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याद है, एक मुंहनोचवा आया था

रतजगे होते थे इससे बचने के लिए. हमला करके मुंह नोच ले जाता था. शुक्र मनाओ तब सोशल मीडिया नहीं था.

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Image: gregnoiz
 
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उत्तर प्रदेश में इस वक्त चुनाव का सीजन चल रहा है. यहां जो भी होता है, रिकॉर्डतोड़ होता है. ऐसा ही एक रिकॉर्ड तकरीबन 15 साल पहले टूटा था. जब यूपी वालों ने अफवाह फैलाने के मामले में मैदान मार लिया था. साल 2002 था. इसी साल यूपी में मुंहनोचवा का अटैक हुआ था. अखबारों में ऐसी क्रिएटिव हेडलाइन्स दिखती थीं "जितने मुंह उतने मुंहनोचवा." इसके बारे में दावे बहुत लोग करते थे लेकिन सच ये है कि देखा कभी-किसी ने नहीं. मीडिया वाले अफवाह फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. बिना देखे सुने रोज यहां वहां मुंह नोचाए मिलने वालों की कहानी छापते थे. यूपी के लगभग सभी जिलों में मुंहनोचवा फैल गया था.
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ये पता नहीं कि किस तरफ से शुरू हुआ. कानपुर वाले अपना नाम क्लेम करते हैं. बनारस वाले खुद क्रेडिट लेना चाहते हैं तो मेरठ वाले अपनी दावेदारी सिद्ध करते हैं. असल में ये अफवाह कहां से उड़ी, इस पर विद्वानों में मतभेद है. लेकिन खौफ ऐसा था कि पूछो मत. गांवों से कस्बों और शहरों तक इससे बचने के लिए रतजगे होते थे. हमारा गांव रायबरेली जिले में लगता है. वहां रात भर लोग जागते थे. ढोल नगाड़े और तेल के खाली पीपे बजाते थे. कोई लुच्चा गांव के किसी कोने से चिल्लाता "अरे हियां देखाया है." बस ताबड़तोड़ भीड़ उधर पहुंच जाती. आधे एक घंटे तक स्निफर डॉग्स की तरह सब मुंहनोचवा को सूंघते. नहीं मिलने पर वापस आकर ढोल नगाड़े बजाने लगते.
Image: abovetopsecret
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ये क्या था

मुंहनोचवा था और क्या. इसकी खासियत ये थी अंधेरे में आता था. दिखता नहीं था. मुंह नोच कर भाग जाता था. उसके बाद मुंह में सड़न पैदा हो जाती थी और आदमी जल्द ही मर जाता था. सब कहते थे कि मुंहनोचवा का विक्टिम फलाने गांव में है. उसने बताया है कि मुझ पर ऐसे झपटा. ये देखो यहां जला है. यहां कटा है. लेकिन ऐसे किसी आदमी को किसी ने देखा नहीं था.

कैसा था

उसके आकार के बारे में अगर लिखना शुरू किया जाय तो एक महाकाव्य तैयार हो सकता है. मैं वेद व्यास नहीं हूं न मेरे साथ कोई भगवान गणेश हैं. इसलिए हल्के में निपटा दूंगा. हमाए गांव में एक 'बड़कऊ बाबा' थे. उनके जिन्न आता था. जब वो अपनी आंख बंद करके लंबी लंबी सांसे लेते थे तो उनको तीनो त्रिलोक दिखने लगते थे. उन्होंने बताया कि "मुंहनोचवा है. जो लोग उसके अस्तित्व पर शक कर रहे हैं वो मूर्ख हैं. मुंहनोचवा दस इंच चौड़ा और चार इंच लंबा है. मच्छर जैसा डिजाइन है. लंबे चमगादड़ जैसे पंख हैं." उनकी गणित को देखकर हमारे दिमाग की ज्यामिति अल्पमत में आ गई थी. लेकिन उनसे सवाल करना बेकार था.
कोई कहता था वो उड़ने वाली लोमड़ी है. कोई कहता था लोमड़ी है लेकिन आधी. आधा शरीर मनुष्य का है. कोई कहता था कि उसकी पूंछ से नीली और आंखों से लाल लाइट निकलती है.

ISI का हाथ

जैसे डेढ़ होशियार देशभक्त अभी होते हैं, तब भी होते थे. जो हर बीमारी की जड़ पाकिस्तान और चीन में खोज लेते थे. उन्होंने ये डेल्टा लेवल का टॉप सीक्रेट फैला रखा था कि ये रोबोटिक ड्रोन हैं. जिनको चीन में बनवाकर पाकिस्तान हमारे यहां भेज रहा है. यूएफओ वगैरह ऐसे आकर हम पर हमला नहीं करेंगे. ये जरूर पाकिस्तान की चाल है.
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खोजने पर मिला क्या

मुंहनोचवा के बारे में साइंस फिक्शन थ्रिल और एडवेंचर से भरी जानकारी रखने वाले बताते हैं कि कुछ लोगों ने उसकी वीडियो तक रिकॉर्ड की थी. हालांकि वो कहीं उपलब्ध नहीं हैं. और उस वक्त कैमरा वाले फोन आम नही हुए थे. अरे मोबाइल ही नहीं था यार. नोकिया 6600 आया था न सैमसंग चैंप. तो हवा में उड़ती चीज का हाई क्वालिटी वीडियो कैसे बनाया इसका प्रमाण मिलना इतिहास के पन्नों में दबा है.
मुंहनोचवा के चक्कर में लोग खुद ही परेशान नहीं हुए, लोगों को भी किया. रात में हमारे घर के सामने की सड़क से आने जाने वाले लोगों की तलाशी ली जाती थी. कि यही तो नहीं वो खुफिया लोग हैं जो मुंहनोचवा को ऑपरेट कर रहे हैं. पुलिस उलिस सब परेशान थी. किसी के बस का नहीं था कि इस पर कंट्रोल कर सके. ये ड्रामा दो महीने तक धकापेल चला था और फिर मुंहनोचवा वहीं लौट गया जहां से आया था. मतलब कहीं नहीं.
लेकिन लेकिन लेकिन. शुक्र मनाओ एक बात का. तब सोशल मीडिया नहीं था. नहीं तो दंगे हो जाते भाई साब. गुजरात तो याद ही होगा. साल 2002 ही था.


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