भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर सुब्रमण्यम जयशंकर ने दिसंबर 2022 में एक कार्यक्रम में कहा था, अगर आप अपने अहाते में सांप पालोगे ये आपको भी काट सकता है.
जयशंकर ने किसी का नाम तो नहीं लिया था, मगर सबको पता था कि उनका इशारा पाकिस्तान की तरफ़ है. हालांकि, कोई था, जिसने नाम लेने से परहेज नहीं किया था. जयशंकर से 11 बरस पहले हिलेरी क्लिंटन ने इस्लामाबाद में बोला था, You can't keep snakes in your backyard and expect them only to bite your neighbors. यानी, आप सांप पालकर ये उम्मीद नहीं कर सकते कि वो सिर्फ़ आपके पड़ोसियों को काटेगा.
पाकिस्तान पर ईरान के हमले की पूरी कहानी, अब पाकिस्तान क्या जवाब देगा?
पाकिस्तान पर ईरान ने हमला क्यों किया? क्या पाकिस्तान जवाबी हमला कर सकता है?

उस वक़्त हिलेरी क्लिंटन अमरीका की विदेश मंत्री हुआ करती थीं. पाकिस्तान ने उनकी सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया. आतंकियों को पालना और उनके सहारे अपना हित साधना उसका पुराना शग़ल रहा है. तहरीके तालिबान पाकिस्तान (TTP), हक़्क़ानी नेटवर्क, जैश-ए-मोहम्मद जैसे कई उदाहरण आपको मिल जाएंगे. TTP तो लिटरली पाकिस्तान के लिए मुसीबत बन चुका है. इस लिस्ट में शामिल एक और नाम चर्चा में आया है.
ये हुआ, 16 जनवरी 2024 को. पाकिस्तान के बलूचिस्तान में मिसाइलों और ड्रोन्स से हमला हुआ. हमले की ज़िम्मेदारी ईरान ने ली. कहा, हमने आतंकी संगठन जैश अल-अदल के ठिकानों को उड़ाया है.
ये गुट ईरान पर हमले के लिए कुख्यात रहा है. इसका बेस ईरान और पाकिस्तान के बॉर्डर पर बसे इलाकों में है. ईरान ने पहले भी कई दफ़ा पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि वो जैश अल-अदल के ख़िलाफ़ कार्रवाई करे. पाकिस्तान नहीं माना. फिर भी ईरान उसकी सीमा में हमला करने से बच रहा था. 16 जनवरी को उसने सीमा पार कर दी.
पाकिस्तान ने हमले की कड़ी निंदा की है. बोला, ये हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है. करारा जवाब मिलेगा. एक दिलचस्प बात पता है! जिस वक़्त ईरान की फ़ौज हमले की तैयारी कर रही थी, पाकिस्तान के केयरटेकर प्राइम मिनिस्टर अनवारुल हक़ काकर ईरान के विदेश मंत्री से हाथ मिला रहे थे.
तो आइए जानते हैं,
- ईरान ने पाकिस्तान पर हमला क्यों किया?
- जैश अल-अदल की असली कहानी क्या है?
- और, क्या ईरान और पाकिस्तान भिड़ जाएंगे?
आज के दिन पाकिस्तान और ईरान के बीच जंग की आशंका जताई जा रही है. मगर एक समय तक दोनों एक-दूसरे के लंगोटिया दोस्त हुआ करते थे.
- दोनों देशों के बीच लगभग 909 किलोमीटर लंबी सीमा है. इसका निर्धारण 1950 के दशक में आपसी सहमति से हुआ था. ये सीमा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत को ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान से अलग करती है.
- पाकिस्तान 14 अगस्त 1947 को बना था. भारत से अलग होकर. उसी रोज़ ईरान ने पाकिस्तान को मान्यता दे दी थी. डिप्लोमेटिक संबंध स्थापित किए थे.
फ़रवरी 1955 में नेटो की तर्ज पर सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइजे़शन (CENTO) की स्थापना हुई. पाकिस्तान और ईरान, दोनों इसके मेंबर थे.
- 1965 और 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई. इसमें ईरान ने पाकिस्तान की मदद की. 1965 के युद्ध में पाक फ़ाइटर जेट्स बचने के लिए ईरान भाग जाते थे. वहां उन्हें शरण मिलती थी. और, ईरान उन जेट्स में ईंधन भी भरता था.
