''शादी थी.''बच्चे अगला सवाल पूछते हैं - शादी कैसी रही. लड़का बताता है,
''लड़की खराब निकली.''शादी में खाना खराब निकल जाया करता है. लेकिन लड़की कैसे खराब निकल सकती है, ये किसी को समझ में नहीं आया. और लड़के को ये नहीं समझ आया कि दोस्तों को उसकी बात समझ क्यों नहीं आई. उसके दोस्तों के यहां लड़कियां खराब नहीं निकलतीं क्या? फिर उसने गौर किया कि लड़की 'खराब' कैसे निकली, इस बात का जवाब तो उसे भी नहीं मालूम. होता, तो वो अपने दोस्तों को बता देता. इस सवाल का जवाब सोचते हुए वो लड़का उस दिन घर आ गया.

'लॉज में जाओ'
बहुत दिनों बाद, जब ये लड़का थोड़ा 'बड़ा' हो गया, तो उसने अपने समाज की शादियों पर गौर करना शुरू किया. उसने देखा, शादी (मंगलाष्ट - जयमाल - सप्तपदी) के बाद दूल्हा और दुल्हन को चटाई पर बैठाया जाता है और उन्हें घेरकर कंजरभाट समाज की पंचायत के पंच बैठते हैं. सबके सामने लड़की के घरवालों से सवाल किया जाता है कि लड़की को कोई 'बीमारी' तो नहीं थी, मसलन खसरा (स्मॉल पॉक्स). ऐसे कुछ असहज करने वाले सवालों के बाद लड़का-लड़की को एक लॉज में भेजा जाता है. लॉज में नववर-वधू के लिए एक कमरा खास तौर पर 'तैयार' किया जाता है. इस कमरे में से कोई भी नुकीली चीज़ बाहर कर दी जाती है. दुल्हन के हाथ की चूड़ियां भी गिनकर एक रूमाल में बांध दी जाती हैं. आखिर में लड़का एक सफेद चादर लेकर कमरे में जाता है.
आधे-एक घंटे के बाद लड़के को कमरे से बाहर आना होता है, सफेद चादर पर खून के दाग लिए. और ये खून योनि की हाइमन झिल्ली के टूटने का ही होना चाहिए. कहीं और से खून आ नहीं सकता क्योंकि कमरे में से सारी नुकीली चीज़ें पहले ही हटा दी गई होती हैं. खून के दाग इस बात के सबूत होते हैं कि लड़की 'खराब' नहीं थी, कुंवारी थी.

अगली सुबह वर-वधू वापस पंचों के बीच आते हैं. चादर समाज की औरतों के बीच घुमाई जाती है जो खून देखकर तस्दीक करती हैं कि दुल्हन 'सच्ची' थी या 'झूठी'. इसके बाद पंच दूल्हे से सवाल करते हैं,
'तेरा माल कैसा था?'दूल्हा इस सवाल का जवाब तीन बार देता, ताकि सब सुन सकें. दूल्हा अगर ये कहता कि उसका माल (दुल्हन) 'कच्चा' था, तो दुल्हन 'अच्छी' मान ली जाती और रस्म पूरी मान ली जाती. अगर लड़का ये कहता कि उसका माल कच्चा नहीं था, तो लड़की के साथ मारपीट होती. उसपर दबाव डालकर पूछा जाता कि 'कौन था?' अगर लड़की समाज के किसी लड़के का नाम लेती, तो उस लड़के को पंचायत घसीट लाती, उस पर आर्थिक दंड लगता और कई बार तो घरों में तोड़-फोड़ हो जाती. पंचायत लड़की के परिवार पर भी आर्थिक दंड लगाती. कुछ मामलों में दूल्हा अपनी दुल्हन को ये कहकर ठुकरा देता कि वो कुंवारी नहीं थी.
'...नहीं तो तुम लंगड़े घोड़े करार दिए जाओगे'
कई बार ये होता कि वर-वधू शादी की रात खुद को सेक्स के लिए तैयार नहीं कर पाते. ऐसे मामलों में उन्हें दवाएं दी जातीं और दबाव डाला जाता. अगर शादी की रात ये रस्म पूरी नहीं ही हो पाती तो लगातार तीन दिन तक इस रस्म को दोहराया जाता. अगर लड़का अपने 'माल' को कच्चा नहीं ही साबित कर पाता तो उसे 'लंगड़ा घोड़ा' घोषित कर दिया जाता.

