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यूपी उपचुनाव में अपनों के बीच ही फंस गई BJP, सीट बंटवारे पर कहां फंस गया पेच?

UP By Election: लोकसभा चुनाव में लचर प्रदर्शन के बाद यूपी में 10 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव BJP के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं. पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर एक स्टेटमेंट देना चाहती है. हालांकि, उसके सहयोगी दल भी कुछ सीटों की मांग कर रहे हैं.

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वाराणसी में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फोटो: PTI)

एक महीना पहले की बात है. तारीख 14 जुलाई. जगह- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ. मौका- यूपी बीजेपी की प्रदेश कार्यसमिति बैठक. एजेंडा- लोकसभा चुनाव में पार्टी के लचर प्रदर्शन और उसके बाद पार्टी के भीतर मचे कलह पर चर्चा. इस बैठक के दौरान उत्तर प्रदेश BJP के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा,

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"हम सब प्रण लें कि 10 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव में हम सारी की सारी सीटें जीतेंगे."

इस बैठक के बाद खबरें आईं कि इस उपचुनाव के लिए BJP ने अपनी तैयारी शुरू कर दी. इन 10 सीटों पर 30 मंत्रियों को नियुक्त किया गया. कई बड़े नेताओं को जिम्मेदारी दी गई. रैलियां और यात्राएं भी शुरू हो गईं. हालांकि, इस बीच सहयोगियों के साथ सीट शेयरिंग को लेकर अभी तक कुछ भी तय नहीं हुआ. ऐसी बातें चल रही हैं कि इसे लेकर NDA कुनबे में खींचतान का माहौल है. लेकिन क्या सच में ऐसा है?

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लखनऊ में BJP की प्रदेश कार्यसमिति बैठक 14 जुलाई को हुई थी. (फोटो: PTI)

आगे बढ़ने से पहले इन 10 सीटों का नाम तो जान लीजिए. ये हैं- करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, कुंदरकी, खैर, गाजियाबाद सदर, मीरापुर, फूलपुर, मझवा और सीसामऊ. कानपुर की सीसामऊ सीट को छोड़कर बाकी 9 सीटें विधायकों के सांसद चुन लिए जाने के बाद खाली हुई हैं. सीसामऊ सीट पर सपा के इरफान सोलंकी की सदस्यता जा चुकी है. उन्हें एक मामले में 2 साल से अधिक कैद की सजा हुई है.

बात ये है कि अभी तक यूपी में इन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए तारीखों का एलान नहीं हुआ है. वहीं इन 10 सीटों में से 5 सपा के खाते में रह चुकी हैं. वहीं बाकी की 5 BJP और उसके सहयोगी दलों के खाते में. इस बार के लोकसभा चुनाव में BJP ने यूपी की 33 सीटों पर जीत हासिल की. पिछली बार पार्टी ने 62 सीटें जीती थीं. वहीं इस बार सपा ने 37 और उसकी सहयोगी कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत हासिल की. ऐसे में इस उपचुनाव में BJP ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर एक स्टेटमेंट देना चाहती है. ये उपचुनाव पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. इस बीच BJP के सहयोगी दल सीटों की खींचतान में लगे हैं.

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निषाद पार्टी के खाते में दो सीटें?

पिछले बार के विधानसभा चुनाव में BJP ने मिर्जापुर की मझवा और आंबेडकर नगर की कटेहरी सीटें निषाद पार्टी को दी थीं. बाकी की 8 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. निषाद पार्टी ने मझवा सीट पर तो जीत हासिल की थी, लेकिन कटेहरी सीट पार्टी हार गई थी. इस बीच निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद का बयान आया है. उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी पहले भी इन दोनों सीटों पर चुनाव लड़ चुकी है, और इस बार भी अपने ही सिंबल पर इन दोनों सीटों पर चुनाव लड़ेगी. निषाद ने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने मझवा में जीत हासिल की थी, और कटेहरी में करीबी अंतर से हार हुई थी.

जानकारों का कहना है कि अगर ये दोनों सीटें निषाद पार्टी के कोटे में नहीं जाती हैं और उपचुनाव में पार्टी अपने उम्मीदवार उतार देती है तो इससे BJP को नुकसान हो सकता है. मझवा सीट पर तो पार्टी की पकड़ है ही, साथ ही साथ कटेहरी में भी उसका अच्छा समर्थन आधार मौजूद है. हालांकि, इंडिया टुडे के लखनऊ ब्यूरो हेड कुमार अभिषेक का कहना है कि निषाद पार्टी के साथ सीट शेयरिंग की गरारी नहीं फंसेगी. उन्होंने बताया,

“BJP नेतृत्व को भी पता है कि मझवा और कटेहरी में निषाद पार्टी की पकड़ मजबूत है. निषाद पार्टी ये दोनों सीटें मांग रही है. हालांकि, इस बात पर सहमति बन सकती है कि मझवा निषाद पार्टी को दे दी जाए और कटेहरी से निषाद पार्टी के उम्मीदवार को BJP के सिंबल पर उतारा जाए.”

कुमार अभिषेक ने आगे कहा कि संजय निषाद उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. ऐसे में ऐसी स्थिति नहीं बनेगी कि निषाद पार्टी और BJP के उम्मीदवार आमने-सामने हों.

