The Lallantop

'जमीन पर पड़ी शरीफन की नंगी लाश देख कासिम ने गंड़ासा उठा लिया'

मई यानी मंटो का महीना में आज पढ़िए कहानी- शरीफ़न

post-main-image
फोटो - thelallantop
मंटो जिसे कमलेश्वर ने दुनिया का सबसे अच्छा कहानीकार कहा. उस बेफिक्र-बेलौस मंटो का 11 मई को जन्मदिन होता है. इस पूरे महीने हम आपको मंटो की रचनाएं पढ़वाएंगे. क्योंकि ये महीना मंटो का है. और ये रचनाएं हमें उपलब्ध कराई हैं वाणी प्रकाशन ने. इस पब्लिकेशन हाउस से मंटो अब तक शीर्षक के साथ मंटो की सभी कहानियां प्रकाशित हुई हैं. आज की कहानी ‘शरीफन’ किताब से ली गई है.
 

शरीफ़न

manto shareefanजब कासिम ने अपने घर का दरवाज़ा खोला तो उसे सिर्फ़ एक गोली की जलन थी, जो उसकी दायीं पिंडली में गड़ गयी थी. लेकिन अन्दर जा कर, जब उसने अपनी बीवी की लाश देखी तो उसकी आंखों में ख़ून उतर आया. क़रीब था कि वह लकड़ियां फाड़ने वाले गंड़ासे को उठा कर पागलों की तरह बाहर निकल जाये और ख़ून-ख़राबे का बाज़ार गर्म कर दे कि अचानक उसे अपनी लड़की शरीफ़न ख़याल आया. ‘शरीफ़न-शरीफ़न’उसने ऊंची आवाज़ में पुकारना शुरू किया. सामने, दालान के दोनों दरवाज़े बन्द थे. कासिम ने सोचा, शायद डर के मारे अन्दर छिप गयी होगी. इसलिए वह उस तरफ़ बढ़ा और झिरी के साथ मुंह लगा कर कहा- शरीफ़न...शरीफ़न, मैं हूं तुम्हारा बाप. मगर अन्दर से कोई जवाब न आया. कासिम ने दोनों हाथों से किवाड़ को धक्का दिया. पट खुले और वह औंधे-मुंह दालान में गिर पड़ा. संभल कर, जब उसने उठना चाहा तो उसे लगा कि वह किसी...कासिम चीख़कर उठ बैठा. एक गज़ के फ़ासले पर एक जवान लड़की की लाश पड़ी थी-नंगी बिलकुल नंगी. गोरा-गोरा, सुडौल शरीर. छत की तरफ़ उठे हुए, छोटे-छोटे स्तन-कासिम का सारा वजूद एकदम हिल गया. उसकी गहराइयों से एक गगन-भेदी चीख़ उठी, लेकिन उसके होंठ इस ज़ोर से भिंचे हुए थे कि बाहर न निकल सकी. उसकी आंखें अपने आप बन्द हो गयी थीं. फिर भी उसने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढांक लिया. मरी-सी आवाज़ उसके मुंह से निकली- शरीफ़न. और उसने आंखें बन्द किये हुए ही, दालान में इधर-उधर हाथ मार कर, कुछ कपड़े उठाये और उन्हें शरीफ़न की लाश पर गिरा कर, यह देखे बिना ही बाहर निकल गया कि वे उससे कुछ दूर गिरे थे. बाहर निकल कर उसने अपनी बीवी की लाश न देखी. बहुत मुमकिन है, उसे नज़र ही न आयी हो, इसलिए कि उसकी आंखें शरीफ़न की नंगी लाश से भरी हुई थीं. उसने कोने में पड़ा हुआ, लकड़ियां फाड़ने वाला गंड़ासा उठाया और घर से बाहर निकल गया. कासिम की दायीं पिंडली में गोली गड़ी हुई थी, लेकिन उसका एहसास घर के अन्दर घुसते ही उसके दिल और दिमाग़ से ग़ायब हो गया था. उसकी वफ़ादार प्यारी बीवी मर