इस तरह इस लड़के को मालूम चला कि शादी में लड़की 'खराब' कैसे निकलती है. ये लड़का था मुंबई के पास पड़ने वाले अंबरनाथ का विवेक तमाइचिकर. विवेक अब मुंबई के प्रतिष्ठित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ से रीसर्च कर रहे हैं, 'रेग्युलेटरी गवर्नेंस' विषय पर. उन्होंने तय कर लिया है कि वो अपनी साथी के साथ ऐसा न होने देंगे. दूसरों के साथ भी ऐसा न हो, इसके लिए विवेक ने कंजरभाट समाज में चल रही वर्जिनिटी टेस्ट की प्रथा के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. और इसीलिए अपने समाज के कट्टर धड़े के निशाने पर भी हैं.
कौन हैं कंजरभाट?
कंजरभाट समाज के लोग कभी बंजारे हुआ करते थे. अंग्रेज़ों के वक्त इन्हें क्रिमिनल ट्राइब (आदतन अपराधी जनजाति) माना जाता था. आज ये विमुक्त (डीनोटिफाइड) जनजाति हैं. कंजरभाट मानते हैं कि कभी संहसमल नाम का एक राजा हुआ था, जिसकी संतान आज के कंजरभाट हैं. महाराष्ट्र में कंजरभाट समुदाय की आबादी 50 हज़ार के करीब होगी. कंजरभाट देश के और राज्यों में भी होते हैं. गुजरात में इन्हें छारा कहते हैं. राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा में इन्हें सांसी कहा जाता है. राजस्थान के सांसी भी कंजरभाटों की तरह शादी के बाद कौमार्य परीक्षण की परंपरा मानते हैं. वो इसे कुकरी प्रथा कहते हैं. वैसे राजस्थान के सांसी समाज का एक प्रतिनिधि मंडल हाल ही में राज्य महिला आयोग से मिला था. मंडल ने आयोग को एक भरोसा दिलाया है कि समाज में कुकरी प्रथा खत्म कर दी जाएगी.
'काले कानून' का हिस्सा है कौमार्य परीक्षण
वक्त के साथ कंजरभाट मुख्यधारा का हिस्सा बनते गए. इसलिए अपनी अलहदा पहचान सहेजने के लिए समाज 'काळा कायदा' (काला कायदा) को लेकर गंभीर होता गया. काला कायदा का शाब्दिक अर्थ हुआ काला कानून. इसके तहत कंजरभाट समाज की परंपराएं और रीति-रिवाज़ आते हैं. ये पहले तय नहीं थे. कई लोकश्रुतियां थीं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही थीं. फिर सितंबर 2000 में समाज की एक बैठक हुई शिर्डी में. इसमें काला कायदा एक किताब की शक्ल में संकलित कर लिया गया. आज ये किताब- 'संहसमल जात - पंचायत कायदा कानून' समाज के संविधान की तरह काम करती है. पंचायत का जितना ज़ोर समाज पर है, काला कायदा के चलते ही है. काला कायदा का हवाला देकर ही लोग जात-बाहर किए जाते हैं.
इसी जाति संविधान के अनुच्छेद 38 में शादी के बाद कौमार्य परीक्षण का उल्लेख है. अनुच्छेद 38 के 4 उपखंड हैं, जिनमें से तीसरे में लिखा है कि जाति पंचायत शादी के बाद दुल्हन के 'गुण' (कौमार्य) परीक्षण के लिए अनुमति देगी और इसी के बाद दूल्हा-दुल्हन लॉज में जाएंगे.

'वॉट्सऐप ग्रुप में नाम होगा तो कॉलेज नहीं जाने देंगे'
कंजरभाट समाज के लोगों में पढ़ाई-लिखाई को लेकर जागरूकता अभी नई है. विवेक जैसे उच्च शिक्षित नौजवानों की संख्या काफी कम है. इसलिए उन्होंने 'स्टॉप द वी रिचुअल' नाम से एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाया है. जागरूकता फैलाने के लिए विवेक लगातार बैठकें भी कर रहे हैं ताकि इस सोच से इत्तेफाक रखने वाले ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को साथ में लिया जा सके. लेकिन खालिस वॉट्सऐप ग्रुप से कंजरभाट समाज की पंचायत इतनी तिलमिलाई हुई है कि ग्रुप में जिस-जिसका नंबर है, उनके परिवार वालों के बारे में बातें होने लगी हैं. कि देखो फलाने की पोती समाजविरोधी मीटिंग में जाती है. नतीजे में घर वाले अपनी लड़कियों को धमका रहे हैं कि उनका घर से निकलना बंद कर दिया जाएगा.
'हमारे कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब वो देना नहीं चाहते'
विवेक लगातार मराठी न्यूज़ चैनलों पर अपनी बात रखते, अपनी कौम पर सवाल उठाते नज़र आ रहे हैं. लेकिन कंजरभाट समाज का कट्टर धड़ा समाचार चैनलों के दफ्तरों में तोड़फोड़ की योजना बनाने में खर्च हो रहा है. विवेक के मुताबिक न्यूज़ 18 लोकमत पर उनके आने के बाद समाज के 40 के करीब लड़के न्यूज़ 18 मराठी के दफ्तर में तोड़-फोड़ करने चल दिए थे. विवेक जब टीवी 9 मराठी पर आने वाले थे तो उन्होंने समाज के लोगों तक बात पहुंचाई कि वो भी चर्चा में शामिल हों. लेकिन कोई नहीं आया. हां, 'संहसमल बचाओ' नाम से एक काउंटर मूवमेंट ज़रूर खड़ा हो गया है जो समाज की बरसों से चली आ रही प्रथाओं पर चोट करने के लिए विवेक को दोषी ठहरा रहा है. इस नाम से एक वॉट्सऐप ग्रुप भी बन गया है, जिसमें विवेक को लेकर उलटी-सीधी बातें होती हैं.

