क्या आप जानते हैं कि बांग्लादेश ने भारत सरकार के साथ 180.25 करोड़ रुपये का एक डिफेंस कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया है. इधर भारत ने भी बिना कागज़-पत्तर के दिल्ली में रह रहे 160 अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को देश निकाला दे दिया है. ये दोनों बातें आपको पता है तो आपको Information तो है, लेकिन शायद Knowledge नहीं. अब आप Dream Girl फिल्म के विजय राज़ की तरह कहेंगे, “दोनों अलग-अलग होते है क्या?” तो हां. सूचना माने जो बात आपको इधर-उधर से पता लग गई है. उस पूरी घटना के कुछ टुकड़े आपको मालूम हैं. वहीं ज्ञान का मतलब होता है वो सूचनाएं जो आपस में एक ताल्लुक पैदा करें, जिससे आप कुछ निष्कर्ष निकाल सकें. तो लल्लनटॉप के सुधि पाठकों, अगर आपके भी मन में डाउट है कि जो मुल्क हमारी मदद की वजह से ही बन पाया, वो भारत के खिलाफ क्यों हो गया है? चीन से दोस्ती क्यों बढ़ा रहा है? तो इसलिए सिर्फ Information से काम नहीं चलेगा. इसके लिए चाहिए Knowledge. इसलिए इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे ऐसी 6 किताबें जो आपको बांग्लादेश का एक्सपर्ट बना देगी.
बांग्लादेश पर ये 6 किताबें पढ़ लीं तो बांग्लादेशी भी आपसे बहस नहीं कर पाएंगे
अगर आपके भी मन में डाउट है कि जो मुल्क हमारी मदद की वजह से ही बन पाया, वो भारत के खिलाफ क्यों हो गया है? तो इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे ऐसी 6 किताबें जो आपको बांग्लादेश का एक्सपर्ट बना देंगी.

प्रकाशक- जगरनॉट बुक्स
लेखक- चंद्रशेखर दासगुप्ता

भारत और बांग्लादेश ने 1971 के युद्ध में ऐतिहासिक जीत हासिल की. लेकिन, आज पचास साल बाद भी, उस युद्ध में भारत की नीति और उसके लक्ष्य के बारे में कुछ जरुरी सवाल बने हुए हैं. मसलन,
क्या भारत के पास पाकिस्तान को तोड़ने की कोई योजना थी?
बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने कब और क्यों खुद को शामिल किया?
भारत ने सैन्य कार्रवाई के लिए कब तैयारी करने का फैसला किया?
कोई भी अन्य देश स्वतंत्र बांग्लादेश के लिए समर्थन देने के लिए क्यों तैयार नहीं था? मुक्ति संग्राम के बीच में नाटकीय रूप से उभरी अमेरिका-चीन-पाकिस्तान धुरी का भारत ने कैसे सामना किया?
भारत ने सोवियत संघ को मुक्ति संग्राम का समर्थन करने के लिए अपनी शुरुआती अनिच्छा को छोड़ने के लिए कैसे राजी किया?
क्या शिमला समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने युद्ध जीतकर भी शांति खो दी थी?
कई अनदेखे कागजातों का हवाला देते हुए, प्रख्यात राजनयिक और इतिहासकार चंद्रशेखर दासगुप्ता इस किताब के आसरे कई मिथकों को दूर करते हैं. अठारह वर्षों से अधिक समय तक गहन शोध के बाद छपी ये किताब अपने कहानीनुमा अंदाज़ में ये भी बताती है कि क्यों और कैसे भारत ने राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य साधनों का इस्तेमाल किया. और बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों को जल्द ही अपने देश को स्वतंत्र कराने में मदद करने की एक व्यापक रणनीति तैयार की.
प्रकाशक- KW Publishers
लेखक- पिनाक रंजन चक्रवर्ती

पिनाक रंजन चक्रवर्ती बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त रहे हैं. आजादी के बाद भारत ने अपनी विदेश नीति में अपने पड़ोस को हमेशा प्राथमिकता दी है. जनसंख्या के लिहाज से भारत के तीसरे सबसे बड़े पड़ोसी बांग्लादेश के जन्म के बाद से, भारत और बांग्लादेश के संबंध बहुत अच्छे रहे हैं. ये किताब पिछली आधी सदी के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों का एक साफ़-सुथरा लेखा-जोखा है. इसमें बंगाल के इतिहास, विभाजन और उपमहाद्वीप में एक नए राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के जन्म की घटनाओं का ब्यौरा है.
इसके अलावा लेखक बांग्लादेश की घरेलू चुनौतियों को भी कवर करते हैं. जैसे कि शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद हुई राजनीतिक उथल-पुथल, मुक्ति के संघर्ष को प्रेरित करने वाले नेता, सेना का राजनीतिक हस्तक्षेप, धर्मनिरपेक्षता और धर्मतंत्र के बीच संघर्ष, चकमा विद्रोह और उग्रवाद, सांप्रदायिक तनाव, लोकतंत्र को बनाए रखना और बांग्लादेश का कमाल का आर्थिक सुधार जैसे विषय इस किताब के मुख्य बिंदु हैं.
भारत और बांग्लादेश के बीच जितने भी विवादास्पद मुद्दे हैं. उनका पूरा विवरण है. साथ ही भारत के साथ मौलिक परिवर्तन लाने में प्रधानमंत्री शेख हसीना के उल्लेखनीय योगदान पर चर्चा की गई है, जो इस वक्त अपने देश से निर्वासित हैं.
प्रकाशक- ब्लूम्सबरी
लेखक- अली रियाज़

