ये फिल्म की कहानी तो है लेकिन वाकई फिल्मी नहीं है. ये सच्चाई है, पंडित रविशंकर और उनकी पहली पत्नी अन्नपूर्णा देवी के जीवन की. हालांकि फिल्म में सुबीर और उमा बाद में मिल जाते हैं, असल में रविशंकर और अन्नपूर्णा का तलाक हो जाता है.

पंडित रविशंकर, अन्नपूर्णा के साथ
अन्नपूर्णा देवी को उस्ताद अलाउद्दीन खां ने साक्षात सरस्वती कहा था
अन्नपूर्णा देवी, उस्ताद अलाउद्दीन खां की बेटी थीं. एक बार अन्नपूर्णा के भाई अली अकबर रियाज कर रहे थे. नौ दस बरस की अन्नपूर्णा वहां खेल रही थीं. अचानक वो भाई के कमरे में दाखिल हो गईं और बोला कि भाईजान आप ये गलत सुर लगा रहे हैं. अब्बाजान ने इस तरह सिखाया था. वो वहीं बैठ गईं. और जैसा उस्ताद अलाउद्दीन खां ने सिखाया था, बिल्कुल वैसा ही गाने लगीं.
उनके भाई उनका मुंह तकते रहे. क्योंकि अब्बा ने अन्नपूर्णा को इसकी तालीम दी ही नहीं थी. अन्नपूर्णा गाने में मगन थीं, उन्हें ये भी नहीं पता चला कि पीछे खड़े उनके अब्बाजान भी ये सब देख रहे हैं. गाना खत्म कर जब वो उठीं तो उस्ताद अलाउद्दीन ने उन्हें डांटा नहीं बल्कि प्यार से पास बुलाकर कहा कि तुम संगीत से प्यार है, मैं तुम्हें भी इसकी तालीम दूंगा.

पिता अलाउद्दीन खां के साथ अन्नपूर्णा
मध्यप्रदेश के मैहर में उस्ताद ने अपने बेटे और बेटी को तालीम देना शुरू कर दिया. उस्ताद अन्नपूर्णा की प्रतिभा देखकर मंत्रमुग्ध थे. उन्होंने अन्नपूर्णा को सुझाव दिया कि अब उन्हें सितार छोड़कर सुरबहार पर रियाज करना शुरू कर देना चाहिए. सुरबहार, सितार का ही बेहतर रूप होता है. ये सितार से भारी होता है और सीखने में मुश्किल होता है.
उस्ताद ने उनसे बोला कि सुरबहार सीखना कड़ी साधना है, तुम्हें बहुत ज्यादा मेहनत करनी पडे़गी. ये पॉपुलर संगीत नहीं है. हो सकता है, लोगों को ये संगीत समझ ही न आए और वो तुम पर टमाटर फेंकने लगें. तो तुम्हें इन सबके लिए तैयार रहना पड़ेगा. बोलो अब, सीखना है सुरबहार? अन्नपूर्णा ने सिर झुकाकर कहा कि मैं आपके आदेश का पालन करूंगी.
उस्ताद अलाउद्दीन ने अन्नपूर्णा की तारीफ करते हुए कहा था,
'अगर मुझे, अली अकबर को एक तरफ रख दिया जाए, और अन्नपूर्णा को दूसरी तरफ तो उसके संगीत का ही पलड़ा भारी रहेगा.'उस्ताद अलाउद्दीन के साथ रियाज करतीं अन्नपूर्णा देवी का रेयर वीडियो:
https://youtu.be/GiC66wK4nLI
पंडित रविशंकर और अन्नपूर्णा के मिलने की कहानी भी रोचक है
मैहर के आश्रम में रवीन्द्र शंकर संगीत की तालीम लेने आए थे. (उन्होंने 1942 में अपना बदलकर रविशंकर कर लिया था). उस्ताद अलाउद्दीन की सोहबत में वो सितार सीख रहे थे. अन्नपूर्णा उस वक्त 13 साल की थीं. रविशंकर के बड़े भाई उदयशंकर, जो कि उस वक्त के बड़े डांसर थे, ने अन्नपूर्णा को रवि के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उस्ताद से इस बारे में बात की. दोनों ने ही शादी के लिए हां कर दी. 1941 में शादी के बाद अन्नपूर्णा हिंदू हो गईं.

