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रंगरूटः क्या वाकई में Mina और meena अलग हैं? ये कंफ्यूजन खत्म क्यों नहीं हो रहा?

UPSC के एक विज्ञापन से फिर शुरू हो गया है विवाद

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Mina और Meena के कंफ्यूजन पर राजस्थान हाई कोर्ट ने भी राज्य सरकार से जवाब मांगा था.
शेक्सपियर बाबा कह गए हैं कि नाम में क्या रखा है. गुलाब को गुलाब न कहें तो क्या फर्क पड़ता है. लेकिन यहां तो नाम के चक्कर में ही घमासान मचा पड़ा है. नाम भी क्या, एक स्पेलिंग के चलते बड़े पदों पर भर्ती के लिए एग्जाम कराने वाली UPSC का विरोध शुरू हो गया है. क्या है यह मामला, और आखिर इसका समाधान क्या है? आइए जानते हैं.
सबसे पहले समझिए कि मामला क्या है
पूरा बखेड़ा शुरू हुआ UPSC के एक विज्ञापन को लेकर. असल में UPSC ने मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स में कंपनी प्रॉसिक्यूटर के 5 पदों के लिए नोटिस निकाला. इसमें डॉक्युमेंट्स के सेक्शन की एक बात मीणा समाज के कई लोगों के अखर गई. इसमें लिखा था-
# जिन कैंडिडेट्स के पास “मीणा” कम्यूनिटी का शेड्यूल ट्राइब्स का सर्टिफिकेट होगा, वो पात्र नहीं माने जाएंगे.
# वही कैंडिडेट्स शेड्यूल ट्राइब्स या अनुसूचित जनजाति की कैटेगिरी में पात्र माने जाएंगे, जिनके पास “Mina (मीणा)” का सर्टिफिकेट होगा, और उनकी कम्यूनिटी की कैटेगिरी में “MINA” लिखा होगा.
UPSC ने इस आदेश के जरिए यह कहने की कोशिश की है कि जिन लोगों के पास शेड्यूल ट्राइब्स का सर्टिफिकेट है और उनके सर्टिफिकेट में अगर “Mina (मीना) लिखा है, तब तो उन्हें अनुसूचित जनजाति की कैटेगिरी में रखा जाएगा लेकिन अगर उनके सर्टिफिकेट में “Menna (मीणा)” लिखा है तो अनुसूचित जनजाति का कैंडिडेट नहीं माना जाएगा.

ट्राइबल आर्मी ने जताया विरोध
अनुसूचित जनजाति के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वाली 'ट्राइबल आर्मी ने इस तरह के भेदभाव का विरोध किया है. उनका कहना है कि मीणा समाज को भारतीय संविधान में शेड्यूल ट्राइब्स की श्रेणी में रखा गया है. इसे लेकर किसी तरह का कंफ्यूजन नहीं है, लेकिन UPSC सिर्फ स्पेलिंग में फर्क के जरिए एक वर्ग को रिजर्वेशन से वंचित करना चाहता है. ट्राइबल आर्मी के फाउंडर हंसराज मीणा ने इसके विरोध में ट्वीट किया और कहा- क्या मीना और मीणा वाकई अलग-अलग हैं?
इस मामले को लेकर ट्विटर पर भी काफी विरोध देखने को मिला. लोग #मीना_मीणा_एक_है के हैशटैग पर ट्वीट करते दिखे. कई लोगों ने कहा कि इस तरह का कंफ्यूजन मीणा समाज को नुकसान पहुंचाने के लिए है. इस बीच, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने 5 ट्वीट्स के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश की, और राजस्थान सरकार का पक्ष रखा. याद रहे कि राजस्थान उन राज्यों में आता है, जहां मीणा समाज की संख्या बहुत ज्यादा है. राज्य सरकार ही अभ्यर्थियों को जाति प्रमाणपत्र बनाकर देती है. अशोक गहलोत ने 5 ट्वीट्स में लिखा -  
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री में कंपनी प्रॉसिक्यूटर पद पर भर्ती के लिये विज्ञापन जारी किया. इसमें #Mina जाति वाले अभ्यर्थियों को अनुसूचित जनजाति मानकर आरक्षण के लाभ के लिये योग्य (Eligible) माना गया है. जबकि #Meena सरनेम वाले अभ्यर्थियों को योग्य नहीं (Not Eligible) माना गया है.
राजस्थान राज्य में मीना/मीणा दोनों सरनेम वाले लोगों को अनुसूचित जनजाति प्रमाणपत्र जारी किये जाते रहे हैं. #Mina और #Meena के मुद्दे पर माननीय उच्च न्यायालय में भी कई रिट याचिकायें डाली गईं, जिस पर मुख्य सचिव, राजस्थान सरकार ने माननीय न्यायालय में शपथपत्र देकर स्पष्ट किया कि मीना/मीणा दोनों एक ही जाति हैं. इनमें केवल स्पैलिंग का अंतर है.
राजस्थान सरकार ने मीना/मीणा विवाद के संदर्भ में राज्य सरकार की स्थिति साफ करते हुए केंद्र सरकार द्वारा स्पष्टीकरण जारी करने के लिये 2018 में केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय को पत्र लिखा था. इसका केंद्र सरकार ने अभी तक जवाब नहीं दिया है. राजस्थान में इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं है. राजस्थान सरकार केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण जारी कर मीना और मीणा को एक ही मानकर इस विवाद को खत्म करने के लिये फिर से पत्र लिखेगी.


