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कौन हैं म्यांमार के अशीन विराथू, जिनके जैसे चरमपंथी संत की मांग भारत में ट्विटर पर उठी?

मामला पालघर में साधुओं की लिंचिंग से जुड़ा हुआ है.

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तस्वीर में नज़र आ रहे शख्स का नाम है अशीन विराथू. वो बौद्ध भिक्षु हैं और ख़ुद के कट्टर होने पर बहुत गर्व करते हैं. उन्होंने ख़ुद को 'म्यांमार का बिन लादेन' बताया था कभी (फोटो: रॉयटर्स)
पालघर में साधुओं की लिंचिंग हुई. भीड़ ने जिस तरह उन्हें घेरकर मारा. वो देखकर लोग सन्न हैं. क्योंकि मामला निहत्थे, बुज़ुर्ग साधुओं पर क्रूरता का है. कई अफ़वाहें भी उड़ीं. मामले को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिशें हुईं. दो पुलिसवाले सस्पेंड किए गए. कई लोगों को हिरासत में लिया गया. मामले की जांच चल रही है.
इन सबके बीच पालघर को लेकर ट्विटर पर भी कई हैशटैग भी ट्रेंड हुए. इनमें एक था- #संतो_हमें_विराथू_दो.
21 अप्रैल को इस हैशटैग से भारत में हज़ारों ट्वीट हुए. इन ट्वीट्स का सार था कि भारत के संतों को चाहिए कि वो इस देश को विराथू जैसे संत दें. इस मांग से जिज्ञासा होती है कि ये विराथू हैं कौन? इन्होंने ऐसा क्या किया कि कुछ लोग इन्हें मिसाल बना रहे हैं?
Ashin Wirathu India Twitter Trend
स्क्रीनशॉट | ट्विटर इंडिया

किया है वहां से टेलिफून...
साल था 1949. एक फिल्म लगी थियेटरों में. नाम, पतंगा. इस फिल्म की एक ट्रेडमार्क पहचान है-
हैलो, हिंदुस्तान का देहरादून? मैं रंगून से बोल रहा हूं. मैं अपनी बीवी रेणुका देवी से बात करना चाहता हूं.
और फिर आता है शमशाद बेगम का गाया अमर गाना- मेरे पिया गए रंगून.
रंगून का असल नाम था यांगोन. जिसे हम हिंदुस्तानी रंगून कहते थे. साल 2006 तक ये एक मुल्क की राजधानी रही. वो मुल्क, जो भारत के पूर्वोत्तर में पड़ता है. करीब 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है दोनों देशों के बीच. उस देश का नाम है- म्यांमार. पुराने लोग जिसका नाम बर्मा पुकारते थे.
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म्यांमार (फोटो: गूगल मैप्स स्क्रीनशॉट)

म्यांमार में बहुसंख्यक समुदाय है बौद्ध. वो धर्म, जिसके अनुयायी भगवान बुद्ध को पूजते हैं. बुद्ध, जिन्होंने दुनिया को अहिंसा सिखाई. जिनकी राह पर चलकर 'चंड अशोक' बन गए अशोका, द ग्रेट.
एक बौद्ध भिक्षु...
हां तो म्यांमार की बात चली थी. वहां रहते हैं एक भिक्षु. भिक्षु, जो बौद्ध भी हैं और कट्टर भी. साथ-साथ, घनघोर राष्ट्रवादी भी. नाम है- अशीन विराथू. 16 बरस में घर तज दिया. भिक्षु बन गए. भिक्षु माने संन्यासी. जो माया-मोह की गठरी फेंक दे. ज्ञान की राह चले. इतना विनम्र, इतना अहंकार मुक्त हो जाए कि भिक्षु हो जाए.
मगर ये तो बुद्ध की दिखाई राह थी. विराथू की राह अलग थी. विराथू कहते थे, सेव म्यांमार. माने, म्यांमार को बचाओ. किससे बचाओ? मुस्लिमों की बढ़ती तादाद से बचाओ.
मूवमेंट 969: क्या मतलब?
विराथू को ज़्यादा पहचान मिली 2001 में. ये वही साल था, जब अफगानिस्तान के बामियान में तालिबान ने बुद्ध प्रतिमा तोड़ी. पांचवीं सदी की विशाल मुस्कुराते हुए बुद्ध की प्रतिमा. इत्तेफ़ाक देखिए. उसी बुद्ध के अनुयायी विराथू, म्यांमार में आंदोलन से जुड़े. नाम- 969. और इस संस्था के सबसे बड़े नेता बन गए.
ये जो तीन संख्याएं हैं- 969, इसे बुद्ध की शिक्षाओं का सार समझा जाता है. नौ माने, बुद्ध के नौ ख़ास गुण. छह माने, बुद्ध के बताए छह कर्म. मसलन, पाप से दूरी. कल्याणकारी कार्य. दया. सत्य. आख़िरी वाले नौ का मतलब है, बुद्ध द्वारा स्थापित संघ के नौ विशेष चरित्र. 969 में समझिए तो बौद्ध धर्म का सार है- बुद्ध, संघ और धम्म.
हर चमकती चीज सोना नहीं होती
इस आंदोलन के नाम में भले कितना विराट दर्शन हो. मगर इसकी मंशा थी नफ़रत फैलाना. ये आंदोलन म्यांमार में रहने वाले मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाता था. अपील करता था कि लोग मुस्लिम दुकानदारों का बहिष्कार करें. मुस्लिमों को चिह्नित करने के लिए बौद्धों के घरों, उनकी दुकानों पर 969 लिख दिया जाता था. विराथू कहते, बौद्धों को बौद्धों से ही चीजें खरीदनी चाहिए.
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विराथू मुस्लिमों का बहिष्कार करने के लिए आगे आए. (फोटो: रॉयटर्स)

