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तेल के कुओं पर जान जोखिम में डालकर कैसे काम करते हैं लोग?

तेल के कुएं नहीं, तैरते शहर हैं ये.

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तेल के कुओं पर काम करने वालों को खास ट्रेनिंग दी जाती है. खास सुविधाएं मिलती हैं. (फोटो-ओएनजीसी)
तूफान ताउ’ते ने देश के तटवर्ती राज्यों में भयंकर कोहराम मचाया. इस तूफान की वजह से समंदर के किनारों पर तो नुकसान हुआ ही, समंदर के भीतर भी बड़ा हादसा हो गया. भारत की नवरत्न कंपनियों में शामिल ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ONGC) के तेल के कुओं पर काम करने वाले कर्मचारी भी इसकी चपेट में आ गए.
इस दुर्घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. जिनसे पता चलता है कि लोग किस तरह मौत के मुंह में फंस गए. पहले ये वीडियो देखिए. इस वीडियो में दिख रहे लोगों को बचा लिया गया. लेकिन कई ऐसे हैं, जिन्हें बचाया नहीं जा सका. 50 से ज्यादा ONGC कर्मचारी अब भी लापता बताए जा रहे हैं. सरकार ने इस हादसे की जांच के आदेश दिए हैं. लेकिन तेल के कुओं पर काम करना क्या वाकई इतना रिस्की है? लोग कैसे वहां पर जान की बाज़ी लगाकर काम करते हैं? तेल के रिग या कुओं के ऊपर बने प्लेटफॉर्म पर काम करने का तरीका क्या है? आइए जानते हैं तफ्सील से. सबसे पहले इस हादसे के बारे में जान लीजिए 17 मई को जब ताउ’ते नाम के तूफान ने अरब सागर में रफ्तार पकड़ी तो इसकी चपेट में ONGC के तेल के कुओं पर काम करने वाले लोग भी आ गए. एक अनुमान के मुताबिक, इन पर तकरीबन 800 लोग काम कर रहे थे. हवा की रफ्तार लगभग 200 किलोमीटर प्रति घंटा थी. समंदर में 30 फीट तक ऊंची लहरें उठ रही थीं. इन सबके बीच 800 लोगों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा था. ऐसे मौके पर भारतीय नौसेना ने एक साहसिक बचाव अभियान चलाया. तेज हवा और ऊंची लहरों के बीच भी नौसेना के हेलिकॉप्टरों ने उड़ान भरी. लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया. बचाव अभियान की लाख कोशिशों के बावजूद भी 89 लोग लापता हो गए. इनमें से 36 लोगों की लाशें नौसेना ने समंदर में खोज निकालीं. लेकिन 50 से ज्यादा लोगों की तलाश अब तक जारी है. यह देश में समंदर के बीच हुई अपनी तरह की बड़ी दुर्घटना है. इन सबके बीच सवाल उठता है कि तेल के कुओं पर इतने लोग क्या काम करते हैं? आखिर ऑयल रिग बला क्या है? तेल के कुओं का सिस्टम समझिए दुनियाभर में समंदर की तली से तेल निकालने का काम होता है. यह तकनीकी रूप से मुश्किल काम है. तेल के कुओं से तेल निकालने के सिस्टम को समझने से पहले इस कुओं के हिस्सों को समझना होगा. सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि तेल के कुएं पूरी तरह से समंदर पर तैरते हुए स्ट्रक्चर हैं. मतलब जब चाहें सबकुछ समेटकर किनारे लाए जा सकते हैं. हालांकि तेल के कुओं में बरसों तक काम चलता है. मूल रूप तेल के कुओं में दो तरह के स्ट्रक्चर होते हैं. एक हिस्सा वो जहां तेल निकालने के लिए ड्रिलिंग वाला काम होता है. दूसरा वह, जहां काम करने वाले लोग रहते हैं. इसे ONGC के तेल के कुओं से समझते हैं.
# इसका एक हिस्सा है सागर भूषण ऑयल रिग. मतलब वह हिस्सा, जिस पर कुएं से तेल निकालने का काम होता है. यहां पर ड्रिलिंग का काम होता है. कच्चा तेल निकालकर प्रोसेस होने के लिए आगे भेज दिया जाता है. यही तेल ऑयल रिफानरी में पहुंचकर हमको-आपको डीजल-पेट्रोल आदि के रूप में उपलब्ध होता है.
