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राजेंद्र गुढ़ा ने अशोक गहलोत की सरकार को कैसे बचाया? अब बागी क्यों बने हुए हैं?

दो बार विधायक बने, लेकिन एक भी बार कांग्रेस से नहीं जीते. जानें राजेंद्र गुढ़ा का सियासी सफर.

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क्या दूसरी पार्टी में जाएंगे राजेंद्र गुढ़ा? (फोटो- पीटीआई/फेसबुक)

राजेंद्र सिंह गुढ़ा. पिछले हफ्ते तक राजस्थान सरकार में मंत्री थे. अब नहीं हैं. बर्खास्त कर दिए गए. दो दिन बाद 24 जुलाई को एक 'लाल डायरी' लेकर विधानसभा पहुंचे. गुढ़ा ने दावा किया कि उनकी इस डायरी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ आरोपों की पूरी लिस्ट है. पूर्व मंत्री ने कहा कि इसे वो सदन के सामने पेश करना चाहते थे. उनके मुताबिक, 

“डायरी में सरकार के संकट के समय विधायकों को खरीदने का हिसाब लिखा था, क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष (वैभव गहलोत) का चुनाव, सभी लेन-देन के बारे में लिखा था. लेकिन डायरी छीन ली गई.”

गुढ़ा ने दावा किया कि विधानसभा में उनके साथ मंत्रियों ने मारपीट भी की. मार्शल ने फिर बाहर निकाल दिया. मीडिया के सामने गुढ़ा ने डायरी की डिटेल्स बताने से इनकार कर दिया और कहा कि वे इसकी जानकारी सदन में ही देंगे. हालांकि गुढ़ा को विधानसभा के इस सत्र से निलंबित कर दिया गया है.

फिर चर्चा में कैसे आ गए गुढ़ा?

राजेंद्र गुढ़ा ने 21 जुलाई को अपने एक बयान से राष्ट्रीय सुर्खी बटोरी थी. देश भर में कांग्रेस के नेता मणिपुर यौन हिंसा की घटना को लेकर BJP सरकार को घेर रहे थे. लेकिन उस दिन राजस्थान विधानसभा में गुढ़ा ने महिला सुरक्षा को लेकर अपनी ही सरकार पर सवाल खड़ा कर दिया था. मंत्री रहते हुए सदन में उन्होंने कहा था, 

"इस बात में सच्चाई है कि हम राजस्थान में महिलाओं की सुरक्षा में विफल हो गए हैं. राजस्थान में जिस तरह से महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं, ऐसे में हमें मणिपुर की बजाय अपने राज्य की स्थिति देखनी चाहिए."

अगले दिन जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम अशोक गहलोत से गुढ़ा की बर्खास्तगी पर पूछा गया तो उन्होंने इसे पार्टी का 'अंदरूनी मामला' बता दिया. बोले कि इस पर पार्टी के नेता अपने हिसाब से चर्चा करते हैं. आगे गहलोत ने कोई सफाई देने से इनकार कर दिया.

राजेंद्र गुढ़ा से मंत्री पद लिए जाने पर राजस्थान सरकार ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया कि उन्हें उस बयान के कारण ही हटाया गया. लेकिन सरकार के सूत्रों का कहना है कि गुढ़ा को इसी बयान के चलते हटाया गया है. एक सूत्र ने दी लल्लनटॉप को बताया कि 6 जुलाई को गुढ़ा को ये चेतावनी दी गई थी कि पार्टी लाइन से इतर जाकर अनुशासनहीनता पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन गुढ़ा ने इस चेतावनी की अनदेखी की. इसलिए 21 जुलाई को सरकार ने उन्हें बर्खास्त कर दिया. सूत्र ने ये दावा भी किया कि गुढ़ा अपने विभागों की बैठकों में नियमित रूप से अनुपस्थित रहते थे.

कौन हैं राजेंद्र गुढ़ा?

बर्खास्त होने से पहले राजेंद्र गुढ़ा राजस्थान के सैनिक कल्याण (स्वतंत्र प्रभार), होम गार्ड एवं नागरिक सुरक्षा, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज्य मंत्री थे. झुंझुनू के उदयपुरवाटी से विधायक हैं. अपना सरनेम झुंझुनू के अपने गांव के नाम 'गुढ़ा' पर रखा है.

राजेंद्र गुढ़ा की पहचान एक ऐसे नेता और मंत्री की रही जिन्होंने अलग-अलग मुद्दों पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ बार-बार मोर्चा खोला. गहलोत सरकार में आने के कुछ दिन बाद से ही उनकी नाराजगी झलकने लगी थी. साल 2018 में गुढ़ा बहुजन समाज पार्टी (BSP) से विधायक बने थे. अगले ही साल अपने 5 और BSP विधायकों के साथ कांग्रेस में चले गए. इससे पहले तक भी गहलोत सरकार को इन विधायकों का बाहर से समर्थन था. लेकिन फिर इनका कांग्रेस में विलय करवा लिया गया. बाद में गुढ़ा को राज्य मंत्री बनाया गया.

