नरेंद्र गिरि का शव प्रयागराज के अल्लापुर में स्थित बाघंबरी मठ में ही फांसी के फंदे से लटकता मिला. पुलिस सुसाइड की आशंका जता रही है. मौके से सुसाइड नोट भी मिला है. इस मौत के साथ ही एक और नाम चर्चा में है. आनंद गिरि. महंत नरेंद्र गिरि के शिष्य. पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर चुकी है. आनंद गिरि के नाम का जिक्र नरेंद्र गिरि के कथित सुसाइड नोट में भी है.

कभी नरेंद्र गिरि के उत्तराधिकारी रहे आनंद गिरि कौन हैं, उनका अपने गुरु से क्या विवाद था. सब कुछ जानेंगे. इस रिपोर्ट में. कौन हैं आनंद गिरि? इसी साल जून के महीने में दी लल्लनटॉप को दिए एक इंटरव्यू में आनंद गिरि ने बताया था कि वह बचपन से साधु हैं. उनकी पैदाइश 1980 की है. अपनी टीनएज में पहुंचते ही उन्होंने 1993 के आसपास संन्यास धारण कर लिया था. ब्रह्मचारी होने के बाद संन्यास की दीक्षा हुई.
इस स्टोरी के लिए रिसर्च करते समय हमें "आनंद गिरि योगा" नाम की एक वेबसाइट मिली. इसमें एक सेक्शन है, 'THE MAN'
. इसमें दी गई जानकारी बताती है कि आनंद गिरि का मतलब होता है- आशीर्वाद का पुनर्जन्म. वेबसाइट कहती है कि आनंद गिरि को 12 साल की उम्र में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ. उन्होंने शुरुआती जीवन केदार, हिमालय में तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, मदमहेश्वर, त्रियोगी नारायण और वासुकीताल में बिताया, जहां गिरिजानंद सरस्वती महाराज के अधीन वेदों और आयुर्वेद की शिक्षा ली. महामंडलेश्वर विश्व गुरु महाराज के तत्वावधान में ऋषिकेश के योग निकेतन धाम में अपनी योग शिक्षा ली. ये भी दावा है कि आनंद गिरि संस्कृत व्याकरण, आयुर्वेद और वैदिक दर्शन में पारंगत हैं. ये साइट बताती है कि आनंद गिरि बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं. और योग तंत्र में P.hd कर रहे हैं.
आनंद गिरि के शब्दों में गुरुजी (यानी नरेंद्र गिरि) जब महंत नहीं थे, तब उनके शिष्य बने. 2004 में नरेंद्र गिरि को महंत बनाया गया. इसके बाद उन्हें हरिद्वार से प्रयागराज लाया गया. आनंद का कहना है कि गुरुजी ने अपने विश्वासपात्र लोगों को साथ रखना शुरू किया. उस समय आनंद गुजरात में थे. लेकिन गुरुजी के कहने पर 2005 में वह प्रयागराज आ गए.

वहीं खबरें बताती हैं कि आनंद गिरि और नरेंद्र गिरि की मुलाक़ात क़रीब 18 साल पहले हुई थी. तब से ही आनंद गिरि नरेंद्र गिरि के साथ थे. जानकार बताते हैं कि एक समय ऐसा था कि नरेंद्र गिरि का सारा कामधाम आनंद गिरि देखते थे. हनुमान मंदिर की गद्दी पर हफ़्ते में एक ही दी नरेंद्र गिरि बैठते थे और बाक़ी 6 दिन गद्दी संभालने का काम आनंद गिरि का था. वह पूरे इलाहाबाद में छोटे महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे. कहते हैं कि साल 2019 में प्रयागराज में हुए अर्धकुंभ में नरेंद्र गिरि और आनंद गिरि ने मिलकर पूरी तैयारी की थी. लेकिन पूरी बात गद्दी और उत्तराधिकार तक ही जाकर नहीं सिमटती है.
गुरुजी नरेंद्र गिरि की तरह आनंद गिरि का भी रसूख़ था. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लेकर भाजपा के बड़े नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के साथ आनंद गिरि की तस्वीरें हैं.

लेकिन आनंद गिरि के काम करने के तरीक़ों और उनकी छवि के आधार पर भी सवाल उठाए जाते रहे हैं. एक पुलिस अधिकारी बताते हैं कि अर्धकुंभ में टेंट लगाने का काम करने वाले का सारा सामान आनंद गिरि ने ज़ब्त कर लिया था. टेंटवाले को पुलिस के चक्कर काटने पड़े. दबाव पड़ा. फिर जाकर सामान छुड़वाया जा सका.
