ईरान और इजरायल के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. अब तो अमेरिका भी इस जंग का सीधे तौर पर हिस्सा बन चुका है. 22 जून को अमेरिकी बॉम्बर विमान B2 ने ईरान के तीन न्यूक्लियर ठिकानों पर बम गिराए. वहीं इजरायल लगातार ईरान के सैन्य और न्यूक्लियर ठिकानों को निशाना बनाने का दावा कर रहा है. उसने अब तक जो हमले किए उनमें उसका मुख्य निशाना ईरान के न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स और IRGC के सैन्य कमांडर्स रहे हैं. IRGC यानी इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कोर (Islamic Revolutionary Guards Corps).
IRGC: सुप्रीम लीडर की ये फोर्स ईरान की सेना से भी खास कैसे हो गई?
IRGC के पास अपनी Army, Navy और Air Force है. विदेश में ऑपरेशंस चलाने के लिए अलग फोर्स है. National Security से लेकर Foreign Policy डिसाइड करने तक में उसकी भूमिका है.

IRGC की स्थापना 1979 की इस्लामी क्रांति की रक्षा के लिए हुई थी. मगर समय के साथ वो इतनी बड़ी हो गई कि ईरान की रेगुलर आर्मी कमजोर पड़ने लगी. आज के समय में IRGC के पास अपनी थलसेना, वायुसेना और नौसेना है. विदेश में ऑपरेशंस चलाने के लिए अलग फोर्स है. राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर विदेश नीति डिसाइड करने तक में उसकी भूमिका है. एक उदाहरण से समझिए.

जब अप्रैल 2024 में इजरायल पर अटैक का फैसला लिया जाना था, तब ईरान ने अपनी रेगुलर आर्मी को नहीं चुना, बल्कि इसकी जिम्मेदारी IRGC को दी गई. 2025 में चल रही जंग में भी IRGC फ्रंट पर है. कोई नया विमान या सैन्य इक्विपमेंट आता है तो हेडलाइंस बनती हैं कि इस विमान को कौन उड़ाएगा, IRGC या रेगुलर आर्मी.
साल 1941 में मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने ईरान की सत्ता संभाली. वो ईरान को आधुनिक बनाना चाहते थे. उनकी छवि ईरान में एक लिबरल नेता की थी. मगर इस चेहरे में दूसरा चेहरा भी छिपा था. शाह अमेरिका के करीबी थी. वो सस्ते दामों पर उसे तेल बेच रहे थे. देश के आर्थिक हालात सही नहीं थे. आर्थिक मोर्चे पर कमजोर होने की वजह से उनका देश में विरोध बढ़ने लगा. शाह धर्म और शासन को अलग रखने की बात करते. वो हिजाब विरोधी थे. इसलिए धार्मिक नेताओं के भी निशाने पर रहते थे.

इन्हीं धार्मिक नेताओं में से एक थे अयातुल्ला रुहुल्लाह ख़ोमैनी. उन्होंने शाह की नीतियों के खिलाफ झंडा बुलंद किया हुआ था. उनको आम जनता का समर्थन मिला. शाह को अपनी कुर्सी पर खतरा महसूस हुआ तो उन्होंने ख़ोमैनी को देशनिकाला दे दिया. लेकिन उनके लेख और भाषण ईरान पहुंच रहे थे.
शाह के खिलाफ देश में माहौल बनता गया. 1 फरवरी 1979 को खोमैनी 14 साल बाद देश वापस लौटे और इस्लामी गणतंत्र की स्थापना की.

शाह और उनकी पत्नी ईरान छोड़कर चले गए. लेकिन ईरानी सेना के कई अफ़सर अभी भी उनके वफादार बने हुए थे. इस कारण खोमैनी को डर था कि आगे जाकर फौज कहीं बगावत न कर दे. इसलिए, उसी साल मई में इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर (IRGC) की स्थापना की गई. IRGC को ‘इस्लाम के सिपाही’ का खिताब मिला. उस वक़्त खोमैनी ने IRGC के अफसरों से कहा था,
आप जहां भी रहे अपने अहंकार को पनपने न दें. शैतान से अपने आप को बचाएं.
शुरुआती दौर में IRGC के तीन बड़े मकसद थे,
- इस्लामी क्रांति की रक्षा
- ईरान की संप्रभुता की सुरक्षा
- तख्तालट की साजिशों से बचाना
स्थापना के तुरंत बाद ही IRGC को अपनी ताकत दिखाने का मौका मिल गया.
1980 का दशक ईरान और मिडिल-ईस्ट के लिए उथल-पुथल से भरा हुआ था. ईरान में हुई क्रांति के चार महीने बाद ही इराक में तख्तापलट हो गया. वहां सद्दाम हुसैन राष्ट्रपति बने. सद्दाम सुन्नी थे और ईरान में शिया मुस्लिमों ने क्रांति की थी. सद्दाम को डर हुआ कि इस क्रांति की आग इराक के शिया मुस्लिमों तक भी पहुंच सकती है. इससे उनकी कुर्सी खतरे में पड़ जाती. इसी डर में सद्दाम ने ईरान पर हमला कर दिया. सद्दाम लड़ाई को हफ्तों में खत्म करना चाहते थे. लेकिन ईरान ने करारा जवाब दिया.

