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पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों का पूरा ब्योरा: कितनी मिसाइलें? कितने विमान?

सैटलाइट तस्वीरों से मालूम चला पाकिस्तान के परमाणु अड्डों का पता. भारत की सीमा से कितने दूर हैं ये अड्डे?

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पाकिस्तान के पास आज की तारीख़ में कितने परमाणु हथियार हैं? (फ़ोटो/AFP)

“हम भले ही दूब-घास खाएं या फिर भूखे मर जाएं, पर अगर भारत परमाणु बम तैयार करता है, तो हम अपना बम बनाने में कतई पीछे नहीं हटेंगे.”

ये बयान था पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो का. 1965 का युद्ध हारने के बाद उन्होेंने मुआवज़े के तौर पर अपनी साख बचाने के लिए ऐसा एलान किया था. इस बात के तीन दशक गुज़र जाने के बाद पाकिस्तान के इतिहास में आख़िरकार वो दिन आया, जब - 1998 में - उन्होंने अपने पहला परमाणु टेस्ट अंजाम दिया. आज पाकिस्तान एक न्यूक्लीयर ताक़त है.

हालांकि, जियो-पॉलिटिक्स बूझने वालों की मानें तो पाकिस्तान की सफलता के पीछे एक अहम वजह है - उनकी ‘बेग, बॉरो, स्टील’ की नीति. परमाणु प्रसार के प्रमुख जानकार गैरी मिलहोलिन ने तो यहां तक कहा है कि चीन के सहयोग के बिना पाकिस्तान ख़ुद के लिए बम बनाने में पूरी तरह से असक्षम साबित होता.

पाकिस्तान के पास कितने परमाणु?

बुलेटिन ऑफ़ दी एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने हाल ही में एक ख़ास रिपोर्ट छापी है. शीर्षक - 'पाकिस्तान न्यूक्लियर हैंडबुक, 2023'. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, पाकिस्तान के पास इस वक़्त लगभग 170 परमाणु हथियार हैं. 2022 के बाद से संख्या में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिली है. अगर पाकिस्तान इसी रफ़्तार से अपना जख़ीरे बढ़ाता रहे, तो 2025 तक उसके पास 200 परमाणु हथियार हो सकते हैं.

पाकिस्तान सरकार अपने परमाणु जख़ीरे पर सतर्क चुप्पी धरे हुए है. इस मूक अवस्था को भांपते हुए 'फे़डरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स' के शोधकर्ताओं ने ये ज़िम्मा अपने हाथ लिया और सैटेलाइट इमेजरी के ज़रिए पाकिस्तान के थलसेना गैरिसनों और वायुसेना अड्डों का मुआएना किया. पाकिस्तान के न्यूक्लियर विस्तार को दस्तावेज़ कर पूरी दुनिया को परोसा. 

अपनी खोज में उन्हें मालूम चला है कि सेना के हथियार और डिलीवरी उपकरण तो बढ़े ही हैं. साथ-साथ आणविक सामग्री उत्पादन उद्योग (fissile material production industry) में भी काफ़ी फैलाव आया है. फ़िसल मेटेरियल मतलब ऐसी चीज़ें, जो फिशन रिऐक्शन से गुज़र सकती हों. परमाणु हथियारों या विस्फोटकों के लिए ये मेटेरियल ईंट की तरह होते हैं. ईंट का बढ़ना मतलब सीधे तौर पर परमाणु की इमारत को बढ़ने की तैयारी.

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परमाणु क्षमता पर पाकिस्तान के इस उग्र अप्रोच पर हमने बात की मैट कोरडा से. मैट, इस ख़ास रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं और ‘न्यूक्लियर इन्फॉर्मेशन प्रोजेक्ट’ में सीनियर रिसर्चर के रूप में कार्यरत हैं. परमाणु ताक़त पर दोनों देशों के नज़रिए पर उन्होंने टिप्पणी की:

"हमारे अनुमान में भारत और पाकिस्तान का परमाणु भंडार लगभग बराबर है. लेकिन दोनों का मक़सद बिल्कुल अलग है. जहां पाकिस्तान अपने भंडार को किसी आगामी मुठभेड़ के लक्ष्य से ज़्यादा सामरिक बनाना चाहता है. वहीं, भारत अपने परमाणु हथियार परंपरागत तरीक़े से संजोकर रखना चाहता है. ताकि वो ख़ुद को चीन और पाकिस्तान से बचा सके."

