सबसे पहले बात हिन्दू धर्म की
कोई भी दो बालिग (लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल) शादी कर सकते हैं. हिन्दू धर्म में शादियों के लिए 1955 में एक कानून बना था. इसे हिन्दू मैरिज एक्ट कहा जाता है. इसमें सेक्शन 5, 6 और 7 महत्वपूर्ण हैं. वो इसलिए कि इसमें ये बताया गया है कि किन-किन के बीच शादी नहीं हो सकती है. माता-पिता से संबंधित 5 पीढ़ियों तक शादी नहीं कर सकते हैं. हिन्दू मैरिज एक्ट में एक शब्द महत्वपूर्ण है वो है सप्तपरि. यह वेदों से आया है. इसी सप्तपरि शब्द को हिन्दू मैरिज एक्ट में शामिल किया गया है. एक हिन्दू शादी तभी मान्य होगी जब उसमें सात फेरे हुए हों. सात फेरे अनिवार्य हैं, जिसे हम और आप रीति-रिवाज से शादी करना भी कहते हैं.
तलाक का प्रोसेस क्या है?
हिन्दू शादी में तलाक सीधे कोर्ट से होता है. वो भी हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत. तलाक दो तरीके से होता है. एक आपसी सहमति से और दूसरा दोनों में से किसी एक को शादी से दिक्कत है तो वह तलाक के लिए अर्जी दे सकता है.आपसी सहमति से तलाक
पति-पत्नी कोर्ट में पिटिशन फाइल करते हैं. यहां पक्ष और विपक्ष नहीं होता है. दोनों के बीच सेटलमेंट अग्रीमेंट होता है. दोनों के बयान रिकॉर्ड किए जाते हैं. कोर्ट की ओर से 6 महीने का समय मिलता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद यह ज़रूरी नहीं रह गया है. कोर्ट ये वक्त इसलिए देता है कि इस बीच मन बदला तो आपस में समझौता कर सकते हैं. अगर पति-पत्नी ने आपसी सहमति से तलाक के लिए अर्जी दी और 6 महीने बाद फिर से सुनवाई के लिए नहीं गए तो ये मान लिया जाता है कि उनमें समझौता हो गया है. और वे तलाक नहीं चाहते हैं. लेकिन अगर वे 6 महीने बाद आते हैं तो कोर्ट सुनवाई के बाद तलाक की अर्जी मंजूर करता है.
बात गुजारा भत्ते की
अगर पति-पत्नी अलग-अलग रह रहे हैं तो गुजारा भत्ता क्लेम कर सकते हैं. जिस वक्त पत्नी ने दूसरी शादी कर ली तो पति गुजारा भत्ता बंद कर सकता है. आपसी सहमति से तलाक लेने पर आप एक बार में भी गुजारा भत्ता दे सकते हैं. महिला खुद के लिए और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. किसी महिला को कितना गुजारा भत्ता मिलेगा ये कोर्ट तय करती है. हिन्दू मैरिज एक्ट सिख, बौद्ध और जैन धर्म पर भी लागू होता है. यानी कि इन धर्मों के लोग भी तलाक के लिए जब कोर्ट जाएंगे तो हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत ही मामले की सुनवाई होगी.मुस्लिम धर्म और तलाक
इस्लाम में शादी सोशल कॉन्ट्रैक्ट है. अगर कस्टम की बात करें तो तलाक दो तरीके से होता है. अगर पति ने तलाक बोल दिया तो पत्नी के पास क्या ऑप्शन है. मुस्लिम धर्म में महिलाओं को तलाक बोलने की लिबर्टी नहीं है. तलाक सिर्फ पति ही दे सकता है, क्योंकि वह पत्नी का केयरटेकर है. इसलिए निकाहनामे में लिखा भी जाता है कि हम इनकी पूरी तरह से देखभाल करेंगे. और जब हम छोड़ेंगे तो एक राशि देंगे जिससे वह जिंदगी गुजार सके. जब लड़का तलाक देता है तो उसे किसी ऐक्ट से गवर्न होने की जरूरत नहीं है.
ईसाई धर्म में कैसे होता है तलाक?
