लेकिन एक बात तय है. बनिया शब्द को लेकर एक तरह की असहजता हम सब में है. माने किसी को 'वीर मराठा' कहना एक बात होगी और 'चतुर बनिया' बिलकुल दूसरी. दोनों जगह एक समाज का ज़िक्र है. लेकिन पहली बात में ठूंस-ठूस कर गर्व भरा है, दूसरी में एक छुपा हुआ आक्षेप. खैर, हम आपको ये बताते हैं कि महात्मा गांधी अपने बनिए होने को लेकर क्या कहा था.
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पालमपुर के नवाब मुहम्मद तल्ले खान से गांधी जी की गाढ़ी दोस्ती थी. और इस दोस्ती के कई किस्से आज भी उत्तर गुजरात में सुनाए जाते हैं. उन्हीं में से एक ये है कि जब भी गांधी जी साबरमती से दिल्ली आना-जाना करते, नवाब को इत्तला कर देते. दिल्ली से अहमदाबाद का रेल रूट नवाब के इलाके से गुज़रता था. तो जिस दिन गांधी जी पालमपुर से गुज़रने वाले होते, उस दिन नवाब अमीरगढ़ रेल्वे स्टेशन पहुंच जाते और कुछ दूरी तक उनके साथ तीसरे दर्जे के डिब्बे में सफर करते, वक्त बिताते.

ऐसा ही एक वाकया 1931 का है. नवाब को तार मिला कि गांधी जी दिल्ली मेल से लौट रहे हैं. गाड़ी शाम तकरीबन 5 बजे पालनपुर पहुंचने वाली थी. तो नवाब साहब बकरी का दूध और फल (गांधी जी को ये बड़े पसंद थे) लेकर अमीरगढ़ पहुंच गए. दिल्ली मेल उन दिनों अमीरगढ़ रुकती नहीं थी लेकिन नवाब साहब की गुज़ारिश पर स्टेशन मास्टर गाड़ी रुकवाने को तैयार हो गए. यहां से नवाब पालनपुर तक गांधी जी के साथ जाने वाले थे.
अब हुआ ये कि गाड़ी रुकी भी और नवाब उसमें चढ़े भी लेकिन किस्मत से उस दिन पड़ गया सोमवार. इस दिन गांधी जी मौन धारण करते थे और बात करने के लिए स्लेट-चॉक इस्तेमाल करते थे. तो फल और दूध गांधी जी को देकर नवाब ने स्लेट उठाई और तीन सवाल लिखेः
1. आपकी सेहत कैसी है?
2. आप साबरमती में कितने दिन रुकेंगे?
3. बच्चों के खेलने वाले नोटों पर आपकी तस्वीर छपने लगी है. असल नोट पर आपकी तस्वीर कब छपेगी?

पालनपुर स्टेट की टिकिट
इस पर महात्मा गांधी ने स्लेट उठाई और ये जवाब लिखे:
1. बेहतर होता आप ट्रेन में मेरे साथ चल रहे आम लोगों का हाल भी पूछ लेते.लेकिन तीसरे सवाल का जवाब उन्होंने नहीं दिया. वो सवाल ही मिटा दिया. जब नवाब ने जानना चाहा कि उनके तीसरे सवाल का क्या, हुआ तो गांधी जी ने ये लिखाः
2. मैं साबरमती आश्रम में तब तक रहूंगा जब तक अंग्रेज़ रहने देंगे.
आपने मुझे दूध और फल दिए. माने दो चीज़ें. फिर आप मुझसे तीन जवाबों की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. मैं भी बनिया हूं, आप मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते.इसके बाद ज़ोर के ठहाके लगे.
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गांधी जी के विनोदी स्वभाव के ऐसे ही कई और किस्से हैं. यदि आपको कोई मालूम हों, तो हमें lallantopmail@gmail.com पर लिख भेजें.
(* स्रोतःटाइम्स आफ इंडिया)
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