हर समय के अपने बिंब या टैग होते हैं. कबीर के समय के सूत, चादर, पनघट, घड़ा थे. ग़ालिब के समय के मैखाना, चिराग़, नक़ाब थे. आज के समय के बिंब या टैग फेसबुक, सेल्फी, ब्रेकअप हैं.
पीएम मोदी और उनकी मां की इस फोटो की पूरी कहानी केवल इसे देखने भर से पता नहीं लगती
जानिए किस मौके की ये है फोटो जो अब फेक बताई जा रही है!


उनका पैशन गुलाब, डंडा या हैट पहन के फोटो खिंचवाना नहीं, सिर्फ और सिर्फ फोटो खिंचवाना है. आज प्रधानमंत्री के इसी पैशन की बात करेंगे.
लेकिन हमें इस स्टोरी के शुरुआत में ही डिक्लेयर कर देना चाहिए कि कोई भी शौक या पैशन, अगर वो किसी दूसरे या दूसरों का नुकसान नहीं कर रहा या किसी दूसरे की एवज़ में नहीं है तो उसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. तो अगर दिक्कत नहीं है तो फिर इसकी बात हो ही क्यूं रही है? कई कारणों के चलते. अव्वल तो हमें कई मेल आए, एफबी मैसेंज़र के माध्यम से भी हमें लोगों ने संपर्क किया और पूछा कि इस फोटो की सच्चाई बताइए, कि ये रियल है या फेक -
अब इस फ़ोटो में लोगों को किस बात की रियल्टी जाननी है, क्यूंकि ये तो सब ही जानते हैं कि फोटो में दिख रही महिला मोदी की मां हैं और मोदी उनसे मिलने गुजरात जाते रहते हैं.

(नोट – हम जिस तस्वीर की पड़ताल कर रहे हैं, उसके कितने की वर्ज़न सोशल मीडिया में उपलब्ध हैं, और सबमें से फोटोग्राफर काट दिए गए हैं, क्रॉप कर दिए गए हैं. और चूंकि इन नई वाली फ़ोटोज़ में ये फोटोग्राफर नहीं दिख रहे हैं इसलिए ही लोगों के मन में डाउट है कि शायद रियल वाली फोटो फोटोशॉप्ड है. लेकिन है दरअसल उल्टा.)
# यू ट्यूब वीडियो # 2 – ये दूसरी वाली वीडियो भी मोदी के बड्डे के दिन अपलोड की गई है. यानी 17 सितंबर को. लेकिन दो साल और पहले. यानी 2012 में. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. और तब भी बड्डे में अपनी मां से मिलने गए तो पूरे लश्कर के साथ. फोटोग्राफर्स और वीडियोग्राफर्स का लश्कर. अब ये बात कैसे कह सकते हैं हम?
अब इस पड़ताल को कर चुकने के बाद बात आगे करते हैं कि इस स्टोरी को लिखने के दूसरे महत्वपूर्ण कारण की.
‘...हम तो यह कहना चाहेंगे कि आज रुपया गिरकर आपकी पूजनीय माताजी की उम्र के करीब पहुंचना शुरू हो गया है.’

खैर इस पूरे वाद-विवाद में कौन जीता ये तो बहस का मुद्दा रहेगा, लेकिन इस सब के चलते ये फोटो और इन दिनों की कई अन्य तस्वीरें वायरल हो गईं.
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अब अंत में एक और बात. मोदी देश के सबसे बड़े व्यक्ति हैं. उन्हें किसी चीज़ की कोई कमी नहीं. शायद कोई इच्छा भी नहीं बची होगी अब. प्रधानमंत्री बन लिए, देश विदेश घूम आए, भाजपा को वहां पहुंचा दिया जहां वो आज से पहले कभी नहीं थी. लेकिन फिर भी हर इंसान की एक छोटी सी इच्छा कहीं न कहीं रह ही जाती है. फिर चाहे उसे आप बचकानी कहें या उसकी खिल्ली उड़ाएं. उनकी इस इच्छा के उदाहरण ज़करबर्ग और ओलान के साथ खींची गई उनकी तस्वीरों में ज़ाहिर हो जाता है. रामचंद्र परमहंस को खाने का बड़ा शौक था. कई बार बाहर वाले कमरे में प्रवचन देना छोड़कर अंदर रसोई पहुंच जाते थे, जहां उनकी पत्नी भोजन बना रही होती थी. उन्हें कई बार अपने इस भोजन के शौक के चलते दिक्कतों के साथ-साथ जग हंसाई का सामना भी करना पड़ता. एक दिन उनकी पत्नी से न रहा गया. पूछ ही डाला. आप सारे बंधनों से मुक्त हो चुके हैं, फिर ये जिव्हा को वश में क्यूं नहीं कर पा रहे. उत्तर आया कि भाग्यवान मैं सारे बंधनों से मुक्त होकर इतना हल्का हो चुका हूं कि इस धरती पर बने रहने के लिए एक पेपर वेट की ज़रूरत है. ये भोजन ही दरअसल पेपर वेट है. ये स्वाद के प्रति आसक्ति ही है जो मेरे जीवित रहने का एक कारण बना हुआ है. कहते हैं कि अपने मृत्यु से पहले उन्होंने थाली में पड़े हुए भोजन को भी हाथ नहीं लगाया और यूं उनकी पत्नी को अनहोनी की आशंका पहले ही हो गई.खैर ये तो थी एक कहानी जो जितनी मुझे याद थी उतनी आपको बता दी. लेकिन इससे एक दार्शनिक बात पता चलती है. वो पुरानी गल्प कथाओं में होता था न कि बड़े-बड़े राक्षसों की जान भी एक तोते में थी. सुनते तो आप आज भी होंगे, उस आदमी की जान तो अपनी बेटी में बसी हुई है. ये 'जान बसा होना' दरअसल आसक्ति ही तो है. तो इच्छाओं का बेशक कोई अंत नहीं लेकिन इच्छाओं के साथ एक क्यूट बात भी है कि उसका कोई भरोसा नहीं –
दिल भी इक ज़िद में अड़ा है बच्चे की तरह, या तो इसे चाहिए सब कुछ, या कुछ भी नहीं!
- राजेश रेड्डी
वीडियो देखें -
नेताओं के समर्थक आपने बहुत देखे होंगे, अब चोरों का समर्थक देखिए ! -