# दूसरे हिस्से हैं बार्ज P305, कार्गो बार्ज जीएएल कंस्ट्रक्टर, बार्ज SS-3. इस हिस्से में बार्ज P305 और बार्ज SS-3 पर लोग रहते हैं. कार्गो बार्ज को माल ढुलाई के लिए रखा गया है. मतलब कच्चे तेल को किनारे तक लाने या भारी मशीनरी को तेल के कुओं तक पहुंचाने जैसे काम इससे किए जाते हैं.
इस पूरे तामझाम को संभालने के लिए 800 लोगों को रखा गया है. तेल के कुओं में काम के तरीकों को समझने के लिए हमने ONGC के कुओं में काम कर चुके एक अधिकारी से बात की. उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर तफ्सील से इसके बारे में बताया.
Oil Rig Parts
तेल के कुओं पर लोगों के रहने के लिए अलग से व्यवस्था होती है. (फोटो-ओएनजीसी)
ऑफशोर और ऑनशोर का फर्क किसी भी तेल निकालने वाली कंपनी में दो तरह के लोग काम करते हैं. एक ऑनशोर और दूसरे ऑफशोर. ऑनशोर मतलब ऐसे लोग जो समुद्र तट पर रहकर काम करते हैं. ऑफशोर बोले तो समंदर की लहरों पर सवार होकर काम करने वाले. कंपनी अपने किसी भी इंजीनियर को ऑनशोर या ऑफशोर काम करने के लिए भेज सकती है. अपनी मर्जी से ड्यूटी की रिक्वेस्ट नहीं की जा सकती. दोनों के काम में फर्क क्या है? ऑनशोर काम करने वालों को ज्यादातर ऑफिस वर्क करना होता है. हालांकि लोडिंग अनलोडिंग जैसे कई काम होते हैं जो ऑफिस से बाहर होते हैं. इसके अलावा मैनेजमेंट और रिसर्च एंड डिवेलपमेंट आदि के महत्वपूर्ण काम भी होते हैं. मतलब ऑफिस वर्क है. ऑफशोर काम करने वाले तेल के कुओं पर ड्रिलिंग से लेकर तेल को प्रोसेस करने का काम करते हैं. ये लोग अपना काम होने तक स्थायी तरीके से तेल के कुओं पर ही रहते हैं. क्या कुछ खास तरह के इंजीनियर ही तेल कुओं में काम करते हैं? ऐसा नहीं है. ONGC जैसी कंपनी में हर ट्रेड के इंजीनियर तेल के कुओं पर काम करते हैं. इनकी संख्या कम ज्यादा हो सकती है. मिसाल के तौर पर कंप्यूटर और आईटी इंजीनियर कम होते हैं. मैकेनिकल और केमिकल इंजीनयर की संख्या ज्यादा होती है. इसके अलावा मैनेजमेंट के भी कुछ लोग ऑफशोर ड्यूटी पर भेजे जाते हैं. तेल के कुओं पर एक आदमी कितने दिन रहता है? हर तेल कंपनी का काम करने का सिस्टम अलग-अलग होता है. लेकिन हर ऑफशोर लोकेशन पर ऑन-ऑफ ड्यूटी का सिस्टम होता है. ऑन-ऑफ ड्यूटी का सिस्टम बोले तो आधा महीना काम आधा महीना छुट्टी. अगर ONGC की बात करें तो इसमें दो तरीके के ऑन-ऑफ वर्किंग पैटर्न हैं. एक है 14 दिन का ऑन-ऑफ. मतलब 14 दिन काम करो और 14 दिन घर पर रहो. दूसरा है 21 दिन का ऑन-ऑफ. इसमें 21 दिन काम और 21 दिन की छुट्टी. जितने दिन ऑफशोर रहते हैं, उनमें कोई छुट्टी नहीं होती.
