26/11 के मुंबई हमले की साज़िश में शामिल तहव्वुर राणा भारत आने वाला है. 16 मई 2023 को अमेरिका की एक अदालत ने उसके प्रत्यर्पण पर हरी झंडी दिखा दी. नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) पिछले 15 बरसों से उसे भारत लाने की कोशिश कर रही है. इस वक़्त राणा अमेरिका में सज़ा काट रहा है. दो अलग मामलों में.
26/11 हमले का ज़िम्मेदार पाक डॉक्टर भारत आएगा?
राणा 26/11 मुंबई हमलों का आरोपी है

NIA को उसकी तलाश मुंबई अटैक केस में है.
26 नवंबर 2008 को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई मेंआतंकी हमलों का सिलसिला शुरू हुआ था. पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने 60 घंटों तक पूरे मुल्क को सदमे में डाले रखा. कई अहम ठिकानों पर हमले किए. 166 लोगों की हत्या की. बाद में NSG कमांडोज को बुलाना पड़ा. पुलिस और कमांडोज़ की कार्रवाई में 09 आतंकी मारे गए. एक ज़िंदा पकड़ा गया. अज़मल आमिर कसाब. उसको नवंबर 2012 में पुणे की यरवदा जेल में फांसी दे दी गई. होने को तो कहानी यहीं पर खत्म हो सकती थी. लेकिन मोहरों को मात देकर गेम खत्म नहीं किए जाते.
मुंबई हमले के असली गुनहगार, जो परदे के पीछे बैठकर सारी चालें कंट्रोल कर रहे थे, उनका कहीं अता-पता नहीं था. कोई पाकिस्तान, कोई नेपाल तो कोई अमेरिका में छिपा बैठा था. उन्हें कटघरे में खड़ा करने के लिए भारतीय एजेंसियां आज भी मेहनत कर रही हैं. इसी क्रम में अब तहव्वुर राणा उनके हाथ लगा है. आरोप हैं कि राणा को हमले की साज़िश के बारे में पहले से पता था. सारी प्लानिंग उसकी नज़रों के सामने हुई थी. उसने टारगेट की रेकी भी की थी. हालांकि, उसका परिचय यहीं पर ख़त्म नहीं होता. वो पाकिस्तान की सेना में डॉक्टर के तौर पर काम कर चुका है. और, तहव्वुर राणा मुंबई हमलों के सबसे संगीन किरदार का लंगोटिया दोस्त भी था और उसी दोस्त ने उसका खेल बिगाड़ दिया. कौन था वो? ये आगे बताएंगे.
तो आइए जानते हैं,

- मुंबई हमले में तहव्वुर राणा की भूमिका क्या थी?
- और, हमले के बाकी साज़िशकर्ताओं का क्या हुआ और अभी वे कहां हैं?
तारीख़, 09 अक्टूबर 2009. शिकागो के ओ’हेयर इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर एक शख़्स जल्दबाजी में था. उसे इस्लामाबाद की फ़्लाइट पकड़नी थी. वो पहले भी कई मौकों पर पाकिस्तान जा चुका था. लेकिन इस बार उसके चेहरे पर खौफ़ साफ़ नज़र आ रहा था. उसका खौफ़ उस वक़्त सच हो गया, जब FBI एजेंट्स ने उसे बोर्डिंग से पहले ही अरेस्ट कर लिया. उस पर FBI की नज़र बहुत पहले से थी. वजह, आतंकी संगठनों से उसका कनेक्शन.
पकड़े गए शख़्स की एक पुरानी आदत थी. जब भी किसी मुश्किल परिस्थिति में फंसता, वो तोते की तरह अपनी ज़ुबान खोल देता था. और, सरकारी गवाह बनकर अपनी सज़ा कम करवा लेता. उसका नाम था, डेविड कोलमैन हेडली. जिसे एक समय तक उसके करीबी दाऊद गिलानी के नाम से जानते थे. दाऊद गिलानी, डेविडे कोलमैन हेडली कैसे बना? ये कहानी भी बताएंगे.
फिलहाल FBI की पूछताछ पर फ़ोकस रखते हैं.
