तस्वीर बना सके, ऐसी क्षमता किसी इंसानी हाथ में नहीं. ऐसे में कोई अगर ऐसा करने की कोशिश करे, तो वो अल्लाह की तौहीन करेगा. यही मान्यता पैगंबर मुहम्मद की तस्वीर बनाने से भी जुड़ी है. इसके अलावा मूर्ति या तस्वीर बनाने को भी कई मुस्लिम कुफ्ऱ मानते हैं.
ईवलान पोस्टेन के बनाए कार्टून्स पर और भी आपत्तियां थीं. सबसे ज़्यादा आपत्ति थी कार्टूनिस्ट कर्ट वेस्टरगार्द के बनाए एक स्केच से. इस स्केच में एक दाढ़ी वाले आदमी की पगड़ी में बम दिखाया गया था. कर्ट के मुताबिक, इस स्केच में ज़रूरी नहीं कि पैगंबर को ही दिखाया गया हो. ये पगड़ी वाला आदमी कोई तालिबानी आतंकवादी भी हो सकता है.
इन कार्टून्स के छपने पर समझिए कि जलजला आ गया. ईवलान पोस्टेन पर आतंकी हमले की कोशिश हुई. इसके कार्टूनिस्ट इस्लामिक वर्ल्ड के नंबर वन टारगेट बन गए.

कार्टूनिस्ट कर्ट वेस्टरगार्द (फोटो: एएफपी)
मगर ईवलान पोस्टेन ने ये कार्टून छापे क्यों थे?
अख़बार का तर्क था कि उसने इस्लाम और इसकी कट्टरपंथी जमात की आलोचना पर चली रही बहस में योगदान देते हुए ये कार्टून्स छापे हैं. अब सवाल है कि डेनिश अख़बार के छापे इस कार्टून से फ्रेंच मैगज़ीन शार्ली ऐब्दो का लिंक कैसे जुड़ा? ऐसे जुड़ा कि ईवलान पोस्टेन के कार्टून्स पर हो रहे हंगामे पर 2006 में शार्ली ऐब्दो ने अपना एक स्पेशल अंक निकाला. इसमें ईवलान पोस्टेन के छापे कार्टून्स दोबारा छापे गए थे. इन कार्टून्स के साथ हेडलाइन लिखी थी-
मुहम्मद पर हावी हुए कट्टरपंथी.शार्ली ऐब्दो के इस स्पेशल इशू की करीब चार लाख प्रतियां बिकीं. मगर साथ-ही-साथ इसे कट्टरपंथियों की धमकियां भी ख़ूब मिलीं. मैगज़ीन के एडिटर फिलिप पर धार्मिक नफ़रत भड़काने का केस भी चला. मगर अदालत ने उन्हें बरी भी कर दिया. कोर्ट ने माना कि फिलिप और उनका पब्लिकेशन मुस्लिम विरोधी नहीं है. वो इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ़ है.