- रेज़ा शाह पहलवी के शासनकाल में ईरान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा डोनर था. 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई. शाह की कुर्सी चली गई. फिर इस्लामी रिपब्लिक की स्थापना हुई. पाकिस्तान मान्यता देने में आगे रहा.
- फिर 1980 में ईरान-इराक़ जंग शुरू हुई, तब पाकिस्तान ने ईरान का साथ दिया. इसी समय अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ घुसा. मुजाहिदीनों ने जंग शुरू की. उन्हें पाकिस्तान का साथ मिला. पैसा अमरीका, सऊदी अरब और दूसरे सुन्नी इस्लामी देशों से आया. मुजाहिदीनों की मदद ईरान ने भी की. मगर ताजिक मूल के लोगों की.
- 1980 का दशक बीतते-बीतते ईरान-इराक़ युद्ध खत्म हो गया. सोवियत संघ को भी अफ़ग़ानिस्तान से निकलना पड़ा. फिर अफ़ग़ानिस्तान में नई लड़ाई शुरू हुई. मुजाहिदीन आपस में लड़ने लगे. पाकिस्तान ने उनको साधने की कोशिश की. वो अफ़ग़ानिस्तान में किंगमेकर की भूमिका हासिल करना चाहता था. बात नहीं बनी तो तालिबान बनाने में मदद की. 1996 में तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा कर लिया. तालिबान सुन्नी इस्लामी गुट है. उसने शिया मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू किया. इससे ईरान नाराज़ हुआ. उसने अहमद शाह मसूद के नॉदर्न अलायंस को सपोर्ट किया. मसूद को भारत का भी साथ मिला.
- फिर 1998 में मज़ार-ए-शरीफ़ में 11 ईरानी नागरिकों की हत्या हो गई. इनमें से 08 डिप्लोमेट्स थे. ईरान ने आरोप तालिबान पर लगाया. अफ़ग़ान बॉर्डर पर 03 लाख की फ़ौज उतार दी. बाद में किसी तरह मामला शांत हुआ. चूंकि तालिबान के पीछे पाकिस्तान था. इसलिए तनाव का असर ईरान के साथ रिश्तों पर भी पड़ा.
- फिर 11 सितंबर 2001 की तारीख़ आई. अमरीका पर आतंकी हमला हुआ. अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान में वॉर ऑन टेरर शुरू किया. तालिबान को सत्ता से हटा दिया. इसमें पाकिस्तान भी शामिल हुआ था. उसको ख़ुद को तालिबान से अलग दिखाना पड़ा. इस घटनाक्रम ने ईरान, पाकिस्तान और अमरीका को एक क़तार में ला दिया. कुछ समय तक ईरान ने वॉर ऑन टेरर को भी सपोर्ट किया. मगर अमरीका के साथ उसकी पुरानी रंज़िश भारी पड़ी. ईरान अलग हो गया.
- वॉर ऑन टेरर खत्म अगस्त 2021 में खत्म हुआ. तालिबान की सत्ता में वापसी हुई. उसने वादा किया कि अपनी ज़मीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा. इस बार भी तालिबान को पाकिस्तान का साथ मिला. मगर ये उसकी भूल थी. मसलन, तालिबान ने तहरीके तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लीडर्स को शरण दी. TTP को पाकिस्तान आतंकी संगठन मानता है. इस गुट ने पाकिस्तान में कई बड़े हमले किए हैं. इसको लेकर पाकिस्तान नाराज़गी जता चुका है. अफ़ग़ानिस्तान में हमले की धमकी भी दे चुका है. मगर अफ़ग़ान तालिबान ने उलटा पाकिस्तान को ही लताड़ दिया.
- तालिबान की वापसी का असर ईरान पर भी पड़ा है. अफ़ग़ानिस्तान के साथ उसकी 972 किलोमीटर लंबी सीमा है. ईरान के चरमपंथी संगठनों को अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षित पनाह मिल रही है. वे अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल लॉन्चिंग पैड की तरह करते हैं. इसको लेकर कई बार झड़प हो चुकी है. इसमें कई ईरानी सैनिकों और तालिबानी लड़ाकों की मौत भी हुई है.