हालांकि दी लल्लनटॉप से बातचीत में आनंद गिरि ने इन आरोपों को बकवास बताया था. उन्होंने कहा था,
मेरे खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है. कोई अपराध नहीं किया है मैंने. दुनिया के किसी कोने में अपराध का पहला शब्द नहीं पड़ा मुझ पर. ब्राह्मण कुल का व्यक्ति था. संन्यासी बना. हिमालय की यात्रा की. संतों का सानिध्य लिया. मेरा जीवन खुली किताब है. कुछ भी छिपा हुआ नहीं है.टेंट का सामान जब्त करने वाली बात पर आनंद गिरि ने कहा था,
जब हम कैंप लगाते हैं तो बहुत लोगों के साथ हमारा सिस्टम चलता है. लोग काम करते हैं, हिसाब देते हैं और पैसा लेकर जाते हैं. मैं किसी का सामान क्यों जब्त करूंगा. मुझे इसे घर थोड़े ना ले जाना है.ऑस्ट्रेलिया में रेप के आरोप लगे आनंद गिरि पर बलात्कार का मुक़दमा भी चल चुका है. वो भी ऑस्ट्रेलिया में. आनंद गिरि पर आरोप था कि उन्होंने साल 2016 में सिडनी के रूटी हिल नामक इलाक़े में एक महिला का बलात्कार किया था. फिर 2018 में भी एक दूसरी महिला का बलात्कार करने का आरोप उन पर लगा. साल 2019 में जब आनंद गिरि एक और बार ऑस्ट्रेलिया गए, तो उन्हें अरेस्ट कर लिया गया. केस चला और चार महीनों बाद कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया.
इलाहाबाद में चर्चा रहती है कि इस केस को सुलटाने के लिए बाघंबरी मठ के करोड़ों रुपए लगे थे. गुरु-चेले में इतनी क़रीबी तो थी ही कि आनंद गिरि के बरी होने की जानकारी नरेंद्र गिरि ने ख़ुद मीडिया को दी थी और कहा था कि सत्य की हमेशा विजय होती है. हालांकि आनंद गिरि ने दी लल्लनटॉप से बातचीत में इन आरोपों को सिरे से नाकार दिया था. उन्होंने कहा था,
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में 2016 में बच्चों के लिए कल्चरर स्कूल बनाने का काम शुरू किया था. 2018 में इसकी फाउंडिंग थी. मुझ पर असॉल्टिंग का आरोप लगा था. ना कि सेक्सुअल असॉल्टिंग का. ना तो मेरी गिरफ्तारी हुई थी और ना ही मैं होम अरेस्ट में था. पुलिस ने सिर्फ पासपोर्ट जब्त किया था. जांच पूरी होने तक देश छोड़ने से मना किया था. विदेश में आप ऐसे ही बरी नहीं हो सकते. जब मेरे खिलाफ कोई केस नहीं बना तो पुलिस ने सॉरी बोलकर केस रद्द किया.केस को सुलटाने के लिए करोड़ो रुपए लगने की बात पर आनंद गिरि ने कहा था कि ऐसा कहकर पैसे उठाए गए थे, किसने उठाए, कैसे उठाए, नहीं पता. उन्होंने कहा था,
पैसे उठाने वाली बात मैंने पूछी थी. लेकिन कुछ नहीं बताया गया. लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि वकील ने एक रुपया नहीं लिया था इस केस को लड़ने के लिए. क्योंकि कोई केस ही नहीं था.

14 मई 2021 को क्या हुआ था? गुरु और शिष्य में अच्छी ख़ासी क़रीबी थी. लेकिन 14 मई 2021 का दिन. इस दिन आनंद गिरि को अखाड़े से महंत नरेंद्र गिरि ने निष्कासित कर दिया. आरोप लगे कि आनंद गिरि ने संत परंपरा का निर्वहन नहीं किया. उन पर संन्यास लेने के बावजूद अपने परिवार से संबंध रखने का आरोप लगा. इसके साथ ही आनंद गिरि पर वित्तीय अनियमितता के भी आरोप लगे. कहा गया कि उन्होंने हनुमान मंदिर से अर्जित धन को अपने परिवार में भेजा.
लेकिन लल्लनटॉप से बातचीत में आनंद गिरि ने अलग ही दावा किया था. उन्होंने कहा था,
दानपात्र का न हिसाब मांगा, न लिया, न कभी दानपात्र खोला. बुधवार को पेटी खुलती थी, गुरुजी के हाथों. लोगों के दान से मेरे खर्चे चल जाते थे.तब नरेंद्र गिरि ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि आनंद गिरि ने अपने पूरे परिवार को नासिक, उज्जैन, प्रयागराज और हरिद्वार कुंभ में बुलाया, जबकि अखाड़े की परंपरा के मुताबिक पारिवारिक संबंध नहीं बनाए जा सकते. न्यूज़ नेशन से बातचीत में नरेंद्र गिरि ने कहा था,
माता-पिता का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन अखाड़े की एक परंपरा है. वह कई चेतावनियों के बाद भी नियम तोड़ रहे थे और इस तरह उन्हें पहले बाघंबरी मठ से हटा दिया गया और फिर अखाड़े से निकाल दिया गया.

