18 अक्टूबर 2023 को जब सौम्या विश्वनाथन के केस आरोपियों को दोषी करार दिया गया, तो कोर्ट रूम में सौम्या की मां माधवी विश्वनाथन और एमके विश्वनाथन मौजूद थे. कोर्टरूम से बाहर आए, तो बूढ़े मां-बाप के चेहरे पर एक संतोष था. उनकी बेटी को न्याय मिलेगा. दोषी सजा पाएंगे. कोर्ट के ऑर्डर के बाद दोषियों के वकील भी मीडिया के कैमरे पर आए. वकील अमित कुमार ने कहा कि इस केस को वो चैलेंज करेंगे.
सौम्या विश्वनाथन हत्याकांड: न्याय मिलने में 15 साल क्यों लग गए?
सौम्या विश्वनाथन के केस में न्याय मिला तो है लेकिन 14-15 सालों की मशक्कत और काफी इंतजार के बाद.

न्याय आया तो है लेकिन 14-15 सालों के इंतजार के बाद आया है. बहुत मशक्कत और बहुत देर हुई. क्यों हुआ ऐसा? इसको समझने के लिए पहले सौम्या विश्वनाथन की हत्या की कहानी को समझना होगा.
25 साल की सौम्या विश्वनाथन हेडलाइंस टुडे में बतौर प्रोड्यूसर काम करती थी. हेडलाइंस टुडे वही चैनल है, जिसका नाम बाद में बदलकर इंडिया टुडे टीवी कर दिया गया. इस चैनल में सौम्या का काम था क्राइम की खबरों को प्रोड्यूस करना. प्रोड्यूस करने का मतलब समझिए - कोई भी व्यक्ति स्क्रीन पर आकर आपके सामने खबरें पढ़ रहा है, तो उसके पीछे एक प्रोड्यूसर होता है. वो प्रोड्यूसर एक पूरे पैकेज की रीसर्च करता है, उसे लिखता है और एंकर जब उसे स्क्रीन पर पढ़ लेता है तो प्रोड्यूसर उसे एडिट कराता है. सजाधजाकर दर्शकों के सामने प्रेजेंट करने लायक बनाता है.
तो सौम्या भी यही काम करती थी. वो दोपहर में 3 बजे हेडलाइंस टुडे के ऑफिस आती, और रात में 12 बजे अपनी शिफ्ट पूरी करके निकल जाती. कभी वो ऑफिस कंपनी की कैब से आती, तो कभी अपनी सफेद रंग की मारुति ज़ेन कार से.
कैलेंडर में तारीख लगी 29 सितंबर 2008. सोमवार का दिन. सौम्या दोपहर 3 बजे दफ्तर आ गई. कुछ देर बाद देश में आतंकवादी हमले होने वाले थे. घड़ी में साढ़े 9 बजे. देश के दो राज्यों में बम धमाके शुरू हुए. गुजरात के मोदासा में एक धमाका हुआ, और महाराष्ट्र के मालेगांव में दो धमाके हुए. देखते-देखते 10 लोगों की लाशें गिर गईं और 80 से ज्यादा लोग घायल हो गए.
इसके कुछ दिनों पहले ही 15 सितंबर को गुजरात के अहमदाबाद में एक के बाद एक 17 बम धमाके हुए थे और 30 लोग मारे गए थे. ये वो साल था जब देश के अलग-अलग राज्यों में मई से लेकर सितंबर तक बेतहाशा आतंकी हमले हो रहे थे. दिल्ली, बेंगलुरू, अहमदाबाद, जयपुर कुछ ऐसे बड़े शहर थे, जहां आतंकियों ने बाइक में, कुकर में, बैग में, साइकिल में और कई सारे तरीकों से बम छुपाकर धमाके किये थे. कई लोगों की जान ले ली थी.