RLD ने मांगीं तीन सीटें

RLD ने पिछला यूपी विधानसभा चुनाव सपा के साथ गठबंधन में लड़ा था. वहीं इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी ने पाला बदल NDA का दामन थाम लिया. सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहत RLD को दो सीटें मिलीं और उसने दोनों सीटों पर जीत हासिल की. ऐसे में पार्टी नेताओं का मनोबल बढ़ा हुआ है. खबरें हैं कि इस उपचुनाव के लिए पार्टी पश्चिमी यूपी में 3 सीटें मांग रही है. मुजफ्फरनगर की मीरापुर, अलीगढ़ की खैर और मुरादाबाद कुंदरकी.

पिछले विधानसभा चुनाव में RLD ने मीरापुर में जीत हासिल की थी. वहीं अलीगढ़ की खैर सीट पर BJP प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. हालांकि, साल 2017 से पहले ये सीट RLD के पास थी. ऐसे में RLD इन दोनों सीटों की मांग कर रही है. कुंदरकी सीट को लेकर पार्टी का कहना है कि इस सीट पर अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले मतदाताओं का प्रभाव है और क्योंकि BJP कोई अल्पसंख्यक उम्मीदवार उतारेगी नहीं तो ऐसे में ये सीट उसे मिलनी चाहिए. इस संबंध में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय का बयान आ चुका है. उन्होंने कहा,

"कुंदरकी में अल्पसंख्यक चेहरे के सहारे हम चुनाव जीत सकते हैं. वहां अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या अधिक है. हालांकि शीट शेयरिंग को लेकर अंतिम निर्णय शीर्ष नेतृत्व ही लेगा."

दरअसल, कुंदरकी सीट पर अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों के जीतने का इतिहास रहा है. BJP यहां से बस एक बार 1993 में चुनाव जीती है. हालांकि, RLD ने एक भी बार यहां से चुनाव नहीं जीता है. साल 2022 के चुनाव में यहां से सपा के जियाउर रहमान बर्क ने जीत हासिल की थी. उस समय पार्टी का RLD से गठबंधन था.

जानकारों के मुताबिक, ऐसे में इन तीनों सीटों पर RLD की दावेदारी तो बन रही है लेकिन इन तीनों सीटों को RLD के कोटे में डालना BJP के लिए मुश्किल होगा. इस बारे में कुमार अभिषेक ने बताया,

"BJP के लिए मीरापुर सीट RLD को देना मुश्किल नहीं होगा. वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में BJP ने खैर सीट पर बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. ऐसे में BJP इस बार भी खैर सीट पर अपना ही उम्मीदवार उतारना चाहेगी. कुंदरकी सीट पर भी BJP के उम्मीदवार कड़ी चुनौती देते रहे हैं. ऐसे में BJP ये सीट भी अपने पास रखना चाहेगी."

इनके अलावा ऐसा भी कहा जा रहा है कि अपना दल और सुभासपा भी कुछ सीटों की मांग कर रहे हैं. हालांकि, कुमार अभिषेक का कहना है कि इन 10 सीटों में से एक भी सीट इन दोनों दलों के हिस्से में नहीं आती, इसलिए उनकी कोई दावेदारी नहीं बन रही है. दोनों दलों को भी ये पता है. सहयोगी दलों की दावेदारी 3 से 4 सीटों पर है. लेकिन आखिर-आखिर में ऐसा फॉर्मूला बन सकता है कि BJP 10 में से 8 सीटों पर चुनाव लड़े.

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BJP के लिए चुनौती

उत्तर प्रदेश में इन उपचुनावों की सरगर्मी ऐसे समय में चढ़ रही है, जब यूपी BJP के भीतर सबकुछ ठीक नहीं है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच तकरार की खबरें आ रही हैं. BJP के सहयोगी दल भी कुछ-कुछ बयानबाजी करते ही रहे हैं. वहीं लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित प्रदर्शन के बाद सपा और कांग्रेस नेताओं-कार्यकर्ताओं मनोबल बढ़ा हुआ है.

ऐसे में ये उपचुनाव BJP के लिए चुनौती भरे होने वाले हैं. इस बारे में लखनऊ यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर राजेश मिश्रा ने न्यूज एजेंसी PTI को बताया,

"2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए ये उपचुनाव BJP के लिए मुश्किल भरा होने जा रहा है. जिन सीटों पर उपचुनाव होना है, उनके राजनीतिक और सामाजिक समीकरण BJP के लिए चुनौती भरे हैं. अगर इस बार के लोकसभा चुनाव में BJP को मुश्किलों का सामना करना पड़ा, तो इस उपचुनाव में पार्टी को और अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है."

इस उपचुनाव में एक ऐसी भी सीट है जो BJP के लिए प्रतिष्ठा का बहुत बड़ा सवाल बन चुकी है. ये सीट है अयोध्या की मिल्कीपुर. यहां के विधायक अवधेश प्रसाद ने इस बार फैजाबाद से लोकसभा चुनाव जीता और संसद पहुंच गए. विपक्ष बार-बार अवधेश प्रसाद का नाम लेकर BJP पर सियासी हमला करने का मौका नहीं चूकता. इस सीट पर अब सीधे योगी आदित्यनाथ चुनाव-प्रचार कर रहे हैं. मिल्कीपुर के अलावा BJP की नजर मैनपुरी की करहल सीट पर भी है. पिछले विधानसभा चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यहां से चुनाव जीता था. BJP की कोशिश है कि इस सीट को जीतकर एक बड़ा संदेश दिया जाए.

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