एक टीवी इंटरव्यू में करीना कपूर से पूछा गया कि वह बॉलीवुड में कब तक काम करेंगी. करीना ने कहा, 'ज़ोहरा आंटी की तरह बरसों तक.' पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण एक्टर-डांसर ज़ोहरा सहगल 2014 में जब वह दुनिया छोड़ गई थीं, उनकी उम्र 102 बरस थी. टीवी इंडस्ट्री में उन्होंने सबसे ज्यादा सालों तक काम किया.

जोहरा सहगल की बेटी हैं ओडिसी डांसर पद्मश्री किरण सहगल. जब जोहरा 100 साल की हुई थीं, तब किरण ने उनकी बायोग्राफी लिखी थी, 'ज़ोहरा सहगल: फैटी' नाम से. ज़ोहरा के अनुशासनात्मक रवैये की वजह से किरण इसका नाम 'ज़ोहरा सहगल: फैटी हिटलर' रखना चाहती थीं, पर पब्लिशर ने असहमति जताई. जब उन्होंने ज़ोहरा को कवर पेज दिखाते हुए यह बताया तो वह बोलीं, 'वैसे फोटो के साथ हिटलर भी रख देते तो ठीक था.' इतना कहकर वह खिलखिला पड़ीं. यह बेटी की नजर से मां पर लिखी एक पर्सनल किताब है. ज़ोहरा के व्यक्तित्व के कुछ ऐसे पहलुओं का पता बताती, जो ताजी ओस से शीतल हैं.
किरण लिखती हैं...
उनके भीतर की अदाकारा स्कूल के पहले साल में ही दिख गई थी. सात साल की उम्र में उन्हें एक प्ले 'द रोज एंड द रिंग' में शेर की भूमिका के लिए चुना गया. शेर बनने के लिए उन्होंने भूरा चूड़ीदार पायजामा पहना और इसी रंग के पायदान को पीठ पर बांध लिया. इसी वक्त स्टेज से उनका नाम बुलाया गया. उन्होंने एक उर्दू कंपीटिशन जीता था. किसी ने दौड़कर उन्हें ख़बर दे दी. एक्साइट होकर वह नन्हा शेर फौरन स्टेज की ओर दौड़ पड़ा. उनकी इस मासूमियत पर सब लोग खूब हंसे. यह एक बड़ा मौका था, 'प्राइज सेरेमनी'. उनकी याददाश्त से मैं भौंचक्की रह जाती हूं. 'यह एक ख़ूबसूरत केन बास्केट थी जिसमें पीतल के खिलौना-बर्तन मसलन बेलन, चकला, कढ़ाई, कड़छी, थाली आदि थे.' 14 साल की उम्र में, जब वह मिडिल स्कूल में थीं, उन्हें एक पेंटिंग के लिए 15 रुपए का इनाम मिला. इस पेंटिंग को लाहौर में हुई एक आर्ट एग्जीबिशन में डिस्प्ले किया गया. यह 'कॉक्सकॉम्ब' के पौधे की पेंटिंग थी. वह खिलखिलाते हुए कहती हैं, 'मैंने सिर्फ प्राइज़ जीतने के लिए पेंट किया था और मुझे लगता है कि मेरी आर्ट टीचर ने इसे यहां-वहां छू लिया था.' इस प्राइज मनी से उन्होंने कोडैक का बेबी ब्राउनी बॉक्स कैमरा खरीदा और उससे बहुत बाद तक तस्वीरें लेती रहीं. इनमें से कुछ आज भी उनके फोटो एल्बम में हैं.

उदय शंकर के पार्टनर के ग्रुप में सिमकी के बाद अम्मी का रोल सबसे अहम था. उनकी छोटी बहन भी माधवन और रोबू (रवि शंकर) के साथ इस ग्रुप का हिस्सा थीं. अम्मी हंसते हुए याद करती हैं, जब इस बारे में कुछ अखबार में छपता, वह हमेशा पूछतीं, 'खाला, देखो देखो, मेरे बारे में कुछ निकला है?' पृथ्वी थिएटर के दिनों में, ओपेरा हाउस के मेकअप रूम में वह हमेशा एक कोना ले लेतीं और कोई उनकी चीज़ें छूने की हिम्मत नहीं करता. उनकी छोटी बहन और मेरी आंटी उज़रा बट्ट भी नहीं. उजरा पृथ्वीराज 'पापाजी' के ज्यादातर प्ले में लीड रोल में दिखीं. अपनी पोजीशन और हावी नेचर के बावजूद अम्मी को लगता था कि लोग उज़रा खाला को उनकी ख़ूबसूरती की वजह से ज़्यादा याद रखते हैं. इससे अम्मी ने खुद में कॉम्प्लेक्स डिवेलप कर लिया और आकर्षक दिखने के यत्न शुरू कर दिए. व्यक्तिगत तौर पर कहूं, यह मेरे और आपके बीच की बात है, मेरी आंटी मीठे स्वभाव की अच्छी महिला थीं. मेरी मां को आज तक वह कमेंट याद है, जब अमेरिका में एक परफॉर्मेंस के बाद कोई उनसे बैकस्टेज मिलने आया और 'मिस मुमताज़' के बारे में पूछा. ड्रेसिंगरूम के पास खड़े चौकीदार ने पूछा, 'कौन सी वाली, जिसके होंठ बड़े हैं या जिसके कूल्हे बड़े हैं?'
कई बार बचपन के बारे में सोचती हूं तो वे यादें वापस आ जाती हैं. जब हम बॉम्बे में थे और वह पृथ्वी थिएटर में डांस डायरेक्टर थीं, वह मुझे चरनी रोड स्थित ओपेरा हाउस ले जातीं. थिएटर ग्रुप यहीं पर रिहर्स और परफॉर्म करता था. उनकी तेज निगाहें हमेशा मुझ पर रहतीं. डांस होता तो वह मुझे सब लोगों के साथ रिहर्स करवातीं. डांस नहीं होता तो मुझे ऑडिटोरियम में एक जगह पर बिना इंच भर हिले बैठना पड़ता. हम पाली हिल बांद्रा से बस और ट्रेन लेकर चरनी रोड जाते थे. पाली नाका तक पैदल, फिर बस से बांद्रा स्टेशन और फिर लोकल ट्रेन. यह थकाऊ और पकाऊ सफर था, पर वह रोज करती थीं.