Oil Rig Work
तेल के कुओं पर काम करने वाले लगातार एकमुश्त वहांं रुककर काम करते हैं. (फोटो-ओएनजीसी)
तेल के कुओं पर लोग काम करने जाते कैसे हैं? कर्मचारियों को घर से रिग या तेल के कुओं तक पहुंचाने की पूरी जिम्मेदारी ONGC की रहती है. मान लीजिए कि कोई ऑफशोर काम करने वाला कर्मचारी दिल्ली में रहता है. उसे अरब सागर में स्थित तेल के कुएं पर काम करने भेजना है. कंपनी पहले कर्मचारी को दिल्ली से मुंबई बुलाती है. उसके बाद कर्मचारी मुंबई से हेलिकॉप्टर में सवार होकर ऑयल रिग पर पहुंचता है. इसका पूरा खर्च कंपनी उठाती है. वहां रहने, खाने-पीने की क्या व्यवस्था है? कंपनियां कर्मचारियों के ऑफशोर रहने के लिए एक छोटा तैरता हुआ शहर बसाती हैं. दुर्घटना का शिकार हुए ONGC के बार्ज P305 और बार्ज SS-3 ऐसे ही रिहाइशी हिस्से थे. इसमें रहने के लिए डबल और ट्रिपल बंक बेड (सीड़ियों वाले बिस्तर) की व्यवस्था रहती है. बड़े अधिकारियों के लिए सिंगल बेड की व्यवस्था होती है. जो लोग इन तेल के कुओं पर काम करते हैं, वो यहीं रहते हैं. खाने-पीने के लिए सप्लाई लगातार तटों से बनी रहती है. ऑफशोर काम कर चुके कर्मचारी बताते हैं कि खाने-पीने को लेकर वहां कोई दिक्कत नहीं होती. लेकिन वहां किचन में कोई खाना पकाया नहीं जाता. फ्रोजन फूड ही इस्तेमाल किया जाता है. मनोरंजन के लिए टीवी रूम और चेस, कैरम, लूडो जैसे गेम्स रहते हैं. बार्ज पर जिम की व्यवस्था भी होती है. कर्मचारी दिन और रात की शिफ्टों में काम करते हैं. इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप आदि ले जाने का क्या स्कोप? ONGC की ऑफसाइट या तेल के कुओं पर काम करने वाले मोबाइल फोन नहीं ले जा सकते. प्राइवेट कंपनियां भी ऐसी इज़ाजत नहीं देतीं. ऑयल रिग पर बहुत से काम गोपनीयता से होते हैं. कंपनियां सुरक्षा के दृष्टिकोण से वीडियो आदि शूट नहीं करने देते. लैपटॉप, कंप्यूटर होते हैं लेकिन इंटरनेट की सीमित सुविधा ही होती है. कंपनी का इंट्रानेट होता है. इस पर लिमिटेड वेबसाइट्स ही चलती हैं. सोशल मीडिया साइट्स नहीं चलतीं. क्या तेल के कुओं पर काम करने की कोई ट्रेनिंग भी होती है? ऑफशोर काम करने वाले हर कर्मचारी को एक खास ट्रेनिंग दी जाती है. सरकारी तेल कंपनियां तो अपने यहां ट्रेंड करते ही हैं. प्राइवेट कंपनियां कुछ एजेंसियों के जरिए अपने कर्मचारियों को ट्रेनिंग दिलाती हैं. कर्मचारियों को दो तरह की ट्रेनिंग दी जाती हैं. पहली ट्रेनिंग हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने पर उससे बाहर निकलने की होती है. दूसरी ट्रेनिंग पानी में रहते हुए सर्वाइव करने की दी जाती है. मतलब अगर पानी में गिर जाएं तो मदद मिलने तक कैसे खुद को बचाए रखें. यह मूल ट्रेनिंग है. इसके अलावा ऑफशोर कर्मचारी लगातार अलग-अलग तरह की ड्रिल करते रहते हैं. तेल के कुओं पर काम करने वालों की सैलरी क्या ज्यादा होती है? ONGC में काम करने वाले ऑफशोर कर्मचारियों को ऑनशोर या तट पर रहकर काम करने वाले से 40 फीसदी तक ज्यादा सैलरी मिलती है. अगर कोई कर्मचारी तेल के कुओं पर रहते हुए 8 घंटे से ज्यादा काम करता है तो उसे ओवरटाइम भी मिलता है. ऐसा ही सिस्टम प्राइवेट कंपनियों में भी होता है.