वहीं, परिवार से संबंध रखने के आरोप पर आनंद गिरि ने कहा था,
कुंभ में अगर मां-बाप आकर प्रणाम करके जा रहे हैं तो इसमें बुराई क्या है. राजसी ठाठ-बाट के साथ ठहराने की बात गलत है, मैं करोड़पति नहीं हूं. मैं अपनी मां की मौत पर घर गया था. लोगों ने दिल खोलकर स्वागत किया था. क्योंकि संन्यासी बनने के बाद मैं पहली बार गांव गया था.अखाड़े से निकाले जाने के दो दिन बाद ‘छोटे महाराज’ आनंद गिरि ने चुप्पी तोड़ी थी. आरोप लगाया था कि वित्तीय अनियमितता उनके खेमे से नहीं, बल्कि उनके गुरु नरेंद्र गिरि के खेमे से हुई. मीडिया से बातचीत में आनंद गिरि ने कहा कि उनके गुरु नरेंद्र गिरि ने बाघंबरी मठ की करोड़ों की ज़मीन बेच दी. दी लल्लनटॉप से बातचीत में आनंद गिरि ने अपने गुरु नरेंद्र गिरि पर जमीन बेचने के आरोपों को बार-बार दोहराया था. उन्होंने बताया था कि वह उनके गुरु द्वारा मठ की संपत्ति बेचने का सिलसिला 2004 से देख रहे थे.
दोनों खेमों को क़रीब से जानने वाले प्रयागराज के एक वरिष्ठ नागरिक बताते हैं कि साल 2019 में गुरु और चेले में एक निर्णायक दरार आ चुकी थी. कारण बहुत साफ़ नहीं थे, लेकिन मनमुटाव साफ़ दिखता था. नरेंद्र गिरि मठ, अखाड़े और परिषद के कामधाम में व्यस्त रहते थे, और आनंद गिरि ज़्यादातर देश के बाहर ही रहने लगे थे.
ख़बरों के मुताबिक़ आनंद गिरि अपने द्वारा अर्जित धन के माध्यम से उत्तराखंड के रुड़की में आश्रम का निर्माण करवा रहे थे, लेकिन ये नरेंद्र गिरि का रसूख़ था कि इस आश्रम निर्माण को उत्तराखंड सरकार ने रोक दिया. इस पर भी आनंद ने अपनी बात रखी थी. कहा था,
हरिद्वार में गंगा किनारे मैंने 25लाख की जमीन खरीदी और आश्रम बनना शुरू हो गया. 13 मई को अचानक अधिकारी प्रॉपर्टी सील करने आ गया और बिना पहले नोटिस दिए उसे सील कर दिया. 14 मई को अखाड़े से निकालने के बारे में पता चला. मुझे निष्कासन से दिक्कत नहीं थी. मुझे दिक्कत इस बात से हुई जब उन्होंने आरोप लगाया कि हनुमान जी का पैसा मैं अपने घर लेकर गया हूं. 30 साल का जीवन मैंने संन्यासी के रूप में बिताया, इस दौरान कभी घर नहीं गया.2019 में ही आनंद गिरि की एक फोटो वायरल हुई. इसमें प्लेन में आनंद गिरि के सामने ग्लास में तरल पदार्थ रखा हुआ था. लोगों ने कहा कि योगगुरू और संत आनंद गिरि शराब पी रहे हैं. लेकिन आनंद गिरि ने कहा कि ऐपल जूस को लोगों ने शराब बनाकर पेश किया. 120 फीट जमीन का विवाद इस पूरे विवाद के अलावा बाघंबरी मठ की ज़मीन का एक मसला भी गुरु और शिष्य के बीच मनमुटाव का कारण बना. जानकार बताते हैं कि बाघंबरी मठ की 80 बनाम 120 फ़ीट की एक ज़मीन पर नरेंद्र गिरि की बहुत सालों से एक पेट्रोल पंप खोलने की ख़्वाहिश थी. लाइसेंस मिलने में दिक़्क़त हो रही थी. लिहाज़ा करीब दो साल पहले ज़मीन आनंद गिरि के नाम 30 साल की लीज पर दे दी गयी, काग़ज़ बने. हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने अपना काम किया. पंप को मंज़ूरी मिल गयी.
