भारत के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों का रिजल्ट आ चुका है. इसको लेकर मची घरेलू हलचल से आप भली-भांति परिचित होंगे. आज बताएंगे, इस रिजल्ट पर विदेशी मीडिया में क्या लिखा जा रहा है? फिर चलेंगे पड़ोस में. पाकिस्तान. वहां प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ है. विपक्ष का दावा है कि प्रधानमंत्री ने जनता का विश्वास खो दिया है. उन्हें कुर्सी पर रहने का कोई हक़ नहीं है. जानेंगे, इमरान ख़ान के ऊपर क्या आरोप लगे हैं? पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव काम कैसे करता है? और, क्या ये अविश्वास प्रस्ताव इमरान ख़ान की कुर्सी गिरा सकता है? पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर मची हलचल शांत हो चुकी है. रिजल्ट आ चुके हैं. मणिपुर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. गोवा में बीजेपी सबसे बड़ी दावेदार है. जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की लहर रही. जानते हैं कि इस परिणाम पर विदेशी मीडिया में क्या लिखा गया? अमेरिकी अख़बार न्यू यॉर्क टाइम्स ने सुर्खी लगाई,
Modi’s Party Wins the Biggest Prize in India’s State Elections
भारत के विधानसभा चुनावों में मोदी की पार्टी की बड़ी जीत अख़बार ने लिखा, भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की सत्ता भारतीय जनता पार्टी के हाथों में रहने वाली है. अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पिछड़ने के बावजूद पार्टी ने चुनावी सफ़लता बरकरार रखी है. ब्रिटिश अख़बार गार्डियन की सुर्खी है,
BJP claims election victory in four states including Uttar Pradesh
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश समेत चार राज्यों का चुनाव जीता गार्डियन ने टिप्पणी की, कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है और बीजेपी की मुख्य विपक्षी भी. चुनाव परिणाम ने एक समय तक अजेय मानी जाने वाली कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी है. 10 मार्च को ये स्पष्ट हो गया कि गोवा और मणिपुर में पार्टी का आधार घट चुका है. वो पंजाब में अपना किला बचाने में भी नाकाम रही. पंजाब उन चुनिंदा राज्यों में से था, जहां कांग्रेस सत्ता में थी. उत्तर प्रदेश में पार्टी को सिर्फ़ एक सीट मिली. पाकिस्तानी अख़बार डॉन ने भी इस रिजल्ट को विस्तार से जगह दी है. डॉन ने सुर्खी लगाई,
Aam Aadmi Party pulls off upset in India’s Punjab
भारत के पंजाब राज्य में आम आदमी पार्टी की असाधारण जीत उत्तर प्रदेश के रिजल्ट पर डॉन ने छापा,
Modi’s BJP wins big in India’s largest state election
भारत के सबसे बड़े राज्य के चुनाव में मोदी की बीजेपी जीती अल जज़ीरा ने उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की जीत पर लिखा,
Hardline Hindu monk’s stock rises as BJP wins key Indian state
बीजेपी ने भारत का प्रमुख राज्य जीता, उग्र हिंदू संत का कद बढ़ा ये तो हुई भारत के चुनावों की बात. अब चलते हैं पाकिस्तान की तरफ़. जहां प्रधानमंत्री इमरान ख़ान एक बार फिर मुसीबत में है. छह महीने के भीतर दूसरी बार इमरान की कुर्सी पर तलवार लटक रही है. अक्टूबर 2021 में सेना ने पीएम से पूछे बिना खुफिया एजेंसी ISI का मुखिया बदल दिया था. परंपरा कुछ ऐसी रही है कि सेना तीन नामों का चुनाव करती है. फिर ये नाम प्रधानमंत्री के पास भेजे जाते हैं. प्रधानमंत्री उनमें से एक को ISI प्रमुख के तौर पर नियुक्त करते हैं. अक्टूबर 2021 में सेना ने पीएम को बायपास कर दिया. उनकी राय तक नहीं ली गई. इमरान ख़ान नाराज़ हो गए. उन्होंने इस नियुक्ति को मंज़ूरी देने से मना कर