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संसद में नेहरू का नाम लेकर पीएम मोदी ने जिस किताब का जिक्र किया, उसमें क्या-क्या है?

भाषण के दौरान पीएम मोदी ने विदेश नीति से जुड़ी एक किताब का जिक्र किया. इस किताब में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी से जुड़े कई प्रसंग हैं.

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पीएम मोदी ने आज लोकसभा में ये किताब पढ़ने की सलाह दी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 फरवरी को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब दिया. इसमें उन्होंने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर तीखे वार किए. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर भी जमकर निशाना साधा. इस दौरान उन्होंने विदेश नीति से जुड़ी एक किताब का जिक्र किया. इस किताब में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी से जुड़े कई प्रसंग हैं.

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किताब में नेहरू और अमेरिकी राष्ट्रपति का जिक्र

पीएम मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधा,

यहां विदेश नीति की भी चर्चा हुई, कुछ लोगों को लगता है कि जब तक फॉरेन पॉलिसी न बोलें, तब तक मैच्योर नहीं लगेंगे. ऐसे लोगों से कहना चाहता हूं कि अगर सच में इस सब्जेक्ट में रुचि है और उसे समझना है, आगे जाकर कुछ करना है. मैं ऐसे लोगों से कहूंगा कि एक किताब जरूर पढ़ें, तब कब कहां क्या बोलना है समझ आ जाएगी. 'जेएफके की फॉरगेटन क्राइसिस' किताब है. इसे प्रसिद्ध फॉरेन पॉलिसी स्कॉलर ने लिखा, अहम घटनाओं का जिक्र किया है. इसमें पहले पीएम नेहरू और अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के बीच की चर्चाओं का जिक्र है. जब देश चुनौतियों का सामना कर रहा था, तब विदेश नीति के नाम पर खेल हो रहा था. जरा ये किताब पढ़िए.

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पीएम मोदी के इस बयान के बहाने आपको इस किताब में लिखे पांच जाबड़ किस्से बताएंगे. साथ में इसके लेखक कितनी बड़ी तोप हैं, ये भी जानेंगे. उससे पहले दो बातें याद रखिएगा. यहां बात हो रही अक्टूबर 1962 की. जब क्यूबा के मिसाइल संकट की वजह से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु युद्ध की नौबत आ गई थी. उसी महीने भारत और चीन के बीच भी युद्ध हुआ था.

किताब का पूरा नाम है, “JFK’s Forgotten Crisis : Tibet, the CIA, and the Sino-Indian War”. लेखक हैं, ब्रूस रिडेल. जनवरी, 2015 में हार्पर कॉलिन्स प्रकाशन से छपी इस किताब में पांच चैप्टर्स हैं, और कुल पन्ने हैं 248. इसमें 1962 के भारत और चीन के युद्ध के समय, भारत और अमेरिका के बीच क्या कुछ घट रहा था, इस पर रौशनी डाली गई है. 

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1.) रिडेल का दावा है कि अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी भारत के साथ एक स्थायी रणनीतिक साझेदारी स्थापित करने का मन बना चुके थे. इसमें हिंदुस्तान को बड़े हथियारों की सप्लाई करना भी शामिल था. लेकिन 500 मिलियन डॉलर के इस महत्वपूर्ण हथियार सौदे को मंजूरी देने वाली अमेरिकी कैबिनेट बैठक से तीन दिन पहले 23 नवंबर, 1963 को उनकी हत्या हो गई. इसके कुछ महीनों बाद मई, 1964 की शुरुआत में नेहरू की मृत्यु ने भारत-अमेरिकी संबंधों के समीकरण को बदल दिया.

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2.) कैनेडी के बाद सत्ता में आए अमेरिका के 36वें राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन को भारत के साथ रणनीतिक संभावनाओं पर उतना भरोसा नहीं था. कैनेडी के आखिरी दिनों में भारत के लिए तय किए गए सैन्य सहायता पैकेज को मंजूरी देने में वे हिचकिचा रहे थे. इस बीच दिल्ली और वाशिंगटन के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं.

3.) अमेरिका से दूरी बढ़ रही थी तो रूस से नजदीकी. नेहरू के उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री ने जल्द ही सोवियत संघ के साथ दोबारा घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लिए और एक हथियार समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए. इससे मास्को के साथ दोनों देशों की लम्बी साझेदारी और मजबूत हो गई.

4.) रिडेल ने लिखा है कि चीन ने पहले भारत को व्यापार का एक प्रस्ताव दिया था. वो ये कि चीन पश्चिम में उस इलाके को नियंत्रित करेगा जो तिब्बत को एक और रणनीतिक प्रांत झिंजियांग से जोड़ता है. इसके बदले में भारत पूर्व में अपने दावे वाले क्षेत्र पर नियंत्रण करेगा. 

5.) उस वक्त भारत में अमेरिकी राजदूत जॉन केनेथ गैलब्रेथ ने अपने विभाग से पूछा था कि आगे क्या करना है. इसे लेकर वाशिंगटन से उनकी अपील का कोई जवाब नहीं मिला था. लेकिन फैसला तो लेना ही था. वाशिंगटन की इस उपेक्षा ने उन्हें प्रभावी रूप से अमेरिकी निर्णय लेने का प्रभारी बना दिया. विदेश विभाग ने उन्हें एक निर्देश भेजा था - ब्रिटिश टाइम से चली आ रही भारत और चीन की मैकमोहन रेखा की वैधता पर तटस्थ रहना है. लेकिन गैलब्रेथ ने इसकी अवहेलना की. उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्रालय की बात नहीं मानी.

यहां एक और बात गौर करने लायक है. जो अमेरिका 1962 में भारत की मदद के लिए उत्सुक था, वही अमेरिका 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के वक्त भारत का विरोध कर रहा था.

इस किताब के लेखक कौन हैं?
लेखक ब्रूस रिडेल ने अमेरिका की इंटेलिजेंस एजेंसी सीआईए (सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी) में 30 साल तक काम किया. जैसे हमारे यहां भारत में आईबी और रॉ हैं, वैसे ही अमेरिका में सीआईए है. रिडेल दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व पर चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों के वरिष्ठ सलाहकार के रूप में काम कर चुके हैं. उन्होंने दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व पर केंद्रित कई पुस्तकें लिखी हैं. मसलन, “Beirut 1958” और “Kings and Presidents: Saudi Arabia and the United States since FDR.”

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