केंद्र सरकार एक बार फिर मोटर व्हीकल एक्ट में बदलाव लाने की तैयारी कर रही है. एक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है. कलर ब्लाइंड लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने का. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने कहा है कि कलर ब्लाइंड लोगों को भी ड्राइविंग लाइसेंस मिल सके, इसे लेकर प्रपोजल तैयार किया जा रहा है. ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि ये आखिर कलर ब्लाइंडनेस क्या है? कैसे होता है? क्या इसका इलाज है?
बताइए इन 2 तस्वीरों पर क्या लिखा है और जानिए कि आप 'कलर ब्लाइंड' हैं या नहीं
कलर ब्लाइंड लोगों को भी मिल सकता है ड्राइविंग लाइसेंस, लेकिन कब?

मंत्रालय ने क्या कहा?
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी प्रियांक भारती ने 'द लल्लनटॉप' को बताया कि इस प्रपोजल को एक्ट के अगले संशोधन के तौर पर रखा जाएगा. ये भी बताया कि इस प्रस्ताव में उन लोगों को शामिल किया जाएगा, जो आंशिक तौर पर इसका शिकार हैं. जो लोग पूरी तरह से कलर ब्लाइंड हैं, उन्हें शामिल नहीं किया जाएगा. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि संसद के किस सेशन में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा.
दरअसल, अभी ऐसा होता है कि जो लोग इससे ग्रस्त हैं, उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस नहीं दिया जाता. अगर दिया भी जाता है, तो उसके लिए उन्हें एक मेडिकल सर्टिफिकेट की जरूरत होती है. एक मोटर लाइसेंसिंग अधिकारी ने जानकारी दी कि अगर किसी व्यक्ति को बहुत ही हल्का-सा कलर ब्लाइंडनेस हो और वो मेडिकल सर्टिफिकेट ले आए, तभी तो उसे लाइसेंस जारी होता है.

बाएं से दाएं: नॉर्मल आंखों वालों को कलर ऐसे दिखते हैं. कलर ब्लाइंडनेस के शिकार लोगों को भूरे शेड में दिखते हैं. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)
खैर, अब कलर ब्लाइंडनेस से जुड़े सभी सवालों के जवाब जानते हैं.
क्या है कलर ब्लाइंडनेस?
नाम से ही पता चलता है कि ये रंगों से जुड़ा रोग है. दरअसल, जब आपकी आंखें लाल और हरे रंगों को उस तरह से नहीं देख पातीं, जैसे वो वास्तव में होते हैं, तब कहा जाता है कि व्यक्ति कलर ब्लाइंड है. इसे कलर डेफिसिएंसी भी कहा जाता है.
आपकी आंखों के चार हिस्से सबसे अहम होते हैं- कॉर्निया, प्यूपिल, लेंस और रेटिना. जिस क्रम में लिखा है, उसी क्रम में ये आंख में स्थित होते हैं. रेटिना आंख के सबसे आखिरी छोर पर होता है. यहीं पर किसी भी ऑब्जेक्ट की इमेज बनती है. इस टिशू में कई सारी सेल्स होती हैं, लेकिन दो अहम सेल्स ऐसी हैं, जो लाइट डिटेक्ट करती हैं. ये हैं- रॉड्स और कॉन्स. रॉड्स लाइट के लेवल को पहचानता है, यानी लाइट डार्क है या ब्राइट है, इसकी पहचान करता है. वहीं कॉन्स रंगों की पहचान करता है.