साथ ही मैट कहते हैं कि दोनों देशों के परमाणु संग्रह आने वाले समय में कितनी तेज़ी से बढ़ेंगे, ये एक रहस्य ही है. हालांकि, ये तो अन्दाज़ा लगाया ही जा सकता है कि आने वाले दिनों में भारत-पाकिस्तान के बीच की रणनीतिक स्थिरता तेज़ी से कमज़ोर होगी.

पाकिस्तान के परमाणु टेस्ट की 25वीं सालगिरह के मौक़े पर लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) ख़ालिद किदवई ने भाषण दिया था. कहा था कि पाकिस्तान 'फुल स्पेक्ट्रम डिटरेन्स' - रणनीतिक, परिचालन और सामरिक के साथ अपने परमाणु ट्रायड को बढ़ावा देगा. इससे पाकिस्तान को भारत के भूभाग की पूरी कवरेज मिल सकेगी. 

इसीलिए अब उन ज़रूरी जगहों के बारे में जान लेते हैं, जहां पाकिस्तान अपने 'परमाणु ट्रायड' को संजोकर रखता है.

फ़िसल बनाने को तैयार 

रिपोर्ट के हिसाब से पाकिस्तान के कहूटा और गदवाल में फ़िसल उत्पादन का ढांचा लगभग बनकर तैयार होने वाला है. ऊपरी बनावट से ये 'यूरेनियम ऐनरिचमेन्ट प्लांट' की तरह लगता है. रिपोर्ट में चार भारी प्लूटोनियम उत्पादन रिएक्टर्स का भी ज़िक्र है, जहां से परमाणु हथियारों के लिए प्लूटोनियम की सप्लाई होती है. ये पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शहर खुशाब कॉम्प्लेक्स में बनाए गए हैं.

ऐसे ही काफ़ी परमाणु ठिकानों के विस्तार को सैटेलाइट इमेजरी के ज़रिए परखा गया है. इसमें इस्लामाबाद से पूर्व दिशा में स्थित निलोर के 'न्यू लैब्स री-प्रोसेसिंग प्लांट' और चश्मा कॉम्प्लेक्स भी शामिल हैं.

इसी साल के जून महीने में छपी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पाकिस्तान और चीन ने $4.8 बिलियन (क़रीब 40 हज़ार करोड़ रुपये) के समझोते (MoU) पर दस्तख़त किए हैं. इससे 1,200 मेगावॉट का एक 'न्यूक्लियर पॉवर प्लांट' बनेगा -- ऐसी योजना है.

इस्लामाबाद के पश्चिम में मौजूद काला चित्त दहर पर्वत श्रृंखला पर पाकिस्तान अपनी परमाणु मिसाइलें और उनके मोबाइल लॉन्चर बना रहा है. श्रृंखला के पश्चिमी हिस्से में मिसाइलें बनती हैं, परीक्षण होता है. वहीं पूर्वी भाग में लॉन्चरों को जोड़ा जाता है. पूर्वी भाग में रोड-मोबाइल ट्रांसपोर्टर इरेक्टर लॉन्चर (TELs) का इस्तेमाल किया जाता है, जो मिसाइलों को ले जाने और फायर करने में काम आते हैं. इसे पूरी गाड़ी की तरह समझिए. मिसाइल रखता भी है, दाग भी सकता है.

सैटेलाइट इमेजरी के ज़रिए ये भी पता चला है कि इसी TEL ढांचे का इस्तेमाल अलग-अलग बैलिस्टिक और क्रूज़ मिसाइलों के लिए भी होता है. जून, 2023 में ये ढांचा नस्र, ‘शाहीन-आई. ए. बैलिस्टिक मिसाइल’ और ‘बाबर क्रूज़ मिसाइल’ के लिए इस्तेमाल होता देखा गया था. 

पिछले दस सालों से फतेह जंग इलाक़े में लॉन्चर बनाने के लिए नई इमारतें बनाई जा रही हैं. और, ये सब अभी थमा नहीं है. रिपोर्ट की मानें तो ऐसे बाक़ी लॉन्चर और प्रोडक्शन सेंटर्स तर्नावा और तक्षशिला क्षेत्र में भी बनाए गए हैं.

