"यह धर्म और संवेदना का मसला है. ये ऐसे मसले हैं, जिन पर सभी पक्ष साथ में बैठकर बातचीत कर सकते हैं और किसी समाधान तक पहुंच सकते हैं."

सुप्रीम कोर्ट में 5 दिसंबर से हर रोज मामले की सुनवाई होनी है.
हालांकि बाचतीत की सारी कोशिशें विफल हो गईं और मामला फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट के पास है. कोर्ट ने 5 दिसंबर से इस मामले में हर रोज सुनवाई करने का आदेश दिया है.
तत्कालीन चीफ जस्टिस खेहर की सलाह से पहले इन 70 सालों में कुछ लोगों ने या तो मंदिर या तो मस्जिद का सीधा जवाब खोजने की कोशिश है, वहीं कुछ ऐसे भी लोग रहे हैं जो बातचीत के जरिए इस विवाद को सुलझाने की जब-तब कोशिश करते रहे हैं. इस बार ऐसी कोशिश का जिम्मा श्री श्री रवि शंकर ने उठाया है. आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री के मुरीद पूरी दुनिया में हैं. एक तरफ जब पूरे देश में मंदिर बनाने को लेकर एक तरह का माहौल तैयार किया जा रहा है, जगह-जगह पर बयानबाजी हो रही है, मीडिया में इस बात पर बहस हो रही है, श्री श्री रवि शंकर इस मुद्दे को बातचीत से सुलझाना चाहते हैं.

आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने सभी पक्षों से मुलाकात कर विवाद सुलझाने की कोशिश का दावा किया है.
मुकदमे का पक्षकार न होने के बावजूद वो इस मुद्दे में क्यों कूदे हैं, इसका सही-सही जवाब तो वो खुद ही दे सकते हैं. लेकिन उनका इस मुद्दे पर बात करना हिंदू और मुस्लिम किसी भी संगठन को रास नहीं आ रहा है. श्री श्री राम मंदिर मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं, इसका एक जवाब राम मंदिर आंदोलन से लंबे समय से जुड़े रहे और बीजेपी के पूर्व सांसद राम विलास वेदांती ने दिया है. वेदांती ने कहा-
"श्री श्री होते कौन हैं मध्यस्थता करने वाले? उन्हें अपना एनजीओ चलाना चाहिए और विदेशी चंदे को जमा करना चाहिए. श्री श्री ने बहुत पैसे इकट्ठे कर रखे हैं और इसी की जांच से बचने के लिए वो राम मंदिर के मुद्दे में कूद पड़े हैं. "श्री श्री रवि शंकर की इस पहल से मुस्लिम समाज भी ऐतराज जता रहा है. श्री श्री ने अयोध्या जाकर मुद्दे पर सभी पक्षकारों से बात करने को कहा था, लेकिन उनकी कोशिशों को सबसे पहला झटका तो पक्षकारों ने ही दिया है. इस पूरे विवाद के तीन पक्षकार हैं. हिंदू महासभा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में जो फैसला दिया था, उसमें भी तीनों पक्षों में जमीन बांटने का प्रस्ताव था, जिसे किसी ने नहीं माना और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.

सुन्नी वक्फ बोर्ड ने श्री श्री की मध्यस्थता को मानने से इनकार कर दिया है.
अब जब रवि शंकर ने कोशिश शुरू की तो सबसे पहला झटका सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दिया. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि श्री श्री रवि शंकर का पूरे मामले में कोई लीगल स्टैंड नहीं है, इसलिए वक्फ बोर्ड श्री श्री से इस मुद्दे पर नहीं मिलना चाहता है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी सुन्नी वक्फ बोर्ड की हां में हां मिलाते हुए बातचीत से मना कर दिया. इससे पहले शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी बातचीत को राजी थे, लेकिन सुन्नी बोर्ड के पक्षकार इकबाल अंसारी ने बातचीत को सिरे से ही खारिज कर दिया है.

श्री श्री ने योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात की थी, जिसे योगी ने खुद एक औपचारिक मुलाकात बताया है.
दूसरा झटका खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से लगा है. श्री श्री ने दावा किया था कि अयोध्या विवाद पर वो खुद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात करेंगे. दोनों की मुलाकात भी 15 नवंबर को हुई, लेकिन योगी की ओर से बयान आया कि ये सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात थी. इसका मंदिर मुद्दे से कोई लेना-देना ही नहीं था. इतना ही नहीं, योगी ने कहा कि इस मुद्दे को कोर्ट के बाहर सुलझाने में अब बहुत देर हो चुकी है. हालांकि उन्होंने कहा कि फिर भी कोई बातचीत की पहल करता है, तो इसमें कोई बुराई नहीं है. योगी ने श्री श्री से मुलाकात को औपचारिक करार देकर मंदिर के मुद्दे को सिरे से खारिज कर दिया.