राहुल गांधी के साथ राजेंद्र गुढ़ा (फोटो- फेसबुक/Rajendra Gudha)
गहलोत से 'वफादारी' का दावा

BSP से बगावत कर कांग्रेस में एंट्री भी पहली बार नहीं थी. ठीक यही कथा कुछ साल पहले भी लिखी गई थी. साल 2008 में गुढ़ा उदयपुरवाटी सीट से पहली बार BSP से विधायक बने थे. अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे. तब कुछ विधायकों के इस्तीफे के कारण सरकार संकट में नजर आ रही थी. लेकिन अप्रैल 2009 में राजेंद्र गुढ़ा और 5 BSP विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे. उनके साथ आने के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या 102 हो गई थी. तब भी गुढ़ा को पर्यटन विभाग में राज्य मंत्री बनाया गया था. उनके अलावा दो और नेताओं को मंत्री पद मिला था.

साल 2013 के चुनाव में गुढ़ा उदयपुरवाटी से चुनाव हार गए. अगले चुनाव यानी 2018 में कांग्रेस ने टिकट काट दिया. गुढ़ा वापस BSP में चले गए. उसी सीट से जीतकर दूसरी बार विधायक बने. चुनाव जीतने के बाद से ही चर्चा चलने लगी कि वे फिर कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. हुआ भी यही. सितंबर 2019 में सभी विधायकों को लेकर गुढ़ा सरकार के साथ चले गए. 

साथ तो चले गए, लेकिन लंबे समय तक मंत्री पद नहीं मिला था. इससे नाराजगी बढ़नी शुरू हो गई थी. दिसंबर 2020 में अजय माकन (तब कांग्रेस प्रभारी) से मिलने के बाद उनका एक बयान आया था. गुढ़ा ने गहलोत पर तंज कसते हुए कहा था,

“शादी जवानी में ही होनी चाहिए, बुढ़ापे में शादी होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है.”

करीब एक साल बाद नवंबर 2021 में राजेंद्र गुढ़ा को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. इस बार सिर्फ उन्हें ही. उसमें भी राज्य मंत्री का पद मिला. गुढ़ा का कहना था कि उनके साथ BSP से 6 लोग कांग्रेस में शामिल हुए थे, ऐसे में सिर्फ उन्हें मंत्री बनाया जाना सही नहीं है. बाकी 5 विधायकों को भी पद मिलना चाहिए. 

गुढ़ा इस बात से भी नाराज थे कि BSP से कांग्रेस में उनके साथ आए (2009 में) विधायक रमेश मीणा कैबिनेट मंत्री बन गए हैं, और अब उन्हें ‘मीणा के नीचे काम करना पड़ेगा’, जो उन्हें मंजूर नहीं है. रमेश मीणा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बड़ा समर्थक माना जाता है.

55 साल के राजेंद्र गुढ़ा कई मंचों पर अशोक गहलोत की सरकार को बचाने का दावा कर चुके हैं. ये दावा वो जुलाई 2020 में सचिन पायलट और उनके समर्थकों की बगावत को लेकर करते रहे हैं. तब पायलट कुछ विधायकों के साथ मानेसर के रिजॉर्ट में चले गए थे और अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में आने का एलान कर दिया था. हालांकि गहलोत ने विधायकों के समर्थन से सरकार बचा ली थी. मंत्री पद का इंतजार कर रहे राजेंद्र गुढ़ा और BSP से आए बाकी विधायकों ने भी गहलोत को समर्थन दिया था. गुढ़ा बार-बार 2009 और 2020 की इसी 'वफादारी' का जिक्र करते हैं.

अशोक गहलोत के साथ राजेंद्र गुढ़ा (फोटो- फेसबुक /Rajendra Gudha)

लेकिन बड़े मंत्री पद की चाह रखने वाले गुढ़ा गहलोत की वफादारी से दूर होने लगे. इंडिया टुडे मैगजीन के पत्रकार आनंद चौधरी के मुताबिक, 

“मंत्री पद तो मुद्दा है ही, इसके अलावा वे अपने इलाके में कुछ माइन्स को रेगुलराइज कराना चाहते थे. इसके लिए भी गहलोत ने शायद हामी नहीं भरी थी.”

अशोक गहलोत BJP पर विधायकों को पैसे देने का आरोप लगाते हैं. अब गुढ़ा भी गहलोत पर वही आरोप लगा रहे हैं. 'लाल डायरी' में उसी लेन-देन के हिसाब की बात उन्होंने की है. जब जुलाई 2020 में पायलट ने बगावत की थी, उसी दौरान गहलोत के करीबियों धर्मेंद्र राठौड़ और राजीव अरोड़ा के यहां आयकर विभाग (IT) के छापे पड़े थे. आनंद चौधरी बताते हैं कि जब धर्मेंद्र राठौड़ के घर छापा पड़ा था, उस समय भी ये आया था कि राजेंद्र गुढ़ा उनके घर से कुछ लेकर गए थे. उनको भेजने वाले अशोक गहलोत ही थे. ये चर्चा चलती है कि अगर गुढ़ा उन 'जरूरी पेपर' को लेकर नहीं आते तो इनके लिए दिक्कत हो जाती.

