1. फेल होना? 2. पूरक आना? 3. पैंतीस मिनट के पीरियड में सारे समय मुर्गा बने रहना? 4. बेशरम का डंडा जो खुद ही लाए हो, उसी डंडे से पिट जाना? 5. भरी क्लास के आगे कुर्सी बन जाना? 6. मास्टर का घर पहुंच जाना. 7. जिस लड़की पर क्रश हो उसी के आगे सत्रह का पहाड़ा पूछ दिया जाना? 8. फेल होते-होते छोटे भाई-बहनों की क्लास में पहुंच जाना. 9. क्लास में पीरियड भर टेबल पर खड़े रहना. 10. भरी क्लास में ब्लैकबोर्ड को साफ करना.जवाब है कोई नहीं. इनमें से कोई नहीं. सबसे ज्यादा निराशाजनक होता है एक टॉपर को देखना. एक टॉपर की 'V' दिखाती फोटो आपको बहुत-बहुत ज्यादा निराशा में भर देती है. जिस अखबार में टॉपर्स की फोटो छपती है. उसे देख-देख कितनों का खाना-पानी बंद हो जाता है. मुझे हमेशा से लगता था टॉपर्स कैसे होते हैं? और ये यकीन था कि कैसे भी होते हों मेरे जैसे तो नहीं ही होते होंगे. मुझे पूरा भरोसा था उन्हें नींद नहीं आती होगी, और भूख भी नहीं लगती होगी. क्योंकि खाने के नाम पर मुझे भूख लगती थी और खाना खाने के बाद ही नींद लगने लगती थी. ऐसे में पढ़ने की फुरसत कभी मिलती ही नहीं थी. एक समय ऐसा था जब मुझे अंग्रेजी फिल्मों के एलियन और स्कूल के टॉपर एक जैसे लगते थे. मुझे हमेशा से लगता था टॉपर्स की मार्कशीट भी कुछ अलग ही होती होगी. फिर मैंने रक्षा गोपाल की मार्कशीट देखी. और मेरा दिल टूट गया. ये तो एक आम सी मार्कशीट थी, जिस पर वैसे ही नंबर लिखे थे जैसे किसी आम अंकसूची में नंबर लिखे होते हैं. इतना तो चलो मैं झेल भी जाता लेकिन एक शब्द देखकर दिल के टुकड़े हुए हजार, कोई इधर गया कोई उधर गया. और वो शब्द था PASS.

1. Ab to photo chhapegi. 2. Ab to joke banenge. 3. Badhaai ho, naya meme hua hai. 4. Result : 'New Sharma ji ka beta' 5. 85% waalo ki nightmare.ये तो मजाक वाली बात रहे लेकिन सच में कम से कम सोने की स्याही तो उस पास की जगह इस्तेमाल कर ही लेनी चाहिए. हमारी टीचर 10 नंबर पाने वाले की कॉपी में भी फूल बना देती थीं, इस पर कम से कम एक स्माइली ही बना देते. मैं तो कहता हूं इस मार्कशीट के ऊपर स्पॉइलर अलर्ट ही लिख देते. इसलिए नहीं कि इस पर कोई फिल्म बनेगी. क्योंकि यही मार्कशीट दिखा-दिखा कईयों की ज़िंदगी स्पॉइल हो जानी है.
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