पंजाबी म्यूज़िक के शहंशाह गुरदास मान ने लिखा,
उठ गए पड़ोस में से यार हमारे, रब्बा क्या करें. पंजाब मां बोली का सुरीला गायक, महफ़िल की जान, यारों का यार, सरदूल सिकंदर पंजाब की पाक हवाओं में हमेशा गीत बनकर गूंजता रहेगा.
ओह वाहेगुरु. रेस्ट इन पीस सरदूल सिकंदर भाजी. पंजाबी म्यूज़िक की शान.
सूफी, पंजाबी और हिंदी गायक हर्षदीप कौर ने उनके लिए लिखा,
बहुत ही दुखद खबर. लीजेंडरी पंजाबी सिंगर सरदूल सिकंदर जी के निधन की खबर सुनकर बहुत दुख हुआ. म्यूज़िक इंडस्ट्री को बड़ी क्षति पहुंची है. उनके परिवार के लिए प्रार्थना करती हूं.
कुछ ऐसे ही ट्वीट्स विशाल ददलानी, कपिल शर्मा, मीका सिंह और दलेर मेहंदी ने किए.
24 फ़रवरी, 2021 वो दिन था, जब इंडियन म्यूज़िक फ्रेटर्निटी ने अपना एक कीमती सदस्य खो दिया. पंजाबी सिंगर सरदूल सिकंदर नहीं रहे. पिछले कुछ समय से मोहाली के फोर्टिस हॉस्पिटल में एडमिट थे. कोरोना पॉज़िटिव पाए जाने के बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई. उससे पहले किडनी ट्रांसप्लांट भी हुआ था. याद करेंगे सरदूल सिकंदर को. पंजाबी म्यूज़िक की दुनिया के अद्वितीय नायक को.
# दीवार के पीछे छुप-छुपकर संगीत सीखा
पंजाब का फतेहगढ़ ज़िला. उसी का छोटा सा गांव. खेड़ी नौद सिंह. 1961 में सागर मस्ताना के घर एक लड़के का जन्म हुआ. नाम रखा गया सरदूल सिकंदर. सरदूल के अलावा सागर मस्ताना के दो बड़े बेटे भी थे. गम्दूर अमन और भरपूर. गम्दूर एक सूफी सिंगर थे. वहीं, भरपूर का वास्ता रहता था तबले से. पेशे से एक तबला वादक थे. खुद इनके पिता सागर मस्ताना अपने समय के महान तबला वादकों में गिने जाते हैं. संगीत से जुड़ी क्रिएटिविटी को सिर्फ सुरों में ही नहीं उतारते थे. बल्कि, नए-नए तबले बनाने की कोशिश में भी लगे रहते थे. इसी कोशिश में एक अलग किस्म का तबला भी ईजाद किया. जिसे बारीक बांस की लड़की से भी बजाया जा सकता था.

सरदूल और उनके बड़े भाई भरपूर.
खैर, फिर से लौटते हैं सरदूल की कहानी पर. कहना गलत नहीं होगा कि सरदूल को संगीत विरासत में मिला. उनकी कई पुश्तें खुद को संगीत के प्रति समर्पित कर चुकी थीं. लेकिन सागर मस्ताना नहीं चाहते थे कि छोटा बेटा भी अपनी पूरी ज़िंदगी संगीत के नाम कर दे. कारण था उस समय में क्लासिकल संगीत का सिकुड़ा हुआ स्कोप. आज के समय की तरह ना ही इतने संसाधन थे, और ना ही इतना पैसा. उधर, सरदूल का म्यूज़िक से सिर्फ प्यार था. उसकी ओर रुझान नहीं. चाहते थे कि बड़े होकर पायलट बनें. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. सरदूल के पिता बच्चों को संगीत सिखाते थे. सरदूल को इजाज़त नहीं थी कि वो भी साथ बैठकर सीख सकें. लेकिन मन में संगीत सीखने की इच्छा भी थी. फिर उसे तृप्त करने का जुगाड़ निकाला. जब पिता बच्चों को संगीत सिखा रहे होते, तो उस समय दीवार की आड़ लेकर खुद भी चुपचाप सुनते रहते. ये सिलसिला कई दिनों तक चला.
एक दिन पिता ने बच्चों को नई सरगम सिखाई. सब से उसे दोहराने को कहा. लेकिन एक भी बच्चा सही से नहीं दोहराया पाया. सब के जाने के बाद सरदूल उस सरगम को दोहराने की कोशिश करने लगे. तभी उनके पिता की नज़र पड़ी. सरदूल को लगा कि अब तो जमकर पिटाई होगी. पर ऐसा हुआ नहीं. पिता ने सरदूल से वही सरगम गाने को कहा. डरते-डरते सरदूल ने कोशिश की. इसके बाद पिता ने नन्हें सरदूल को गोद में उठा लिया. क्यूंकि सरदूल ने बिना किसी प्रैक्टिस के सही गाया था. पिता को बेटे का हुनर नज़र आ गया. जिसके बाद सरदूल को संगीत सीखने की इजाज़त दे दी.