आंख की संरचना. फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट.
कॉन्स सेल्स कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार होती हैं. 'द लल्लनटॉप' ने मूलचंद अस्पताल में बतौर आई सर्जन काम कर रहे डॉक्टर नवीन सकुजा ने बताया,
'तीन तरह के कॉन्स होते हैं. एक लाल रंग के लिए सेंसिटिव होता है, एक हरे रंग के लिए और एक नीले रंग के लिए. दिमाग इन्हीं तीनों कॉन्स के जरिए रंग की पहचान करता है. इन्हीं तीनों कॉन्स में से अगर कोई डिफेक्टिव हो या ठीक से काम न करे, तो कलर ब्लाइंडनेस की कंडिशन हो जाती है. ज्यादातर मामलों में लाल और हरे रंग की सेल्स ही डिफेक्टिव होती हैं. गंभीर लेवल का कलर ब्लाइंडनेस तब होता है, जब ये तीनों सेल्स ही डिफेक्टिव हों. हल्का कलर ब्लाइंडनेस तब होता है, जब कोई एक सेल ठीक से काम न करे.'
कलर ब्लाइंड लोगों को रंग कैसे दिखते हैं?
डॉक्टर नवीन ने बताया कि कलर ब्लाइंड लोगों को हरा और लाल रंग थोड़ा ब्राउनिश-सा दिखता है. जिन्हें हल्का कलर ब्लाइंडनेस होता है, उन्हें ये दोनों रंग ब्राइट लाइट में तो ठीक दिखते हैं, लेकिन हल्की रोशनी में उन्हें ये दोनों रंग ब्राउनिश दिखते हैं.
जिनके कलर ब्लाइंडनेस का लेवल हल्के से थोड़ा ज्यादा होता है, उन्हें ब्राइट लाइट में भी हरा और लाल रंग ब्राउनिश-सा दिखता है.
इसके अलावा तीसरा होता है गंभीर कलर ब्लाइंडनेस. ये बहुत ही कम (न के बराबर) लोगों को होता है, इसमें सबकुछ ग्रे दिखता है.
कलर ब्लाइंडनेस सामान्य तौर पर दोनों आंखों को प्रभावित करता है और जिंदगी भर रहता है.

बाएं से दाएं: नॉर्मल आंखों वालों को कलर ऐसे दिखते हैं. कलर ब्लाइंडनेस के शिकार लोगों को भूरे शेड में दिखते हैं. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)
क्यों होता है?
ज्यादातर तो ये जेनेटिक ही होता है, यानी जन्म के साथ. लेकिन कई बार कोई गंभीर बीमारी के लिए ली जाने वाली दवाओं की वजह से भी हो सकता है.
क्या इलाज है?
कोई इलाज नहीं है. किसी तरह की कोई दवा नहीं है, जिसे लेने से ये ठीक हो जाए.
पुरुषों में ज्यादा या औरतों में?
जवाब है पुरुषों में. ज्यादातर पुरुष ही इससे प्रभावित होते हैं. लेकिन ऐसा क्यों होता है? डॉक्टर नवीन ने बताया कि सबकुछ डिपेंड करता है क्रोमोजोम्स पर. पुरुषों के अंदर XY क्रोमोजोम होता है, औरतों के अंदर XX.
आसान भाषा में समझिए
औरतों को एक X क्रोमोजोम मिलता है मां से, एक पिता से. आदमियों को X क्रोमोजोम मिलता है मां से और Y पिता से. कलर ब्लाइंडनेस के लिए जिम्मेदार कॉन्स सेल्स X क्रोमोजोम में होती हैं. अब अगर किसी औरत के एक X क्रोमोजोम की कॉन्स सेल डिफेक्टिव है, तो उसके पास दूसरा X क्रोमोजोम भी होता है. यानी उसके पास ऑप्शन होते हैं.
वहीं अगर पुरुषों की बात की जाए, तो उनके पास एक ही X क्रोमोजोम होता है. ऐसे में अगर उस क्रोमोजोम की कॉन्स सेल्स डिफेक्टिव हुई, तो उसके पास दूसरा ऑप्शन नहीं होता.
इसलिए कलर ब्लाइंड पुरुषों की संख्या औरतों के मुकाबले ज्यादा है. कलर ब्लाइंड डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, हर 12 में से एक आदमी कलर ब्लाइंड है, वहीं हर 200 में से एक औरत कलर ब्लाइंड है.

कलर ब्लाइंडनेस औरतों के मुकाबले आदमियों में ज्यादा होता है. (फोटो- Pixabay/वीडियो स्क्रीनशॉट)
डॉक्टर नवीन ने ये भी बताया कि किसी को कलर डेफिसिएंसी है, ये आमतौर पर डिटेक्ट नहीं होता है, लेकिन कुछ नौकरियां ऐसी हैं, जिनमें आंखों का चेकअप होता है. जब चेकअप जब कराया जाता है, तो समझ आता है कि व्यक्ति कलर ब्लाइंड है या नहीं. ड्राइविंग लाइसेंस कलर ब्लाइंड लोगों को इसलिए नहीं मिलता, क्योंकि ट्रैफिक सिग्नल पहचानने में उन्हें दिक्कत होती है. इंडीकेटर की लाइट्स को पहचानना भी मुश्किल होता है. ऐसे में हादसों की संभावना बढ़ जाती है.
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