कार्वी क्या है?
कार्वी स्टॉक मार्केट की ब्रोकर कंपनी है. ब्रोकर यानी दलाल. दलाल शब्द बड़े ग़लत मायनों में प्रचलित है. मगर शेयर बाज़ार के जिन दलालों की हम बात कर रहे हैं, ये कंपनी और शेयर बाजार में इन्वेस्ट करने वालों के बीच की एक अहम कड़ी हैं. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सामने वाली सड़क है न. उसका नाम ही है दलाल स्ट्रीट. तो ब्रोकर्स का काम होता है पल-पल की खबर रखना. कंपनियों के प्रॉफिट, उनकी साख, उनकी प्लानिंग वगैरह पर पैनी नजर रखना. अपने क्लाइंट्स को बताना कि कहां शेयर खरीदना है और कहां नहीं. यही काम कार्वी भी करती है.

कार्वी की साइट खोलने पर सबसे पहले आता है ये विज्ञापन.
शेयर का जिक्र आया है तो थोड़ा ज्ञान इस पर भी ले लीजिए. शेयर मतलब हिस्सा. शेयर बाज़ार यानी हिस्सेदारी का बाजार. जो लिस्टेड कंपनियां होती हैं, उनकी संपत्ति और मालिकाना हक़ शेयरों में बंटा रहता है. आपके पास शेयर है, आपका भी हिस्सा हुआ. ये शेयर बेचने और ख़रीदने का काम होता है शेयर मार्केट में. इस बाज़ार का हिस्सेदार बनने के लिए स्टॉक एक्सचेंज (यानी NSE और BSE आदि) और SEBI के पास रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है. SEBI यानी सिक्यॉरिटी ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया. SEBI को समझिए शेयर बाजार का रेफरी. ये चौकीदार भी है, निरीक्षक भी है. इसी की देखरेख में सारा कारोबार होता है.

कार्वी का अब तक का सफर
कार्वी ने किया क्या है? आपने बैंक में लॉकर देखे होंगे. जहां कस्टमर गहनों को या दूसरी बहुमूल्य वस्तुओं को सुरक्षित रखता है. कस्टमर बैंक पर भरोसा करता है कि वहां उसका सामान सुरक्षित रहेगा. बैंक इसकी गारंटी भी देता है. लॉकर की एक चाबी बैंक के पास होती है और दूसरी कस्टमर के. मान लीजिए कि बैंक दूसरी चाबी से लॉकर खोल ले और आपके गहनों को दूसरी जगह इन्वेस्ट कर दे या बेच दे. बिना आपकी अनुमति के. मतलब आपके भरोसे का गलत इस्तेमाल हो. जानकार कहते हैं यही काम कार्वी ने भी किया है. लोगों के भरोसे को तोड़ा है. कार्वी के पास लोगों ने अपने शेयर सुरक्षित रखे थे. कार्वी को पॉवर ऑफ अटॉर्नी दी थी. लेकिन कार्वी ने इस पॉवर ऑफ अटॉर्नी का गलत इस्तेमाल किया. कार्वी ने अपने क्लाइंट्स के शेयर बेच दिए और इससे जो पैसा मिला उसे दूसरी जगहों पर लगा दिया. बिना क्लाइंट्स की अनुमति के. और स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी भी नहीं दी.

स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव पर नजर गड़ाए बैठे ब्रोकर्स की सांकेतिक तस्वीर.
सेबी ने क्या किया? नेशनल स्टॉक एक्सचेंज यानी NSE ने सेबी को एक रिपोर्ट भेजी. इस रिपोर्ट में NSE ने कहा कि कार्वी ने कस्टमर की सिक्योरिटी बेचने के लिए पॉवर ऑफ अटॉर्नी का गलत इस्तेमाल किया. कार्वी ने जनवरी 2019 से अगस्त 2019 के बीच सेबी को भेजे सबमिशन में (डीपी अकाउंट नंबर 11458979) इसका जिक्र भी नहीं किया. 22 नवंबर को अंतरिम आदेश जारी करते हुए सेबी ने कार्वी को नया कारोबार करने से रोक दिया. सेबी ने ये भी कहा कि अप्रैल 2016 से अक्टूबर 2019 के बीच कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग लिमिटेड ने 1096 करोड़ रुपए अपनी ही ग्रुप की फर्म कार्वी रियलिटी को ट्रांसफर किए. सेबी ने ये भी कहा कि डिपॉजिटरी और एक्सचेंज नियमों के अनुसार क्लाइंट्स के फंड के दुरुपयोग के लिए कार्वी के खिलाफ कार्रवाई शुरू करें. कार्वी को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए 21 दिन का समय दिया गया है.

सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी का कहना है कि अगर इस बारे में पहले नहीं कहा गया हो तो भी क्लाइंट्स के शेयर्स का दुरुपयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है. (PTI)
आगे क्या? सेबी ने कार्वी का मामला सामने आने के बाद सभी ब्रोकर्स को हिदायत दी है. क्लाइंट्स के अकाउंट को अपने अकाउंट से अलग रखने की हिदायत. दोनों को अलग रखने का उद्देश्य क्लाइंट्स के पैसों का दुरुपयोग होने से रोकना है. सेबी के इस फैसले से ब्रोकर्स को तगड़ा झटका लगने की संभावना है. कहते हैं कि रसोई घर में केवल एक तिलचट्टा नहीं होता. इस बात की पूरी संभावना है कि दूसरे ब्रोकर्स भी इस तरह की चीजें कर रहे होंगे. इस तरह की गड़बड़ में होता क्या है. शेयर खरीदने वाले आम आदमी के अकाउंट से पैसा गायब हो जाता है. या उसे जरूरत पर नहीं मिलता. ऐसी स्थिति में क्लाइंट्स सेबी, स्टॉक एक्सचेंज (NSE और BSE) और ब्रोकर के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
जून में सेबी ने एक सर्कुलर जारी कर बता दिया था कि किसी भी ब्रोकर को ऐसा करने का हक नहीं. अगर हमने जून में न भी कहा होता, तो भी किसी कंपनी को हक नहीं कि आप अपने स्तर पर ग्राहकों के शेयरों का इस्तेमाल करें.

कार्वी के चेयरमैन सी पार्थसारथी ने इस बात से इनकार किया है कि उनकी कंपनी ने कुछ भी गलत किया है.
कार्वी का जवाब क्या है? कार्वी, देश में ब्रोकरेज का काम करने वाली टॉप 10 कंपनियों में शामिल है. चार्टर्ड अकाउंटेंट सी. पार्थसारथी ने 1980 में एम युगांधर और एमएस रामकृष्णा के साथ कंपनी शुरू की थी. 1985 में कार्वी ने रजिस्ट्री सर्विस की शुरुआत की और 1990 में ब्रोकिंग सर्विस की. 36 साल पुरानी कार्वी अब 21 कंपनियों का समूह है. इसमें 30 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं. देश भर में इसके 900 कार्यालय हैं. स्टॉक ब्रोकरेज इस ग्रुप का सबसे बड़ा कारोबार है. लेकिन जिस तरह से कंपनी पर क्लाइंट्स की रकम के दुरुपयोग का आरोप लगा है, अगर यह साबित हो जाता है तो फिर कार्वी समूह के लिए इससे उबरना मुश्किल हो सकता है.
कार्वी ने मामला सेबी के विचाराधीन होने का हवाला देते हुए अपना पक्ष रखा है. बिजनेस टुडे से बात करते हुए कार्वी के चेयरमैन सी. पार्थसारथी ने इस बात से साफ इनकार किया कि कंपनी ने कुछ भी गलत किया है. पार्थसारथी ने कहा कि कंपनी के करीब 200 ग्राहकों का महज 25 से 30 करोड़ रुपया बकाया है. उन्होंने कहा कि कंपनी करीब एक पखवाड़े में सभी ग्राहकों का बकाया चुका देगी. जो भी पैसा ट्रांसफर किया गया है वह सब्सिडियरी फर्म की कारोबारी जरूरतों के लिए था. सेबी ने ग्राहकों की ट्रेडिंग से कार्वी को नहीं रोका है. केवल नए क्लाइंट्स पर रोक लगी है.
सी. पार्थसारथी के जवाब से मामला आसान सा लगता है. पर ऐसा है नहीं. कई कस्टमर्स ने अपना पैसा फंसे होने की शिकायतें की हैं. सेबी अलग कार्रवाई कर रहा है. साथ ही जांच भी कर रहा है. जांच पूरी होगी तभी पता चलेगा कि कार्वी सही बोल रही है या गलत. घपला हुआ है या नहीं.
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