5 साल पुराना मामला हम आज क्यों याद कर रहे हैं? क्योंकि इस मामले में यूपी के कुछ बड़े बाहुबली और नेताओं का नाम आता है, और पुलिस पर जांच में लीपापोती करने के आरोप लगते हैं. जांच के दरम्यान 8 जांच अधिकारी बदले जा चुके हैं. यूपी पुलिस मामले में क्लोजर रिपोर्ट लगा देती है. फिर तारीख़ आती है 14 दिसंबर 2020. इस दिन सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच रामबिहारी चौबे के बेटे अमरनाथ चौबे की याचिका पर सुनवाई करती है. यूपी पुलिस के जांच के तरीक़े पर कोर्ट नाराज़गी जताती है. यूपी पुलिस को आदेश दिया जाता है कि इस हत्याकांड की जांच के लिए IPS अधिकारी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज के नेतृत्व में SIT बनाई जाए. दो महीनों के भीतर इस पूरे हत्याकांड की फिर से जांच की जाए.
तो ऐसा क्या है, इस केस में कि बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गयी?
जानने के लिए फिर से लौटते हैं 4 दिसंबर 2015 की तारीख़ पर. रामबिहारी चौबे की हत्या की सूचना उनके बेटे अमरनाथ को मिली. अमरनाथ बताते हैं कि हत्या के समय वह दिल्ली में थे. ख़बर पाकर घर पहुंचे. ख़बरें बताती हैं कि लोगों ने अमरनाथ से सोच-समझकर नामज़द FIR करने के लिए कहा. अमरनाथ ने सबसे पहले अज्ञात लोगों के खिलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराया. थाना चौबेपुर में FIR संख्या 378/2015. IPC की धाराएं लगायी गयीं 302, 147, 148 और 149.
लेकिन हत्या के समय से ही अमरनाथ को ये शक होने लगा था कि उनके पिता की हत्या के पीछे किसका हाथ है? हमसे बातचीत में अमरनाथ बताते हैं,
“पिताजी के पोस्ट्मॉर्टम के वक़्त पोस्ट्मॉर्टम हाउस पर कई लोग थे. उस समय वहां विधायक सुशील सिंह पहुंचे. जिनको देखने के तुरंत बाद मैंने पुलिस अधिकारियों से कहा कि इसमें सुशील सिंह का हाथ है.”जब आप पूर्वांचल की राजनीति और माफ़ियावॉर की बात करते हैं, तो एक नाम लिए बिना बात पूरी नहीं हो सकती. वो नाम है बृजेश सिंह का. बृजेश विधान परिषद सदस्य हैं. लेकिन इसके अलावा उनके नाम पर आपराधिक केसों की फ़ेहरिस्त है. बताते हैं कि अपने पिता की हत्या का बदला लेने के बाद बृजेश अपराध की दुनिया में आ गए. आरोप लगते हैं कि एक समय वह दाऊद इब्राहिम के क़रीबी थे, और उसके इशारे पर मुंबई के जेजे अस्पताल में अरुण गवली गैंग पर हमला कर दिया था. साल 2008 में बृजेश सिंह को ओडिशा के भुवनेश्वर से दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ़्तार कर लिया. बृजेश सिंह पूर्वांचल के दूसरे बड़े नेता और माफ़िया डॉन कहे जाने वाले मुख़्तार अंसारी के कट्टर दुश्मन माने जाते हैं. फ़िलहाल बृजेश बनारस की सेंट्रल जेल में बंद हैं. बृजेश सिंह के सगे भतीजे हैं सुशील सिंह. सुशील तीन बार विधायक रह चुके हैं. साल 2017 में उन्हें पहली बार भाजपा का साथ मिला था. भाजपा के टिकट पर ही सुशील सिंह ने चंदौली की सैयदराजा विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी.

बहरहाल, FIR दर्ज होने के बाद से रामबिहारी चौबे के मर्डर केस में एक साल चार महीने तक कुछ नहीं हो सका. केस में STF जुड़ चुकी थी. फिर भी सारी बातें एक जगह पर ही रुकी रहीं. मामले में कुछ न होता देख अमरनाथ चौबे ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. अमरनाथ ने आरोप लगाया कि पुलिस की तफ़तीश बेहद ढिलाई के साथ चल रही है. यूपी पुलिस का जो भी अधिकारी जांच शुरू करता है, उसे केस से हटा दिया जाता है. ख़बरों के मुताबिक़, यूपी पुलिस ने 8 जांच अधिकारियों को इस केस से हटा दिया था. अमरनाथ ने गुहार लगायी कि इस केस की CBI जांच कराई जाए.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया. यूपी पुलिस से केस की प्रोग्रेस रिपोर्ट जमा करने को कहा. यूपी के चीफ सेक्रेटरी से कहा कि इस मामले में वह ऐफ़िडेविट दायर करें.