प्रोफेसर अली रियाज़ अमेरिका की इलिनोइस यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं. अली का तर्क है कि बांग्लादेश एक ऐसा देश है, जो अपने आप में कई विरोधाभास समेटे हुए है. दुनिया का आठवां सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होने के बावजूद, ये अक्सर गलत वजहों से खबरों में रहता है. चाहे भ्रष्टाचार हो, या फिर नदियों और समुद्र के किनारे बसे होने के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएं. साल 1971 में पाकिस्तान से आजादी के बाद कई बार सैन्य तख्तापलट ने इसे हिलाकर रख दिया है. भ्रष्टाचार ने सरकार को कमजोर किया, धार्मिक कट्टरता और उग्रवाद बढ़ा, जिससे हालात और बिगड़े.
लेकिन, सब कुछ इतना स्याह भी नहीं है. बांग्लादेश ने कमाल भी किया है. अर्थव्यवस्था में तेजी दिखाई है, लड़कियों की शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण और बच्चों की मृत्यु दर कम करने में बड़ी कामयाबी मिली है. अली रियाज़ इस किताब में बताते हैं कि आखिर ये सब विरोधाभास क्यों हैं? वो ये भी देखते हैं कि लोकतंत्र की राह में क्या-क्या अड़चनें आईं और इसका दक्षिण एशिया पर क्या असर पड़ा? अगर आप बांग्लादेश या दक्षिण एशिया को समझना चाहते हैं, तो ये किताब आपके लिए जरूरी है.
4.) Locating Soft Power in India-Bangladesh Relationsप्रकाशक- ज्ञान बुक्स
लेखक- कोमल कौशिक बराल

ये किताब "सॉफ्ट पावर" के कॉन्सेप्ट को खंगालती है और इसे भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में तलाशने की कोशिश करती है. इसके लिए लेखक ने तीन खास मुद्दों को चुना है - पानी का बंटवारा, सीमा का निर्धारण, और व्यापार व ट्रांजिट का मसला. किताब ये देखती है कि क्या इन पेचीदा मुद्दों को सुलझाने में सॉफ्ट पावर को विदेश नीति के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया? और क्या सॉफ्ट पावर की वजह से इन विवादों को सुलझाने में कोई मदद मिली? इन मुद्दों से सबक लेते हुए, किताब कुछ ऐसे तरीके सुझाती है, जिनसे सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल करके भारत-बांग्लादेश के रिश्तों को और बेहतर किया जा सकता है. इसे लिखने वाले कोमल कौशिक बराल पश्चिम बंगाल की गौर बंगा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं.
प्रकाशक- पेंटागन प्रेस
लेखक- शरीफुल इस्लाम

ये किताब पिछले पचास सालों में भारत-बांग्लादेश रिश्तों में सुरक्षा सहयोग, पानी का सहयोग, विकास में साझेदारी, सीमा प्रबंधन, और कनेक्टिविटी जैसे अहम मुद्दों को खंगालती है. साथ ही, इसमें चुनौतियों और संभावनाओं का भी जायजा लेती है. 'चीन फैक्टर' ने क्या रोल निभाया, सिविल सोसाइटी ने भारत-बांग्लादेश रिश्तों में क्या योगदान दिया, और महामारी के बाद की दुनिया में दोनों देशों की साझेदारी का भविष्य क्या हो सकता है. इन गंभीर ध्यान देने लायक बातों पर भी चर्चा हुई है. ये पुस्तक सैद्धांतिक और नीतिगत दोनों नजरियों से योगदान देती है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय संबंध, राजनीति विज्ञान के स्टूडेंट्स, टीचर्स, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए बेहद काम की है, खासकर अगर उनकी दिलचस्पी भारत-बांग्लादेश रिश्तों, बांग्लादेश की विदेश नीति, भारत की विदेश नीति, या पूरे दक्षिण एशिया में है तो. इसकी लिखाई की है, शरीफुल इस्लाम ने, बांग्लादेश की राजशाही यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हैं.
6.) My Girlhood: An Autobiographyप्रकाशक- पेंग्विन
लेखक- तसलीमा नसरीन

तसलीमा नसरीन बांग्लादेश से निर्वासित हैं. पेशे से लेखक हैं. उनके उपन्यास, “लज्जा” को उनके अपने वतन में बैन कर दिया गया था. उनकी ये आत्मकथा 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखी गई है. ये किताब उनके निजी जीवन के साथ-साथ बांग्लादेश के समाज का भी एक दस्तावेज है. एक पवित्र दिन पर उनके जन्म से लेकर चौदह साल की उम्र में जवानी की दहलीज तक, उनकी शुरुआती यादें जो हिंसा के दृश्यों, उनकी धार्मिक मां की यादों, बढ़ते धार्मिक कट्टरवाद और उस यात्रा की शुरुआत के बीच झूलती हैं, जिसने उनकी दुनिया को नए सिरे से परिभाषित किया है. इस तरह के कई मार्मिक विवरणों के साथ लिखी गई ये किताब एक सरल रीड है.
ये छ: किताबें सिर्फ भात का चावल है. पूरा भात, उसका मसाला और चोखा आप अपने स्वादानुसार बनाइए. माने, अपनी रूचि के हिसाब से और ज्यादा किताबें चुनिए. इसके अलावा इस विषय पर आपको जो भी किताबें ध्यान आती हैं. कॉमेंट बॉक्स में जरुर बताएं.
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