हेडली ने FBI के सामने भी अपनी पुरानी तरकीब अपनाई थी. उसने मुंबई समेत कई आतंकी हमलों में अपनी संलिप्तता स्वीकार ली. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI, लश्कर-ए-तैयबा और अलकायदा के अंदर की ख़बरें बताई. मगर FBI इतने से ही संतुष्ट नहीं थी. ऊपर से उसके ऊपर प्रत्यर्पण और मौत की सज़ा का ख़तरा मंडरा रहा था. इससे बचने के लिए वो बोला, मैं आपको नाम बताता हूं. मुझे बचा लो. मैं गवाही दूंगा.
जो नाम उसने लिया, वो उसके बचपन का सबसे ख़ास दोस्त था. नाम, तहव्वुर हुसैन राणा. दोनों का परिवार रसूखदार था. दोनों ने पाकिस्तानी पंजाब के एक ही मिलिटरी कॉलेज से पढ़ाई की थी. उनके बीच याराना हुआ. कॉलेज की दोस्ती आगे भी कायम रही. जब हेडली हेरोइन के साथ पकड़ा गया, तब राणा ने अपना घर गिरवी रखकर उसे ज़मानत दिलवाई थी. मगर हेडली ने अपनी जान बचाने के लिए अपने दोस्त की क़ुर्बानी देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई. आगे चलकर वो राणा के केस का सबसे बड़ा गवाह बना. राणा पर तीन मुख्य आरोपों में मुकदमा चला.
पहला, डेनिश अख़बार के दफ़्तर पर आतंकी हमले में सहायता दी.
दूसरा, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को सपोर्ट दिया.
तीसरा, मुंबई हमले की साज़िश रचने में मदद की.
जून 2011 में शिकागो की एक अदालत ने राणा को तीसरे आरोप में बरी कर दिया. लेकिन पहले और दूसरे आरोप में उसको दोषी करार दिया गया. 2013 में उसे 14 बरस की सज़ा सुनाई गई. 2020 में वो कोविड पॉजिटिव हो गया. तब उसे जेल से रिहा कर दिया गया.
भारत इससे खुश नहीं था. NIA ने कहा कि हमारे पास राणा के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं. उसे भारत भेजा जाए. हम उसे अपने हिसाब से सज़ा देंगे.
रिहाई के तुरंत बाद भारत सरकार ने राणा के प्रत्यर्पण की याचिका लगाई. भारत की याचिका के बाद राणा को फिर से अरेस्ट कर लिया गया. अब जाकर उसके प्रत्यर्पण पर अदालत का फ़ैसला आया है. कोर्ट ने कहा, राणा भारत में हत्या, आतंकी साज़िश रचने और आतंकी गतिविधियां करने का आरोपी है. ये दोनों देशों के बीच हुई प्रत्यर्पण संधि में फ़िट बैठता है. इसलिए, उसे भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है.
कोर्ट ने तो तहव्वुर राणा को भारत भेजने पर मुहर लगा दी. लेकिन अभी एक पेच बाकी है. उसके प्रत्यर्पण पर अंतिम फ़ैसला अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन लेंगे. जब तक वो हामी नहीं भरते. तब तक वो अमेरिका की हिरासत में ही रहेगा.
ये तो हुई तहव्वुर राणा की हालिया स्थिति. अब उसका इतिहास भी जान लेते हैं.
राणा जनवरी 1962 में पाकिस्तान के साहीवाल में पैदा हुआ था. उसने मेडिकल की डिग्री ली. फिर पाकिस्तान आर्मी की मेडिकल कोर में नौकरी पकड़ ली. उसकी पत्नी भी डॉक्टर थी. 1997 में दोनों पति-पत्नी कनाडा शिफ़्ट हो गए. 2001 में उन्हें नागरिकता मिल गई. कनाडा में राणा ने कई बिजनेस शुरू किया. उसका फ़ोकस इमिग्रेशन सर्विस और ट्रैवल एजेंसी पर था.