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फ़िलहाल 'वॉरहेड' प्रोडक्शन के बारे में जानकारी की तंगी है, लेकिन विषय के जानकारों ने लंबे समय से ये अनुमान लगा रखा है कि इस संदर्भ में इस्लामाबाद के उत्तर-पश्चिम में वाह के पास पाकिस्तान ऑर्डनेंस फैक्टरीज़ की भूमिका ज़रूर है. इन कारख़ानों में से एक फैक्टरी एक अजीब जगह के पास है, जिसमें छह मिट्टी से ढके बंकर (इग्लू) हैं. ये मल्टी-लेयर्ड सुरक्षा के साथ एक सशस्त्र गार्ड से घिरा हुआ है. इसीलिए इस जगह पर संशय बना रहता है.

परमाणु ले जाने के लिए विमान कितने? 

परमाणु डिप्लॉयमेंट में इस्तेमाल के लिए पाकिस्तान के पास मिराज-III और मिराज-V फाइटर स्क्वॉडरन्स ही हैं. और, मिराज बॉम्बर के दो ठिकाने हैं - मसरूर एयर बेस और रफीकी एयर बेस.

कराची के बाहर स्थित मसरूर एयर बेस में 32वीं विंग की तैनाती है. इसमें तीन मिराज स्क्वॉड्रन हैं - 7वीं स्क्वॉड्रन (बैंडिट्स), 8वीं स्क्वॉड्रन (हैदर्स), और 22वीं स्क्वॉड्रन (ग़ाज़ीज़). इस अड्डे से मात्र पांच किलोमीटर उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर एक पोटेंशियल परमाणु-शस्त्र इन्वेंट्री भी है, जिसके अंदर अत्यधिक संरक्षित अंडर-ग्राउंड फैसिलिटीज़ हैं. किसी परमाणु हमले के दौरान इनकी ज़रूरत पड़ सकती है. इसी मक़सद से बनाई भी गई है.

दूसरा मिराज अड्डा शोरकोट के पास है, रफ़ीक़ी एयर बेस. पाकिस्तान की 34वीं विंग का पता. यहां दो मिराज स्क्वॉड्रन्स हैं - 15वीं स्क्वॉड्रन (कोब्राज़) और 27वीं स्क्वॉड्रन (ज़र्राज़).

पाकिस्तान और अमरीका के बीच हुए समझौते के मुताबिक़, पाकिस्तानी वायुसेना के F-16 विमान परमाणु-शस्त्र नहीं हो सकते. हालांकि, कई रिपोर्ट्स में कहती हैं कि पाकिस्तान ने ऐसे संशोधन पर ज़रूर विचार किया होगा. मतलब पाकिस्तान को कैरियर्स चाहिए. मुमकिन है इसीलिए मार्च 2023 में सरकार ने कथित तौर पर 12 JF-17 ब्लॉक-III विमानों के पहले बैच को 16वें स्क्वॉड्रन (ब्लैक पैंथर्स) में शामिल किया था.

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किसी झड़प के दौरान इस्तेमाल के लिए परमाणु ग्रैविटी बम सीधे अड्डे पर नहीं रखे जाते हैं. बल्कि रिपोर्ट के बकौल, उनका संभावित भंडारण स्थल बेस से दक्षिण की ओर लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर सरगोढ़ा शस्त्र संग्रह कॉम्प्लेक्स में हो सकता है.

नए F-16C/D विमान पाकिस्तान के उत्तर में और जैकोबाबाद के बाहर शहबाज़ एयरबेस में रखे हैं. और, 39वीं विंग के प्राधिकृत्य के अंतर्गत आते हैं. कुछ F-16s इस्लामाबाद के उत्तर-पश्चिम में बसे मिन्हास (कामरा) एयर बेस पर भी दिखाई देते हैं. हालांकि, ये बेस पर मौजूद विमान उद्योग से संबंधित भी हो सकते हैं.

ज़मीनी मिसाइलें कितनीं?

आज की तारीख़ में पाकिस्तान के पास कुल छह ऑपरेशनल परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम हैं. 

  • शॉर्ट-रेंज के लिए: अब्दाली (हत्फ-2), ग़ज़नवी (हत्फ-3), शाहीन-I/A (हत्फ-4) और नस्र (हत्फ-9). 
  • मीडियम-रेंज के लिए: ग़ौरी (हत्फ-5) और शाहीन-II (हत्फ-6). 