दिया. पीएम ऑफ़िस ने नियुक्ति का नोटिफ़िकेशन जारी नहीं किया. तकरार बढ़ी तो पर्दे के पीछे बैठकों का दौर चला. सेना ने समझाया. आख़िरकार, इमरान ख़ान को झुकना पड़ा. तभी से कहा जा रहा था कि सेना उनको लेकर कतराने लगी है. पाकिस्तान की राजनीति में वहां की सेना के हस्तक्षेप का लंबा इतिहास रहा है. कहा तो ये भी जाता है कि सेना ने जिस सरकार से सपोर्ट खींच लिया, उसका गिरना तय है. सेना पाकिस्तान की स्थानीय राजनीति से लेकर विदेश नीति तक तय करती आई है. एक तरफ़ इमरान ख़ान सेना के साथ चल रहे मतभेद से जूझ रहे थे, दूसरी तरफ़ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है. पाकिस्तान लंबे समय से बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है. इसको लेकर आम लोगों में भारी आक्रोश है. इसके अलावा, इमरान सरकार की विदेश नीति से भी विपक्ष नाराज़ है. विपक्ष ने इमरान ख़ान पर चीन को नाराज़ करने का आरोप लगाया है. फ़रवरी 2022 में इस आक्रोश में नया मोड़ आ गया. पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) के बैनर तले एक बैठक हुई. PDM एक राजनैतिक आंदोलन है. इसकी स्थापना सितंबर 2020 में हुई थी. इसका मकसद था, इमरान सरकार के ख़िलाफ़ खड़ी पार्टियों को एकजुट करना. इस आंदोलन को 11 विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिला. PDM का अध्यक्ष बनाया गया, मौलाना फ़ज़ल-उर रहमान को. रहमान, जमीयत उलेमा-ए-पाकिस्तान (JUI-F) के मुखिया हैं. फ़रवरी में लाहौर में हुई बैठक के बाद रहमान ने कहा कि हम इमरान सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए तैयार हैं. हमने सारी गणनाएं कर लीं है. हमारे पास ज़रूरी वोट हैं. हम सरकार के सहयोगियों के साथ भी बात कर रहे हैं. इमरान ख़ान की पार्टी का नाम पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) है. PTI के पास नेशनल असेंबली में 155 सीटें है. बहुमत का संख्याबल गठबंधन में शामिल अन्य पार्टियों से मिला है. जब रहमान ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही थी, तब सरकार का भी बयान आया था. सूचना मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा था कि अगर PDM में हिम्मत है तो वे कल के दिन प्रस्ताव लेकर आएं, उन्हें सच्चाई पता चल जाएगी. PDM ने थोड़ी देर तो ज़रूर लगाई, लेकिन चुनौती स्वीकार कर ली. 09 मार्च को उन्होंने नेशनल असेंबली का सेशन बुलाने और अविश्वास प्रस्ताव पेश करने को लेकर चिट्ठी पहुंचा दी.
अब हम पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव का प्रोसेस समझ लेते हैं.
पाकिस्तान की संसद का नाम है. मजलिस-ए-शूरा. इसके दो सदन हैं. उपरी सदन को सेनेट के नाम से जाना जाता है. इसमें कुल 100 सदस्य होते हैं. निचला सदन है, नेशनल असेंबली. इसमें 342 सदस्य होते हैं. इनमें से 272 सदस्यों को सीधे जनता चुनती है. बाकी की 70 सीटें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं. इन सीटों को पार्टियों को उनकी कुल सीटों के अनुपात में बांटा जाता है. प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुज़रना होता है. सबसे पहले चिट्ठी भेजनी होती है. इस चिट्ठी पर नेशनल असेंबली के 20 प्रतिशत यानी 68 सदस्यों का दस्तख़त होना ज़रूरी है. अगर असेंबली सेशन में ना हो तो उसे बुलाने का भी एक नियम है. पाकिस्तान के संविधान के आर्टिकल 54 में इसका प्रावधान है. स्पेशल सेशन बुलाने के लिए नेशनल असेंबली के 25 प्रतिशत सदस्यों का साइन चाहिए. चिट्ठी मिलने के बाद स्पीकर के पास सेशन बुलाने के लिए 14 दिनों का समय होता है. अभी वाले मामले में 09 मार्च को चिट्ठी गई है. स्पीकर के पास सेशन बुलाने के लिए 22 मार्च तक का समय है.