क्या बस इतना ही? ना. ये आंदोलन अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग करता है. कहता है, रोहिंग्या म्यांमार के नहीं. वो तो घुसपैठिए हैं. 969 से जुड़े लोग दावा करते हैं कि उन्होंने आत्मरक्षा के लिए ये संगठन बनाया है. कि वो तो बस अपने देश की बौद्ध संस्कृति और पहचान को बचाने रखने की कोशिश कर रहे हैं.
जेल गए, मगर सज़ा पूरी होने से कहीं पहले ही रिहा हो गए
जल्द ही ये 969 आंदोलन ख़ूब ज़ोर पकड़ने लगा. विराथू के भाषणों की CD बिकने लगीं. एक समुदाय विशेष के प्रति हिंसा और नफ़रत फैलाने का नतीजा ये कि हिंसा फैली. इसमें कम-से-कम 10 मुस्लिम मारे गए. विराथू को हिंसा भड़काने का दोषी पाया गया. 2003 में उन्हें 25 साल जेल की सज़ा हुई. कुछ आठ साल ही बीते थे जेल में कि साल 2012 में एक बड़ा ट्विस्ट आया. विराथू को मुआफ़ी दे दी गई. ऐमनेस्टी मिल गई उन्हें. वो रिहा हो गए.
जेल से बाहर निकलकर विराथू फिर से नफ़रत फैलाने में जुट गए. मगर यहां सवाल उठता है कि विराथू को सज़ा पूरी होने से पहले रिहा क्यों किया गया?
इसे समझने के लिए आपको म्यांमार के पश्चिमी हिस्से में बसे रखाइन प्रांत को जानना होगा. ये म्यांमार के सांप्रदायिक तनाव का एक बड़ा केंद्र है. यहां बहुसंख्यक तो बौद्ध हैं, मगर मुस्लिमों की भी खासी मौजूदगी है. यहां लगातार तनाव सुलग रहा था दोनों संप्रदायों के बीच. जून 2012 में क्या हुआ कि एक बौद्ध युवती के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी गई. तनाव बस रखाइन तक नहीं रहा. देश के बाकी हिस्सों में भी दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य काफी बढ़ गया.
2015 में एक बौद्ध युवती के साथ बलात्कार की ख़बरें आई. मगर अबकी रेप हुआ ही नहीं था. 2015 'रेप केस' को लेकर विराथू ने सोशल मीडिया पर खूब भड़काऊ पोस्ट लिखे. अफवाह फैली. फैलती गई और हिंसा बढ़ती गई.
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2012 से लेकर अब तक रखाइन प्रान्त में रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला जारी है. (फोटो: गूगल मैप्स स्क्रीनशॉट)