2006 में रिचर्ड हेडली ने उसे मुंबई में इमिग्रेशन फ़र्म शुरू करने की सलाह दी. इसी सिलसिले में दोनों कई बार मुंबई आए. जांच एजेंसियों का कहना है कि ये फ़र्म आतंकी हमले की रेकी का झांसा देने के लिए खोला गया था. हेडली ने अपनी गवाही में इसकी पुष्टि की है. हेडली ने कहा था कि उसने राणा को पूरे प्लान के बारे में बताया था. राणा की सलाह पर ही उसने अपना नाम बदला. उसने अपनी भारत-यात्रा का मकसद बताने में भी हेरफेर की. ये भारत का वीजा लगवाने के लिए किया गया था. जैसा कि हमने पहले भी बताया, डेविड हेडली 2006 से पहले तक दाऊद गिलानी के नाम से जाना जाता था. उसके पिता सैयद सलीम गिलानी पाकिस्तान के रहने वाले थे. पेशेवर तौर पर ब्रॉडकास्टर थे. वॉशिंगटन डीसी में पाकिस्तानी दूतावास की एक पार्टी में उनकी मुलाक़ात सेरिल हेडली से हुई. दोनों को एक-दूसरे का साथ रास आया. कुछ समय बाद उन्होंने शादी कर ली. फिर 1960 में उनके घर लड़के का जन्म हुआ. जिसका नाम उन्होंने रखा, दाऊद.
दाऊद की पैदाइश के कुछ समय बाद ही सैयद और सेरिल पाकिस्तान आ गए. लेकिन उनका रिश्ता जमा नहीं. कुछ समय बाद ही उनका तलाक हो गया. दाऊद पिता के पास ही रह गया. पिता ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेली मां के साथ उसके रिश्ते ठीक नहीं थे. इसी वजह से उसे अक्सर घर से दूर रखा गया. उसे रेसिडेंशियल स्कूलों में पढ़ने के लिए भेज दिया गया.
बाद में दाऊद को मिलिटरी स्कूल में दाखिला मिला. यहीं पर उसके दिमाग में भारत के ख़िलाफ़ ज़हर का बीज भरा गया था. नवंबर 2011 में फ़्रंटलाइन के लिए अज़मत ख़ान ने लिखा है,
‘गिलानी ने पाकिस्तान मिलिटरी के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई की. वहां की टेक्स्टबुक्स पाकिस्तान के लिए बलिदान देने और भारत के प्रति शत्रुता की भावना बढ़ाने के लिए कुख्यात थीं. हेडली ने बाद में माना भी कि मुंबई हमलों के ज़रिए उसने भारत के हमले का बदला लिया था. उसके मुताबिक, 1971 के युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना ने उसके स्कूल पर बमबारी की थी.’
दाऊद जब तक 17 बरस का हुआ, तब तक उसका पिता और सौतेली मां के साथ झगड़ा बढ़ गया था. फिर वो अपनी मां के पास रहने अमेरिका चला गया. वहां उसकी मां पब चलाती थी. दाऊद ने कुछ समय वहां काम किया. वहीं पर उसकी मुलाक़ात कुछ नशेड़ियों से हुई. वे अक्सर आपस में पाकिस्तान का ज़िक्र किया करते थे. दाऊद तब तक नशे का आदी हो चुका था. उसने सोचा कि पाकिस्तान से ड्रग्स लाकर बढ़िया फायदा कमाया जा सकता है. 1984 में उसने पहली बार कोशिश भी की. लेकिन उसे पाकिस्तान में ही पकड़ लिया गया. यहां पर उसका एक टैलेंट काम आया. वो लोगों को बहलाने में माहिर था. पाकिस्तानी अधिकारियों को उसने आसानी से अपने पाले में कर लिया और आसानी से छूट गया. आगे चलकर ये उसका ट्रेडमार्क हथियार बन गया.
मसलन, 1988 में उसे अमेरिका में ड्रग एन्फ़ोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (DEA) ने दो किलो हेरोइन के साथ पकड़ा. 09 साल की सज़ा हुई. उसने मुखबिर बनने का ऑफ़र दिया. 04 साल में ही छूट गया.
1997 में उसे फिर से हेरोइन के साथ पकड़ा गया. फिर सज़ा हुई. वो फिर से मुखबिर बना. फिर से उसकी सज़ा कम हो गई.