यूपी पुलिस की जांच थोड़ी आगे बढ़ चुकी थी. कैलेंडर में 17 फ़रवरी 2017 की तारीख़ लग गयी थी. कोर्ट के आदेश में लिखे घटनाक्रम में लिखा गया है कि इस दिन पुलिस को अपने सूत्रों से जानकारी मिली कि रामबिहारी की हत्या के लिए पांच लाख की सुपारी दी गयी थी. और ये सुपारी दी थी भाजपा विधायक सुशील सिंह ने.

विधायक सुशील सिंह की इस मामले में संलिप्तता का शक एक और घटना से गहराता दिखा. 6 अप्रैल 2017. चौबेपुर के थानाध्यक्ष आशुतोष कुमार तिवारी ने अपनी टीम के साथ छापा मारा. यूपी के गाजीपुर निवासी शार्प शूटर कहे जाने वाले अजय मरदह, सनी सिंह और बिहार के भभुआ निवासी नागेंद्र सिंह उर्फ राजू बिहारी को गिरफ्तार करने पहुंचे. स्थानीय लोग बताते हैं कि इन लोगों की गिरफ़्तारी से पहले ही विधायक सुशील सिंह वहां पहुंच गए, और गिरफ़्तारी का विरोध करने लगे. लगभग 8-9 घंटे तक सबकुछ वहीं रुका रहा. लोग तो ये भी आरोप लगाते हैं कि सुशील सिंह ने दबाव डालकर अजय मरदह के ठिकाने की तलाशी लेने से पुलिस को रोक दिया. सुशील सिंह ने अरेस्ट वॉरंट की मांग की. जांच अधिकारी से कहा कि वह लिखित में दें कि इन लोगों को पूछताछ करने के लिए हिरासत में ले रहे हैं. ॉ
इस मामले पर सुशील सिंह ने हमसे बातचीत में कहा,
“हां, हमने गिरफ़्तारी का विरोध किया था. वो लोग हमारे जान पहचान वाले थे. अब कोई जान-पहचान वाले को गिरफ़्तार करेगा तो आप विरोध करेंगे न. और मुझे उनकी जान का भी डर था.”लेकिन अमरनाथ चौबे आरोप लगाते हैं,
“सुशील ने पूरा ज़ोर लगा दिया था कि पुलिस को कोई सुराग़ न मिले, लेकिन इससे बड़ा क्या सबूत होगा कि वो पुलिस को गिरफ़्तारी से रोक रहे थे और तलाशी भी नहीं करने दे रहे थे.”आदेश के काग़ज़ों के मुताबिक़, पूछताछ में राजू बिहारी ने पुलिस को ये बात बतायी कि आरोपी अजय मरदह और सुशील सिंह के बीच मुलाक़ात हुई थी. 29 जून 2017 को पुलिस द्वारा दायर की गयी चार्जशीट के अनुसार, सुशील सिंह ने रामबिहारी की हत्या के लिए साज़िश रची थी. राजू बिहारी ने इस बात को स्वीकार भी किया था. चार्जशीट के अनुसार, सुशील सिंह ने रामबिहारी की हत्या के लिए 5 लाख की सुपारी दी थी. षड्यंत्र में सुशील सिंह के साथ उनके ड्राइवर डब्लू सिंह और मनीष सिंह का भी नाम जोड़ा गया.
इधर, इलाहाबाद हाई कोर्ट में 11 अक्टूबर 2017 को दायर की गयी यूपी पुलिस की प्रोग्रेस रिपोर्ट में भी अजय, सनी, राजू, सुशील, डब्लू और मनीष का नाम बतौर षड्यंत्रकारियों की तरह लिया गया. लेकिन चार्जशीट सिर्फ़ अजय, सनी और राजू के खिलाफ़ दायर की गयी. पुलिस का कहना था कि डब्लू, मनीष और सुशील के खिलाफ़ जांच अभी बाक़ी है.