बहुसंख्यक तुष्टिकरण के माहौल में  राष्ट्रपति थेन सेन एक विवादास्पद योजना लाए. रोहिंग्या मुस्लिमों को किसी और देश भेजने की योजना. थेन सेन सरकार रोहिंग्या मुस्लिमों को UNHCR (यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी) को सौंपने के लिए तैयार थी. कहा था कि हम UNHCR को सौंप देंगे. फिर जो देश उन्हें लेने को तैयार हैं, ले जाएं. UNHCR ने थेन सेन की इस कट्टर योजना को निंदा करते हुए खारिज कर दिया था.
ऐसे में जेल से निकलकर विराथू ने राष्ट्रपति की इस योजना का समर्थन किया. रैलियां निकाली. बौद्ध बहुसंख्यकों के बीच विराथू की बहुत पकड़ थी. तो उनके समर्थन को सरकार का एन्डॉर्समेंट भी माना गया. राष्ट्रपति की योजना को और बढ़ावा देते हुए सितंबर महीने में विराथू ने मांडले में हज़ारों भिक्षुओं को साथ लेकर रैली निकाली. इससे माहौल ख़ूब भड़का और करीब महीनेभर बाद ही रखाइन प्रांत में फिर से बड़े स्तर पर हिंसा भड़की.
जैसे-जैसे उनकी कट्टरता बढ़ती गई, वैसे-वैसे उनकी लोकप्रियता भी बढ़ती गई. वो किसी रॉक स्टार की तरह पॉपुलर होते गए म्यांमार में. लोग विराथू को सुनते थे. और विराथू उन्हें जो कहते थे, उसकी एक मिसाल पढ़िए-
आपके अंदर दया और प्रेम भरा हो सकता है. मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि आप किसी पागल कुत्ते के बगल में सो जाएं.
...फिर विराथू को सत्ता का सपोर्ट भी मिलने लगा
विराथू के लिए मुस्लिम पागल कुत्ते थे. ऐसी पोस्ट्स के बीच फेसबुक ने इनका पेज बैन कर दिया. ये कहकर कि कई वॉर्निंग देने के बाद भी उनके पेज पर भड़काऊ धार्मिक कॉन्टेंट पोस्ट किए जा रहे हैं.
जेल से बाहर आने के बाद विराथू को सत्ता के टॉप लोगों का भी समर्थन मिलने लगा. ये शायद म्यांमार के कट्टरता की ओर बढ़ते रुझान का बहुत मज़बूत संकेत था. इसका एक चरम दुनिया ने तब देखा, जब 2017 में म्यांमार के अंदर रोहिंग्या मुसलमानों के साथ बड़े स्तर पर हिंसा शुरू हुई. पिछले कई सालों से वहां मुस्लिम निशाना बनाए जा रहे थे. कई दंगे भी हुए थे. मगर 2017 की हिंसा बहुत बड़े स्तर पर की गई.
इंटरनैशनल मीडिया रिपोर्ट्स रोहिंग्या मुसलामानों पर क्रूरता की बातें बताती रहीं. इस नरसंहार के सत्ता समर्थित होने की भी सैकड़ों ख़बरें आईं. नतीजा, सैकड़ों रोहिंग्या मुसलमानों को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा. म्यांमार-बांग्लादेश के बॉर्डर पर बसे प्रांत रखाइन में सबसे ज्यादा हिंसा हुई. यहां की आबादी की एक तिहाई जनसंख्या मुसलमानों की है. Ashin Wirathu