- ईरान जो इल्ज़ाम अफ़ग़ान तालिबान पर लगाता है, उसी आधार पर पाकिस्तान को भी लताड़ता है. आतंकियों को शरण देने का आरोप लगाता है. हालांकि, यहां पर मामला दोतरफ़ा है. पाकिस्तान भी ईरान पर चरमपंथियों को उकसाने का इल्ज़ाम लगाता है. पाकिस्तान और ईरान, दोनों देशों में बड़ी संख्या में बलोच आबादी रहती है. पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत में. जबकि ईरान में सिस्तान-बलूचिस्तान में.
पाकिस्तान वाले हिस्से में बलूचिस्तान लिबरेशन फ़्रंट (BLA), बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच नेशनलिस्ट आर्मी (BNA) और बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) जैसे गुट एक्टिव हैं. पाकिस्तान का आरोप है कि इन्हें ईरान से पैसा और सपोर्ट मिलता है. ईरान वाले हिस्से में जन्दुल्लाह और जैश अल-अदल जैसे गुट काम करते हैं. ईरान का आरोप है कि उनको पाकिस्तान से साथ मिलता है.
जानकार कहते हैं, दोनों देश एक-दूसरे के चरमपंथी गुटों का इस्तेमाल अपने हितों के हिसाब से करते रहे हैं. इसका पुराना इतिहास रहा है. नतीजतन, पाकिस्तान-ईरान के सीमायी इलाकों में हिंसा बढ़ी है.
हाल के कुछ उदाहरणों से समझते हैं;
- जनवरी 2023 में बलूचिस्तान में एक हमले में चार पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गई. तत्कालीन पाक पीएम शहबाज़ शरीफ़ ने ईरान को ध्यान रखने की चेतावनी दी थी.
- अप्रैल 2023 में बलोचिस्तान में क्रॉस-बॉर्डर फ़ायरिंग में पाक फ़ौज के 04 जवान मारे गए. इसके एक महीने बाद बॉर्डर पर हमले में ईरान के 06 सैनिकों की मौत हो गई. ईरान ने पाकिस्तान को वॉर्निंग दी.
- दिसंबर 2023 में ईरान के रस्क में पुलिस पर हमला हुआ. इसमें 11 पुलिसवाले मारे गए. तब ईरान के गृहमंत्री ने पाकिस्तान को जैश अल-अदल पर लगाम लगाने के लिए कहा था.
- और, फिर आई 16 जनवरी 2024 की तारीख़. जब ईरान ने बिना वॉर्निंग दिए पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बमबारी कर दी. ईरान की सरकारी मीडिया के मुताबिक़, हमले में जैश अल-अदल के दो ठिकानों को निशाना बनाया गया. मिसाइलों और ड्रोन्स के ज़रिए. ईरान ने दावा किया कि हमला सफ़ल रहा.
जैश अल-अदल की कहानी क्या है?जैश अल-अदल एक सुन्नी इस्लामी संगठन है. ये ईरान में आत्मघाती धमाकों, किडनैपिंग, हत्या जैसे संगीन अपराधों में शामिल रहा है. अमेरिका के डायरेक्टर ऑफ़ नेशनल इंटेलिजेंस (DNI) की वेबसाइट पर छपी जानकारी के मुताबिक़, इस गुट की शुरुआत 2002 या 2003 में हुई थी. जुन्दल्लाह के नाम से. संस्थापक अब्दुलमलिक रिगी था. उसके विद्रोह का मकसद था, ईरान से आज़ादी. 2010 में रिगी पकड़ा गया. उसको मौत की सज़ा मिली. रिगी की मौत के बाद जुन्दल्लाह अलग-अलग गुटों में बंट गया. इसमें से सबसे पावरफ़ुल गुट बना, जैश अल-अदल. अभी इसका लीडर अब्दुलरहमान मुल्लाहज़ादेह उर्फ़ सलाहुद्दीन फ़ारुकी है. ईरान का दावा है कि इस गुट को अमेरिका, इज़रायल, सऊदी अरब और यूएई से पैसा मिलता है. दिलचस्प ये है कि ईरान के साथ-साथ अमेरिका ने भी जैश अल-अदल को आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है.
