दिलीप मैदान में आए और दूसरे एंड पर खड़े एकनाथ सोलकर से कहा, "मैंने मैंने वेस्ट इंडीज़ की भयानक तेज़ बॉलिंग 1962 में देखी थी. उनके सामने ये बॉलर तो पोपटवाड़ी हैं." (बम्बइया भाषा में बेवकूफ टाइप को पोपटवाड़ी कहेंगे.) अगला विकेट 137 रनों के बाद गिरा. इन 137 रनों के दौरान एक मौका ऐसा आया जब गेंद पुरानी हो चुकी थी और कप्तान गैरी सोबर्स नई गेंद लेने ही वाला था. दिलीप को लगा कि नई गेंद के साथ पेस अटैक आएगा और एकनाथ सोलकर को ले जाएगा. उन्होंने एक प्लान बनाया. स्पिनर्स बॉलिंग कर रहे थे. दिलीप ने एकनाथ से कहा कि स्पिनर्स को हर गेंद पर न मारें. हर ओवर में 1 या 2 गेंदें जान बूझकर मिस कर दें और जब मिस करें तो जोर से बोलें, "वेल बोल्ड!" ये इतनी ज़ोर से बोलें कि सर्किल पर खड़े गैरी सोबर्स को भी सुनाई दे.
अब हर ओवर में ज़्यादा से ज़्यादा एक ही बाउंड्री आ रही थी और बल्लेबाज़ बॉलर को चीख-चीख कर शाबाशी दे रहे थे. सोबर्स सोचने लगे कि बस विकेट गिरने ही वाला है. दिलीप का प्लान चल निकला था. दोनों ने साथ मिलकर सेंचुरी पार्टनरशिप कर डाली. पोपटवाड़ियों के सामने दिलीप ने कुल 212 रन बनाए. मैच ड्रॉ हुआ.

दिलीप सरदेसाी और एकनाथ सोलकर (दाएं).
वेस्ट इंडीज़ आते वक्त इंडियन टीम की फ्लाइट सीधे नहीं आई थी. वो अमरीका होते हुए आए थे. न्यूयॉर्क में टीम इंडिया ने मोहम्मद अली और जो फ्रेज़ियर के बीच बॉक्सिंग मैच देखा था. ये पहली दफ़ा था जब दोनों एक दूसरे से हेवीवेट चैम्पियनशिप के लिए लड़ रहे थे. इस मैच में 25 नॉक आउट के साथ जाने वाला मोहम्मद अली फ्रेज़ियर से हार गया. दुनिया सन्न थी. अली भी. (हालांकि अली ने फाइट के बाद कहा कि गोरों ने उसे जानबूझकर हराया है. उसने अपनी हार मानने से इनकार कर दिया था और अगले 4 साल में फ्रेज़ियर को दो मुकाबलों में हराया.) दिलीप ने फाइट देखी और सोचा कि अगर फ्रेज़ियर अली से जीत सकता है, तो वो भी वेस्ट इंडीज़ का मुकाबला कर सकते हैं. पूरी सीरीज़ में वही हुआ. अगले टेस्ट में सरदेसाई के नाम के आगे फिर एक सेंचुरी लिखी गई.

जो. फ्रेज़ियर और मो. अली के बीच मैच का एक दृश्य.
इंडिया ने पहली बार वेस्ट इंडीज़ को उसके घर में कोई टेस्ट मैच हराया. चौथा टेस्ट बारबाडोस में था. टीम एयरपोर्ट पर उतरी. ब्रिजटाउन एयरपोर्ट के एक कस्टम अधिकारी ने उनसे पूछा कि शहर में घुसने से पहले उन्हें अपने साथ लाए गए सामान में कुछ ज़रूरी या कीमती सामान डिक्लेयर करना था. दिलीप ने सधा हुआ जवाब दिया, "मुझे अपने रनों के सिवा और कुछ डिक्लेयर नहीं करना है. मैंने पहले दो मैचों में रन बनाए हैं. अब मैं यहां से कुछ और रनों के साथ वापस जाऊंगा."
बारबडोस में जब दिलीप बैटिंग करने उतरे तो टीम का स्कोर था 70 पर 6. फिर से एकनाथ सोलकर और दिलीप सरदेसाई जुट गए. दिलीप ने मैच में 150 रन बनाए.

दिलीप सरदेसाई ने अपने करियर में कुल 30 टेस्ट मैच खेले.
दूसरे टेस्ट के बाद सारे मैच ड्रॉ रहे. इंडिया ने सीरीज़ 1-0 से जीती. पहली विदेशी टेस्ट सीरीज़ जीत. ये वही सीरीज़ थी जिससे सुनील गावस्कर ने इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखा था. पहले मैच में उन्हें खिलाया नहीं गया था, जिसमें डबल सेंचुरी मारने के बाद दिलीप ड्रेसिंग रूम में बैठे हुए थे और और उन्होंने वेस्ट इंडियन प्लेयर्स की ओर देखते हुए उनसे कहा "इसे जानते हो? सुनील गावस्कर. ये लड़का भी तुम्हारे खिलाफ़ डबल सेंचुरी मारेगा." सीरीज़ के आख़िरी टेस्ट में सुनील गावस्कर ने 220 रन बनाए. मात्र 4 मैचों में सुनील ने 774 रन बनाए. दिलीप सरदेसाई ने 5 मैचों में 642 रन बनाए. इसके ठीक बाद इंग्लैंड की सीरीज़ आई जिसमें भी इंडिया ने जीत हासिल की. देश वापसी पर ऐसा भव्य स्वागत हुआ कि लगा 16 लोग दुनिया जीत कर आए थे. दिलीप ने गावस्कर के बारे में कहा, "सनी तो महान है. हम सब तो बस अच्छे थे."
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