शार्ली ऐब्दो अपने तीखे व्यंग के लिए दुनिया में मशहूर है. (फोटो: एएफपी)
शार्ली ऐब्दो के कार्टूनिस्ट ईसाई, यहूदी सबपर व्यंग्य करते थे. इनपर यहूदी विरोधी होने के भी आरोप लगे. लिबरल जमात में भी कइयों को मैगज़ीन के सनसनीखेज़ होने की शिकायत थी. मगर इस सबके बावज़ूद इस मैगज़ीन ने अपना अनअपॉलोजेटिक रवैया बरकरार रखा.
इस प्रसंग को फॉरवर्ड करके आते हैं 2011 पर. इस साल मैगज़ीन ने फिर एक स्पेशल अंक निकाला. इसमें भी पैगंबर मुहम्मद के स्केच थे. इस नए अंक पर भी ख़ूब हंगामा हुआ. मैगज़ीन के पैरिस स्थित दफ़्तर पर बमबारी भी हुई. मगर इस हमले में मैगज़ीन के किसी स्टाफ की जान नहीं गई.
क्या इस हमले के बाद शार्ली ऐब्दो इस विवादित मुद्दे से दूर हट गया?
जवाब है, नहीं. अभी उससे जुड़ा सबसे बड़ा विवाद होना बाकी था. क्या थे ये विवाद? ये 2012 की बात है. इस बरस अमेरिका में एक फिल्मनुमा विडियो आया. इसका टाइटल था- द इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स. इसमें पैगंबर को लेकर कई आपत्तिजनक चीजें दिखाई गई थीं. पूरे साउथ एशिया और मिडिल-ईस्ट में इस विडियो पर हंगामा मचा. ख़ूब हिंसा हुई. मिडिलईस्ट में कुछ अमेरिकी दूतावासों को भी निशाना बनाया गया. इस हंगामे को कवर करते हुए सितंबर 2012 में शार्ली ऐब्दो ने फिर से पैगंबर के कार्टून्स छापने का फैसला किया.
इनमें से कुछ कार्टून्स बेहद भड़काऊ थे. इनमें पैगंबर को बिना कपड़ों के दिखाया गया था. ऐसा इसलिए कि ये कार्टून्स 'द इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' से जुड़े विवाद और इसके जवाब में हो रही हिंसा पर बनाए गए थे. कार्टून का कैरेक्टर वही था, जो कि उस विवादित विडियो का विषय था. फ्रेंच सरकार को डर था कि इन कार्टून्स के कारण उनके देश और उनके विदेशी दूतावासों को टारगेट किया जा सकता है. ऐसे में सरकार ने शार्ली ऐब्दो से ये पब्लिकेशन रोकने की अपील की. मगर शार्ली ऐब्दो नहीं माना. उसने कहा, वो फ्री स्पीच के साथ और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ़ है. मैगज़ीन के एडिटर स्टीफेन चारबोनियर का कहना था कि वो फ्रांस के क़ानून को मानते हैं. न कि अफ़गानिस्तान या सऊदी के क़ानून को.

द इनोसेंस ऑफ मुस्लिम्स पर दुनियाभर के मुस्लिमों ने हंगामा किया, विरोध-प्रदर्शन किया. (फोटो: एएफपी)
सितंबर 2012 में छपे इन कार्टून्स पर पहले से भी ज़्यादा हिंसक प्रतिक्रियाएं आईं. सबसे हिंसक प्रतिक्रिया हुई 7 जनवरी, 2015 को. इस रोज़ दो आतंकी सेमी ऑटोमैटिक हथियार लेकर शार्ली ऐब्दो के पैरिस ऑफिस में घुस गए. उन्होंने अंधाधुंध गोलियां चलाईं. इस हमले में 12 लोग मारे गए. इनमें शार्ली ऐब्दो के 11 पत्रकार शामिल थे. मरने वालों में मैगज़ीन के एडिटर और इसके सबसे बढ़िया कार्टूनिस्ट स्टीफेन चारबोनियर भी शामिल थे.

2015 में शार्ली ऐब्दो के ऑफिस में हमला हुआ और 12 लोगों की मौत हो गई. (फोटो: एएफपी)
किसने करवाया था ये हमला?
ये अटैक करवाया था, अल-क़ायदा की यमन ब्रांच ने. इस आतंकवादी संगठन का कहना था कि उसने पैगंबर के अपमान का बदला लिया है. इस अटैक के चार रोज़ बाद दोनों हमलावरों के एक दोस्त ने चार और हत्याएं कीं. नवंबर 2015 में भी इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने पैरिस में कई हमले किए. इनमें 130 लोगों की जान गई.
आप कहेंगे हम आज ये सब क्यों बता रहे हैं आपको? इसलिए बता रहे हैं कि शार्ली ऐब्दो ने एकबार फिर पैगंबर मुहम्मद और इस्लाम पर कार्टून छापे हैं. वही कार्टून्स, जिसके कारण उसपर आतंकी हमला हुआ था. ये कार्टून्स 1 सितंबर को मैगज़ीन के ऑनलाइन वर्जन में छपे. फिर 2 सितंबर के प्रिंट एडिशन में भी इन्हें छापा गया. इन्हें दोबारा छापे जाने की वजह ये है कि 2 सितंबर से शार्ली ऐब्दो टेरर अटैक का कोर्ट ट्रायल शुरू हो रहा है. इसमें 14 लोगों का मुकदमा चलेगा. ये सभी हमले में शामिल आतंकियों की मदद के आरोपी हैं.