बलोचिस्तान में हमले पर पाकिस्तान क्या बोला?उसने हमले की कड़ी निंदा की है. कहा कि ये हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है. इसका अंज़ाम बुरा होगा और पूरी ज़िम्मेदारी ईरान की होगी. आरोप लगाया कि हमले में 02 बच्चों की मौत हुई. जबकि 03 लड़कियां घायल हैं.
पाकिस्तान सरकार ने ईरान के प्रतिनिधि को तलब किया है. राजदूत अभी ईरान में ही हैं. अगली सूचना तक उनके लौटने पर रोक रहेगी. इसके अलावा, पाकिस्तान ने ईरान से अपने राजदूत को वापस बुलाने का फ़ैसला किया है. 17 फ़रवरी को पाक विदेश मंत्रालय ने इसका ऐलान किया.
ईरान सरकार ने अभी तक आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है. हालांकि, सरकारी मीडिया हमले का जमकर प्रचार-प्रसार कर रहा है.
पाकिस्तान पर ईरान के हमले की टाइमिंग बेहद दिलचस्प है. ये ऐसे समय में हुआ है, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अनवारुल हक़ काकर ईरान के विदेश मंत्री अमीर अब्दुल्लाहियान से मीटिंग कर रहे थे.
16 जनवरी को ही पाकिस्तान और ईरान की नौसेना ने संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किया था. इसके अलावा, दोनों देशों के शीर्ष अधिकारियों के बीच कुछ और मीटिंग्स शेड्यूल्ड थीं. इनमें बॉर्डर सिक्योरिटी और दोनों देशों में स्थिरता जैसे मसलों पर बात होनी थी.
और क्या रिएक्शन आए हैं?
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि मैं दुखी हूं. ये हमला दोनों देशों की दोस्ती के लिए धब्बा है. चीन ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है. सुनिए,
ईरान के हमले की वजह क्या है?ईरान पिछले दो दिनों से दूसरे देशों में अटैक कर रहा है. 15 जनवरी को उसने इराक़ और सीरिया में बमबारी की. कहा कि हमले में मोसाद के अड्डों और इस्लामिक स्टेट (IS) को निशाना बनाया गया. सीरिया में तो ईरान के समर्थन वाली सरकार चलती है. वहां के राष्ट्रपति बशर अल-असद को ईरान का सपोर्ट मिला हुआ है. लेकिन इराक़ ने नाराज़गी जताई. उसने ईरान से अपना राजदूत वापस बुला लिया.
सीरिया और इराक़ में ईरान की बमबारी को अमेरिका और इज़रायल के लिए चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल, अमेरिका और इज़रायल पिछले कुछ समय से ईरान-समर्थित गुटों पर हमले कर रहे थे. तब ईरान ने बदला लेने की धमकी दी थी.
हालांकि, पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बमबारी की असली वजह पता नहीं चली है. ईरान बरसों से जैश अल-अदल जैसे संगठनों से परेशान है. वो पाकिस्तान पर इन गुटों को पालने-पोसने के आरोप पहले भी लगाता रहा है. मगर कभी सीमा में घुसकर हमला नहीं किया था.
अब पाकिस्तान क्या कर सकता है?
जानकारों के मुताबिक़, उसके पास 04 बड़े रास्ते हैं,
- पहला, ईरान के साथ डिप्लोमेटिक संबंध तोड़ सकता है.
- दूसरा, डिप्लोमेटिक चैनल्स के ज़रिए विवाद सुधार सकता है.
- तीसरा, ईरान के तर्क से ही ईरान पर हमला कर सकता है. हालांकि, ये जंग का खुला ऐलान होगा. पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और भारत के बॉर्डर पर पहले से जूझ रहा है. वो तीसरा फ़्रंट खोलने की स्थिति में नहीं है. इसलिए, मिलिटरी अटैक
- चौथा रास्ता खुली जंग से होकर जाता है. मगर उसकी आर्थिक स्थिति जंग की इजाज़त नहीं देती.
- पांचवां रास्ता है, ईरान के प्रतिद्वंदियों, मसलन, अमरीका और इज़रायल से दोस्ती बढ़ाए और उनके ज़रिए ईरान पर दबाव डाले. मगर वेस्ट के साथ जाने में दिक़्क़त ये है कि चीन की नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है. यानी, फिलवक़्त पाकिस्तान बड़ी दुविधा में फंस गया है.