कहानी में आया ट्विस्ट
साल आया 2018. 16 मई को हाई कोर्ट में हलफ़नामा दायर करते हुए यूपी के चीफ सेक्रेटेरी इंचार्ज देवेंदर चौबे ने बताया कि विधायक सुशील सिंह के खिलाफ़ संगीन आपराधिक धाराओं में 24 मुक़दमे दर्ज हैं. कई में हत्या की धारा 302 भी लगाई गई है. इनमें 5 केसों में सबूतों के अभाव में फ़ाइनल रिपोर्ट लगा दी गयी है. 9 केसों में चार्जशीट दायर की गयी थी, लेकिन सुशील सिंह बरी कर दिए गए. और, 5 केस अभी चल रहे हैं. साल 1998 में उन्हें रासुका के तहत कुछ समय तक जेल में भी वक्त काटना पड़ा था. रामबिहारी चौबे के केस में सुशील सिंह पर लगे आरोपों की जांच की जा रही है.
और, इसी मोड़ पर पूरी कहानी पलटी खा गयी. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट गया. 7 सितम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया. 20 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के डीजीपी को इस केस की तफ़्तीश को लेकर प्रोग्रेस रिपोर्ट फ़ाइल करने को कहा. 22 फ़रवरी को डीजीपी ने प्रोग्रेस रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें उन्होंने कहा कि बहुत मेहनत करने के बाद भी विधायक सुशील सिंह के खिलाफ़ इस मामले में कोई सबूत नहीं मिले. डीजीपी ने कोर्ट को जानकारी दी कि 30 जनवरी 2019 को पुलिस ने इस मामले की जांच बंद कर दी. हालांकि अजय, सनी और राजू बिहारी के बाबत मामले के काग़ज़ात कोर्ट में जमा कर दिए. इसका मतलब, यूपी पुलिस ने सुशील सिंह, डब्लू और मनोज के केस में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी. पुलिस ने ये भी दावा किया कि अमरनाथ चौबे को कोर्ट ने कई तारीख़ों पर बुलाया भी था, लेकिन वह नहीं पहुंचे.
अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यूपी पुलिस द्वारा लगायी गयी क्लोजर रिपोर्ट और डीजीपी द्वारा दिया गया हलफ़नामा संतोषजनक नहीं है. 8 जांच अधिकारी बदले गए. पूरी जांच प्रक्रिया ढकोसला दिखती है. इसके साथ ही कोर्ट ने IPS अधिकारी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज को आदेश दिया कि अपनी पसंद के अधिकारियों के साथ वो SIT का गठन करें और 2 महीने के भीतर केस की जांच रिपोर्ट सबमिट करें.
क्या है परदे के पीछे की बात?
कहानी 90 के दशक से शुरू होती है. उस समय रामबिहारी चौबे ने बनारस के पास धौरहरा गांव में ईंट का भट्ठा शुरू किया था. धौरहरा यानी बृजेश सिंह का गांव. स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि बृजेश सिंह के पिता चुलबुल सिंह और रामबिहारी में बहुत क़रीबी थी. चुलबुल सिंह की हत्या के बाद बृजेश सिंह और रामबिहारी में भी ये क़रीबी बरक़रार रही. रामबिहारी के बेटे अमरनाथ बताते हैं,
“पिताजी के रहते कभी किसी का बुरा नहीं हुआ. उन्होंने पहले की बड़ी-बड़ी लड़ाईयों को सुलझाकर ख़त्म करा दिया, इसलिए किसी को उनसे कोई नाराज़गी नहीं थी.”लोग बताते हैं कि बृजेश के गिरफ़्तार होकर जेल जाने और सुशील सिंह के राजनीति में आने का समय लगभग एक रहा. ऐसे आरोप हैं कि बृजेश के रिश्तेदार होने के नाते सुशील उनके कामधाम में ज़्यादा अधिकार चाहते थे. लेकिन बृजेश ज़्यादातर रामबिहारी चौबे का कहा मानते थे. ये बात सुशील को नागवार गुज़रती थी.

