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कोक और पेप्सी: लड़ाई जिसने राष्ट्रपति चुनाव से लेकर क्रिकेट के फील्ड तक असर डाला!

कोका-कोला और पेप्सी की लड़ाई अंतरिक्ष तक कैसे पहुंची?

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कोका-कोला और पेप्सी के बीच ‘कोला वॉर’ 70 के दशक चल रहा है, जहां दोनों कंपनियां अपने मार्केटिंग कैंपेन से एक दूसरे को पछाड़ने का मौका ढूंढती रहती हैं. (तस्वीर: Pepsi/Coca-Cola)

दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं. इस एक लाइन ने सोशल मीडिया में कई जंगें शुरू की. कभी कॉफी और चाय पीने वालों में तो कभी एंड्राइड और एप्पल वालों में. आज कहानी एक ऐसी ही जंग की. लेकिन इसे सोशल मीडिया में नहीं लड़ा गया. ये जंग दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति के घर की दहलीज़ से शुरू हुई और अंतरिक्ष तक जा पहुंची. ये जंग थी शक्कर घुले पानी की बोतल पर चस्पा दो नामों के बीच. (Cola wars - Coke vs Pepsi)

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यूं तो दोनों कंपनियों की शुरुआत को तकरीबन 100 साल से ज्यादा हो चुके हैं. लेकिन दोनों के बीच असली जंग शुरू हुई 1970 के दशक में. ये जंग लड़ी गई लोगों के ड्राइंग रूम्स में. टीवी पर. पहला वार पेप्सी ने किया. उन्होंने ‘पेप्सी चेलेंज’ नाम का एक कैम्पेन चलाया. विज्ञापन में आंख में पट्टी बंधे ग्राहकों के सामने पेप्सी और कोका-कोला रखी जाती. उनसे दोनों को टेस्ट करने को कहा जाता. और अधिकतर लोग पेप्सी को प्रिफर करते. (Coke vs Pepsi's advertisements and marketing war)

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Richard Nixon & Nikita Khrushchev
70 के दशक में पेप्सी ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को अपने अंतरराष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर के रूप में नियुक्त किया. पेप्सी चाहता था कि निक्सन किसी भी तरह सोवियत कम्युनिस्ट नेता निकिता ख्रुश्चेव को पेप्सी की एक सिप लेने के लिए मना लें.(तस्वीर: Getty)

कैम्पेन हिट रहा और इसने बाजार में पेप्सी को काफी फेमस कर दिया. अब बारी कोका-कोला की थी. जवाब में उन्होंने ‘न्यू कोक’ नाम का एक प्रोडक्ट निकाला, जो बुरी तरह फेल हुआ. और कंपनी को इसे बंद कर वही पुरानी कोका-कोला वापिस लानी पड़ी. पेप्सी ने इस जीत का जश्न अपने कर्मचारियों को पांच दिन की छुट्टी देकर मनाया. इस दौरान पेप्सी मार्केटिंग में नित नए प्रयोग करती रही और लगातार सफल होती रही. उनकी मार्केटिंग का खास बिंदु था, उनके ब्रांड लोगो का नीला-लाल-सफ़ेद रंग, जो लोगों को अमेरिकी झंडे की याद दिलाता था.

शुरुआती चरण में पेप्सी को जीत मिलता देख कोका कोला ने नए पैंतरे आजमाने शुरू किए. और नतीजा हुआ कि 1980 के दशक में ये जंग स्पेस तक पहुंच गई. साल 1985 की बात है. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा उस साल एक नया स्पेस शटल लॉन्च करने वाले थी. अंतरिक्ष पर वर्चस्व की रेस काफी पुरानी थी, जिसमें अब तक अमेरिका और सोवियत संघ आमने-सामने थे. लेकिन 1985 में नासा के लॉन्च से ठीक पहले दुनिया ने एक नई जंग देखी. कोका-कोला और पेप्सी की जंग.

लड़ाई की वजह क्या थी?

