इस साल की शुरुआत में कांग्रेस की दिग्गज नेता मार्गरेट अल्वा (Margaret Alva) ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा. इस पत्र में अल्वा ने कर्नाटक की बीजेपी सरकार की तरफ से धर्मांतरण पर प्रस्तावित कानून को लेकर नाराजगी जताई. अल्वा ने अपने पत्र में लिखा,
उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने सोनिया गांधी पर मनमानी का आरोप क्यों लगाया था?
विपक्ष की तरफ से उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा पांच बार सांसद, केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल रह चुकी हैं.

"हम ईसाई अनुशासित, अहिंसक और सेवा की भावना से भरे लोग हैं. अगर हम सामूहिक धर्मांतरण कर रहे हैं, तो फिर हमारी संख्या तीन फीसदी से कम क्यों है? 200 साल तक ईसाई औपनिवेशिक ताकतों का राज और कथित तौर पर मिशनरियों का धर्मांतरण में शामिल होना, ये सबकुछ संख्या में तो दिखना चाहिए था. लेकिम हमारी संख्या तो घट रही है. हमारे खिलाफ ये झूठा प्रचार क्यों किया जा रहा है? हमारे खिलाफ हिंसा क्यों की जा रही है?"
मार्गरेट अल्वा कर्नाटक सरकार के इस प्रस्तावित बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भी शामिल हुईं. इन सबके चलते वो एक बार फिर से सुर्खियों में आ गईं. मार्गरेट अल्वा भारतीय राजनीति में बड़ा नाम रही हैं. पांच बार की संसद सदस्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री और गवर्नर रह चुकीं मार्गरेट अल्वा को विपक्ष का उपराष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया गया है. भारतीय राजनीति में अल्वा की छवि अपनी बात रखने वाली राजनेत्री की रही है, फिर भले ही उन्हें अपने ही लोगों के खिलाफ क्यों ना आवाज उठानी पड़ी हो और इसका अंजाम भी भुगतना पड़ा हो.
मार्गरेट अल्वा का जन्म 14 अप्रैल, 1942 को मंगलुरू में हुआ. उन्होंने बेंगलुरू से कानून की पढ़ाई की. अपना करियर भी एक वकील के तौर पर शुरू किया. 22 साल की उम्र में निरंजन अल्वा से शादी कर ली. उनके सास-ससुर दिवंगत वॉयलेट अल्वा और जोचिम अल्वा राजनीति में सक्रिय थे. वे संसद के लिए चुने गए पहले कपल थे. यहीं से मार्गरेट अल्वा ने राजनीति का रुख किया. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मार्गरेट अल्वा ने अपने सांस-ससुर के बारे में बताया,
"मेरे सास-ससुर, दिवंगत जोचिन अल्वा और वॉयलेट अल्वा, स्वतंत्रता सेनानी थे, जो आजादी की लड़ाई में जेल गए और संसद पहुंचने वाले पहले कपल बने. मेरी सास संसद की पहली महिला पीठासीन अधिकारी बनीं."
मार्गरेट अल्वा के ससुर जोचिम अल्वा कनारा लोकसभा सीट से कांग्रेस के सांसद के तौर पर तीन बार संसद पहुंचे. 1952 से लेकर 1967 तक. सास वॉयलेट अल्वा राज्यसभा के लिए चुनी गईं. मार्गरेट अल्वा ने राजनीति की शुरुआत कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री देवराज उर्स के मार्गदर्शन में की. देवराज उर्स को इंदिरा गांधी का करीबी कहा जाता था.
महज 32 साल की उम्र में मार्गरेट अल्वा को संसद में एंट्री मिली. साल 1974 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. 1998 तक वो लगातार चार बार राज्यसभा के लिए चुनी गईं. 1999 में लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. मार्गरेट अल्वा इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकारों में मंत्री रहीं. संसदीय मामलों की राज्यमंत्री और केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय जैसे पोर्टफोलियो उन्होंने संभाले.