नेशनल असेंबली में क्या होगा?
जिस दिन अविश्वास प्रस्ताव पटल पर रखा जाएगा, उसके बाद तीन से सात दिन के बीच प्रस्ताव पर वोटिंग करानी होती है. ये वोटिंग खुली होती है. इसको सीक्रेट नहीं रखा जाता. मतलब ये कि किस सदस्य ने पक्ष या विरोध में वोट डाला, ये सबको पता होता है.
वोटिंग कैसे होती है?
वोटिंग के लिए दिन और समय निर्धारित किया जाता है. तय समय पर सदन के अंदर घंटी बजाई जाती है. ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जो भी सदस्य बाहर छूट गए हों, वे अंदर आ जाएं. जैसे ही सदस्य अंदर आ जाते हैं, वैसे ही सदन के सारे दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं. बैठक आगे बढ़ती है. फिर दो दरवाज़े खुलते हैं. पहले दरवाज़े से प्रस्ताव का समर्थन करने वाले बाहर निकलते हैं. दूसरा दरवाज़ा प्रस्ताव का विरोध करने वालों के लिए होता है. निकासी के दौरान गिनती चलती है. जब सारे सदस्य अपनी पसंद के दरवाज़े से निकल जाते हैं, तब गिनती समाप्त हो जाती है. फिर सबको वापस सदन में बुला लिया जाता है. पूरे प्रोसेस में स्पीकर न्यूट्रल रहते हैं. उनका कोई वोट नहीं होता. सदस्यों के वापस आने के बाद स्पीकर रिजल्ट का ऐलान करते हैं. अगर 172 या उससे अधिक सदस्य अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट डालते हैं, तो प्रस्ताव पास हो जाता है. ऐसा होते ही प्रधानमंत्री का पद पर रहने का आधार खत्म हो जाता है. प्रधानमंत्री के हटते ही कैबिनेट भी भंग हो जाती है. फिर नया लीडर चुनने की बारी आती है. अगर सदन नया लीडर नहीं चुन पाता है, तो राष्ट्रपति के पास संसद भंग करने का अधिकार होता है. इसके बाद राष्ट्रपति नए चुनाव का ऐलान कर सकते हैं. जब तक नया प्रधानमंत्री नहीं चुना जाता, तब तक राष्ट्रपति पिछले प्रधानमंत्री को पद पर बने रहने के लिए कह सकते हैं. अगर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 172 से कम वोट आए तो प्रस्ताव ख़ुद-ब-ख़ुद खारिज हो जाता है. यानी, प्रधानमंत्री की कुर्सी बच जाती है. और, सरकार बरकरार रहती है.
क्या इमरान ख़ान कुर्सी बचा पाएंगे?
विपक्ष का दावा है कि उनके पास 180 सांसदों का समर्थन है. पाकिस्तान मुस्लिम लीग - नवाज़ (PML-N) प्रस्ताव पेश करने वालों में से एक है. पार्टी के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद ख़क़ां अब्बासी ने कहा कि विपक्षी पार्टियों के पास 162 वोट हैं. एक वोट जमात-ए-इस्लामी से मिलेगा. जबकि इमरान की पार्टी के दो सांसद खुलेआम समर्थन दिखा चुके हैं. ऐसे में सात वोट और चाहिए. विपक्ष तो ये भी कह रहा है कि पीटीआई के 28 सांसद वोटिंग के दिन पाला बदलने की बात कह चुके हैं. अगर ऐसा हुआ तो इमरान ख़ान का कुर्सी पर बने रहना नामुमकिन हो जाएगा.