मैंने पृथ्वी थिएटर के कुछ शो में बच्ची का रोल किया. इन शोज के दौरान मुझे सख्त निर्देश थे. मुझसे जो कहा गया, मैंने आज्ञाकारी बच्चे की तरह किया. लेकिन मुझे आखिरी प्ले 'ग़द्दार' बिल्कुल अच्छा नहीं लगा. मेरी मां इसमें एक बूढ़ी नौकरानी बनी थीं जो हर सीन के बाद बूढ़ी होती जाती है. उन दिनों मेकअप एक कठिन प्रोसेस था. पहले ट्यूब में रखे एक बेस को चेहरे पर तब तक लगाया जाता, जब तक वह इकसार न हो जाए. फिर शेडिंग, फिर हाइलाइटिंग, फिर पफ का हमला, जिससे लगता कि आप एक बादल में फंस गए हैं और कभी बाहर नहीं आ पाएंगे. और अंत में पानी का स्प्रे और चेहरे के हर हिस्से को पोंछना. लिपस्टिक, आई-ब्रो पेंसिल और मस्कारा सोने पर सुहागा की तरह था. 'दीवार' में उनका विदेशी महिला का किरदार था. इससे मैं शर्मिंदा महसूस करती थी. वह वेस्टर्न कपड़े पहनतीं, सिगरेट पीतीं और पुरुषों से फ्लर्ट करती रहतीं. यह दो भाइयों की कहानी थी जो एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं, लेकिन एक विदेशी महिला की वजह से एक दूसरे से अलग हो जाते हैं. उनके घर बंट जाते हैं. यह भारत के बंटवारे का बिंब था. यहां तक कि अब भी जब वह पुरुषों से शरारत या मजाक करती हैं, तो मेरी और मेरे भाई की हालत खराब हो जाती है. अगर मैं उनकी बेटी नहीं होती तो मैं भी उनके कमेंट्स का मजा ले पाती. लेकिन बेटी होते हुए मैं यह नहीं कर सकती थी. अक्सर वे ये शर्मिंदगी वाले कमेंट इंटरव्यूअर से कह रही होती थीं. अगर मैं उसी कमरे में होती (जो अक्सर होता था) वहां से बाहर निकल आती.

अम्मी ने अक्टूबर 1945 में पृथ्वी थिएटर शुरू किया. लेकिन उनकी शुरुआत डांस डायरेक्टर के तौर पर हुई थी. उन्होंने बताया कि 'पापाजी' (पृथ्वीराज कपूर) बड़े दिल वाले थे और थिएटर की इच्छा रखने वाले किसी शख्स को ना नहीं करते थे. फिर एक पल को मुड़ीं और बोलीं, 'मुझे छोड़कर.' उनकी छोटी बहन उजरा पहले ही उनसे जुड़ी थीं. लेकिन उन्होंने (पृथ्वीराज कपूर) मेरी मां को एक्ट्रैस के तौर पर लेने से साफ मना कर दिया. इसलिए वह डांस-डायरेक्टर बन गईं. वह बहुत सख्त और अच्छी टीचर थीं. मुझे नहीं लगता कि थिएटर में किसी ने उनकी क्लास मिस की होगी. वह नॉनसेंस बर्दाश्त नहीं करती थीं और शरारतियों को काबू में रखना जानती थीं. वह बॉडी वॉर्मिंग एक्सरसाइज से क्लास शुरू करतीं जो उन्होंने 'दादा' (उदय शंकर) से सीखी थी. फिर डांस का रिवीज़न या नई कंपोजीशन करवातीं. मेरी शुरुआती डांस ट्रेनिंग का तरीका भी यही था. उनसे डांस सीखने वालों में रूमा गांगुली, जो किशोर कुमार की पहली पत्नी थीं, गोपाल लाल, हीरा, इंदुमति लेले, कुमुद शंकर और सत्यनारायण और प्रयागराज शर्मा जैसे लोग थे. इसके अलावा पृथ्वी थिएटर के सारे लोग भी इसमें शामिल थे. उनसे मिलने पर शशि कपूर हाथ की वे सारी एक्सरसाइज़ करने लगते थे जो उन्होंने सिखाई थीं. https://www.youtube.com/watch?v=B6SSbjcGWOg
वीडियो देखें: बॉलीवुड में डायरेक्टर्स मल्लिका शेरावत को सिर्फ हॉट दिखाने में क्यों लगे रहते थे?