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रोग नेशन: अमेरिका से धक्का-मुक्की कर रूस कराएगा तीसरा विश्व-युद्ध!

स्थिति हाथ से निकल रही है मजाक में ही.

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रोग नेशन यानी रोग देश. रोग नेशन का मतलब है वो देश जो इंटरनेशनल नियमों को नहीं मानता और आतंकवाद को बढ़ाता है. रोग देश का मतलब है वो देश जो अंदर से रोगी हो चुका है, आतंकवाद जिसकी खुराक बन गई है. हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में मतलब एक ही है.
इक्कीसवीं शताब्दी की शुरुआत में दुनिया के दो चेहरे हो गए थे. एक तरफ वेस्टर्न और उनसे इत्तेफाक रखने वाले देश और दूसरी तरफ बाकी सब. वेस्टर्न नयी दुनिया के लोग थे. प्रोग्रेस, शांति, प्यार. दूसरी तरफ के लोग 'सिविलाइज्ड' नहीं थे. मार-काट, नफरत, पिछड़ापन. ज्यादा खुल के कहें तो मिडिल ईस्ट के देश इस शताब्दी के नहीं लगते थे. चारों ओर यही शंका जताई जाती थी कि ये लोग तीसरा विश्व-युद्ध कराएंगे और दुनिया का नाश होगा. पर अगस्त 2014 में कुछ ऐसा हुआ, जिसने दुनिया का नशा फाड़ दिया.
रूस की सेना ने अपने से बहुत छोटे देश यूक्रेन पर हमला कर दिया. बाकायदा पूरी सेना के साथ. उनकी एयरफोर्स आस-पास के देशों इस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को धमकाने लगी. ये सारे देश अमेरिका की नेतागिरी वाले NATO के सदस्य हैं. अमेरिका से उनका करार है कि उन पर किसी भी तरह का खतरा अमेरिका पर हमले के बराबर माना जायेगा. तो अमेरिका की सेना रूस के करीब पहुंच गयी और डेरा डाल दिया. अब हर तरह के हमले का डर सबको सताने लगा.
ये तो प्रगति की निशानी नहीं है? क्या जरूरत थी इस घटना की जिसने दुनिया को तीसरे विश्व-युद्ध के कगार पर खड़ा कर दिया था?
रूस. दुनिया का सबसे बड़े क्षेत्रफल वाला देश. जो 1991 तक सोवियत यूनियन था. भाईचारा और खुलापन बढ़ाने में टूट गया. कई देश बन गए. पर इसने ये नहीं माना कि इसमें इसी की गलती थी. दूसरों की नहीं. टूटने का गम तो था, पर नेचुरल रिसोर्स बहुत थे इसके पास. तेल और गैस. तो काम चलता रहा. यूरोप के अधिकांश देशों को सप्लाई होती. पर 2014 में तेल के दाम गिरने के बाद इसकी हालत हो गयी है ख़राब.
पर रूस ने हथियारों में कमी नहीं की है. एक नया हथियार आया है. जो दुश्मनों को धोखा देने के लिये है. असल में ये बैलून है जो हथियारों की शेप में है. 300 गज तक पता ही नहीं चलेगा कि ये नकली हथियार है. कोई समझ ही नहीं पायेगा कि रूस करना क्या चाहता है. क्योंकि जब आप इसे नकली समझेंगे, तो ये असली हो सकता है. जब असली समझ हमला कर दें तो नकली निकल सकता है. मतलब भरमाने के लिये है. लड़ाई के इस तरीके को मस्कीरोवका कहते हैं. सबको इसी तरह धोखे में रखना पुतिन का स्टाइल है.

