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ये 'कफ़ाला सिस्टम' क्या है, जिसमें सऊदी अरब बदलाव करने जा रहा है

मामला सऊदी अरब जाकर काम करने वाले लोगों से जुड़ा है.

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कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता मजदूर. (सांकेतिक फोटो)
उत्तर प्रदेश के रहने वाले राजेश राय ने ITI किया. पढ़ाई के बाद से ही वह सऊदी अरब जाकर काम करना चाहते थे. क्योंकि उन्होंने सुन रखा था कि वहां भारत की तुलना में अच्छा पैसा मिलता है. उन्होंने अपने आसपास कुछ लोगों को देखा भी था, जो सऊदी में काम करते थे. वो भी किसी तरह मैनेज करके सऊदी पहुंच गए. लेकिन परेशानी तब शुरू हुई, जब उन्होंने वहां रहकर काम करना शुरू किया.
पहले तो काम देने वाले ने उनके सारे कागजात रख लिए. जैसे-तैसे करके उन्होंने एक साल काटा. एक साल काम करने के बाद जब वो अपने गांव लौटने की सोचने लगे, तो उन्हें उनके कागजात देने से इनकार कर दिया गया. जिसने उन्हें काम दिया था, उसने कहा- मेरी मर्जी के बगैर तुम देश छोड़ नहीं सकते भाई. राजेश करते भी तो क्या?
ये एक काल्पनिक कैरेक्टर की कहानी है, लेकिन अक्सर आपने इस तरह की सच्ची घटना देखी-सुनी और पढ़ी होगी. इसकी चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि सऊदी अरब ने एक घोषणा की है. उस सिस्टम में बदलाव की घोषणा, जो राजेश जैसे लोगों की जिंदगी नरक बना देता है.

क्या घोषणा की है

सऊदी अरब. राजशाही वाला देश, जो अपने कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार के लिए जाना जाता है. उसने मजदूरों से जुड़े श्रम कानून में बदलाव की घोषणा की है. ऐसी घोषणा, जिसका असर एक करोड़ विदेशी मज़दूरों के जीवन पर पड़ सकता है, जो इस देश में काम करते हैं. सऊदी अरब ने घोषणा की है कि वो 'कफ़ाला सिस्टम' में बदलाव करने जा रहा है. इससे नौकरी देने वाले व्यक्ति और कंपनी का प्रवासी मजदूरों पर नियंत्रण कम हो जाएगा. निजी सेक्टर में काम कर रहे मज़दूर अपने मालिक की मर्ज़ी के बिना नौकरी बदल सकते हैं और देश छोड़कर जा सकते हैं. इतना ही नहीं, लौटकर आ भी सकते हैं.
आसान भाषा में इसी पर बात करेंगे कि ये 'कफाला सिस्टम' है क्या? और क्यों इसे आधुनिक गुलामी का प्रतीक माना जाता है.

'कफाला सिस्टम' क्या है

'कफाला सिस्टम' को समझने से पहले 'कफील' के बारे में जान लेते हैं. 'कफील' का मतलब होता है 'स्पॉन्सर'. हिन्दी में कहें, तो जिम्मेवार. 'कफाला' यानी वो तरीका, जब आप अपने देश में मेहमान को बुलाते हैं. माइग्रेंट वर्कर्स को गेस्ट वर्कर्स भी कहा जाता है. खाड़ी देशों के ज्यादातर देश कफाला सिस्टम के जरिए ही प्रवासी मजदूरों को अपने यहां काम पर रखते हैं. एक श्रमिक के रूप में जब आप इन देशों में एंट्री करते हैं, कफाला के तहत एंट्री होती है और फिर श्रमिक कानून आप पर लागू होते हैं.
सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

गल्फ कंट्री में काम करने के लिए बाहर से आने वाले श्रमिकों को एक कफील की जरूरत होती है. उन्हें पहले काम देने वाला व्यक्ति तलाशना होता है. यही व्यक्ति या कंपनी उस मजदूर के पासपोर्ट से लेकर वीजा तक के लिए जिम्मेदार होता है. कफील वो व्यक्ति है, जो श्रमिक की हर चीज तय करता है. जैसे वह क्या काम करेगा, कितने घंटे काम करेगा, सैलरी कितनी होगी. उसके रहने का प्रबंध. वगैरह-वगैरह.