तो जब ये 29 सितंबर को ब्लास्ट की खबर आई, तो सुरक्षा एजेंसियां एक्टिव हो गईं. और ब्लास्ट के थोड़ी देर बाद ही एक और खबर आई - अहमदाबाद में पुलिस को 17 जिंदा बम बरामद हुए. ये बम फट जाते तो शायद सैकड़ों लोगों की जान और जाती. लेकिन बमरोधी दस्ते ने इन बमों को समय रहते डिफ्यूज़ कर दिया. इधर सौम्या के न्यूज़रूम में हलचल मची हुई थी. पत्रकार इधर से उधर भाग रहे थे. बहुत सारी स्टोरी आ रही थीं. टीवी पर लगातार आतंकी हमलों का कवरेज लाइव चल रहा था. सौम्या को सांस तक लेने की फुरसत नहीं थी. सौम्या जो अपना काम रात को 12 बजे तक खत्म करके घर चली जाती थी, वो रात ढाई बजे तक फ्री नहीं हो पाई थी. कैलेंडर में तारीख 30 सितंबर की लग गई थी. उस रात सौम्या के साथ वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर शम्स ताहिर खान भी लगातार काम कर रहे थे.
न्यूज़रूम में स्टोरी का फ़्लो थोड़ा शांत हुआ. सौम्या ने अपना काम समेटा और आखिरकार रात 3 बजे घर जाने के लिए अपनी कार की चाभी और दूसरे सामान उठाए. रात 3 बजकर 2 मिनट पर उन्होंने ऑफिस से पंच आउट किया. लिफ्ट से पार्किंग तक गई. कार में चाभी लगाई. जब उन्होंने कार में चाभी लगाई, तभी पीछे से पार्किंग में कैफे चलाने वाले एक बंदे ने सौम्या को आवाज दी. उसके कुछ पैसे सौम्या के पास बाकी थे. सौम्या ने उसकी आवाज सुनते ही पर्स से पैसा निकालकर सौंप दिया. और कार में बैठकर पार्किंग से निकल गई.
सौम्या की गाड़ी दफ्तर से घर की ओर चल निकली. चूंकि रात के 3 बजे से ज्यादा का वक्त हो रहा था, लिहाजा सड़क खाली हो गई थी. दिल्ली का चिरपरिचित ट्रैफिक सड़क पर नहीं था. सौम्या बिना किसी रोकटोक के आराम से चली जा रही थी. रात 3 बजकर 32 मिनट पर सौम्या ने अपने मोबाइल से अपने पापा एमके विश्वनाथन को फोन किया. पापा से बताया कि वो वसंत कुंज के नेल्सन मंडेला रोड तक पहुंच गई है. अगले 5 मिनट में वो घर पहुंच जाएगी.
इतना कहकर सौम्या ने फोन काट दिया. लेकिन सौम्या घर नहीं पहुंची. रात 3 बजकर 40 मिनट के आसपास लोगों ने उसी नेल्सन मंडेला रोड पर डिवाइडर के पास एक कार पलटी हुई देखी. कार वही थी - सफेद रंग की मारुति ज़ेन. लोगों ने ड्राइवर की सीट पर देखा तो सौम्या पड़ी हुई थीं. उनके सिर से बहुत सारा खून बह रहा था. तुरंत पुलिस को 100 नंबर पर कॉल करके सूचित किया गया. पुलिस आई, सौम्या को AIIMS लेकर गई. लेकिन AIIMS पहुंचने में देर हो चुकी थी. डॉक्टरों ने सौम्या को मृत घोषित कर दिया.
सौम्या के टीममेट और परिजन अस्पताल पहुंच चुके थे. सब इस घटना से स्तब्ध थे. सौम्या जो कुछ देर पहले आतंकी हमले की घटनाओं को फटाफट ट्रीट करके लाइव फ़ीड पर भेज रही थी, वो नहीं रही थी. सब अब सुबह 11 बजे का इंतजार कर रहे थे. 11 बजे सौम्या की डेडबॉडी का पोस्टमॉर्टम होना था.