आबादी: 14 करोड़ भाषा: रशियन धर्म: क्रिश्चियन, इस्लाम

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2000 से ब्लादिमीर पुतिन रूस की राजनीति में छाये हुए हैं. इतना कि बाहर के देशों में लोग रूस के नाम पर सिर्फ पुतिन को ही जानते हैं. दो बार प्रेसिडेंट, फिर प्राइम मिनिस्टर और फिर 2012 में प्रेसिडेंट बने. अमेरिका के तो ट्रम्प, ओबामा, बुश, हिलेरी को तो लोग जानते ही हैं. इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि रूस की मीडिया और दूसरे संस्थानों पर पुतिन का कितना कब्ज़ा है. इस दौर में रूस में राष्ट्रीयता की भावना बहुत बढ़ी है. और अब ये दिक्कत पैदा कर रही है. क्योंकि पुतिन बार-बार पुराने दिनों की याद दिला रहे हैं जब रूस सोवियत यूनियन हुआ करता था.
तो उस हमले के बाद रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया ले ही लिया. जिसे 1954 में इन्हीं लोगों ने यूक्रेन को ही दे दिया था क्योंकि वो यूक्रेन का ही था और रूस ने पहले भी हमला कर कब्ज़ा जमाया था. इसके बाद 1914 के पहले का माहौल बन गया. पुतिन ने धमकी देना शुरू किया कि अगर हम पर हमला हुआ तो हम न्यूक्लिअर वॉर के लिए भी तैयार हैं. एक बड़े देश के प्रेसिडेंट से ये सुनना किसी को भी सहमा देने के लिए काफी था.
अब रूस के चलते बहुत जटिल स्थितियां पैदा हो गयी हैं:

1. लड़ाई किस्सों-कहानियों का हिस्सा नहीं है, हमारे सामने हो सकती है

जिस हिसाब से रूस के डिफेन्स मिनिस्टर या उनके सलाहकार बात करते हैं उससे लगता है कि ये लोग युद्ध के लिए हमेशा तैयार हैं. युक्रेन वाले मामले में ये लोग इतने कूल लग रहे थे जैसे पेनल्टी कॉर्नर की बात कर रहे हों. युक्रेन में पॉलिटिकल क्राइसिस हो गयी. पर रूस को फर्क नहीं पड़ा. आज के युग में एक देश पर हमला कर एक जगह को छीन लेना छोटी बात नहीं है. कोल्ड वॉर के समय स्थिति दूसरी थी. उस समय सबको पता था कि कौन क्या कर रहा है. कहां-कहां मामला फंस रहा है. अभी ऐसा नहीं है. अभी सब बौखलाए हुए हैं.
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2. अमेरिका के बराबर खड़े रहने की ख्वाहिश इनको जरूरत से ज्यादा परेशान कर रही है

हथियारों के मामले में अमेरिका इनसे कहीं बहुत आगे है. इसलिए पुतिन बात-बात में एटम बम पर उतर आते हैं. जैसे लूडो के खेल में कोई बेसबॉल ले के बैठे कि नहीं जीते, तो इसी से फैसला कर देंगे. फिर तेल का दाम कम होने से रूस की इकॉनमी गड़बड़ा गयी है. पर अमेरिका के पास पैसे कमाने के बहुत रास्ते हैं. इस चीज से रूस को दिक्कत है. दुनिया की पॉलिटिक्स में भी ये मात खा रहे हैं. अफगानिस्तान पर हमला कर अपना देश तुड़वा ही चुके हैं रूस के नेता. उसका जिम्मेदार अमेरिका को ही मानते हैं. फिर आज के ज़माने में अमेरिका की पहुंच हर देश में है. तो उसी की नक़ल करते हुए रूस भी अब चीन और पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ा रहा है. अभी भारत-पाक की झंझट चरम पर थी तब तक पता चला कि भारत के सबसे पुराने साथी रूस ने पाकिस्तान के साथ मिलिट्री अभ्यास कर लिया!