उस्ताद अलाउद्दीन और अकबर अली के साथ पंडित रविशंकर
दोनों साथ में परफॉर्मेंस देने लगे. लेकिन पब्लिक लाइफ संभाल न पाने की वजह से दोनों के बीच कड़वाहट बढ़ने लगी. अन्नपूर्णा अपनी शादी की पूरी कोशिश कर रही थीं. लेकिन रविशंकर की जिंदगी में कोई और महिला आ चुकी थी. ऐसे ही एक रोज लंबी लड़ाई के बाद 1956 में अन्नपूर्णा ने अपने उस्ताद और मां सरस्वती के सामने कसम खा ली कि अब वो कभी पब्लिक परफॉर्मेंस नहीं देंगी.
दोनों को एक बेटा भी हुआ. उसका नाम रखा गया, शुभेंद्र शंकर. वो पैदा होने के 8 महीने बाद ही काफी बीमार रहने लगा. दोनों के इस लड़ाई-झगड़े में बच्चे का ज्यादा ध्यान नहीं रखा गया. वो ठीक तो हो गया लेकिन पूरी तरह से नहीं. थोड़ा बड़ा होने पर उसे भी सितार और नृत्य की तालीम दी जाने लगी. लेकिन शुभेंद्र ने 1992 में दुनिया को अलविदा कह दिया.

शुभेंद्र शंकर
रविशंकर के स्टूडेंट मदनलाल व्यास ने बताया था कि,
'कॉन्सर्ट के बाद लोग रविशंकर से ज्यादा अन्नपूर्णा के पास इकट्ठा हो जाते थे. ये बात पंडित जी को बर्दाश्त नहीं होती थी. पंडित जी उनके सामने कहीं खड़े नहीं होते थे. वो जीनियस थीं. यहां तक कि खुद उस्ताद ने उन्हें साक्षात सरस्वती बुलाया था. अब इससे बड़ी तारीफ क्या हो सकती है.'अन्नपूर्णा ने खुद भी एक इंटरव्यू में बोला था कि पंडित जी को मुझे मिलने वाली तारीफों से दिक्कत होती थी. उन्होंने ये बात कई बार साफ तौर पर कही थी. रविशंकर उन्हें छोड़कर अमेरिका चले गए और बाद में वहीं सुकन्या राजन से शादी कर ली. अन्नपूर्णा ने भी अपने एक स्टूडेंट रूषिकुमार पांड्या के साथ 1982 में शादी कर ली. रवि और वो आखिरी बार 1988 में मिले थे.

अपनी दूसरी पत्नी और बेटी अनुष्का के साथ पंडित रविशंकर
अभी कहां हैं अन्नपूर्णा देवी?
वो अभी मुंबई में अपने अपार्टमेंट में रहती हैं. रविशंकर और पांड्या के अलावा उन्हें किसी ने भी गाते हुए नहीं सुना. बस एक इंसान के अलावा. इंग्लैंड के मशहूर बीटल्स बैंड के जॉर्ज हैरिसन के. जॉर्ज को ये दिव्य मौका ऐसे ही नहीं मिल गया था. दरअसल जॉर्ज भारत-भ्रमण पर आए थे.
उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनकी मेजबान थी. उन्होंने उनसे पूछा कि अगर वो उनके लिए कुछ कर सकती हों तो. जॉर्ज ने मौके पर चौका मारते हुए कहा कि क्या हम अन्नपूर्णा देवी का गाना सुन सकते हैं?ये इंदिरा के लिए मुश्किल काम था. उन्होंने अन्नपूर्णा देवी से कई बार अनुरोध किया. इंदिरा का मान रखते हुए उन्होंने जॉर्ज के सामने सुरबहार बजाया.
अन्नपूर्णा अभी सुरबहार, सितार और संगीत सीखने की चाह रखने वालों को घर पर ही तालीम देती हैं. उनकी छत्रछाया में भारत को बड़े-बड़े संगीत के धुरंधर मिले हैं. निखिल बनर्जी, हरिप्रसाद चौरसिया, नित्यानंद, अमित रॉय. ऐसे ही कई और नाम.
पंडित रविशंकर ने भारत का नाम दुनिया भर में फैलाया है लेकिन अन्नपूर्णा देवी का संगीत कार्यक्रमों से मुंह मोड़ लेने भारत के संगीत जगत को बड़ा नुकसान हुआ है. जिसकी भरपाई अब नहीं हो सकती.
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