मणिपुर हिंसा की चपेट में है. ऑल इंडिया ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन (AITSU) के नेतृत्व में आदिवासियों ने 10 पहाड़ी जिलों में एकजुटता मार्च बुलाया था. आदिवासी संगठन राज्य की बहुसंख्यक आबादी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं. मार्च 2023 में मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वो मैतेई समुदाय को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग पर विचार करके, 4 महीने के भीतर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे. इसी के बाद से आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था.
केंद्र ने मणिपुर में आर्टिकल 355 लगा दिया, मतलब राष्ट्रपति शासन लग गया?
क्या है अनुच्छेद 355? क्या इसका मतलब राष्ट्रपति शासन है? ये सब तो बताएंगे ही. साथ ही ये भी बताएंगे कि अनुच्छेद 355 का कर्नाटक से क्या कनेक्शन है.

बीती 3 मई को मणिपुर की राजधानी इंफाल में आदिवासियों ने एकजुटता मार्च निकाला था. उसके बाद से ही राज्य में बड़े स्तर पर हिंसा शुरू हुई. इंफाल सहित मणिपुर के अन्य पहाड़ी इलाके इसकी चपेट में आ गए. हालत ये हो गई कि सरकार को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश देना पड़ा. पूरे राज्य में पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. हिंसा को काबू करने के लिए अलग-अलग इलाकों में असम राइफल्स की कुल 55 टुकड़ियां तैनात की गई हैं. हिंसा प्रभावित आठ ज़िलों (इम्फाल पश्चिम, काकचिंग, थौबल, जिरिबाम, बिश्नुपुर, चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनोउपल) में कर्फ्यू लगा दिया है. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने मणिपुर में अनुच्छेद 355 लगाते हुए राज्य की सुरक्षा और क़ानून व्यवस्था अपने हाथों में ले ली है.
अनुच्छेद 355 राष्ट्रपति शासन नहीं है. तो फिर ये क्या है? राष्ट्रपति शासन से ये कितना अलग है? ये सब तो बताएंगे ही. साथ ही ये भी बताएंगे कि अनुच्छेद 355 का कर्नाटक से क्या कनेक्शन है, जहां भी विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है.
भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों में आपातकाल से जुड़े प्रावधानों (Emergency Provisions in Indian Constitution) का जिक्र किया गया है. नाम से ही जाहिर है कि ये तमाम अनुच्छेद आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार को विशेष शक्तियां देते हैं.
आपातकाल तीन तरह के होते हैं- राष्ट्रीय आपातकाल, राज्य आपातकाल और वित्तीय आपातकाल.
- अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की धोषणा की जा सकती है.
- अनुच्छेद 353 में आपद की घोषणा के प्रभाव बताते हुए कहा गया है कि आपातकाल का विस्तार उस राज्य या क्षेत्र पर भी हो सकता है जो आपातकाल लगाए गए राज्य से अलग है.
- अनुच्छेद 354 केंद्र और राज्य के वित्तीय संबंध को प्रभावित करता है.
- अनुच्छेद 355 में कहा गया है कि केंद्र की सरकार बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा करने के उपाय करे.
- अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति को भारत के किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने और संविधान लागू करने में असफल राज्य सरकार को निलंबित करने का अधिकार दिया गया है.
- अनुच्छेद 357 में राष्ट्रपति शासन के समय विधायी शक्तियों के प्रयोगों का प्रावधान है.
- अनुच्छेद 358 में आपातकाल के दौरान आर्टिकल 19 में दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निलंबित करने का प्रावधान है.
- अनुच्छेद 359 के तहत आपातकाल के दौरान संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार निलंबित किए जाते हैं.
- अनुच्छेद 360 में भारत के किसी राज्य या देश में वित्तीय संकट आने पर वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान किया गया है.
संविधान के अनुसार राज्य में शांति और क़ानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. लेकिन किसी राज्य पर कोई बाहरी आक्रमण या गंभीर किस्म की आंतरिक हिंसा और अशांति होने पर केंद्र सरकार उस राज्य की कानून व्यवस्था सुधारने के लिए दखल देने का अधिकार रखती है. उसे अधिकार मिलता है अनुच्छेद 355 से. इसके तहत केंद्र सरकार राज्य की पुलिस व्यवस्था, सेना की तैनाती और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठने का अधिकार रखती है. अनुच्छेद 355 लगाने के बाद राज्य की सुरक्षा और वहां संविधान लागू कराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो जाती है.
राष्ट्रपति शासन से कितना अलग है अनुच्छेद 355?संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. लेकिन कब?
- जब राज्य विधानसभा में कोई भी दल बहुमत ना सिद्ध कर सके.
- किसी आपातकालीन स्थिति, जैसे बाढ़, महामारी, युद्ध, हिंसा या प्राकृतिक आपदा के चलते समय पर विधानसभा ना होने या निर्वाचित सरकार ना बन पाने पर भी अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है.
- अगर सरकार का सदन में संख्या बल कम हो जाता है और वह बहुमत खो देती है तो उस स्थिति में भी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.
- इसके अलावा, अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति को लगे कि राज्य सरकार संविधान के अनुरूप शासन चलाने में समर्थ नहीं है, उसके प्रावधानों और मूल सिद्धांत की अनदेखी कर रही है तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.
अनुच्छेद 355 और 356 में एक उल्लेखनीय फर्क ये है कि 356 लगने की स्थिति में राज्य की सरकार बर्खास्त हो जाती है, जबकि अनुच्छेद 355 लगाने पर ऐसा नहीं होता.
अनुच्छेद 355 का कर्नाटक कनेक्शनसाल 1988 में कर्नाटक में जनता पार्टी और लोकदल ने मिलकर 'जनता दल' बनाया. उसी साल अगस्त में जनता पार्टी के एसआर बोम्मई के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी. कुछ दिन बाद जनता दल के एक विधायक आर मोलाकेरी ने कर्नाटक के तत्कालीन गवर्नर पी वेंकटसुब्बैया को एक चिट्ठी दी. उसमें 19 विधायकों के साइन थे. मोलाकेरी का दावा था कि बोम्मई की सरकार बहुमत खो चुकी है.
इसके बाद राज्यपाल ने राष्ट्रपति से सिफारिश करते हुए पत्र लिखा कि बोम्मई सरकार बहुमत खो चुकी है, लिहाजा उसका बने रहना संविधान सम्मत नहीं है. राज्यपाल की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने अनुच्छेद 356 का प्रयोग करते हुए बोम्मई सरकार को बर्खास्त किया और कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगा दिया.
क्या रहा कोर्ट का फैसला?राष्ट्रपति के इस कदम के लिए एसआर बोम्मई ने उस वक्त प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि राजीव ने अनुच्छेद 356 का बेजा इस्तेमाल करते हुए उनकी सरकार गिराने का काम किया है.
बाद में बोम्मई सुप्रीम कोर्ट चले गए. 6 साल बाद 1994 में 'एसआर बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' केस में फैसला आया. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र-राज्य संबंधों को परिभाषित किया और अनुच्छेद 356 से पहले अनुच्छेद 355 को पूरी तरह उपयोग करने को कहा. इसका मतलब हुआ कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले शांति बहाली और कानून व्यवस्था स्थापित करने के लिए अनुच्छेद 355 को अमल में लाए. ये हुआ अनुच्छेद 355 और 356 के इस्तेमाल का अंतर.
इस तरह ये केस ये बताने में नींव का पत्थर साबित हुआ कि अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 का प्रयोग कब और कैसे करना है.
ये स्टोरी हमारे साथी अनुराग अनंत ने लिखी है.
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