इसके बाद मैंने राजीव से कहा कि वो तत्काल दिल्ली एक सूचना भेजें कि इंदिरा गांधी के निधन की खबर की घोषणा न की जाए. हम सबने ये निर्णय लिया कि इंदिरा के निधन की खबर के साथ ही राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने की खबर भी दी जाएगी."
राजीव ने प्रणब के साथ ली शपथ
दिल्ली पहुंचने के बाद शाम को कांग्रेस संसदीय बोर्ड के 5 में से 2 सदस्य (जो दिल्ली में मौजूद थे) - नरसिंह राव और प्रणब मुखर्जी- ने राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से सिफारिश की कि राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई जाए. इसके बाद शाम 6 बजे राजीव गांधी ने अपने चार कैबिनेट सहयोगियों (प्रणब मुखर्जी, नरसिंह राव, पी शिवशंकर और बूटा सिंह) के साथ शपथ ग्रहण की. शपथ ग्रहण के बाद राजीव गांधी ने दूरदर्शन और आकाशवाणी पर राष्ट्र को संबोधित किया. इसी संबोधन में इंदिरा गांधी की मौत की आधिकारिक सूचना लोगों को दी. हालांकि लोगों तक इससे पहले ही सूचना पहुंच चुकी थी. फैसलाबाद में भारत-पाकिस्तान का वनडे क्रिकेट मैच रोके जाने पर रेडियो पाकिस्तान की कमेंट्री टीम ने इन्दिरा गांधी की हत्या की बात बता दी थी. उसके कुछ देर बाद बीबीसी ने भी घोषणा कर दी थी.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी ने जब राजीव से पीएम बनने को कहा तो उन्होंने पूछा, "क्या आपको लगता है कि मैं ये मैनेज कर पाऊंगा?’’
जिस वक्त इन्दिरा गांधी की हत्या हुई, उस वक्त सातवीं लोकसभा के चार साल नौ महीने पूरे हो चुके थे. लोकसभा चुनाव सिर पर था. इस चुनाव में कांग्रेस (इ) के पक्ष में जबरदस्त सहानुभूति लहर चली और उसे 400 से भी ज्यादा सीटें हासिल हुईं. लेकिन जनवरी 1985 में चुनाव नतीजे आने के बाद जब राजीव गांधी ने अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन किया, तब उसमें आश्चर्यजनक रूप से प्रणब मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया. कई राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि राजीव के दोस्त और रिश्तेदार अरुण नेहरू (जो उस वक्त काफी प्रभावशाली थे) ने राजीव गांधी को प्रणब दा के खिलाफ काफी भड़काया था. अरुण नेहरू ने कथित तौर पर राजीव से कहा था कि प्रणब मुखर्जी एक अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं और इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे.
जनवरी 1985 में चुनाव नतीजे आने के बाद जब राजीव गांधी ने फिर से अपनी कैबिनेट बनाई, तब उसमें आश्चर्यजनक रूप से प्रणब मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया था. (फाइल फोटो)
कहते हैं कि इसके बाद राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. 27 अप्रैल 1986. प्रणब मुखर्जी कांग्रेस (इ) के कार्यकारी अध्यक्ष कमलापति त्रिपाठी के बंगले पर उनके साथ बैठकर चाय पी रहे थे. तभी त्रिपाठी की बहू चंदा बाहर आती हैं और उन्हें बताती हैं,
"प्रणब दा, अभी-अभी आपको पार्टी से निकाल दिया गया है."ये सुनकर प्रणब दा चौंक गए. लेकिन वह कुछ कर नहीं सकते थे. 1987 में उनका राज्यसभा का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा था. लेकिन उससे पहले उन्होंने अपनी नई पार्टी बना ली, जिसका नाम रखा- राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (इन्दिरा). उनकी इस पार्टी ने बंगाल विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन बुरी तरह हारी. उधर 1987 में प्रणब दा का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो गया. तब वह लुटियंस दिल्ली का सरकारी बंगला छोड़कर ग्रेटर कैलाश-2 के अपने निजी घर में आकर रहने लगे.
राजीव गांधी बोफोर्स के मामले में बुरी तरह से घिर गए थे. इसी माहौल में कुछ करीबी लोगों ने राजीव और प्रणब मुखर्जी के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलाने की कोशिशें शुरू की थीं.
करीब ढाई साल बाद जब राजीव गांधी बोफोर्स के मामले में बुरी तरह से घिर गए. उन्हें पुराने और अनुभवी कांग्रेसियों की आवश्यकता महसूस होने लगी. इसी माहौल में कुछ करीबी लोगों ने राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी के रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिशें शुरू कीं. राजीव गांधी को भी तब तक अहसास हो चुका था कि 'जिन अरुण नेहरू के उकसाने पर वह प्रणब दा को कैबिनेट और पार्टी से निकालने की हद तक चले गए थे, वह तो खुद ही वीपी सिंह के बगलगीर बनकर राजीव गांधी और उनके परिवार पर बोफोर्स को लेकर हमला कर रहे हैं.'
देखें: देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के किस्से