3. बाल्टिक देशों में पहुंच रहा है अमेरिका

इस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया को बाल्टिक देश कहा जाता है. पूर्वी यूरोप और रूस के बॉर्डर पर हैं ये. पहले ये सोवियत यूनियन का ही हिस्सा थे. यूक्रेन की ही तरह यहां पर भी रशियन लोग अच्छी-खासी संख्या में रहते हैं.
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यूक्रेन में तो रूस की मीडिया ने आग लगा दी. पर ये देश नाटो के सदस्य हैं. नाटो के नियम के मुताबिक किसी भी सदस्य पर हमला नाटो पर हमला माना जायेगा. मतलब अमेरिका और यूरोप सब मिल जायेंगे. 2015 में ओबामा इस्टोनिया पहुंचे. और जम के भाषण दिया. कि पहले आप लोग गुलाम रह चुके हैं. अब ऐसा नहीं होगा. हम आपके लिए खड़े हैं. कोई हमला होगा, हम देख लेंगे. और उसी वक़्त रूस ने इस्टोनिया के बॉर्डर पर गैस, गोली छोड़ना शुरू कर दिया. बाल्टिक देशों को रूस कई तरीके से परेशान करता है. कभी उनके ऊपर से प्लेन उड़ा देता है. एक बार तो दोनों देशों के वॉर प्लेन 20 फीट से गुजर गए थे. फिर कभी साइबर हमला हो जाता है. तो जवाब में अमेरिका ने रशियन आबादी वाले इलाकों में अपनी सेना की परेड करा दी. अब ऐसा माहौल है कि दोनों पक्ष यही मान रहे हैं कि अगला बदमाशी कर रहा है. हम तो सुरक्षा कर रहे हैं. कुछ लोग ये कहते हैं कि ये रूस की स्ट्रैटेजी है नाटो को तोड़ने की. दबाव में आकर बाल्टिक देश नाटो से अलग हो जायेंगे. और इस इलाके में अमेरिका का प्रभाव कम हो जायेगा. कुछ ये मानते हैं कि दबाव की स्थिति में नाटो ही बाल्टिक देशों को रूस के हवाले कर देगा.
1963 में जब क्यूबा के मसले पर रूस-अमेरिका में न्यूक्लिअर वॉर की नौबत आई थी तब अमेरिकी प्रेसिडेंट केनेडी ने कहा था:
"Above all, while defending our vital interests, nuclear powers must avert those confrontations which bring an adversary to a choice of either a humiliating retreat or a nuclear war."

4. कौन झेलेगा न्यूक्लिअर वॉर?

बात ये है कि क्या न्यूक्लिअर वॉर को जीता जा सकता है? या फिर लिमिटेड न्यूक्लिअर वॉर भी किया जा सकता है? ये तो ऑल-आउट का प्लान है. या फिर ऐसा कि एक फुटबॉल मैच में बाइसों प्लेयर मिलकर एक ही गोल में दनादन गोल मार दें. होड़ लगाकर कि मैंने ज्यादा मारे. पर जीतेगा कौन? दूसरी बात कि रूस अपनी इकॉनमी की कमी को अपनी मिलिट्री पर डालना चाहता है. जो कि जटिल देशों की पहचान है. बात-बात में न्यूक्लिअर वॉर की धमकी तो पाकिस्तान भी देता है. पर ये धमकी उस खड्डे की ओर इशारा करती है जो उनके देश में ही खुदा हुआ है.

5. चेचेन्या का हिसाब अलग है

10 लाख की आबादी वाले साउदर्न रशियन रिपब्लिक चेचेन्या की मॉस्को से हमेशा ठनी रहती है. एक दशक तक रूस से आज़ादी की जंग लड़ने के बाद अब चेचेन्या पुतिन के चमचे रमजान कादिरोव के चंगुल में है. रमजान का मन इतना बढ़ गया है कि अपने ही लोगों को दबाने के अलावा वो रूस में पॉलिटिकल मर्डर भी करता है. कहने की जरूरत नहीं कि किसकी शह पर.
Ramzan Kadyrov-TheIndependent
Ramzan Kadyrov-TheIndependent

चेचेन्या में कोई मीडिया नहीं है. जो सरकार दिखाती है, वही देखना है. 1858 में रूस ने चेचेन्या पर कब्ज़ा किया था खून-खराबे के बाद. बाद में सोवियत यूनियन के टूटने के बाद चेचेन्या ने आज़ादी की घोषणा कर दी. पर 1994 में रूस ने फिर हमला कर कब्ज़ा कर लिया. खून-खराबा होता रहा. 2003 में नया संविधान बना. लोगों की राय ली गयी और रिजल्ट आया कि रूस के साथ ही रहना है. 2009 में रूस ने अपनी मिलिट्री वहां से हटा ली. पर इससे लोगों का गुस्सा ख़त्म नहीं हुआ है. अब 2015 से वहां पर कई ऐसे ग्रुप आ गए हैं जिनके सम्बन्ध अल-कायदा और ISIS से हैं. पुतिन के कहने पर रमजान वहां की आवाज दबा देता है, पर ये वाली आवाज बहुत गहरे से आ रही है.


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