इस कंफ्यूजन का कारण क्या है?
इसका सबसे बड़ा कारण संविधान में मीणा की स्पेलिंग ही है. असल में संविधान में शेड्यूल ट्राइब्स की सूची में कई बार बदलाव होते रहते हैं. नए ट्राइब्स जोड़े या घटाए जाते हैं. हालांकि मीणा जनजाति शुरू से ही संविधान की शेड्यूल ट्राइब्स की सूची में है. हालांकि इसकी स्पेलिंग संविधान में Mina ही है. इस वजह से यह कंफ्यूजन पैदा हो जाता है.
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संविधान में शुरूआत से ही मीणा जाति शेड्यूल ट्राइब्स की सूची में रही है लेकिन इसकी स्पेलिंग Mina ही लिखी है.

पहले भी परेशान कर चुका है ये कंफ्यूजन
मीना और मीणा का यह कंफ्यूजन पहली बार नहीं खड़ा हुआ है. 2013 में एक आरटीआई के जरिए केंद्र सरकार से पूछा गया था कि कौन से मीणा असल में अनुसूचित जनजाति में आते हैं? जवाब आया कि वह सिर्फ Mina स्पेलिंग वाले सर्टिफिकेट धारी को ही अनुसूचित जनजाति का मानते हैं, Meena स्पेलिंग वाले को नहीं. इसके अगले साल राजस्थान की तत्त्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने कहा था कि Meena लिखने वाले लोग अपने नाम की स्पेलिंग में सुधार करा लें. इससे मीणा समाज में इतना गुस्सा देखा गया कि सरकार को अपना यह आदेश वापस लेना पड़ा. इसी बीच, राजस्थान में टीचर ग्रेड 3 के एग्जाम में भी इसी तरह का कंफ्यूजन खड़ा हुआ, और मामला कोर्ट भी पहुंचा. 2014 में राजस्थान हाई कोर्ट ने सरकार से स्थिति साफ करने को कहा था.
2014 में जयपुर में एक कार्यक्रम में पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री नमो नारायण मीणा ने कहा था-
Meena और Mina दोनों एक ही कम्यूनिटी हैं. यह कंफ्यूजन राजस्थान में बोली जाने वाली बोलियों की वजह से है. हमारे संविधान ने 1956 में Mina (मीणा) कम्यूनिटी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया है. यह पेपरवर्क में हिंदी की गैरमौजूदगी के कारण हुआ. इस वजह से Meena शब्द नहीं जोड़ा जा सका.
2017 में मामला फिर कोर्ट पहुंचा. हाई कोर्ट ने फिर से राजस्थान सरकार को इस बाबत नोटिस दिया. सरकार ने 2018 में कोर्ट में एफिडेविट देकर स्पष्ट किया कि स्पेलिंग कुछ भी हो, लेकिन आरक्षण पर फर्क नहीं पड़ेगा.
अब गेंद UPSC के पाले में है कि वह इस कंफ्यूजन को कैसे दूर करती है, या फिर से किसी कोर्ट के आदेश का मुंह देखती है.
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