G20 यानी ‘ग्रुप ऑफ़ ट्वेंटी’ देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक समाप्त हो चुकी है. भारत को दिसंबर 2022 में G20 की अध्यक्षता मिली थी. G20 की सबसे बड़ी बैठक में सदस्य देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री या उनके प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं. वो मीटिंग सितंबर 2023 में नई दिल्ली में होनी है. उससे पहले अलग-अलग डिपार्टमेंट्स के मिनिस्टर्स और अधिकारियों की बैठकें चल रही हैं. इसी क्रम में 01 और 02 मार्च को G20 देशों के विदेश मंत्री नई दिल्ली में जमा हुए थे. ये जमावड़ा कई मायनों में खास रहा. मसलन, जासूसी बैलून वाले कांड के बाद पहली बार अमेरिका और चीन के विदेश मंत्री आमने-सामने थे. वहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार रूस और अमेरिका के विदेशमंत्रियों ने अलग से बैठक की. और तो और, भारत और चीन के बीच भी सीमा-विवाद पर बात हुई. इसके अलावा, सदस्य देश कई अहम मुद्दों पर एकमत हुए. हालांकि, जिस मुद्दे पर सहमति की सबसे ज़्यादा दरकार थी, उस पर रूस और चीन ने वीटो कर दिया.
G-20 मीटिंग के बीच अमेरिका-रूस में तकरार क्यों हुई?
G20 की बैठक में क्या निकला?

तो, आइए जानते हैं,
- G20 की बैठक में क्या निकला?
- रूस और चीन ने किस मुद्दे पर वीटो कर दिया?
- और, मेन बैठक से इतर G20 में और क्या-क्या हुआ?
पहले इंट्रो. ब्रीफ़ में.
- G20, दुनिया के 19 देशों और यूरोपियन यूनियन से मिलकर बना है. यूरोपियन यूनियन में 27 देश हैं. यूरोपियन यूनियन के कुछ देश अलग से G20 का हिस्सा हैं.
- यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के पांचों स्थायी सदस्य G20 का भी हिस्सा हैं.
- रूस G7 में नहीं है, लेकिन वो G20 में बना हुआ है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच इस संगठन की अहमियत बढ़ जाती है.
- G20 की स्थापना 1999 में की गई थी. शुरुआत में इनके सम्मेलन में सदस्य देशों के वित्तमंत्री और सेंट्रल बैंक के गवर्नर्स शामिल होते थे. 2008 में सदस्य देशों के शीर्ष नेताओं की पहली बैठक हुई. 2011 से ये बैठक सालाना होने लगी.
- G20 की अध्यक्षता हर साल बदलती रहती है. मेन समिट का एजेंडा मौजूदा मेज़बान, एक साल पहले का मेज़बान और अगला मेज़बान मिलकर तय करते हैं. इस तिकड़ी को त्रोइका कहा जाता है.
- G20 ने अतीत में 2008 की वैश्विक मंदी, ईरान के न्युक्लियर प्रोग्राम, सीरिया के सिविल वॉर और कोविड-19 वैक्सीन डिप्लोमेसी जैसे मुद्दों पर मिलकर काम किया है.
- G20, यूएन या आसियान की तरह कोई औपचारिक संगठन नहीं है. इसका अपना कोई मुख्यालय नहीं है. G20 समिट में लिए गए फ़ैसले सदस्य देशों की मर्ज़ी पर निर्भर होते हैं. इन्हें मानने की कोई बाध्यता नहीं होती.
01 मार्च को जो बैठक आयोजित की गई, वो विदेशमंत्रियों तक सीमित थी. भारत इस साल की G20 समिट का मेज़बान है. इस नाते उसे अपनी पसंद के देशों को बुलाने का अधिकार है. उसने G20 के सदस्यों के अलावा लगभग 20 और देशों को बुलावा भेजा था.
01 मार्च को समिट की साइड बाय साइड मीटिंग्स का दौर चला. एक सेशन आर्थिक अपराध करने वाले भगोड़ों को प्रत्यर्पित करने पर था. इसमें भारत सरकार में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने हिस्सा लिया.
उसी रोज़ विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने स्पेशल ब्रीफ़िंग दी. इसमें उन्होंने मेन बैठक का एजेंडा बताया. क्वात्रा ने बताया,
- G20 के विदेशमंत्रियों की बैठक 02 मार्च को राष्ट्रपति भवन में होगी. इसमें 40 डेलीगेट्स हिस्सा लेंगे.