कफाला सिस्टम में दिक्कत क्या है

अक्सर ये देखा गया है कि काम देने वाला व्यक्ति प्रवासी मजदूर के सारे कागजात, चाहे वो पासपोर्ट, वीजा या अन्य चीजें, अपने पास रख लेता है. एक तरीके से काम करने वाले मजदूर की जिंदगी का हर फैसला उसे काम देने वाले से जुड़ जाता है. क्योंकि काम देने वाले को कफाला सिस्टम के तहत इतनी ताकत दी गई होता है. इस कफाला सिस्टम की सबसे बड़ी खामी ये मानी जाती है कि आप बिना कफील की अनुमति के देश नहीं छोड़ सकते. यहां तक कि उसकी मर्जी के बगैर जॉब भी चेंज नहीं कर सकते. अगर आपको ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो, बैंक खाते खुलवाना हो या फिर लोन लेने की जरूरत है, आप अपने कफील की मर्जी के बगैर कुछ नहीं कर सकते.

श्रमिकों को क्या दिक्कत होती है

गरीबी और कर्ज का बोझ कम करने के लिए कई लोग भारत जैसे देशों से सऊदी अरब का रुख करते हैं. खाड़ी सहयोग परिषद के देशों, जैसे- बहरीन, कुवैत, ओमान, यूएई और सऊदी अरब में इन्हें अस्थायी प्रवासी कामगारों के रूप में काम पर रखा जाता है. ऐसे लाखों एशियाई कामगार हैं, जो खाड़ी देशों में काम करते हैं. मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इन मजदूरों का शोषण आम बात है और उनकी कहीं सुनवाई भी नहीं होती. मानवाधिकार समूह कफाला सिस्टम को एक तरह की बंधुआ मजदूरी या गुलामी कहकर इसकी आचोलना करते हैं.
असम में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे में काम में जुटे हुए मजदूर. (Photo: PTI) सांकेतिक तस्वीर-PTI

सऊदी अरब से पहले कतर अपने यहां से कफाला सिस्टम को खत्म कर चुका है. कुछ अन्य खाड़ी देशों ने अपने यहां कफाला सिस्टम में बदलाव किया है. कतर ने 2019 में कफाला सिस्टम को खत्म करने की बात कही थी. इसकी जगह कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम लेकर आया था. इसकी घोषणा करते समय कतर सरकार ने कहा था कि अगर किसी श्रमिक को लगता है कि उसके साथ अच्छा बर्ताव नहीं हो रहा है, तो वह नौकरी बदल सकता है.

सऊदी अरब का क्या कहना है

सऊदी अरब के मानव संसाधन मंत्रालय के उप मंत्री अब्दुल्लाह बिन नसीर अबुथुनायन ने मीडिया से बातचीत में कहा-
सऊदी अरब देश में एक बेहतर श्रम बाज़ार बनाना चाहता है. साथ ही मज़दूरों के लिए काम के माहौल को भी बेहतर बनाना चाहता है. श्रम क़ानूनों में इन बदलावों से विज़न 2030 के उद्देश्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी.
वहीं मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच में सीनियर रिसर्चर रोथाना बेग़म ने 'बीबीसी' से बातचीत में कहा-
ये महत्वपूर्ण घोषणा है. इससे विदेश से आने वाले मजदूरों की दशा बदलेगी. लेकिन ऐसा लगता है कि मज़दूरों को अब भी काम की तलाश में सऊदी अरब आने के लिए स्पॉन्सर की ज़रूरत पड़ेगी. साथ ही किसी भी समय मज़दूरों के रेजिडेंसी परमिट रद्द करने या परमिट को जारी रखने का फ़ैसला उन्हें नौकरी देने वाले कर सकेंगे.

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले क्या चाहते हैं

सऊदी अरब ने कफाला सिस्टम में बदलाव की बात कही है. वहीं मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संस्थान चाहते हैं कि कफाला सिस्टम को पूरी तरह खत्म किया जाए, ताकि प्रवासी श्रमिकों के शोषण को रोका जा सके.
माइग्रेंट राइट्स के लिए काम करने वाले रिसर्चर अली मोहम्मद का कहना है कि कफाला सिस्टम तब तक बना रहेगा, जब तक कि वर्क और रेजिडेंसी वीजा एक व्यक्ति से जुड़ा रहेगा, जिसे कफील या स्पॉन्सर के रूप में जाना जाता है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के साथ खाड़ी में प्रवासी अधिकारों पर रिसर्च करने वाले May Romanos का कहना है कि जब तक सऊदी अरब नए सुधारों को पब्लिश नहीं करता और उन्हें लागू नहीं करता, तब तक इन वादों के प्रभाव का आकलन करना बहुत मुश्किल है.
सऊदी अरब ने नए सुधारों को मार्च, 2021 से लागू करने की बात कही है.