इस वजह से लड़ाई खिंचती चली गई. इराक-ईरान युद्ध अगस्त 1988 तक जारी रहा. लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल सका. आखिरकार, इराक को पीछे हटना पड़ा. अमेरिकी मदद के बावजूद इराक नतीजा हासिल नहीं कर पाया. इसलिए, इस जंग को ईरान के लिए मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक जीत माना गया. और इसका श्रेय मिला, IRGC को. उसने अपनी बेहतर स्ट्रेटजी से इराक के कई हमलों को नाकाम किया. सद्दाम के विरोधी गुटों को अपने साथ किया. अपने इंटेलिजेंस नेटवर्क की मदद से वो पहले ही दुश्मन की चाल पता कर लेते थे. इस काम में IRGC की चार यूनिट्स लगी थीं-
- इस्लामिक लिबरेशन मूवमेंट्स यूनिट
- इरेगुलर वॉरफेयर हेडक्वार्टर्स
- लेबनान गार्ड
- रमज़ान हेडक्वार्टर्स
युद्ध खत्म होने के बाद ईरान की सेना में फेरबदल हुआ. इसी क्रम में चारों यूनिट्स का कुद्स फोर्स में विलय कर दिया गया. तब से कुद्स फोर्स ईरान से बाहर खुफिया ऑपरेशंस को लीड करने लगी. कुद्स का अर्थ होता है, पवित्र. इस फोर्स का एक मकसद जेरूसलम को आजाद करवा के मुस्लिमों को सौंपना है. इसलिए, कुद्स फोर्स को जेरूसलम फोर्स के नाम से भी जाना जाता है.

IRGC की कुल आठ शाखाएं हैं. कुद्स फोर्स के अलावा बाकी की सातों शाखाएं रेवॉल्युशनरी गार्ड्स के कमांडर-इन-चीफ को रिपोर्ट करतीं है. ये सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम लीडर के प्रति जवाबदेह है. कुद्स फोर्स IRGC की सबसे ताकतवर यूनिट है. विदेश में हत्या, बमबारी, प्रॉक्सी गुटों जैसे हिजबुल्लाह, हूती विद्रोहियों से डीलिंग तक में इस यूनिट का नाम आता है.
डॉनल्ड ट्रंप जब पहले कार्यकाल में थे, तब उन्होंने आरोप लगाया था कि कुद्स फोर्स ने इराक में 2003 से 2008 के बीच 600 से अधिक अमेरिकी सैनिकों की हत्या की थी. सीरिया की सिविल वॉर में कुद्स फोर्स लड़ रही है. लेबनान के हिजबुल्लाह और यमन के हूती को हथियार और ट्रेनिंग कुद्स फोर्स देती है.
अब सवाल ये आता है कि IRGC की बाकी यूनिट्स में क्या होता है?
- ग्राउंड फोर्स: ये थलसेना है. इसमें ग्राउंड ट्रूप्स या इंफैंट्री को रखा गया है.
- एयरोस्पेस फोर्स: IRGC की वायुसेना है.
- नेवी: समुद्री सीमाओं की रक्षा करती है. होर्मुज स्ट्रेट में इसका एक अहम रोल है.
- सिक्योरिटी फोर्स
- इंटेलिजेंस फोर्स
- काउंटर-इंटेलिजेंस फोर्स
- बासिज फोर्स: बासिज़ एक फ़ारसी शब्द है. इसका मतलब होता है लोगों को एकजुट करना. बासिज फोर्स ईरान के अंदर विद्रोह को दबाने का काम करती है. इस पर चुनावों में फर्ज़ीवाड़े करवाने के आरोप भी लगते रहते हैं. दावा है कि वो जरूरत पड़ने पर छह लाख लड़ाकों को तैयार कर सकती है.
इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैट्जिक स्टडीज के मुताबिक, IRGC के पास लगभग 2 लाख 30 हजार ट्रेंड सैनिक हैं. ये रेगुलर आर्मी से आधे से भी कम है. फिर भी IRGC अधिकार के मामले में रेगुलर आर्मी से आगे है. ईरान के 25 से अधिक प्रांतों में इसकी तैनाती रहती है. IRGC ईरान का बैलिस्टिक मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम भी चलाती है. साथ ही इसने अपना बड़ा कारोबारी साम्राज्य भी खड़ा किया है. इसमें डिफेंस, इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं.
माना जाता है कि ईरान की अर्थव्यस्था में इनकी हिस्सेदारी एक तिहाई के करीब है. आज की तारीख़ में ईरान के कई एयरपोर्ट IRGC चलाती है. ज़्यादातर सरकारी कंस्ट्रक्शन के ठेके IRGC की कंपनियों को मिलते हैं. इसकी तुलना कभी-कभी रूस की खुफिया एजेंसी KGB और पाकिस्तानी सेना से भी की जाती है. IRGC के अब तक 14 कमांडर इन चीफ हो चुके हैं. फिलहाल हुसैन सलामी की इजरायली हमले में मारे जाने के बाद पास IRGC की कमान मोहम्मद पाकपोर के हाथों में है.
IRGC का राजनीति में भी अच्छा-खासा दखल है. ईरान के कई राष्ट्रपतियों के करियर की शुरुआत IRGC से हुई. IRGC के कमांडर्स को सरकार में निर्णायक पदों पर नियुक्तियां भी मिलीं. कहा जाता है कि IRGC ऐसे किसी कैंडिडेट को चुनाव नहीं जीतने देती जो सुप्रीम लीडर के साथ तालमेल बनाकर नहीं चलते.
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