- जापान के विदेशमंत्री इस मीटिंग में हिस्सा नहीं ले रहे हैं. उनकी अपनी मजबूरियां हैं. लेकिन हम उनके डेलीगेशन के साथ सहभागिता की उम्मीद कर रहे हैं.
जापान की तरफ़ से उनके डिप्टी फ़ॉरेन मिनिस्टर ने हिस्सा लिया.
- क्वात्रा ने कहा,
भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर दो सेशंस की अध्यक्षता करेंगे.
> पहले सेशन में फ़ूड और एनर्जी सिक्योरिटी पर चर्चा होगी.
> दूसरे सेशन में काउंटर-टेररिज्म और नारकोटिक्स, ग्लोबल स्किल मैपिंग और ग्लोबल टैलेंट पूल बनाने जैसे मुद्दों पर सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी.
- मीटिंग से पहले कहा जा रहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर बहुत ज़्यादा बात नहीं होगी. लेकिन क्वात्रा ने कहा कि ये मीटिंग के सबसे ख़ास टॉपिक्स में से है.
उनके ऐसा कहने की वाजिब वजह भी थी. क्योंकि इस मीटिंग में रूस, चीन, अमेरिका के अलावा यूरोप के कई देश शामिल हो रहे थे. ये देश प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर युद्ध में शामिल हैं.
02 मार्च को मेन मीटिंग तय थी. हालांकि, उससे पहले ही बहुत कुछ घट चुका था.
> मसलन, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि उनका रूस या चीन के साथ मीटिंग का कोई प्लान नहीं है. हाल के दिनों में चीन और रूस एक-दूसरे के नजदीक आए हैं. चीन ने यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए 20-सूत्रीय प्लान भी दिया था. जिसे अमेरिका ने तुरंत खारिज कर दिया. इससे पहले, फ़रवरी की शुरुआत में जासूसी बैलून कांड के चलते ब्लिंकन ने चीन का दौरा रद्द कर दिया था.

> रूस ने कहा कि वो पश्चिमी देशों के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से खुश नहीं है.
> 01 मार्च को जयशंकर ने मेक्सिको, यूके, ब्राज़ील, तुर्किए और मॉरिशस के नेताओं के साथ अलग से मुलाक़ात की.
02 मार्च को मेन समिट का दिन था. दिन की शुरुआत पीएम मोदी के संबोधन से हुई.
पूरे दिन चली मीटिंग में किन-किन मुद्दों पर चर्चा हुई?
- फ़ूड एंड एनर्जी सिक्योरिटी, टेररिज्म, मल्टी-लेटरेलिज्म, क्लाइमेट चेंज और जैव विविधता, ग्लोबल हेल्थ, विकास में सहयोग, नई और उभरती तकनीक, काउंटर-नारकोटिक्स, ग्लोबल स्किल मैपिंग, मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन, लैंगिक समानता और वीमेन एम्पॉवरमेंट और रूस-यूक्रेन युद्ध.
मीटिंग के बाद समरी पेश की गई. 24 पैरा में मीटिंग में हुई चर्चा और सदस्य देशों की राय लिखी हुई थी. इसमें तीसरे और चौथे पैरा को छोड़कर बाकी सभी मुद्दों पर सभी सदस्य देश सहमत थे. तीसरे और चौथे पैरा पर रूस और चीन असहमत थे. इसमें क्या था? इसमें रूस से अपील की गई थी कि, वो यूक्रेन से बिना किसी शर्त के अपनी सेना निकाले. रूस और चीन ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई. जिसके कारण इस मुद्दे पर कोई सहमति नहीं बन सकी.
G20 के मंच पर अधिकांश देशों ने इस जंग की निंदा की. कहा कि, युद्ध की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं. इससे कई देशों का विकास बाधित हुआ है. इससे सप्लाई चेन प्रभावित हुई है. महंगाई बढ़ी है. एनर्जी और फ़ूड क्राइसिस का खतरा भी बढ़ा है. हम ये बात जानते हैं कि G20 सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है. लेकिन सुरक्षा से जुड़े मुद्दे, दुनियाभर की अर्थव्यवस्था पर असर डालते हैं. अगर कोई देश परमाणु हथियारों का उपयोग या उसकी धमकी देता है तो ये अस्वीकार्य है. संघर्षों का शांतिपूर्ण ढंग से समाधान होना चाहिए. किसी भी तरह के संकट को दूर करने के लिए संवाद बेहद ज़रूरी है.’
रूस-चीन के विरोध का नतीजा ये हुआ कि G20, रूस-यूक्रेन के मसले पर साझा बयान जारी करने में फ़ेल रहा.
इसपर भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा कि हम एक आम सहमति बनाने में असमर्थ रहे हैं.
रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव पश्चिमी देशों पर जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने G-20 के एजेंडे को मज़ाक बना दिया है. भारत विकास के मुद्दों को उठाना चाहता है लेकिन कुछ देश यूक्रेन के मुद्दे को मीटिंग में हावी कर रहे हैं. वे अपनी आर्थिक विफलता को दूसरे देशों पर थोपना चाहते हैं, खासकर रूस पर. इसके लिए उन्होंने भारत और G-20 के देशों से माफ़ी मांगी. उन्होंने ये भी कहा कि रूस दुनिया में आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी योगदान देना जारी रखेगा.

मीटिंग के बाद कई देशों के विदेशमंत्री आपस में मिले. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई बातें रखीं. अब वो जान लेते हैं.
- भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर जब प्रेस को संबोधित कर रहे थे तब उनसे भी मीटिंग में रूस-चीन की नाराज़गी पर सवाल किया गया गया. पत्रकार ने पूछा कि क्या वो इस बात से नाराज़ हैं? इसके जवाब में जयशंकर ने कहा,
‘पूरी दुनिया में ध्रुवीकरण की स्थिति है. ऐसे हालात में हमारा काम आसान नहीं था. मीटिंग में सभी देश पूर्ण सहमति तक नहीं पहुंच पाए, जिस तरह हम बाली में हुई मीटिंग में सहमत थे. पर इसके अलावा क्लाइमेट चेंज, फ़ूड, फ्यूल, एनर्जी, सेक्योरिटी जैसे मुद्दों पर सभी देश की सहमति बनी.’
- मीटिंग के बाद रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. उन्होंने एक सवाल के जवाब में अमेरिका के इराक़ पर हमले पर सवाल उठा दिए, उन्होंने कहा,
‘क्या आपने कभी अमेरिका या नेटो से पूछा कि अफगानिस्तान, इराक में क्या हो रहा है? उनको याद नहीं जब 1999 में सर्बिया में बम गिराए गए थे. जब इराक बर्बाद हो गया था, कुछ साल बाद टोनी ब्लेयर ने कहा कि ये एक गलती थी.’
इस G20 समिट की सबसे अहम घड़ी तब हुई, जब एक अप्रत्याशित मुलाक़ात का पता चला. पहले से तय कार्यक्रम के बिना अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मिलने पहुंच गए. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दोनों नेता पहली बार आमने-सामने मिल रहे थे. रपटों के अनुसार, ये मीटिंग लगभग 10 मिनट तक चली. इसमें ब्लिंकन ने लावरोव से कहा कि, अमेरिका, यूक्रेन का तब तक समर्थन करता रहेगा, जब तक उसे मदद की ज़रूरत होगी. उन्होंने लावरोव को जल्द से जल्द जंग खत्म करने के लिए भी कहा.
रूस की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया शाखारोव ने मीटिंग की पुष्टि की. बोलीं,
‘ब्लिंकन ने लावरोव से समय मांगा था. G20 के दूसरे सत्र में सर्गेई ने उनसे बात की. औपचारिक मीटिंग या समझौते जैसी कोई चीज नहीं हुई है.’
समिट से इतर एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री किन गांग की मीटिंग भी हुई. किन दिसंबर 2022 में चीन के विदेश मंत्री बने हैं. उन्हें राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सबसे करीबी लोगों में गिना जाता है. जयशंकर और किन की मीटिंग में LAC का मुद्दा छाया रहा.
बाद में जयशंकर ने मीडिया को बताया,
‘हमने 45 मिनट तक बातचीत की और इसमें अधिकतर समय तक हमारे आपसी संबंधों की मौजूदा स्थिति पर बात हुई. इस रिश्ते को मैंने ‘असामान्य’ बताया था.
हमारी मीटिंग में मैंने इस शब्द का इस्तेमाल भी किया. हमारे संबंधों में वास्तविक समस्याएं हैं, जिनके ऊपर ध्यान दिए जाने, उन पर खुलकर और सहजता से चर्चा करने की दरकार है. हमने आज यही करने की कोशिश की.’
2 मार्च को ही रायसीना डायलॉग की शुरुआत हुई. ये एक सालाना इसमें जियोपोलिटिकल कॉन्फ़्रेंस है. इसकी शुरुआत 2016 में हुई थी. इसे ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ORF) और भारत का विदेश मंत्रालय मिलकर आयोजित करते हैं. 2023 वाले एडिशन के पहले दिन पीएम मोदी और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने हिस्सा लिया.
3 मार्च को क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों ने भी शिरकत की. क़्वाड में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया हैं.
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