अलकायदा शुरू करने वाला ओसामा बिन लादेन. (फोटो: एएफपी)
मैगज़ीन ने इस मौके पर स्केच छापने के लिए अपना पक्ष रखा है. उसके मुताबिक, ये स्केच ही तो हमले का कारण थे. इन्हें छापे बिना ट्रायल कैसे शुरू हो सकता है. मैगज़ीन के मुताबिक, ट्रायल की शुरुआत के मौके पर ये स्केच न छापना उनकी पत्रकारिता पर डरपोक होने का धब्बा लगाता.
बहस में आप किस तरफ हैं?
शार्ली ऐब्दो के दोबारा कार्टून्स छापने पर फिर से धर्म बनाम अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बहस छिड़ गई है. इस बहस के कई पहलू हैं. मसलन, क्या धार्मिक आस्था सेक्रोसेंट होनी चाहिए? या फ्रीडम ऑफ स्पीच का दायित्व है कि वो धार्मिक मुद्दों को हाथ न लगाए? क्या ऑफेन्ड होना हिंसक हो जाने का बचाव है? या फिर आस्थावान इंसान शांति से अपनी सहमति और असहमति जताकर आगे बढ़ सकता है? अतिरेकता की स्थिति में सही और ग़लत तय करने का जिम्मा किसका होगा- निष्पक्ष लोकतांत्रिक संस्थाओं का या ऑफेन्ड हुए लोगों का?

स्टीफेन चारबोनियर का ओपेन लेटर.
इस बहस में आप किस तरफ हैं, ये फैसला आपका है. बाकी शार्ली ऐब्दो के उस विवादित अंक से जुड़े ज़्यादातर लोग अब दुनिया में नहीं हैं. उनका पक्ष बताने के लिए हम आपको मैगज़ीन के पूर्व एडिटर स्टीफेन चारबोनियर के एक ओपेन लेटर की कुछ पंक्तियां सुनाते हैं. ये चिट्ठी उन्होंने आतंकी हमले में मारे जाने के पहले छापी थी. पंक्तियां हैं-
कल को अगर ख़ुद को बौद्ध बताने वाले टेररिस्ट दुनिया में आतंक मचाते हैं, तो हमसे कहा जाएगा कि उनके बारे में कुछ मत बोलो. मत बोलो क्योंकि इससे बौद्ध ऑफेन्ड हो जाएंगे. कल को अगर शाकाहारी आतंकी हर मीट खाने वाले को मारने की धमकी देते हैं, तो हमसे कहा जाएगा कि गाज़र का सम्मान करो. वैसे ही, जैसे तीनों अब्राहमिक धर्मों के पैगंबरों का सम्मान करते हो. लोग पूछते हैं कि आज के माहौल में मुहम्मद पर कार्टून छापना समझदारी थी क्या?

शार्ली ऐब्दो के पूर्व एडिटर स्टीफेन चारबोनियर. (फोटो: एएफपी)
मैं पूछता हूं कि क्या जबतक तालिबान के सबसे मूर्ख आदमी को मेरी कला समझ न आए, तब तक मुझे चुप रहना चाहिए? क्या केवल इमामों और मुसलमानों को ही अल्लाह, क़ुरान और पैगंबर के ज़िक्र की इजाज़त है? इनके अलावा कोई इनका ज़िक्र करे, तो क्या वो इस्लामोफ़ोबिक हो जाएगा? इस तर्क को मानना रेडिकल्स के हाथों की कठपुतली बनने जैसा है. ऐसा करके लोग केवल इस्लाम के प्रति नफ़रत बढ़ा रहे हैं.
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