लोग कानून नहीं मानते, पुलिस कार्रवाई से हिचकती है
महाराष्ट्र ने कई सामाजिक सुधार आंदोलन देखे हैं. बावजूद इसके लोगों और परिवारों को समाज निकाला देने की घटनाएं होती रहती हैं. 2017 में राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद 'दी महाराष्ट्र प्रोहिबिशन ऑफ पीपल फ्रॉम सोशल बॉयकॉट एक्ट, 2016' कानून बना. इसके तहत सामाजिक बहिष्कार के दोषी पाए जाने पर 3 साल की सज़ा या/और एक लाख का जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन लोगों में इस कानून का डर नहीं है. पुलिस भी इस कानून की धाराओं में मामले दर्ज करने से हिचकती है. विवेक के मुताबिक कंजरभाट समाज में ही सामाजिक बहिष्कार की शिकार हुईं अरुणा इंद्रेकर के मामले में पुणे पुलिस का रवैया हीलाहवाली का रहा. खबर लिखे जाने तक इस मामले में सोशल बायकॉट एक्ट की धाराएं नहीं लगाई गई थीं.
'बचना चाहते हो तो इंटरकास्ट कर लो'
पंचायत के आगे किसी का ज़ोर चलता नहीं और कानून आपकी मदद के लिए आता नहीं. तो क्या इस प्रथा से बचने का कोई रास्ता नहीं? ''एक रास्ता है,'' विवेक बताते हैं,
''इंटरकास्ट (अंतर्जातीय) विवाह में रीति-रिवाज़ों को लेकर पंचायत ज़्यादा उग्र नहीं होती. लेकिन ये भी आसान नहीं है. जाति संविधान के मुताबिक दूसरी जाति की लड़की से आप शादी तभी कर सकते हैं, जब उसे समाज से कोई आदमी गोद ले लेता है. लेकिन तब आप समाज से कट से जाते हैं.''

विवेक के घरवालों ने उनसे कहा था कि जाति से बाहर शादी कर लें, तो वो समाज से सीधी टक्कर से बचेंगे. लेकिन विवेक कहते हैं वो किसी और के दबाव में अपना फैसला नहीं बदलेंगे. वो इस प्रथा को जड़ से उखाड़ने पर आमादा हैं.
दी लल्लनटॉप से बात करते हुए विवेक लगातार संविधान में मौजूद आर्टिकल 21 (जीवन और निजता का अधिकार), आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार) और साइंटिफिक टेंपर (वैज्ञानिक सोच) का ज़िक्र करते हैं. वो पूछते हैं कि जब ट्रिपल तलाक पर बात हो सकती है, तो वर्जिनिटी टेस्ट पर क्यों नहीं हो सकती?
इन चीज़ों को लेकर विवेक अपनी लड़ाई कहां तक जारी रख पाते हैं, ये आने वाला समय बताएगा. क्योंकि जिस चीज़ से विवेक को तमाम कुरीतियों के अलावा लोगों में गहरे बैठे उस डर से भी लड़ना है जो उन्हें समाज के खिलाफ इसलिए नहीं बोलने देता कि उनके बच्चों की शादी नहीं होगी, उनके झगड़े कोई तोड़ने नहीं आएगा, कोई 'मरण' (किसी का देहांत) में नहीं आएगा.विवेक अपनी बैठकें कर रहे हैं. टीवी-रेडियो पर आ रहे हैं और पुणे में 'स्टॉप द वी -रिचुअल' के हिस्सा बने युवाओं की पिटाई हो चुकी है. विवेक समाज कंटक करार दिए जा चुके हैं और उनके खिलाफ समाज को बदनाम करने के लिए मानहानि का मुकदमा दर्ज कराने की तैयारी की जा रही है.
ज़ोरआज़माइश जारी है.
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