फिर आया 2001 का साल. 11 सितंबर को अमेरिका पर बड़ा हमला हुआ. लगभग तीन हज़ार लोग मारे गए. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पूरी दुनिया में आतंकियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन चलाया. इसी दौरान दाऊद गिलानी ने DEA का साथ छोड़कर आतंकियों की मुखबिरी करने का फ़ैसला किया. उसने लश्कर-ए-तैयबा में घुसपैठ की. लेकिन बहुत जल्द वो ख़ुद रैडिक्लाइज़ हो चुका था. लश्कर में उसकी मुलाक़ात साजिद मीर से हुई. 2005 में साजिद मीर ने दाऊद को भारत जाने का ऑफ़र दिया. तब दाऊद गिलानी ने अपने बचपन के दोस्त तहव्वुर राणा से संपर्क किया. उसकी सलाह पर उसने अपना नाम बदलकर रिचर्ड कोलमैन हेडली कर लिया. फिर दोनों भारत आए. राणा भारत के कई हिस्सों में घूमा. उन दोनों ने फ़िल्मकार महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट को फ़िल्मों में लॉन्च करने का ऑफ़र भी दिया था. हेडली और राहुल भट्ट ने साथ में लगभग एक हज़ार घंटे बिताए थे. ये दोस्ती तब टूटी, जब मुंबई हमला हुआ और उसमें हेडली के शामिल होने की ख़बर बाहर आई.
अरेस्ट होने के बाद हेडली के सारे दरवाज़े बंद हो चुके थे. तब उसने अमेरिकी सरकार के साथ डील कर ली. इसके एवज में उसने तहव्वुर राणा का नाम लिया. अलग-अलग आतंकी हमलों में उसकी भूमिका बताई. उसने राणा के ख़िलाफ़ गवाही भी दी. इसी के आधार पर राणा को एक डेनिश अख़बार के दफ़्तर पर हमले की साज़िश रचने का दोषी करार दिया गया था. इस अख़बार ने 2005 में पैगंबर मोहम्मद पर विवादित कार्टून्स छापे थे.
राणा के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि हेडली बहुत बड़ा झूठा है. उसने पूरी उम्र यही काम किया है. उसके ऊपर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया.
डेविड हेडली को 2013 में 35 बरस की जेल की सज़ा सुनाई गई. सरकार उसको भी भारत लाने के लिए काम कर रही है.
हालांकि, साज़िशकर्ताओं की कहानी तहव्वुर राणा और डेविड हेडली तक ही सीमित नहीं है. कुछ और भी नाम हैं. उनके बारे में भी जान लीजिए.
हाफ़िज़ सईद को मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड बताया जाता है. वो लश्कर-ए-तैयबा और जमात उद दावा का सरगना है. 26/11 का हमला करने वाले लश्कर के ही सदस्य थे.
हाफ़िज़ सईद अब कहां है?

अप्रैल 2022 में उसे पाकिस्तान की एक अदालत ने 31 साल की जेल की सजा सुनाई थी. उससे पहले साल 2020 में उसे अलग-अलग केसों में 15 साल की सज़ा सुनाई गई थी. साल 2022 में कोर्ट ने उनकी सारी संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया था और उसपर लगभग साढ़े 3 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था.
अमेरिका ने उसके ऊपर लगभग 82 करोड़ रुपये का इनाम रखा है.
साजिद मीर को मुंबई हमलों का प्रोजेक्ट मैनेजर कहा जाता है. जानकार बताते हैं कि हमले की प्लानिंग में उसकी बड़ी भूमिका थी. बकौल FBI, हमले के पहले की सारी तैयारियां साजिद मीर ने ही की थीं. हमले के वक्त वो पाकिस्तान में मौजूद था. साजिद न केवल भारत बल्कि अमेरिका और पाकिस्तान में भी वांटेड है. अमेरिका ने तो उसपर लगभग 41 करोड़ रुपये का इनाम भी रखा हुआ है. जून 2022 में पाकिस्तान की एंटी-टेररिज्म कोर्ट ने उसको टेरर फंडिंग केस में 15 साल की सज़ा सुनाई थी. भारत और अमेरिका साजिद मीर को प्रतिबंधित करने के लिए यूएन में प्रस्ताव लाते रहे हैं. लेकिन चीन उनके प्रस्ताव पर वीटो कर देता है.

लखवी लश्कर-ए-तैयबा का ऑपरेशनल कमांडर था. उजनवरी 2021 में उसे पाकिस्तान की एक अदालत में दोषी ठहराया था. उसपर आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए पैसा इकठ्ठा करने का आरोप था. फिलहाल वो पाकिस्तान की जेल में बंद है.
इस लिस्ट में एक दिलचस्प नाम मेजर इक़बाल का है.डेविड हेडली ने गवाही के दौरान कई बार मेजर इक़बाल का नाम लिया था. बकौल हेडली, इक़बाल ISI का अफ़सर था. वही हेडली का हैंडलर था. उसने मुंबई हमले में शामिल आतंकियों को मदद भी मुहैया कराई थी.
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