विराथू की विचारधारा: थोड़ा और क्लियर करते हैं
एक बार विराथू से पूछा गया कि क्या वो 'बर्मा के बिन लादेन' हैं. जवाब में उन्होंने कहा, वे इस बात से इनकार नहीं करेंगे. उनके दिए इस तरह के बयानों की भरमार है. सैंपल के लिए कुछ बयान पढ़िए उनके-
मुसलमान अफ़्रीकी भेड़िए की तरह हैं. वो तेजी से आबादी बढ़ाते हैं. हिंसात्मक गतिविधियों में शामिल रहते हैं. आजू-बाजू के जानवरों को खा जाते हैं. संसाधनों को तबाह कर देते हैं.
अगर ये अल्पसंख्यक भी हैं, तो भी हमारी पीढ़ियां इस बोझ को झेलती आई है. बर्मा के लोगों ने उन्हें कभी गाली नहीं दी. परेशान नहीं किया. घुसपैठ नहीं की. लेकिन हम उनके बोझ तले दबे जा रहे हैं.
मैं तो अपने प्रियजनों की रक्षा कर रहा हूं. जिस तरह आप अपने प्रियजनों की रक्षा करेंगे. मैं तो बस लोगों को मुस्लिमों के प्रति आगाह कर रहा हूं. सोचिए, अगर आपके पास एक कुत्ता होता. अगर आपके घर में कोई अजनबी आता, तो वो कुत्ता भौंकता. ताकि आपको सावधान कर सके. मैं उसी कुत्ते की तरह हूं. मैं भौंककर सावधान करता हूं.
टाइम मैगज़ीन का किस्सा
जुलाई 2013 में टाइम मैगज़ीन ने कवर छापा. कवर पेज पर विराथू की तस्वीर थी. परिचय में लिखा था- बुद्धिस्ट आतंकवाद का चेहरा. बीबीसी की रिपोर्ट
मुताबिक़, इस ख़बर पर प्रतिक्रिया स्वरूप म्यांमार में टाइम मैगज़ीन के इस अंक को बैन कर दिया गया. बल्कि टाइम के लेख के जवाब में राष्ट्रपति ने एक बयान जारी कर विराथू को 'भगवान बुद्ध का पुत्र' बताया.
The Face Of Buddhist Terror
टाइम मैगज़ीन का कवर. 

2014 में अल-जजीरा के रिपोर्टर म्यांमार पहुंचे. विराथू से मिले और टाइम के उस कवर को दिखाते हुए उनसे 
, इस पर आप क्या कहते हैं? विराथू का जवाब था-
मुझे लगता है कि उन्होंने जान-बूझकर मुझे बर्बाद करने के लिए ऐसा किया. दुनिया अल्पसंख्यकों के रूप में मुस्लिमों को दया भाव से देखती है. लेकिन उन्हें जानिए, तो पता चलता है कि ये छोटा सा समूह कितना ग़लत है. ये लोग कितना नुकसान पहुंचाते हैं. सिर्फ हमारा धर्म ख़तरे में नहीं है. पूरा देश ख़तरे में हैं. जिस तरह उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश बनाया, उसी तरह 2010 से वो बर्मा को इस्लामिक स्टेट बनाने की कोशिशों में हैं.
बर्मा की कुल अबादी में मुस्लिम हैं करीब 4 से 5 फीसद लोग. कुल साढ़े ग्यारह से बारह लाख की आबादी.
'मा बा था'
969 के अलावा एक और संगठन से जुड़े हुए हैं विराथू. इसका नाम है- पेट्रिऑटिक असोसिएशन ऑफ़ म्यांमार. छोटे में इसे 'मा बा था' के नाम से जानते हैं. यह संगठन म्यांमार के कट्टर राष्ट्रवादी संगठनों में से है. इसके कई सदस्य 969 में शामिल रहते हैं और इसे भी सपोर्ट करते हैं. विराथू उपाध्यक्ष हैं इसके. 2014 में जब क़तर की एक टेलिकम्यूनिकेशन्स कंपनी मोबाइल सर्विस से जुड़ा ढांचा बनाने म्यांमार आई, तो इस संस्था ने खूब विरोध किया. वजह ये कि क़तर मुस्लिम देश है. ये संगठन 2016 से ही रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ काम कर रहा है.
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विराथू के मठ के प्रवेश द्वार पर खूनी तस्वीरें लगी होती हैं. (फोटो: गेटी इमेजेज़)

म्यांमार का दूसरा सबसे बड़ा शहर है- मांडले. यहीं पर है वो जेल, जहां कभी बाल गंगाधर तिलक को कैद किया था अंग्रेज़ों ने. इसी मांडले शहर में विराथू के मठ का आंगन है. ख़बरों के मुताबिक, इस मठ के प्रवेश द्वार पर खूनी तस्वीरें लगी हैं. कहा जाता है ये मुस्लिमों द्वारा मारे गए बौद्धों की तस्वीरें हैं. अगर ये सच्ची भी हों, तो किस मंशा से लगाई गई होंगी?
कुछ ख़बरें कहती हैं कि म्यांमार में मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों ने ISIS जैसे आतंकवादी संगठनों को मनमाफ़िक ज़मीन मुहैया कराई है. वो यहां पनपने की कोशिश कर रहा है. म्यांमार में बौद्ध बहुसंख्यकों के हाथों मुस्लिमों पर हुए अत्याचारों का इस्तेमाल कर मुसलमानों का ब्रेनवॉश करने, अपने संगठन का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है. ऐसी कई स्टडीज़ हैं. जो बताती हैं कि इस तरह की जगहें कट्टर और हिंसक संगठनों को खाद-पानी मुहैया कराती हैं.
Mandalay, Myanmar (burma)
मांडले, म्यांमार का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. (फोटो: गूगल मैप्स स्क्रीनशॉट)