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक चर्च के पास तलाक पर फैसला देने का अधिकार नहीं है. सिर्फ कोर्ट ही तलाक पर फैसला दे सकती है. ईसाई धर्म में शादी को जीवनभर का साथ माना जाता है. लेकिन तलाक की नौबत आने पर चर्च शादी को खत्म करने का तरीका बता सकता है. चर्च में आवेदन देना होगा कि शादी क्यों खत्म करना चाहते या चाहती हैं. बातचीत के जरिए उन्हें साथ रहने के लिए मनाया जाएगा. लेकिन फिर भी बात नहीं बनी तो कपल को 6 महीने से सालभर तक अलग रहने के लिए कहा जाता है. लेकिन बात नहीं बनने पर डायसीस कोर्ट में सुनवाई होगी. चर्च में शादी तो रद्द हो सकती है लेकिन तलाक नहीं लिया जा सकता है. चर्च भारतीय कानून को मानता है इसलिए शादी और तलाक जैसे मामलों में भारतीय कानून ही लागू होता है. क्रिश्चियन डिवोर्स एक्ट 1872 पहले से था लेकिन इसमें 2001 में संसोधन हुआ. अगर कोई व्यक्ति क्रिश्चियनिटी को फॉलो करना छोड़ दे तो पत्नी तलाक के लिए अर्जी दे सकती है. लेकिन ये साबित करना होगा. क्रिश्चियन मैरिज भी स्पेशल मैरिज एक्ट में रजिस्टर्ड होगी. कोर्ट में भी तरीका वही है बस यहां हिन्दू मैरिज एक्ट की जगह क्रिश्चियन डिवोर्स एक्ट 1872 का प्रावधान है.सिख समुदाय
सिख समुदाय में तलाक का कंसेप्ट नहीं है, क्योंकि शादी को दो आत्माओं का मिलन माना गया है. लेकिन फिर भी अगर तलाक की नौबत आती है तो कानून के तहत ही तलाक ले सकते हैं. सिख शादियां भी हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत ही रजिस्टर्ड होती हैं. ऐसे में तलाक भी इसी के तहत होता है.स्पेशल मैरिज एक्ट
अगर दो अलग-अलग धर्मों के लोग शादी करें तो इस शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराना होता है. स्पेशल मैरिज कोर्ट में या रीति-रिवाज से हो सकती है. दोनों में से किसी एक धर्म के रीति-रिवाज से शादी होना जरूरी है. मान लीजिए अगर एक हिन्दू और एक मुस्लिम के बीच शादी गुरुद्वारे में हो रही है तो ये शादी मान्य नहीं होगी. यानी किसी एक के ट्रेडिशन को फॉलो करना जरूरी है. अब जब शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हो रही है तो तलाक भी इसी एक्ट के तहत होगा. कोई भी दो धर्म के लोग जिनकी शादी हुई है इसके तहत तलाक ले सकते हैं. अगर किसी ने अपने धर्म के तहत बने कानून के तहत तलाक लिया तो वह कोर्ट में भी मान्य होगा. हालांकि सामने वाला उसे चैलेंज कर सकता है. लेकिन हिन्दू धर्म में तलाक के लिए कोर्ट ही जाना पड़ेगा. मुस्लिमों में दूसरी शादी के लिए तलाक जरूरी नहीं है. मुस्लिम पर्सनल लॉ में लूपहोल बहुत हैं. तलाकनामा को कोर्ट में चैलेंज कर सकते हैं. कोर्ट उसकी वैलिडिटी देखती है. मेहर देखती है. कोर्ट क़ाज़ी की ओर से भेजे गए तलाकनामे को कोर्ट स्वीकार करती है.किस कोर्ट में होती है सुनवाई?
तलाक के जितने भी केस होते हैं, फैमिली कोर्ट में जाते हैं. कोर्ट कोशिश करती है वो तलाक के लिए अर्जी देने वाले पति-पत्नी से संपर्क करे. लेकिन अन्य मामलों में वह वकील से जानना चाहती है, क्योंकि कोर्ट का मानना है कि लोगों को कानून नहीं पता होगा. कोर्ट कोशिश करती है कि दो लोगों के बीच में जिस बात को लेकर अनबन है वो सुलझ जाए. कोर्ट के काउंसलर कोर्ट के स्टाफ होते हैं. दोनों पार्टियों को साथ बिठाकर समझाने की कोशिश करते हैं. फैमिली कोर्ट पहले शादी बचाने पर जोर देती है. कई मामलों में जज सीधे बात करते हैं, एक साथ बात करते हैं तो कभी पति-पत्नी से अलग-अलग बात करते हैं. इस दौरान दिया गया बयान सबूत के तौर पर पेश नहीं हो सकता है. इसलिए लोग खुलकर अपनी बात रख सकते हैं. तलाक लेने से पहले दूसरी शादी करना भी मान्य नहीं है. (ये स्टोरी तीन वकीलों संजय भट्ट, विजया सिंह और अंजनेय मिश्रा से बातचीत के आधार पर की गई है.)ट्रिपल तलाक बिल: नकवी ने इस्लामिक देशों का उदाहरण दिया तो गुलाम नबी आजाद ने लपेट लिया