आजतक के स्टिंग में निर्मोही अखाड़े के महंत ने पैसे के बल पर समझौता करने की बात कही थी.
16 नवंबर को जब श्री श्री रवि शंकर अयोध्या पहुंचे तो बची-खुची कसर तीसरे पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने पूरी कर दी. आजतक के एक स्टिंग में तीसरे पक्षकार निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास ने कहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड से बातचीत कर उन्हें पैसे दे दिए जाएंगे और फिर मंदिर बन जाएगा. सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए महंत दिनेंद्र दास ने कहा है कि वो पैसे लेकर हट जाएंगे और मंदिर बनने देंगे, जिसकी बात हो चुकी है.
इस विवाद में सुनवाई के तीन ही पक्ष हैं और तीनों ने बात से इनकार कर दिया है. अयोध्या के हिंदू साधु-संत हों या फिर कोई मुस्लिम धर्मगुरु और पक्षकार सभी ने श्री श्री को कटघरे में ही खड़ा किया है. श्री श्री ने जिन मुस्लिम नेताओं से भी इस मुद्दे पर मुलाकात की है, सभी ने उनकी मंशा पर सवाल ही उठाए हैं.श्री श्री पर सबसे पहले सवाल उठाया था ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने. ओवैसी ने कहा था-

एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी.
"श्री श्री रवि शंकर को पहले नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) का जुर्माना चुकाना चाहिए, फिर शांति की बात करनी चाहिए. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साफ-साथ कह दिया है कि वह ऐसे किसी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगा, इसलिए लोगों को हवाहवाई समाधान निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए."
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य एजाज अरशद काशमी से श्री श्री ने 6 अक्टूबर को बंगलुरु में मुलाकात की थी. एजाज अरशद काशमी के मुताबिक-
"श्री श्री सिर्फ बात कर रहे हैं, लेकिन उनके पास समाधान का कोई मॉडल नहीं है. वो तो बस चाहते हैं कि मुस्लिम उस जमीन पर से अपना दावा ही छोड़ दें और मस्जिद कहीं और बना लें. लेकिन इसे समझौता नहीं, सरेंडर कहा जाता है, जो किसी कीमत पर नहीं किया जाएगा."मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक और सदस्य कमाल फारुकी ने कहा-
"श्री श्री रवि शंकर मुस्लिम समुदाय से राममंदिर के लिए मस्जिद की जमीन गिफ्ट चाहते हैं. लेकिन यह किसी की निजी संपत्ति नहीं है जो गिफ्ट कर दी जाए. मुस्लिम वक्फ एक्ट के मुताबिक वक्फ संपत्ति को न किसी को बेचा जा सकता है और न ही गिफ्ट दिया जा सकता है. इसके बाद भी रविशंकर मुस्लिम समुदाय से गिफ्ट चाहते हैं, जो नामुमकिन है."
श्री श्री रवि शंकर मध्यस्थता चाहते हैं या मुस्लिमों का सरेंडर, ये तो निर्मोही अखाड़े के महंत दिनेंद्र दास के बयान से भी साबित होता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को पैसे देकर मंदिर बना लिया जाएगा.
वहीं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने भी रवि शंकर पर निशाना साधते हुए संत मानने से ही इनकार कर दिया है. महंत नरेंद्र गिरी ने कहा-

महंत नरेंद्र गिरी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष हैं.
"श्री श्री कोई संत नहीं है कि हम उनकी बात मान ही लें. राम मंदिर बनवाना श्री श्री के बस की बात ही नहीं है."एक और बड़े अखाड़े दिगंबर अखाड़े ने भी श्री श्री के दखल को मानने से इनकार कर दिया है. अखाड़े के मंहत सुरेश दास ने कहा-

महंत सुरेश दास ने भी श्री श्री की बात मानने से इनकार कर दिया है.
"श्री श्री रवि शंकर का अयोध्या आने पर स्वागत है, लेकिन मंदिर के मुद्दे पर फैसला तो अयोध्या के लोग करेंगे, हम लोग करेंगे. उनके आने या न आने से मंदिर पर कोई फर्क नहीं पड़ता है."मंदिर आंदोलन से जुड़े बीजेपी के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने भी इस पूरी कवायद को बेकार करार दिया है. विनय कटियार ने कहा-
"श्री श्री जिन लोगों से मंदिर मुद्दे पर मिल रहे हैं, उनमें से कोई भी मामले का न तो पक्षकार है और न ही इसका मुकदमा लड़ रहा है. ऐसे में उन लोगों से मुलाकात करने का कोई फायदा नहीं है. ये पूरी कसरत ही बेकार है."वहीं विश्व हिंदू परिषद ने भी श्री श्री की बातचीत की कोशिशों को सिरे से खारिज कर दिया है. विहिप ने साफ तौर पर कहा है-
"बातचीत की जरूरत नहीं है. पुरातात्विक सबूत हिंदुओं के पक्ष में हैं और कोर्ट का फैसला सबूतों से होता है. विहिप श्री श्री का आदर करती है, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि जब ऐसी कोशिशें असफल हो चुकी हैं, तो फिर नए सिरे से कोशिश करने की कोई जरूरत नहीं है."वहीं बीजेपी के महासचिव राम माधव ने ही इस कोशिश को सीधे तौर तो नहीं, लेकिन असफल ही करार दिया है. राम माधव ने कहा है-

बीजेपी नेता राम माधव ने मंदिर मुद्दे को कोर्ट में ही सुलझाने की बात कही है.
"मुझे लगता है कि ये मामला कोर्ट में चल रहा है और इसे वहां चलने देना चाहिए. इसपर बातचीत और बहस बाद में भी की जा सकती है."हिंदू धर्मगुरु हों, मुस्लिम धर्मगुरु हों, बीजेपी के नेता हों या फिर इस पूरे विवाद के तीनों पक्षकार और मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाले लोग, सभी ने प्रत्यक्ष और परोक्ष तरीके से श्री श्री की मंशा पर ही सवाल उठाए हैं. सभी ने कवायद को तो बेकार करार दिया है, लेकिन सबने एक सुर में माना है कि ये पब्लिसिटी स्टंट के अलावा और कुछ भी नहीं है. अगर ऐसा वाकई है, तो पिछले कुछ दिनों में श्री श्री को पब्लिसिटी तो मिल ही रही है.
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