आज कुड़ी कहती है कि पहले जगुआर ले लो, फिर जितना मर्जी प्यार ले लो. कुड़ी के चक्कर में जनता जगुआर पर लबरियाई घूमती है. जो लपूझन्ने जगुआर नहीं ले पाते, वो इनोवा और सफारी जैसी गाड़ियों पर उतर आते हैं. बाकी वैगनआर वाली जनता की कमी तो है नहीं अपने यहां. और वैसे भी, गाड़ी लेना बड़ा सिरदर्द भी तो है. पहले खरीदो और फिर उसका तेल-पानी करो. पर कुछ भी कहो भाई, इस मामले में हिंदू देवी-देवता बड़े सुकून में रहिते हैं. अपना-अपना मनपसंद जानवर चुन लिए हैं और घूमते रहते हैं उसी पर. न खिलाने की दिक्कत न पिलाने की.
पता है विष्णु के वाहन के लिए गरुड़ का रिक्रूटमेंट कैसे हुआ था?
कैंपस प्लेसमेंट नहीं हुआ था, गरुड़ ओपन लर्निंग स्कूल में थे.

हिंदुओं के सबसे बड़े भगवान विष्णु के पास भी ऐसा ही एक वाहन है. उन्होंने बुगॉटी वेरॉन जैसे चीते या वैन जैसा बैल चुनने के बजाय गरुड़ को अपना वाहन बनाया. लेकिन गरुड़ का ये सेलेक्शन ऐसे ही नहीं हो गया था. इसके पीछे बड़ी इंट्रेस्टिंग कहानी है. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि विष्णु और गरुड़ की पार्टनरशिप कहां से और कैसे शुरू हुई थी. पढ़ ल्यो.
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इस तरह की हर कहानी 'प्राचीन काल' से शुरू होती है. तब गरुड़ की मम्मी विनता की नागों की मां कद्रू से लड़ाई हो गई थी. ये दोनों दक्ष प्रजापति की बिटिया थीं यानी बहनें थीं. दोनों की शादी कश्यप ऋषि से हुई थी. कश्यप ने दोनों से वरदान मांगने को कहा कि कद्रू ने हजार नागपुत्र और विनता ने दो तेजस्वी लौंडे मांगे. दोनों को वरदान मिले. कद्रू ने हजार अंडे दिए और विनता ने दो. कद्रू के हजार नाग लौंडे जल्दी पैदा हो गए, लेकिन विनता के अंडे वैसे ही रखे हुए थे. अतिउत्साह में उन्होंने एक अंडा फोड़ दिया. जो बच्चा निकला, वो पूरा डेवलप नहीं हुआ था तो भन्ना गया. बोला तुम पांच सौ सालों तक अपनी सौतन की दासी रहोगी और जाकर सूर्य का सारथी बन गया.
दूसरे अंडे से गरुड़ पैदा हुए, लेकिन उससे पहले उनकी मम्मी कद्रू की दासी बन चुकी थीं. वो उन्हें आजाद कराने का रास्ता ढूंढने लगे. उन्होंने विष्णु को खुश करने के लिए तपस्या शुरू की. जब विष्णु गरुड़ की तपस्या से खुश हुए तो पहुंचे उनके पास और वही रौले वाला डायलॉग मारा. 'मांगो वत्स, क्या मांगना चाहते हो?' गरुड़ ने देखा कि साक्षात विष्णु सामने खड़े हैं तो जी भर के डिमांड रख दी. बोले, हमें इतनी ताकत दो कि हम कद्रू के नाग लौंडों की ढेकापांच कर दें. हमें वरदान दो कि हम अपनी मम्मी को छुड़ाकर अमृत हासिल कर लें. हम ताकतवर और सर्वज्ञ बन जाएं, जिससे पुराण लिख सकें. इतना सब मांगने के बाद आखिर में गरुड़ ने मु्द्दे की बात बोली.

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उन्होंने विष्णु से कहा, हमें अपना वाहन बना लो. गरुड़ भले आदमी (पक्षी) थे, इसलिए विष्णु ने उनकी सारी बातें मान लीं. विष्णु ने वरदान दिया कि तुम अपनी मम्मी को छुड़वा लोगे, देवताओं को जीतकर अमृत हासिल कर सकोगे, विष खत्म कर सकोगे और मेरे वाहन बनोगे. इतना सब पाकर गरुड़ एकदम गिल्ल हो गए. लेकिन विष्णु ने गरुड़ को इससे भी बड़ी एक चीज दी थी. विष्णु ने कहा था, 'मेरी कृपा से तुम मेरी महिमा कहने वाले पुराण लिखोगे.' विष्णु के इसी आशीर्वाद से गरुड़ ने 'गरुड़ महापुराण' लिखा था. हिंदू धर्म में जब किसी की मौत हो जाती है तो उसके घरवालों को गरुड़ महापुराण सुनाई जाती है.
विष्णु ने गरुड़ को विष खत्म करने का वरदान दिया था, जिसका खुद उन्हें भी फायदा हुआ था. जब राम के अवतार में वो मेघनाद से लड़ रहे थे तो मेघनाद ने उन्हें और लक्ष्मण को नागपाश से बांध दिया था. इसका इलाज हनुमान के पास भी नहीं था. तब गरुड़ को बुलाया गया था. गरुड़ सांप खा सकते थे, इसलिए उन्होंने राम और लक्ष्मण को नागपाश से फ्री कर दिया था.
सोर्स: गरुड़ पुराण के आचारकाण्ड से.