चुकी थी. उसका दुख भी उसके दिमाग़ के किसी कोने में मौजूद नहीं था. बार-बार उसकी आंखों के सामने एक ही तस्वीर आती थी-शरीफ़न की-नंगी शरीफ़न की. और वह भाले की अनी बन-बन कर, उसकी आंखों को छेदती हुई उसकी रुह को भी चीरती चली जाती. गंड़ासा हाथ में लिये हुए, कासिम सुनसान बाज़ारों में उबलते हुए लावे की तरह बहता चला जा रहा था. चौक के पास उसका सामना एक सिक्ख से हुआ. बड़ा कड़ियल जवान था, लेकिन कासिम ने कुछ ऐसे बेतुकेपन से हमला किया और ऐसा भरपूर हाथ मारा कि वह तेज़ तूफ़ान में उखड़े हुए पेड़ की तरह ज़मीन पर आ रहा. कासिम की नसों में उसका ख़ून और ज़्यादा गर्म हो गया और बजने लगा तड़...तड़...तड़...तड़ जैसे खौलते हुए तेल पर पानी का हल्का-सा छींटा पड़ जाय.
दूर, सड़क के उस पार, उसे कुछ आदमी नज़र आये. तीर की तरह वह उनकी तरफ़ बढ़ा. उसे देख कर उन लोगों ने ‘हर हर महादेव’ के नारे लगाये. कासिम ने जवाब में अपना नारा लगाने की बजाय उन्हें मां-बहन की मोटी-मोटी गालियां दीं और गंड़ासा ताने, उनमें घुस गया. कुछ ही मिनटों में तीन लाशें सड़क पर तड़प रही थीं. दूसरे भाग गये. लेकिन कासिम का गंड़ासा देर तक हवा में चलता रहा. असल में उसकी आंखें बन्द थीं. गंड़ासा घुमाते-घुमाते वह एक लाश के साथ टकराया और गिर पड़ा. उसने सोचा कि शायद उसे गिरा लिया गया है. चुनांचे उसने गन्दी-गन्दी गालियां दे कर चिल्लाना शुरू किया- मार डालो, मुझे मार डालो.
लेकिन जब कोई हाथ उसे गर्दन पर महसूस न हुआ और न कोई चोट उसके बदन पर लगी, तो उसने अपनी आंखें खोलीं और देखा-सड़क पर तीन लाशों और उसके सिवा दूसरा कोई भी न था. एक क्षण के लिए कासिम को निराशा हुई, क्योंकि शायद वह मरना चाहता था. लेकिन एकदम शरीफ़न-नंगी शरीफ़न-की तस्वीर उसकी आंखों में, पिघले हुए सीसे की तरह उतर गयी और उसके सारे वजूद को, बारूद का जलता हुआ पलीता बना गयी. वह फ़ौरन उठा. हाथ में गंड़ासा लिया और फिर खौलते हुए लावे की तरह सड़क पर बहने लगा. जितने बाज़ार कासिम ने तय किए, सुनसान थे. एक गली में वह घुसा, लेकिन उसमें सब मुसलमान थे. उसको बहुत कोफ़्त हुई. चुनांचे उसने अपने लावे का रुख़ दूसरी तरफ़ फेर दिया. एक बाज़ार में पहुंच कर उसने अपना गंड़ासा हवा में ऊंचा लहराया और मां-बहन की गालियां उगलनी शुरू कीं. लेकिन सहसा उसे बहुत ही तकलीफ़ देह एहसास हुआ कि अब तक वह सिर्फ़ मां-बहन की गालियां ही देता रहा, इसलिए उसने फ़ौरन बेटी की गाली देनी शुरू की और ऐसी जितनी गालियां उसे याद थीं, सब-की-सब, एक ही सांस में बाहर उलट दीं. फिर भी उसे तसल्ली न हुई. झुंझला कर, वह एक मकान की तरफ़ बढ़ा, जिसके दरवाज़े के ऊपर हिन्दी में कुछ लिखा था. दरवाज़ा अन्दर से बन्द था. कासिम ने पागलों की