वफादारी से बयानबाजी तक

गढ़ा ने इस डायरी की चर्चा काफी समय तक नहीं की थी. लेकिन मनपसंद मंत्री पद नहीं मिलने से नाराज गुढ़ा गहलोत के खिलाफ बोलने लगे थे. पिछले साल नवंबर में मीडिया के सामने उन्होंने डायरी का जिक्र किया था. उससे पहले जून 2022 में उन्होंने कहा था,

"गहलोत साहब बोलते बहुत हैं कि ये किया वो किया. मीडिया में बोलते हैं. कभी बैठकर चिंता करते तो ज्यादा ठीक होता."

ये बयान राज्यसभा चुनाव (जून 2022) से ठीक पहले आया था. जानकार बताते हैं कि तब गहलोत, गुढ़ा को मनाने भी गए थे. मनाया तो राज्यसभा चुनाव में साथ भी मिला.

उस वक्त तो गहलोत ने उन्हें मना लिया. लेकिन बाद में लगातार बयान आने लगे. इस साल फरवरी में गुढ़ा के खिलाफ अपहरण का एक केस दर्ज हुआ था. उन्होंने इसके लिए सीधे-सीधे अशोक गहलोत पर 'बदले की कार्रवाई' का आरोप लगा दिया. पूर्व मंत्री ने मीडिया को बताया था कि अगर एक मंत्री के खिलाफ केस दर्ज होता है, ये सीएम के जाने बिना तो हो नहीं सकता क्योंकि गृह मंत्रालय भी उनके पास है.

इधर पिछले कुछ समय से वो सचिन पायलट के समर्थन में खुलकर आ गए थे. इस साल अप्रैल में पायलट के समर्थन में कांग्रेस नेतृत्व को चुनौती देते हुए गुढ़ा ने कहा था कि अगर किसी ने मां का दूध पिया है तो सचिन पायलट के खिलाफ कार्रवाई कर के बताए. फिर मई में पायलट की जन संघर्ष यात्रा के दौरान गहलोत पर खुलकर बोले थे. गुढ़ा ने कहा था कि कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार में डूबी है और इसने भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.

अब सचिन पायलट को कांग्रेस नेतृत्व ने मना लिया है. पिछले कुछ समय से पायलट शांत हैं. इंडिया टुडे के आनंद चौधरी बताते हैं, 

"अब गुढ़ा के लिए मुश्किल ये है कि न तो गहलोत उनके साथ हैं और न ही पायलट. इसके अलावा BSP से उन्हें टिकट मिलना नहीं है. दोनों बार BSP से जीतकर विधायक बने, लेकिन दोनों बाद पार्टी छोड़ दी. अब गुढ़ा निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं."

पिछले साल जुलाई में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में गुढ़ा ने कहा था, 

"मैंने अपने साथी विधायकों को भरोसा दिया था कि कांग्रेस में जाने के बाद उन्हें मंत्री पद दिया जाएगा या कुछ राजनीतिक पद मिलेंगे. ये वादे पूरे नहीं किए गए. अब वे भी अनिश्चित हैं कि उन्हें अगले चुनाव में कांग्रेस टिकट देगी या नहीं."

राजेंद्र गुढ़ा की मौजूदा स्थिति पर आनंद चौधरी बताते हैं कि अब BSP से आए बाकी विधायक भी गुढ़ा के साथ नहीं हैं. राज्यसभा चुनाव तक वे लोग उनके साथ थे. लेकिन अब समीकरण बदल गए हैं. उनमें से एक दो कह चुके हैं कि गुढ़ा को मंत्री पद मिला, लेकिन उन्हें क्या मिला.

क्या करेंगे राजेंद्र गुढ़ा?

गुढ़ा ने अपने बयानों से कांग्रेस नेतृत्व को नाराज तो कर दिया है. इसका नतीजा मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी और अब विधानसभा से निलंबन के रूप में सामने आ चुका है. अब चर्चा है कि 'अनुशासन तोड़ने' के आरोप में उन्हें पार्टी से निकाला भी जा सकता है. उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर भी चर्चा चल पड़ी है.

कुछ दिन पहले गुढ़ा ने जयपुर में AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी से मुलाकात की थी. इससे कयासबाजी शुरू हुई कि गुढ़ा AIMIM में भी जा सकते हैं. आनंद चौधरी कहते हैं कि ओवैसी की पार्टी से उनका चुनाव लड़ना मुश्किल है. क्योंकि जिस इलाके से वो आते हैं, वहां मुस्लिम वोट ज्यादा नहीं है. और गुढ़ा का अपने क्षेत्र के अलावा कहीं ज्यादा प्रभाव भी नहीं है.

BSP के दरवाजे तो उनके लिए पहले से बंद हैं ही. 22 जुलाई को राजस्थान BSP अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने कह भी दिया कि राजेंद्र गुढ़ा ने दो बार विश्वासघात किया है, ऐसे में उन्हें शामिल नहीं किया जाएगा.

वीडियो: जमघट: अशोक गहलोत ने सचिन पायलट, वसुंधरा राजे, पेपर लीक, विधानसभा चुनाव पर क्या बताया?