समय बीता. डॉक्टर आए. पोस्टमॉर्टम शुरू हुआ. लगभग आधे घंटे बाद यानी सुबह साढ़े 11 बजे के आसपास पोस्टमॉर्टम की पहली रिपोर्ट सामने आई. ये रिपोर्ट देखकर सबके होश उड़ गए. सौम्या के सिर के पीछे के हिस्से में गोली धंसी हुई मिली थी. सौम्या का कत्ल किया गया था. उनका एक्सीडेंट नहीं हुआ था. पुलिस ने FIR में अनजान लोगों के खिलाफ धारा 302 - यानी हत्या करने की धारा जोड़ी. अब जांच की दिशा बदल चुकी थी. जानकार बताते हैं कि हत्या की बात सामने आते ही दिल्ली पुलिस ने 4 एंगल से केस की जांच शुरू कर दी.
पहला - क्या ये रोड रेज का केस था? ऐसे केस दिल्ली में आम हैं. जहां दो गाड़ी चलाने वालों ने तैश में आकर एक दूसरे पर हमला कर दिया.
दूसरा - क्या ये छेड़छाड़ से जुड़ा केस था?
तीसरा - क्या ये लूट का केस था?
चौथा - क्या ये प्रोफेशनल या पर्सनल किस्म की दुश्मनी का केस था?
पुलिस ने अपनी जांच के लिए सौम्या के दफ्तर में भी पूछताछ की. छानबीन की. सौम्या के कॉल डीटेल निकाले. पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. न कोई ऐसी लीड मिली, जिसे पकड़कर पुलिस आगे बढ़ सके. पुलिस ने आम लोगों से भी गुहार लगा ली थी कि अगर किसी ने सौम्या के कत्ल की वारदात को देखा है, तो वो आकर मिलें. कहीं से कोई मदद नहीं.
साल खत्म हुआ. कैलेंडर बदला. 2009 लग गया. दिल्ली पुलिस की जांच अटकी रही. सौम्या के हत्यारे पहुंच से दूर थे. मार्च का महीना आया. और इस मार्च में दिल्ली में एक और मर्डर हुआ. 18 मार्च 2009 की तारीख थी. 28 साल की जिगिशा घोष एक कॉल सेंटर में काम करती थीं. उन्होंने अपनी शिफ्ट पूरी की और कंपनी की कैब से वसंत विहार में अपने घर आईं. वो जिस समय कैब से उतरीं, उस समय पर वो फोन पर अपने कलीग से बात कर रही थीं. उसी समय उनके पास तीन शराब पिए हुए लोग आए. रास्ता पूछने लगे. जैसे ही जिगिशा ने उन्हें रास्ता बताना चाहा, तीनों आदमियों ने उसे पकड़ा और ग्रे कलर की सैंट्रो कार में खींच लिया. उन्होंने उसे लूटा, एटीएम कार्ड का पिन भी जबरदस्ती उगलवा लिया. उसे देसी तमंचे से गोली मारी और पीट-पीटकर मार डाला. इसके बाद उन्होंने जिगिशा की लाश को सड़क के किनारे फेंक दिया. लाश तीन दिन बरामद हुई.
पुलिस ने जांच शुरू की, तो आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे में वही ग्रे कलर की कार बार-बार आवाजाही करती दिखाई दी. पुलिस ने भी नोटिस किया कि जिगिशा के एटीएम कार्ड से कैश निकाला जा रहा है, खरीददारी की जा रही है. पुलिस ने उन जगहों पर दबिश दी, जहां एटीएम कार्ड इस्तेमाल हुआ था. एक हफ्ते के अंदर पुलिस ने 4 लोगों को पकड़ लिया.
जब इन लोगों से पुलिस ने पूछताछ की तो इन्होंने जिगिशा की हत्या की बात स्वीकार कर ली. इनकी निशानदेही पुलिस ने एक 315 बोर का देसी तमंचा भी बरामद किया. लेकिन इस घटना की जांच कर रही पुलिस की टीम को एक शक हुआ. कि ये घटना इन लोगों द्वारा की गई पहली वारदात नहीं है. इनके हिस्से और भी ऐसे अपराध हो सकते हैं. फिर पुलिस ने जिगिशा कांड के आरोपियों से एक राउंड और पूछताछ की. आरोपियों ने एक और मर्डर की बात कुबूल की - "हमने 30 सितंबर 2008 को भी एक लड़की को नेल्सन मंडेला रोड पर मारा था."