सरकार पर भी हमलावर रहते हैं विराथू
जब आंग सान सू ची डेमोक्रेसी ला रही थीं, तब उम्मीद जगी कि शायद म्यांमार के अल्पसंख्यकों को राहत मिले. आंग सान सू ची सैन्य तानाशाही वाले म्यांमार के लिए उम्मीद थीं. वो उम्मीदें अब धुंधली हो गई हैं. वो अप्रैल 2016 से 'स्टेट काउंसलर ऑफ़ म्यांमार' हैं. म्यांमार सरकार की प्रमुख. ये पोस्ट प्रधानमंत्री पद के समकक्ष होता है. मगर इस पद पर होकर भी उन्होंने जैसे अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों से अपनी आंखें मूंद ली हैं.
Aung San Suu Kyi
नोबेल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था. नोबेल मिलने के 21 साल बाद आंग सान सू के ने अपना प्राइज लिया. तब, जब वो लंबी कैद से छूटीं (फोटो: रॉयटर्स)

मगर विराथू ने सरकार के लिए आंखें नहीं मूंदी. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट
 के मुताबिक़, अप्रैल 2018 में विराथू ने म्यांमार सरकार पर आरोप लगाया था. कि सरकार विदेशियों के फंड से चल रही है. सरकार का एक मेंबर 'विदेशी के साथ सो रहा' था. अनुमान लगाया गया कि ये इशारा शायद आंग सान सू ची की ओर था. वजह ये कि उनकी शादी एक ब्रिटिश से हुई थी. जिनकी मौत हो गई साल 1999 में, कैंसर से. विराथू यह भी कहते रहे हैं कि आंग सान सू ची बंगालियों (मुसलमानों) की मदद करना चाहती हैं, लेकिन वो यानी विराथू उन्हें ऐसा नहीं करने देंगे.
Monk Ashin Wirathu
म्यांमार के मांडले प्रांत में विराथू के मठ का आंगन है. (फोटो: रॉयटर्स)

जाते-जाते
म्यांमार में यूनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट्स की विशेष प्रतिनिधि थीं यांगी ली. विराथू ने उनको 'कुतिया' और 'वेश्या' कह दिया था. इतना कहकर वो चुप नहीं हुए. कहा, उनके पास अगर और बुरे शब्द होते तो वो उनका भी इस्तेमाल करते. विराथू ने गाली यूं दी कि उन्होंने ली पर रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति कोमल होने का आरोप लगाया था. रॉयटर्स में छपी रिपोर्ट
 के मुताबिक़, विराथू ने कहा था-
सिर्फ इसलिए कि आप संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करती हैं, आप सम्मानित महिला नहीं बन जातीं. हमारे देश में आप सिर्फ एक वेश्या हैं.
बचपन में सिद्धार्थ की कहानी पढ़ी थी. राजकुमार सिद्धार्थ अपने चचेरे भाई देवदत्त के साथ बाग में गए हैं. देवदत्त ने तीर मारकर हंस को घायल कर दिया है. और सिद्धार्थ उस जख़्मी हंस की मलहम-पट्टी कर रहे हैं. देवदत्त हंस पर हक़ मांगता है. क्योंकि उसने तीर मारकर हंस को गिराया है. मगर सिद्धार्थ कहते हैं, प्राण लेने वाले से प्राण बचाने वाले का अधिकार कहीं बड़ा होता है. सिद्धार्थ को वो अधिकार इसलिए चाहिए था कि वो हंस का उपचार कर सकें.
बुद्ध के पाठ से ये अहिंसा और करुणा हटा दें, तो क्या बचेगा भला?
अब इस सबके बाद याद कीजिए. हमारे यहां ट्विटर पर चली वो अपील. जिसकी वजह से हमने आपको विराथू की कहानी सुनाई है.


विडियो- म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों के नरसंहार के पीछे गाय की कुर्बानी है