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क्या बैंकों का 10 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज मर गया?

बैंकों ने पिछले 5 सालों में कर्ज में दिए लगभग 10 लाख 60 हजार करोड़ रुपए राइट-ऑफ कर दिए हैं. इसमें से करीब आधे से ज्यादा राशि बड़े औद्योगिक घरानों को दी गई थी.

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बैड लोन उन्हें कहते हैं, जिनकी भरपाई बैंकें नहीं कर पातीं, ऐसे ही 10 लाख करोड़ से ज्यादा के कर्जे राइट-ऑफ हुए हैं. (फोटो सोर्स- आजतक)

केंद्र सरकार (Government of India) ने सोमवार, 4 दिसंबर को लोकसभा में बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) में शेड्यूल्ड सभी कमर्शियल बैंकों (यानी सरकारी, गैर सरकारी सभी प्रमुख बैंकों) ने पिछले 5 सालों में कर्ज में दिए लगभग 10 लाख 60 हजार करोड़ रुपए राइट-ऑफ कर दिए हैं. इसमें से करीब आधे से ज्यादा राशि बड़े औद्योगिक घरानों को दी गई थी. ये भी कहा गया है कि लगभग ऐसे करीब 2300 लोगों या कंपनियों ने, जिन पर 5 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज था, उन्होंने जानबूझकर करीब 2 लाख करोड़ रुपए के कर्ज का भुगतान नहीं किया है.

खबर पर आगे बढ़ने से पहले कुछ बेसिक बातों पर चर्चा. 

बैंकों का काम क्या है? कम ब्याज दर चुकाकर हमारा-आपका पैसा जमा करना और ज्यादा ब्याज पर हजारों करोड़ रुपए के कर्जे देना. ब्याज दरों का ये अंतर ही बैंकों की कमाई है. लेकिन हजारों-लाखों करोड़ के असुरक्षित या कॉर्पोरेट लोन देने के बाद उनकी रिकवरी करने में बैंकों की जान हलक में आ जाती है. कई बार पैसा मर भी जाता है. ये दो तरीके से होता है. एक राइट-ऑफ और दूसरा वेव-ऑफ. वेव-ऑफ माने पूरी कर्जमाफी. जैसे किसानों के लिए कर्जमाफी की सरकारी घोषणाएं होती हैं, वैसे ही.

राइट ऑफ क्या है?

जिन लोन अकाउंट्स को राइट-ऑफ किया जाता है वे होते हैं- NPA हो चुके खाते. ये क्या है? जब कोई व्यक्ति, कंपनी या संस्था, बैंक से लोन लेकर किसी न किसी वजह (मजबूरी या जानबूझकर) से उसे नहीं चुकाता या बची किश्तें देना बंद कर दे, तो ऐसे कर्जदारों को डिफ़ॉल्टर कहा जाता है. हो सकता है डिफ़ॉल्टर कुछ दिनों बाद पैसे देना शुरू दें, लेकिन अगर काफ़ी दिनों बाद और सारे लीगल हथकंडे अपनाए जाने के बाद भी बैंक को अपना पैसा इन डिफ़ॉल्टर्स से वापस नहीं मिलता तो वो मान के चलता है कि अब ये पैसे वापस नहीं आने वाले और इसे अपनी बैलेंस शीट में ‘एसेट’ वाले कॉलम में रखने का मतलब नहीं. क्योंकि इस पैसे पर ब्याज़ भी तो बढ़ता चला जाएगा. जो आना था, मगर नहीं आ रहा. यानी वो भी एक नुक़सान है, जो मूलधन के विपरीत समय के साथ-साथ बढ़ता भी चला जाएगा. तो इसलिए उस अमाउंट को किसी और मद में रख दिया जाता है. इसी मद को कहा जाता है 'नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट' यानी 'NPA'.

काफ़ी समय बाद जब बैंक निश्चित हो जाता है कि NPA अब नहीं मिलने वाला तो, उसे अपनी बैलेंस शीट में से भी हटा देता है. मतलब 'राइट ऑफ़' कर देता है.

रेंडम तस्वीर. इसका स्टोरी से कोई लेन-देन नहीं है. जैसे विजय माल्या का बैंकों से कोई लेन-देन नहीं है. (तस्वीर: PTI)

राइट-ऑफ हुए कर्ज की अब वापसी नहीं होगी? 

ऐसा हमेशा के लिए नहीं कहा जा सकता. राइट-ऑफ के बाद भी लोन की रिकवरी की उम्मीद रहती है. द हिंदू बिज़नेस लाइन की एक खबर के मुताबिक, केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री भागवत कराद ने कहा है,

"ऐसे राइट-ऑफ से उधार लेने वालों को उधार चुकाने से या देनदारियों से छूट नहीं मिलती है. बट्टे खाते में डाले गए लोन अकाउंट्स (राइट ऑफ किए गए खाते) से उधारी वसूल करने की प्रक्रिया जारी है. राइट-ऑफ से उधारकर्ताओं को कोई फायदा नहीं होता है."

उन्होंने आगे कहा,

"बैंक्स रिकवरी के अलग-अलग तरीकों से राइट-ऑफ किए गए खातों से शुरू की गई वसूली की कार्रवाई जारी रखते हैं. इन तरीकों में सिविल मुक़दमे दाखिल करना, कर्ज वसूली के ट्रिब्यूनल में मामला दाखिल करना, फाइनेंशियल एसेट्स की स्क्रूटनी करना, सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट, 2002 के तहत कार्रवाई करना, बैंकरप्सी कोड, 2016 के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में मामला दाखिल करना, समझौता और NPA की बिक्री करना शामिल है."

भागवत कराद ने कहा कि सरकार कॉर्पोरेट लोन को माफ करने पर कोई पैसा खर्च नहीं करती है. हालांकि उन्होंने उन उधार लेने वालों के नाम नहीं बताए, जिनके खाते RBI एक्ट के तहत राइट-ऑफ किए गए हैं. ये जरूर कहा कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान सभी शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों (SCBs) ने कर्ज के भुगतान में देरी के लिए कुल 5 हजार 309 करोड़ रुपए का जुर्माना वसूल किया है.

कितना कर्ज नहीं चुकाया गया?

कराद बताते हैं कि सभी SCBs और देश भर के वित्तीय संस्थान, 5 करोड़ रुपए या उससे ज्यादा की रकम वाले कर्जदारों के क्रेडिट की जानकारी Central Repository of Information on Large Credits (CRILC) को देते हैं. CRILC के डाटाबेस में दी गई जानकारी के मुताबिक, 31 मार्च 2023 को 2 हजार 623 उधारकर्ताओं को विलफुल डिफ़ॉल्टर्स (जानबूझकर कर्ज न अदा करने वाले) की लिस्ट में डाला गया था. इन पर बैंकों का कुल बकाया, 1.96 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है.

कराद ने ये भी कहा कि 8 जून 2023 को RBI के सेटलमेंट और तकनीकी राइट-ऑफ के फ्रेमवर्क के मुताबिक, बकायेदारों पर चल रही कार्रवाई पर बिना कोई असर डाले, विलफुल डिफ़ॉल्टर्स के साथ सेटलमेंट किए जाते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि जानबूझकर कर्ज न देने वालों को सेटलमेंट के जरिए कर्ज निपटाने की अनुमति इसलिए दी जाती है ताकि कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थानों को बिना देरी किए कर्ज के निपटारे के लिए एक सही रास्ता मिल सके.

तो कुल-मिलाकर, मसला इतना है कि 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की लगभग डूब चुकी रकम रिकवरी की लीगल कोशिशों के सहारे अटकी है.

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