इनके अलावा, पाकिस्तान दो और बैलिस्टिक सिस्टम्स बना रहा है. हालांकि, सैन्य इंस्टॉलेशन्स और द्वैतीय-क्षमताओं या विशेष हमलों वाले तंत्र में फ़र्क़ कर पाना मुश्किल है. फिर भी कम से कम पांच ऐसे अड्डे हैं, जो पाकिस्तान की देख-रेख में हैं:

# आरको गैरीसन: भारतीय सीमा से लगभग 145 किलोमीटर दूर. 2004 से धीरे-धीरे बन-बढ़ रही है. इसमें छह मिसाइल TEL गैरेज हैं, जो कम से कम बारह लांचरों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं. गैरेज के नीचे, एक अंडर-ग्राउंड फ़ैसिलिटी बन रही है. फ़ैसिलिटी में दो क्रॉस-आकार के सेक्शन हैं, जो बीच के गलियारे से जुड़े हुए हैं. नीचे की तरफ़ ही बाबर क्रूज़ मिसाइल हथियार प्रणाली के लिए पांच TEL रखे गए हैं.

# गुजरांवाला गैरीसन: गुजरांवाला गैरीसन, देश के सबसे बड़े सैन्य परिसरों में से एक है. भारतीय सीमा से लगभग 60 किलोमीटर दूर. यहां कई ट्रक देखे गए हैं, जो नस्र शॉर्ट-रेंज मिसाइल सिस्टम से बहुत मिलते-जुलते हैं. नस्र की अनुमानित रेंज भारतीय सीमा से गैरीसन की दूरी के लगभग बराबर है.

# खुजदार गैरीसन: भारत की सीमा से सबसे दूर. 2017 के अंत में तीन अतिरिक्त TEL गैरेज जोड़े गए थे, जिससे कुल संख्या छह हो गई. इसके अलावा इस खंड में दो बहुमंज़िला हथियार-संचालन बिल्डिंग भी हैं. ढके हुए रैंप्स भी हैं, जो एक अंडर-ग्राउंड परमाणु स्टोरेज की ओर ले जा सकते हैं.

# पानो अकील गैरीसन: सिंध प्रांत के उत्तरी भाग में सीमा से केवल 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां कथित तौर पर लगभग 50 TELs हो सकते हैं. इस गैरीसन में बाबर और शाहीन-I मिसाइलों के लिए भतेरे TELs हैं. 

# सरगोधा गैरीसन: पहाड़ियों में स्थित एक गैरीसन. पाकिस्तान ने 1983 से 1990 तक परमाणु विकास के लिए इसका इस्तेमाल किया था. इधर एक मामूली जंग का सामान रखने वाला स्टोरेज है. दस TEL गैरेज और दो रखरखाव गैरेज हो सकते हैं. हालांकि, इसका लेआउट बाक़ियों से अलग है. कम से कम दस दरवाज़े दिखाई दिए हैं.

हमारे पड़ोसी ज़मीन और समुद्र से लॉन्च की जाने वाली क्रूज़ मिसाइलें भी बना रहे हैं. इसमें बाबर (हत्फ-7) भी शामिल है. ये ‘सबसॉनिक डुअल-कैपेबल’ क्रूज़ मिसाइल अमेरिकी टॉमहॉक, चीन के DH-10 और रूसी AS-15 क्रूज़ मिसाइलों से काफी मिलती-जुलती है. 

पाकिस्तानी सरकार की कहें तो इस मिसलाइल में स्टेल्थ (ग़ायब हो जाने की) क्षमताएं हैं, निशाना चुन कर हमला करने की सटीकता है और ये ज़मीन से बहुत क़रीब उड़ सकती है.

पाकिस्तान की सबसे गुप्त परमाणु क्षमताओं पर आधिकारिक बयान नहीं आते. ये देखते हुए मैट कोर्डा ‘ओपन-सोर्स डेटा’ को पूरा श्रेय देते हैं जिसकी बदौलत अब किसी राष्ट्र की गुप्त गतिविधियां ज़्यादा समय तक जनता से छुपी नहीं रह सकती हैं.

(ये स्टोरी हमारी साथी दीप्ति यादव और बिदिशा साहा ने लिखी है.) 

वीडियो: तारीख: खालिस्तान के नक्शे से पाकिस्तान वाला पंजाब क्यों गायब हुआ?