तरह गंड़ासा चलाना शुरू किया. थोड़ी ही देर में दोनों किवाड़ों के टुकड़े-टुकड़े हो गये-कासिम अन्दर दाख़िल हुआ. छोटा-सा घर था. कासिम ने अपने सूखे हुए गले पर ज़ोर दे कर फिर गालियां देनी शुरू कीं. बाहर निकलो-बाहर निकलो. सामने दालान का दरवाज़ा चरमराया. कासिम अपने सूखे हुए गले पर ज़ोर दे कर गालियां देता रहा, दरवाज़ा ख़ुला और एक लड़की नमूदार हुई. कासिम के होंठ भिंच गये-भड़क कर उसने पूछा, कौन हो तुम? लड़की ने सूखे होंठों पर ज़बान फेरी और जवाब दिया, हिन्दू. कासिम तन कर खड़ा हो गया. जलती हुई आंखों से उसने उस लड़की की तरफ़ देखा, जिसकी उमर चौदह या पन्द्रह बरस की थी. उसने हाथ से गंड़ासा गिरा दिया. फिर वह बाज़ की तरह झपटा और उस लड़की को धकेल कर दालान में ले गया. दोनों हाथों से उसने पागलों की तरह उसके कपड़े फाड़ने शुरू किये. धज्जियां और चिन्दियां यूं उड़ने लगीं, जैसे कोई रूई धुनक रहा हो. लगभग आधा घण्टा कासिम अपना प्रतिशोध लेने में व्यस्त रहा. लड़की ने कोई विरोध न किया, इसलिए कि वह फ़र्श पर गिरते ही बेहोश हो गयी थी. जब कासिम ने आंखें खोलीं तो उसके दोनों हाथ लड़की की गरदन में धंसे हुए थे. एक झटके के साथ उन्हें अलग करके वह उठा. पसीने में ग़र्क उसने एक नज़र उस लड़की की तरफ़ देखा, ताकि उसकी और तसल्ली हो सके. एक गज़ के फ़ासले पर उस जवान लड़की की लाश पड़ी थी-नंगी बिलकुल नंगी. गोरा-गोरा, सुडौल शरीर; छत की तरफ़ उठे हुए, छोटे-छोटे स्तन-कासिम की आंखें सहसा बन्द हो गयीं. दोनों हाथों से उसने अपना चेहरा ढांप लिया. बदन पर गर्म-गर्म पसीना, बर्फ़ हो गया और उसकी नसों में खौलता हुआ लावा पत्थर की तरह स़ख्त हो गया. थोड़ी देर के बाद एक आदमी, तलवार से लैस, मकान के अन्दर आया. उसने देखा कि दालान में कोई आदमी आंखें बन्द किये हुए, कांपते हाथों से फ़र्श पर पड़ी हुई किसी चीज़ पर कम्बल डाल रहा था. उसने गरज कर पूछा- कौन हो तुम? कासिम चौंका-उसकी आंखें खुल गयीं, मगर उसे कुछ नज़र न आया. तलवार से लैस आदमी चिल्लाया- कासिम! कासिम एक बार फिर चौंका. उसने अपने से कुछ दूर खड़े आदमी को पहचानने की कोशिश की, मगर उसकी आंखों ने साथ न दिया. उस आदमी ने घबराये हुए स्वर में पूछा, क्या कर रहे हो तुम यहां?
कासिम ने कांपते हुए हाथ से फ़र्श पर पड़े हुए कम्बल की तरफ़ इशारा किया और खोखली आवाज़ में सिर्फ़ इतना कहा, 'शरीफ़न..' जल्दी से आगे बढ़ कर उस आदमी ने कम्बल हटाया. नंगी लाश देख कर पहले वह कापा, फिर उसने एकदम अपनी आंखें बन्द कर लीं. तलवार उसके हाथों से गिर पड़ी. आंखों पर हाथ रख कर, वह ‘बिमला-बिमला’ कहता, लड़खड़ाते क़दमों से बाहर निकल गया.
  manto bumper ॉ मंटो वाला महीना में कल आपने पढ़ी कहानी- ठंडा गोश्त