टिकट बेचने का आरोपकांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के साथ मार्गरेट अल्वा के संबंध इतने मजबूत थे कि एक समय कर्नाटक सीएम पद के लिए उनके नाम पर विचार किया जाने लगा था. हालांकि, साल 2008 में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ उनकी खटपट हो गई. साल 2004 में अल्वा लोकसभा चुनाव हार गई थीं. कांग्रेस महासचिव के तौर पर उनके पास महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों की जिम्मेदारी थी. इधर 2008 में होने जा रहे कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी थी.
साल 2008 में मार्गरेट अल्वा ने कर्नाटक कांग्रेस पर टिकट बेचने का आरोप लगाकर भूचाल ला दिया. उन्होंने कहा कि पार्टी कर्नाटक मेरिट के आधार पर उम्मीदवारों का चुनाव करने की जगह टिकट बेच रही है. इस चुनाव में मार्गरेट अल्वा के बेटे निवेदित को भी टिकट नहीं मिला था. अल्वा के इस आरोप के बाद उन्हें पार्टी की जिम्मेदारियों से करीब छह महीने के लिए हटा दिया गया. साथ ही साथ केंद्र सरकार में मंत्रीपद मिलने की उनकी संभावनाएं भी खत्म हो गईं.
अपनी आत्मकथा 'करेज एंड कमिटमेंट' में मार्गरेट अल्वा ने लिखा कि उन्हें एके एंटनी के कहने पर हटाया गया. इस आत्मकथा में ही पता चला कि मार्गरेट अल्वा ने 2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजा था. इस पत्र में उन्होंने कहा था कि टिकट बांटने को लेकर उनकी आशंकाएं सही साबित हुईं. अल्वा ने कहा कि उनकी बातें नहीं सुनी गईं. पार्टी के कुछ नेताओं ने उनकी बात सीधे तौर पर सोनिया गांधी से नहीं होने दी. मार्गरेट अल्वा ने लिखा कि कांग्रेस पार्टी में इतने सालों तक रहने के बाद उन्हें पहली बार ऐसा लग रहा है कि अब उनकी जगह इस पार्टी में नहीं है.
राज्यपाल की भूमिकासाल 2016 में इंडिया टुडे को दिए गए एक इंटरव्यू में मार्गरेट अल्वा ने सोनिया गांधी पर आरोप लगाया था कि वो मनमाने तरीके से पार्टी चला रही हैं. उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन्हें अपनी कैबिनेट में चाहते थे, लेकिन सोनिया गांधी ने ऐसा नहीं होने दिया. इसी दौरान कहा गया कि मार्गरेट अल्वा ने सोनिया गांधी की आलोचना के लिए ही अपनी आत्मकथा लिखी है. हालांकि, समय-समय पर अल्वा साफ करती रहीं कि ये आत्मकथा सोनिया गांधी के बारे में नहीं लिखी गई है. उन्होंने ये भी कहा कि सोनिया और उनके बेटे राहुल गांधी से उनके अच्छे रिश्ते हैं.
साल 2009 में मार्गरेट अल्वा को उत्तराखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था. बाद में उन्होंने गुजरात, गोवा और राजस्थान की राज्यपाल के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारी निभाई. वहीं तीन दशक तक संसद में रहते हुए मार्गरेट अल्वा ने महिला अधिकारों पर कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मसलन, निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण, बराबर मेहनताना, शादी से जुड़े कानून दहेज प्रतिबंध (संशोधन) कानून.
मार्गरेट अल्वा के बेटे निखिल अल्वा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी रहे हैं. राहुल जब कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे, तब निखिल अल्वा उनके सलाहकारों की टीम में शामिल थे. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के बाद निखिल अल्वा ने इस्तीफा दे दिया था.
विपक्ष की तरफ से NCP के अध्यक्ष शरद पवार ने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर मार्गरेट अल्वा के नाम की घोषणा की है. बताया गया कि 17 विपक्षी पार्टियों ने अल्वा के नाम का समर्थन किया है. इन पार्टियों में कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, टीआरएस, आरजेडी, सपा, शिवसेना, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, एमडीएमके, डीएमके, वीसीके, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी, केरल कॉन्ग्रेस (एम) के नाम शामिल हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विपक्ष ने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से भी अल्वा के नाम के समर्थन की बात कही गई है.
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