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मदर इंडिया पार्ट 2: जब रीमा लागू ने संजय दत्त को गोली मार दी थी

'वास्तव' फिल्म का ये क्लाइमेक्स सीन आज भी रोंगटे खड़े कर देता है.

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फोटो - thelallantop
रीमा लागू. भारतीय सिनेमा की उन चुनिंदा अभिनेत्रियों में से एक जिन्हें मां के रोल में दर्शकों का भरपूर प्यार मिला. सहज, सुंदर, सौम्य मां. बिल्कुल वैसी, जैसी भारतीय जनमानस को चाहिए होती है. 2-2 हिंदी और मराठी सिनेमा की यह वर्सटाइल एक्ट्रेस आज अचानक से दुनिया छोड़ गई. अभी थी और अभी नहीं थी. स्विच के ऑन-ऑफ होने जैसी एग्जिट. महज़ 59 साल की उम्र में. 59 साल दुनिया छोड़ने की उम्र तो कतई नहीं होती. उनका यूं अचानक चले जाना बहुत दुःख दे रहा है. उनकी निभाई हुई कई सारी भूमिकाएं ज़हन में आ रही हैं. जिनमें से एक स्टैंड-आउट है. महेश मांजरेकर की फिल्म ‘वास्तव’ में संजय दत्त की मां का किरदार उनके करियर में एवरेस्ट जैसा दर्जा रखता है. इस फिल्म के क्लाइमेक्स में जब वो अपने ही हाथों से अपने बेटे को गोली मारती है, तो ‘मदर इंडिया’ की नर्गिस याद आ जाती है. ये पूरा क्लाइमेक्स सीन ही शानदार है. संजय दत्त और रीमा लागू ने इस सीन में अपने अभिनय का शिखर छुआ है.
रघु के पीछे पुलिस लगी है. बचता-बचाता वो अपने घर आ पहुंचा है. भयंकर डरा हुआ है. इतना ज़्यादा कि लगता है खौफ़ से उसका दिमाग बंद हो गया है. इतनी दहशत में मुब्तिला अपने बेटे को फटी-फटी नज़रों से देखती है उसकी मां. उसको थप्पड़ मार के चुप कराती है. पूरे परिवार को अंदर भेज के रघु को बाहर ले आती है. उसे शांत करती है. अपने गुनाहों के असर से तड़पते और छुटकारे की भीख मांगते अपने बेटे को जड़ होकर देखती हुई रीमा लागू आज तक ज़हन में ताज़ा है.
जब मां को एहसास हो जाता है कि अब ज़िंदगी बेटे के लिए मुसलसल अज़ाब है, तो वो पल भर में एक फैसला ले लेती है. उसे मार डालने का फैसला. उसी की गन से गोली चलाती है और.... ‘खल्लास...’ फायर की आवाज़ सुन कर बाहर आये लोगों से वो कहती है,
“मैंने मारा नहीं उसको. मैंने मुक्ति दी है अपने बेटे को. वो तो कब का मर गया था, आज जान निकल गई.”
अपने पति, अपनी बहू, अपने परिवार को यकीन दिलाती हुई रीमा लागू. ज़हन में क़ैद होकर रह गया है वो सीन. रघु की अस्थियां समंदर में बहाने के बाद, वहीं पर वो अपने पोते से जो कहती है, वो खूंरेज़ी के इस दौर में बेहद प्रासंगिक है. वो कहती है,
“तेरे पापा को ये कहने का हक़ था कि उस पर ज़ुल्म हुए, इसलिए उसने बुरा रास्ता अपनाया. मगर इस तरह के ज़ुल्म तो हज़ारों लोगों पर होते हैं. वो सब लोग बुराई का रास्ता तो नहीं अपनाते. ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं. पर इतना जानती हूं. वास्तव में किसी भी इंसान को ये हक़ नहीं है कि वो दूसरे इंसान की जान ले. मां हूं इसलिए अपने बेटे से प्यार करती हूं, लेकिन उसके गुनाहों को माफ़ नहीं कर सकती.”
इस सीन ने रीमा लागू को हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमर कर दिया है. देखिए: https://www.youtube.com/watch?v=e3_-gqwmDE4
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