होड़ थी कि कौन सी कोल्ड ड्रिंक स्पेस में पहले जाएगी. दोनों का दावा था कि उन्होंने अपने ड्रिंक में ऐसे बदलाव किए हैं कि उसे अब ‘जीरो ग्रेविटी’ में भी पिया जा सकेगा. कोक के अनुसार इसके लिए उसने ढाई लाख अमेरिकी डॉलर खर्च किए थे. वहीं पेप्सी का कहना था कि उनके डेढ़ करोड़ डॉलर खर्च हुए हैं. अंत में रेस का नतीजा क्या निकला? जीरो..सिफर.. निल बटे सन्नाटा. अंतरिक्ष यात्रियों ने दोनों ही कोल्ड ड्रिंक्स स्पेस में ले जाने से इंकार कर दिया. अंतरिक्ष की दहलीज़ तो दोनों ब्रांड नहीं फांद पाए लेकिन एक दूसरी दहलीज़ तक दोनों के कदम पहुंचे. अमेरिकी राष्ट्रपति के घर वाइट हाउस की दहलीज़.

स्पेस रेस के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने कोका कोला का समर्थन किया था. वजह - 1984 में हुए चुनाव में कोका कोला ने रीगन का समर्थन किया और उनके कैम्पेन को पैसे भी दिए. रीगन से पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर का भी यही हाल था. अपनी चुनावी सभाओं के लिए वे कोका-कोला कम्पनी के विमानों का इस्तेमाल करते थे. इस जंग की गंभीरता ऐसे समझिए कि एक बार जिमी कार्टर ने वाइट हाउस के किसी कर्मचारी को पेप्सी पीते देख लिया. इसके बाद जब तक वो राष्ट्रपति रहे, उन्होंने पेप्सी को वाइट हाउस में इंटर तक न होने दिया. कहानी पीछे एक और राष्ट्रपति तक जाती है. 70 के दशक में राष्ट्रपति रहे रिचर्ड निक्सन पेप्सी के मुरीद थे. इस कदर कि उन्होंने सोवियत संघ के प्रमुख निकिता ख्रुश्चेव को भी इसका दीवाना बना दिया, और पेप्सी सोवियत संघ तक पहुंच गई.

Cola wars - cricket world cup ad
साल 1996 में पहली बार पेप्सी ने क्रिकेट वर्ल्डकप में ऐड निकाला, जोकि काफी पॉपुलर भी हुआ. इसके बाद कोक भी मैदान में उतरा और दोनों के बीच ऐड वॉर  शुरू हो गया. (तस्वीर: ICC)

अब सुनिए कोल्ड ड्रिंक्स की इस जंग का वो किस्सा जब बात अदालत तक पहुंच गई थी. साल 1996 की बात है. उस साल पेप्सी ने एक नया कैम्पेन शुरू किया. इस केम्पेन में पेप्सी खरीदने पर आपको कुछ पॉइंट मिलते थे. जिन्हें इकठ्ठा करके आप टीशर्ट और सनग्लॉस जैसी चीजें जीत सकते थे. जैसा कि आमतौर पर ऐसे विज्ञापनों में होता है, इसमें दिखाया गया कि आप जेट विमान भी जीत सकते हैं. बशर्ते आपके पास 70 लाख पॉइंट्स हों. कम्पनी तो विज्ञापन देकर भूल गई लेकिन एक आदमी ने बात को सीरियसली ले लिया.

ऑफर में जेट विमान जीता  

21 साल के जॉन लेनर्ड तब बिजनेस की पढ़ाई कर रहे थे. उन्होंने हिसाब लगाया कि 70 लाख पॉइंट्स के लिए उन्हें 7 लाख डॉलर खर्च करने होंगे. जबकि जेट विमान की कीमत 3 करोड़ 70 लाख डॉलर थी. उन्होंने 5 निवेशकों की मदद से पैसे जुटाए और कंपनी के पास चेक भेजकर कहा, लाओ हमारा जेट. पेप्सी ने ये कहते हुए इंकार कर दिया कि विज्ञापन में ये बात बस उसे चुटीला बनाने के लिए जोड़ी गई थी. और असली जेट मिलने जैसी कोई स्कीम नहीं थी. 

बस फिर क्या था लेनर्ड मामले को लेकर अदालत पहुंच गए. अंत में अदालत ने फैसला कम्पनी के पक्ष में सुनाया लेकिन इससे पेप्सी को एक सबक जरूर मिल गया. उन्होंने विज्ञापन में बदलाव करते हुए, जेट ने लिए जरूरी पॉइंट्स की संख्या को 70 करोड़ कर दिया. एक दिलचस्प बात ये भी जानिए कि इस केस में लेनर्ड की तरफ से जिस वकील ने मुकदमा लड़ा था, उनका नाम माइकल एवेनाटी था. ये वही एवेनाटी हैं जो हाल ही में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ़ मुक़दमे में पोर्नस्टार स्टॉर्मी डैनिएल्स की तरफ से पेश हुए थे.