आनंद गिरि के लिए ये ख़बर अच्छी थी तो उनके गुरु नरेंद्र गिरि के लिए भी. लेकिन साल 2019 में ही अर्धकुंभ का मेला भी लगा था. इसमें आनंद गिरि संत समाज की मीटिंग करते हुए देखे गए तो नरेंद्र गिरि को ये पसंद नहीं आया. और भी बातों पर तनाव हुआ ही था. तो पेट्रोल पंप की जो फ़ाइल प्रयागराज के DM के यहां NOC के लिए पहुंची थी, वो सबकुछ दुरुस्त होने के बावजूद अचानक से रुक गई.

कहा गया कि नरेंद्र गिरि ने अपने रसूख़ का उपयोग किया है. बात आनंद गिरि तक पहुंची. वह अपने गुरु के पास पहुंचे. पूछा कि गुरु जी क्या दिक़्क़त है? गुरु ने कहा कि फ़ाइल वापस ले लो. चेले ने इन्कार कर दिया. ऐसे में तनाव बढ़ना ही था, सो बढ़ गया. कहते हैं कि दूसरी तरफ़ कुछ लोग नरेंद्र गिरि को ज़मीन बेचने की सलाह दे रहे थे. ताकि एकमुश्त कुछ पैसे मिल जाएं. लेकिन ज़मीन का पट्टा आनंद गिरि के नाम पर था लिहाज़ा एक ही रास्ता बचता था. आनंद गिरि का मठ, अखाड़े और मंदिर से निष्कासन.
आनंद गिरि ने निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत आशीष गिरि और दिगंबर गंगापुरी की मौत पर सवाल उठाते हुए हत्या करार दिया था. आनंद ने कहा था कि आशीष गिरि की संपत्ति के लिए की हत्या करवा दी गई थी, लेकिन महंत नरेंद्र गिरि ने अपने रसूख से उसे सूइसाइड का केस बनवा दिया. इसी तरह महंत दिगंबर गंगापुरी महाराज की भी संदिग्ध हालात में मौत हुई थी. आनंद गिरि ने दोनों की मौत की जांच की मांग की थी. गुरु शिष्य में समझौता हो गया था कुछ महीने पहले गुरु-चेले के बीच समझौता भी हो गया था. तब हरिद्वार से प्रयागराज पहुंचे आनंद गिरि ने अपने गुरु स्वामी नरेंद्र गिरि के पैरों में गिरकर माफी मांग ली थी. खबरें बताती हैं कि नरेंद्र गिरि ने भी आनंद गिरि पर लगाए गए आरोपों को वापस लेते हुए उन्हें माफ कर दिया था. इस माफी के बारे में आनंद गिरि ने दी लल्लनटॉप को बताया था,
मेरा झगड़ा ये था कि मठ की संपत्ति न बेची जाए. मैंने माफी इस बात के लिए मागी कि अज्ञानता में मैंने कुछ ऐसा कहा हो जिससे आपका अपमान हुआ हो तो मैं माफी मांगता हूं. गुरु का सम्मान हमेशा करता हूं, लेकिन धर्म को बेचने नहीं दूंगा.सुलह हो जाने के बाद महंत नरेंद्र गिरि ने आनंद पर मठ और प्रयागराज के हनुमान मंदिर में आने पर लगाई गई पाबंदी हटा दी थी. लेकिन 20 सितंबर को नरेंद्र गिरि की मौत के बाद उनके और आनंद गिरि का विवाद फिर चर्चा में है. नरेंद्र गिरि के कमरे से मिले सुसाइड नोट में आनंद गिरि का भी नाम है.
दी लल्लनटॉप ने जब आंनद गिरि से पूछा था कि क्या नरेंद्र गिरि को उनके बढ़ते साम्राज्य से दिक्कत थी तो जवाब में उन्होंने कहा था,
"मैं मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर बोलता हूं. युवाओं के साथ मेरा कनेक्शन है. मेरा कनेक्शन कलाम सर से था, मुरली मनोहर जोशी से था, योगी जी से है. तो ये संबंध मैंने बनाए नहीं हैं. आप काम करेंगे तो दुनिया आपके साथ फोटो खिंचवाएगी."आनंद गिरि का कहना था कि उनके इन सब कामों में कोई बुराई नहीं है. उनके मुताबिक, वह कोई पैरलल एंपायर खड़ा नहीं कर रहे थे. अगर लोग उनके काम की प्रशंसा करते हैं तो इसमें क्या गलत है.
इन तमाम बातों से साफ होता है कि आनंद गिरि को लोग नरेंद्र गिरि का शिष्य समझते थे, लेकिन असल में वह अपने गुरु के लिए बड़ी चुनौती साबित हुए, जो अब नरेंद्र गिरि की आत्महत्या के मुख्य आरोपी बताए जा रहे हैं.