इमरान ख़ान का प्लान क्या है?
डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार आंतरिक विद्रोह से बचने की भरपूर कोशिश कर रही है. एक रास्ता ये है कि सत्ताधारी गठबंधन वोटिंग के दिन सदन में ना जाएं. ऐसे में पाला बदलने की संभावना खत्म की जा सकती है. इससे विपक्ष का प्लान धराशायी हो जाएगा.
अगर विद्रोही सांसद फिर भी वोट डालने पहुंच गए तो क्या होगा?
जानकारों की मानें तो PTI ऐसे सांसदों की सदस्यता रद्द करने की अपील कर सकती है. हालांकि, इस कानून की व्याख्या को लेकर मतभेद हैं. मतभेद इस बात पर हैं कि क्या सदस्यता वोटिंग से पहले रद्द की जा सकती है? इसके लिए इमरान ख़ान कानून के विशेषज्ञों की मदद ले रहे हैं.
पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास क्या रहा है?
आज तक पाकिस्तान में किसी भी प्रधानमंत्री की कुर्सी अविश्वास प्रस्ताव के चलते नहीं गई है. इससे पहले ये प्रस्ताव दो प्रधानमंत्रियों के ख़िलाफ़ पेश हो चुके हैं. 1989 में बेनज़ी भुट्टो और 2006 में शौकत अज़ीज़ के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाया गया था. दोनों सरकार बचाने में कामयाब रहे. इस दफ़ा इमरान ख़ान इतिहास बना सकते हैं. दोनों ही स्थिति में. अगर पास हुआ तो वो अविश्वास प्रस्ताव का शिकार होने वाले पहले पाक पीएम बन जाएंगे. अगर फ़ेल हुआ तो पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बन सकते हैं. देखना दिलचस्प होगा कि इमरान ख़ान का नाम इतिहास के किस चैप्टर में लिखा जाता है. पाकिस्तान के अपडेट्स पर हमारी नज़र बनी रहेगी. अब रूस-यूक्रेन युद्ध के अपडेट्स जान लेते हैं. आज रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई का 16वां दिन है. - 10 मार्च को तुर्की में रूस और यूक्रेन के विदेशमंत्रियों की बैठक हुई. इसमें हिस्सा लेने रूस की तरफ़ से सर्गेई लावरोव और यूक्रेन से दमित्री कुलेबा पहुंचे थे. लड़ाई शुरू होने के बाद सेदोनों देशों के बीच मंत्री स्तर की पहली बातचीत थी. इस बैठक से उम्मीद तो बहुत थी, लेकिन कुछ बात बनी नहीं. लावरोव ने साफ़ कहा कि जब तक रूस की सभी मांगें नहीं मानी जाती, तब तक हमला चलता रहेगा. यूक्रेन इन मांगों को मानने से इनकार करता रहा है. लावरोव ने ये भी कहा कि उनके पास सीज़फ़ायर का आदेश देने की अथॉरिटी नहीं है. सीज़फ़ायर पर अंतिम फ़ैसला क्रेमलिन से होगा. उनका इशारा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तरफ़ था. 10 मार्च को पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडर लुकाशेनको की मुलाक़ात भी हुई. रूस, बेलारूस की धरती का इस्तेमाल यूक्रेन पर हमले के लिए कर रहा है. पुतिन ने कहा कि यूक्रेन के साथ बातचीत ठीक दिशा में जा रही है. - यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक यूक्रेन छोड़कर भागने वालों की संंख्या 25 लाख के पार पहुंच गई है. 18 लाख से अधिक लोग आंतरिक विस्थापन का शिकार हुए हैं.