साल आया 2007. यूपी में विधानसभा चुनाव होने थे. सुशील सिंह को विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मन था. बसपा का टिकट चाहिए था. कहते हैं कि बृजेश सिंह के कहने पर रामबिहारी और तत्कालीन चंदौली सांसद कैलाशनाथ यादव ने मिलकर ज़ोर लगाया. टिकट मिल गया. 2009 के लोकसभा चुनाव आए. सुशील सिंह ने बसपा के टिकट पर चंदौली लोकसभा सीट से लड़ने की इच्छा जतायी. पार्टी ने कैलाशनाथ यादव को टिकट दिया. आरोप हैं कि इसके बाद सुशील सिंह ने ज़ोर लगाकर कैलाशनाथ यादव को हरवा दिया. साल आया 2012. बसपा हाई कमान ने सकलडीहां विधानसभा सीट से सुशील सिंह को टिकट देने से मना कर दिया. रामबिहारी ने ये बात बृजेश सिंह को बतायी. बृजेश ने रामबिहारी से कहा, ‘आपकी सीट है, आप लड़िए.’ लेकिन कुछ दिन बाद बृजेश ने सुशील को टिकट देने की पैरवी की, बात नहीं बनी. लिहाज़ा, सुशील सिंह ने निर्दलीय पर्चा भर दिया. सामने बसपा के टिकट पर रामबिहारी थे. अमरनाथ बताते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान सुशील कहते थे,
“पंडितवा क बार बनवाइब… मतलब पंडित का बाल छिलवायेंगे. और ऐसा तभी होता है जब किसी की मौत हो जाती है. और ये उस समय समझ में नहीं आया था कि सुशील सिंह का निशाना मेरी ओर था, या पिताजी की ओर.”चुनाव में सुशील सिंह जीत गए. और जैसा लोग बताते हैं, यहीं से सुशील और रामबिहारी के बीच अदावत की कहानी शुरू हुई. अमरनाथ आरोप लगाते हैं कि जीतने के कुछ दिनों बाद सुशील ने उनके पिता रामबिहारी की हत्या करने के लिए सुपारी दे दी. ये बात रामबिहारी को पता चल गयी. रामबिहारी ने जाकर बृजेश सिंह से शिकायत कर दी. सुशील को ये बात बहुत नागवार गुज़री.
पूर्वांचल की राजनीति को भीतर से जानने वाले बताते हैं कि उस समय बृजेश और सुशील में ग़ज़ब की अनबन का दौर था. दोनों में सम्पत्ति का झगड़ा था. सुशील का वर्चस्व बढ़ रहा था, जिस पर बृजेश लगाम लगाना चाहते थे. पैसे के हिसाब को लेकर दोनों में कड़वाहट हो गयी थी. लोग यहां तक बताते हैं कि रामबिहारी ने टेंडर में गड़बड़ी को लेकर बृजेश सिंह के पास जेल में शिकायत कर दी थी. इसके बाद बृजेश ने सुशील को जेल में बुलाकर डांट लगायी थी, ऐसा भी दावा किया जाता है.
कहने वाले कहते हैं कि सुशील ने रामबिहारी से लगातार हो रहे अपमान का बदला लेने की ठान ली थी. रामबिहारी को इस बात की भनक लग गयी थी. आरोप है कि उन्होंने सुशील सिंह की सुपारी कुछ लोगों को दे दी. लेकिन रामबिहारी का पहले ही मर्डर हो गया. रामबिहारी के बेटे अमरनाथ अपने पिता और बृजेश के बीच की क़रीबी और सुशील सिंह की दूरी की बात तो स्वीकार करते हैं, लेकिन इस आरोप से इंकार करते हैं कि उनके पिता ने पहले सुपारी दी थी,
“पिताजी का ऐसे काम करने का तरीक़ा ही नहीं रहा. हमेशा वो बातचीत करके सबकुछ सुलझा लेते थे, तो इन सब चीज़ों की नौबत ही नहीं आती थी.”अमरनाथ बताते हैं कि एक बार बृजेश सिंह ने सुशील और रामबिहारी के बीच सुलह कराने की कोशिश की थी, लेकिन सुशील ने इंकार कर दिया था.
क्या अमरनाथ चौबे ने भी सुपारी दी थी?
इस मामले में रामबिहारी चौबे के बेटे अमरनाथ चौबे पर भी आरोप हैं. राजस्थान पत्रिका में छपी ख़बर बताती है कि 9 अगस्त 2019 को यूपी STF ने एक लाख के इनामी बदमाश शिवप्रकाश तिवारी उर्फ़ सोनू और उसके दो गुर्गों अंजनी सिंह और मनीष केसरवानी को गिरफ़्तार किया था. पूछताछ के बाद STF ने दावा किया कि अमरनाथ चौबे के कहने पर तीनों आरोपी विधायक सुशील सिंह की हत्या की प्लानिंग कर रहे थे. आरोप है कि पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट लगाने के बाद अमरनाथ चौबे ने अपने तरीक़े से बदला लेने का रास्ता चुना. एक लाख सुपारी देने की बाद सामने आयी. जानकार कहते हैं कि पूर्वांचल में एक लाख की सुपारी में कोई काम नहीं होता है, विधायक की हत्या तो बहुत दूर की कौड़ी है. अमरनाथ चौबे भी इन आरोपों से इंकार करते हैं. कहते हैं,
“मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगायी हुई है. ख़ुद CBI जांच की मांग कर रहा हूं. मैं क्यों अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के लिए सुशील सिंह की सुपारी दूंगा?”