ये आरोपी सौम्या विश्वनाथन की बात कर रहे थे. फिर पुलिस ने इनकी निशानदेही पर एक और आदमी को अरेस्ट किया. सौम्या के मर्डर केस में कुल पांच आरोपी नामजद किये गए -
- अजय सेठी
- रवि कपूर
- अमित शुक्ला
- बलजीत मलिक
- अजय कुमार
जब हत्यारे पकड़ में आए तो उन्होंने मर्डर की कहानी सुनाई. बताया कि मर्डर की रात वो अपनी सैंट्रो कार में बैठे थे. उन्होंने सौम्या की गाड़ी देखी. वो सड़क पर बहुत आराम से चल रही थी. न बहुत तेज स्पीड, न बहुत धीमे. जिस जगह सौम्या की कार गिरी पड़ी मिली थी, उस जगह से 3-4 रेड लाइट पहले सौम्या की कार का हत्यारों ने पीछा करना शुरू किया. उनका इरादा सौम्या को लूटने का था. कार की स्पीड देखते हुए लूटने का काम आसान लग रहा था. ये लोग अपनी कार सौम्या की कार के बगल में लेकर चलने लगे. गाड़ी रोकने का इशारा किया. सौम्या ने ये देखकर कार की स्पीड तेज कर दी. हत्यारों ने भी अपनी कार की स्पीड बढ़ा दी. फिर इनमें से एक हत्यारे रवि कपूर ने अपना 315 बोर का तमंचा निकाला. उसने ये तमंचा एक महीने पहले ही खरीदा था.
जब सौम्या नहीं रुक रही थी तो उसने अपने साथियों से कहा कि वो निशाना लगाकर दिखाएगा. रवि ने सौम्या की कार पर पहली गोली चलाई. वो गोली कार की पिछली नंबर प्लेट से टकराकर निकल गई. फिर रवि ने एक और गोली चलाई. ये गोली कार का पीछे वाले विंडग्लास को तोड़ते हुए सौम्या के सिर के पिछले हिस्से में घुस गई. चूंकि सौम्या की कार की स्पीड तेज थी, इसलिए गोली लगने के बाद कार पर से उनका नियंत्रण खत्म हो गया. कार रोड डिवाइडर से टकराकर पलट गई. हत्यारे अब भी भागे नहीं. बल्कि आगे से यू-टर्न लेकर वापस आए और फिर सौम्या की गाड़ी के पास अपनी कार रोकी. लेकिन जब उन्होंने देखा कि उसके सर से खून बह रहा है और वो होश में नहीं है तो वो घबरा गए और फिर वहां से सीधे सरिता विहार की तरफ भाग निकले.
बाद में उन्होंने टीवी चैनलों और अखबारों में सौम्या की तस्वीरें देखीं, जिसके बाद उन्हें मालूम हुआ कि उन्होंने एक पत्रकार का खून किया है.
इस केस को कवर करने वाले पत्रकार बताते हैं कि जिस रवि कपूर ने गोली चलाई थी, वो दिल्ली पुलिस का खबरी भी था. जब सितंबर 2008 में सौम्या के केस की जांच शुरू हुई थी तो वो पुलिस की टीम के साथ मौका-ए-वारदात पर आवाजाही कर रहा था. साथ ही दूसरी जांच गतिविधियों में भी शामिल था. जब 30 सितंबर के दिन सौम्या की डेडबॉडी एम्स में रखी हुई थी, तो वहां भी रवि पुलिस की टीम के साथ गया था. पुलिस उससे सौम्या के हत्यारों को पकड़ने के लिए कहती, रवि हर बार कुछ दिनों की मोहलत मांगता ताकि पुलिस को भरमाया जा सके. लेकिन रवि ने कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास में जिगीशा का भी कत्ल किया, जिसने उसकी पोल खोल दी.