भारत की बात करें तो 1990 में आर्थिक उदारीकरण के बाद कोका-कोला ने भारत में दुबारा एंट्री की. भारत में पेप्सी और कोक की जंग शुरू हुई खेलों के मैदान से. 1996 में भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट के वर्ल्ड कप का आयोजन हुआ. कोक चूंकि कई साल बाद भारत में दोबारा एंट्री कर रही थी, लिहाजा क्रिकेट की लोकप्रियता देखते हुए,उन्होंने मौके का फ़ायदा उठाने की सोची. और कोक वर्ल्ड कप की मुख्य स्पॉन्सर बन गई. इस कैम्पेन के लिए कोक ने अच्छा खासा खर्चा किया और नुसरत फ़तेह अली खान की आवाज में एक कैम्पेन गीत भी बनाया. 

Pepsi & Cola Space NASA
1985 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) के स्पेस शटल चैलेंजर के लिए दोनों कंपनियों ने अपने-अपने प्रोडक्ट में बदलाव किये और ड्रिंक्स को जीरो ग्रेविटी में पिये जा सकने के काबिल बनाया लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों ने दोनों ही ड्रिंक्स को नकार दिया. (तस्वीर: Pepsi/Coca-Cola)

पेप्सी भी हालांकि पीछे न थी. उन्होंने हर मैच में जमकर अपने विज्ञापन दिखाए. विज्ञापन की टैग लाइन थी ‘नथिंग ऑफिशियल अबाउट इट.’ जो आधिकारिक स्पांसर कोका-कोला पर एक तंज़ था. इन विज्ञापनों में क्रिकेटर्स को आधिकारिक ड्रिंक पर पेप्सी को तरजीह देते हुए दिखाया गया था. इसके बाद ये लड़ाई पहुंची अगली सदी में. उस दौर के पेप्सी और कोक के एड शायद याद होंगे आपको. पेप्सी जहां सचिन और शाहरुख की शोहरत को भुना रही थी. वहीं कोका-कोला ने आमिर खान को अपना चेहरा बनाया था. आमिर का ठंडा मतलब कोका-कोला बहुत ही हिट हुआ था. और बाद में जब कोक ने 5 रूपये वाली छोटी बोतल रिलीज़ की तो आमिर ने इसके कई दिलचस्प विज्ञापन किए थे,  जो आज भी यूट्यूब पर देखे जाते हैं.

इस लड़ाई का नतीजा क्या रहा?

महज कोल्ड ड्रिंक की बार करें तो तमाम लड़ाइयों के बाद वर्तमान में कोका-कोला ने पेप्सी को मात दे दी है. कोल्ड ड्रिंक्स के मार्केट में कोका-कोला का 48% हिस्सा है, वहीं पेप्सी 20% की हिस्सेदार है. हालांकि इस आंकड़े में एक पेंच है. कोल्ड ड्रिंक्स की लड़ाई में चाहे पेप्सी हारी हो. लेकिन मुनाफे के खेल में नहीं. 2006 में पेप्सी की कमान भारतीय मूल की इंदिरा नूयी ने संभाल ली थी. नूयी जानती थी कि लोगों के जागरूक होने के साथ कोल्ड ड्रिंक्स का मार्केट कमजोर होता जाएगा, इलसिए उन्होंने जूस, बोतल बंद पानी, आलू चिप्स आदि में निवेश किया.

आज पेप्सी की कमाई कोल्ड ड्रिंक के बजाय इन उत्पादों से ज्यादा होती है. दोनों कंपनिया आज भी एक दूसरे को टक्कर दे रहीं है. और दोनों का माल खूब ख़रीदा-बेचा जा रहा है. अंत में समझिए कि आगे इन कंपनियों से चाहे जो जीते, एक बात सच है. इसे अमेरिका की खूबी कहिए या कारस्तानी लेकिन उसने पूरी दुनिया को बोतल में बंद शक्कर के पानी का दीवाना बना दिया. इस कदर दीवाना कि पूरी दुनिया में मात्र दो देश हैं, जिनमें कोका-कोला नहीं मिलती. नार्थ कोरिया और क्यूबा.

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