पुलिस के रवैये पर सवाल उठाते हुए अमरनाथ आरोप लगाते हैं,
“सुशील के अलावा मनीष और डब्लू आज भी फ़रार हैं. पुलिस कहती है कि मनीष नाम का कोई आदमी मिला ही नहीं, और सुशील के ड्राइवर का नाम बदल-बदलकर डब्लू मिश्रा से डब्लू सिंह कर दिया. इतना लचर रवैया देखकर मैं क्या करता? सुप्रीम कोर्ट जाना मेरी मजबूरी है.”अमरनाथ चौबे ने आरोपों में आगे कहा,
“इस पूरे मामले में हमने बार-बार पुलिस के सामने साक्ष्य रखे. पुलिस अनदेखी करती रही. हम सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए. इसके बाद भी पुलिस यही कहती थी कि अब इस प्रकरण में कुछ खास नहीं बचा है. हमें कहा जाता था कि न्यायालय की शरण में जाने से भी कोई फायदा नहीं होगा. अब उम्मीद जगी है कि न्याय मिलेगा.”क्या कहना है विधायक सुशील सिंह का?
सुशील सिंह कहते हैं कि रामबिहारी की हत्या उन्होंने नहीं करवाई,
“इस केस में मुझे मेरे विरोधियों द्वारा फंसाया जा रहा है. रामबिहारी की हत्या असल में दूसरे लोगों ने की.”तो इस हत्या के पीछे कौन था? सुशील सिंह मुख़्तार अंसारी के क़रीबी और बृजेश सिंह के कट्टर दुश्मन इंद्रदेव सिंह उर्फ़ बीकेडी पर आरोप लगाते हैं. ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि बृजेश के इशारे पर उनके चचेरे भाई सतीश सिंह ने बीकेडी के पिता हरिहर सिंह की हत्या कर दी थी. क्यों? क्योंकि हरिहर सिंह पर बृजेश सिंह के पिता चुलबुल सिंह की हत्या का आरोप था. इसके बाद बीकेडी अपराध की दुनिया में पहुंच गया. बीकेडी पर बृजेश सिंह के चचेरे भाई सतीश सिंह की हत्या का भी आरोप लगा था. बीकेडी के बारे में कहा जाता है कि वो पूर्वांचल का ऐसा अपराधी है, जिसकी तस्वीर तक पुलिस के पास नहीं है. इस मसले पर सुशील सिंह कहते हैं,
“असल में बीकेडी ने ही रामबिहारी की हत्या को अंजाम दिया था. हत्या के दिन बीकेडी के लोग रामबिहारी के घर में मौजूद थे. आप ही बताइए. दो सालों तक किसी ने मेरा नाम नहीं लिया. घटना सपा सरकार के समय हुई. जैसे ही भाजपा यूपी में सत्ता में आयी, रामबिहारी जी के बेटे ने हम पर आरोप लगाना शुरू कर दिया. रामबिहारी मेरे क़रीबी तो थे ही, मुझसे ज़्यादा क़रीबी मेरे चाचा बृजेश सिंह के थे. हमेशा का उठना-बैठना था. अरे उनकी मौत हुई तो मैं घाट तक अंतिम यात्रा में भी गया था. और जहां तक लोग चुनाव में हार जाने पर ऐसे कृत्य को अंजाम देने की बात करते हैं, तो ऐसा है नहीं.”सुशील सिंह कहते हैं कि बीकेडी ने इस पूरे मामले में उन्हें फंसाया है, क्योंकि उन्हें तो ऐसा करने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट के हालिया जांच के आदेश पर बात करते हुए सुशील सिंह कहते हैं,
“मुझे न्यायपालिका और न्यायतंत्र पर पूरा भरोसा है. मैं चाहता हूं कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो, और असल अपराधी पुलिस की गिरफ़्त में आए.”लेकिन अमरनाथ के आरोप बरकरार हैं. वो आरोप लगाते हैं कि सुशील सिंह के गैंग का काम ही है कि वो हत्या करवाते हैं तो घाट तक या पोस्ट्मॉर्टम हाउस तक ज़रूर जाते हैं. पिता की हत्या के बाद अमरनाथ ने बृजेश से जेल के भीतर दो बार मुलाक़ात की थी. और बक़ौल अमरनाथ, हर मुलाक़ात में सुलह हो जाने या पूरा ब्लेम बीकेडी पर शिफ़्ट हो जाने की बात होती थी. और अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि पूरी जांच फिर से होगी.