चूंकि वसंत कुंज और वसंत विहार के इलाके दिल्ली एयरपोर्ट के पास मौजूद हैं, तो दिन भर इन इलाकों से कारों की आवाजाही लगी रहती है. सौम्या के दोषियों ने ये भी बताया कि इन कार सवारों को लूटना उनका शगल था. उन्हें दौड़ाना, गोली मारना और लूटना उन्हें रोमांचित करता था.
इन बयानों के आधार पर पुलिस जांच शुरू हुई. सौम्या की कार, आरोपियों की कार और तमंचे और कारतूस के टेस्ट किये गए. आरोपियों पर Maharashtra Control of Organized Crime Act यानी मकोका भी लगाया गया. महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाए गए इस कानून के तहत संगठित अपराधों की जांच होती है. और इनकी सुनवाई स्पेशल मकोका अदालतों में ही होती है. सबूतों और गवाहियों में तारतम्य बिठा ली गई थी. पुलिस अपनी जांच में पक्की थी.
6 फरवरी 2010 के रोज़ पांचों आरोपियों के खिलाफ मकोका, हत्या, डकैती, के तहत आरोप तय किए गए. और इसी के साथ आता है केस में बड़ा सवाल. कि जब आरोप 2010 में तय हुए तो ऐसा क्या हुआ कि न्याय आने में 14 साल लग गए. 2023 में अकटूवर के दिन पांचों आरोपियो को दोषी करार दिया गया. और ये 14 साल एक पत्रकार के मां-बाप कचहरी के चक्कर लगाते रहे.
ये सवाल तब और मौजूं हो जाता है जब इन्हीं लोगों को जिगीशा घोष के मर्डर केस में साल 2016 में दोषी करार दिया गया था. और रवि कपूर और अमित शुक्ला को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी. साल 2018 में जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस आईएस मेहता की बेंच ने इनकी फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया था. तो सौम्या के केस में क्यों इतना समय लगा?
सौम्या के केस में टोटल 320 बार सुनवाई हुई. अभियोजन पक्ष ने 23 अप्रैल 2010 से सबूत पेश करना शुरु किये. और ये सबूत पेश करना 17 मई 2023 तक जारी रहा.
इस केस में प्रासिक्यूटर पक्ष के वकील भी लंबे समय तक गायब रहे. सीनियर प्रासिक्यूटर राजीव मोहन को इस केस का स्पेशल प्रासिक्यूटर नियुक्त किया गया था. लेकिन साल 2016 तक वो कई मौकों पर कोर्ट में डेट पर ही नहीं आ पाए थे. और आखिर में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. फिर कोर्ट ने बहुत सारे नोटिस दिए, तब भी प्रासिक्यूटर को नियुक्त नहीं किया जा सका.
एक आरोपी बलजीत मलिक ने फरवरी 2019 में कोर्ट में अर्जी लगाई, कहा कि ट्रायल तेज किया जाए. 9 साल में 88 में से 45 गवाहों की ही गवाही हुई है. इसी महीने सौम्या के पेरेंट्स दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल से मिले और स्पेशल प्रासिक्यूटर को जल्द से जल्द नियुक्त करने की मांग की.
इस दौरान एक स्पेशल प्रासिक्यूटर की अनुपस्थिति में बहुत सारे वैकल्पिक प्रासिक्यूटर केस को साकेत कोर्ट में प्रेजेंट करते रहे. मार्च 2022 में आरोपियों की कोर्ट में गवाही शुरू हुई, जो मई 2023 तक जारी रही.
फिर इस केस की सुनवाई कर रहे जज का भी रूटीन ट्रांसफर हो गया. 1 सितंबर 2023 को स्पेशल मकोका जज रवींद्र कुमार पाण्डेय ने केस की सुनवाई शुरू की. रोज दो घंटे केस की हियरिंग हुई. रोज सुनवाई के समय सौम्या के मां और पिता कोर्ट में न्याय की राह देखते रहते और आज 18 अक्टूबर को कोर्ट में दोष सिद्ध हो गया.