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उस इंसान से मुलाकात जिसने पूरा हिमालय पैदल ही नाप डाला

गांधी को अभी भी जीने वाली इस पीढ़ी के किस्सों को संभाल कर रखने की ज़रूरत है.

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सुंदरलाल बहुगुणा और उनकी पत्नी विमला
14 अगस्त 2015. पाकिस्तान के इस्लामाबाद में तमाम आला अफसर वज़ीर-ए-आज़म के साथ आज़ादी का जश्न मना रहे थे. हिंदुस्तान के तमाम हिस्सों में लोग अगले दिन मनाए जाने वाले स्वतंत्रता दिवस की रिहर्सल में लगे थे तो मैं अपने दो साथियों के साथ देहरादून में प्रिंस चौक और रिस्पना पुल के चक्कर काट रहा था. सुंदर लाल बहुगुणा के घर पहुंचने की कवायद में.
बहुगुणा जी जिनके बारे में बचपन में कोर्स की किताब में पढ़ा था. चिपको आंदोलन और गौरादेवी के हर ज़िक्र में बार-बार उनका नाम दिखाई पड़ता था. उनके बारे में रिसर्च करके गया था तो पता था कि पूर्वज बंगाली थे, मैग्सेसे समेत पर्यावरण से जुड़े तमाम बड़े अवार्ड मिल चुके हैं. माइनिंग और मलेथा में चल रहे आंदोलन के बारे में बात करनी थी तो सवाल भी लिख रखे थे. मगर कुछ ही देर में औपचारिकता और उम्र में लगभग 6 दशक का अंतर खत्म हो गया. सोफे पर सफेद कपड़ों में 8 जनवरी को पैदा हुए बहुगुणा जी अपनी धर्मपत्नी विमला जी के साथ. चाय पर चर्चा शुरू हुई तो बातों बातों में पता चला कि सुंदरलाल जी की 29 जनवरी 1948 को गांधी जी से बात हुई थी. यानी गांधी ने दुनिया से जाने से एक दिन पहले नवयुवक सुंदर से कहा था कि तुम लोगों को देश और समाज को बदलना है. इस बात को सुंदरलाल जी ने कितनी गंभीरता से लिया इसको बड़े से बंगले (उनके करीबी रिश्तेदार का है जहां वो इलाज के लिए रहते हैं) में उनके कमरे से समझ सकते हैं. कमरे के बाहर फर्श पर दरी, अंदर अस्त-व्यस्त होने की गिनती तक किताबें, एक पुराना टीवी और बिस्तर. गांधीवाद का असर इतना कि दिखावे वाली शादी में न जाने की कसम के चलते अनगिनत रिश्तेदारों के ब्याह से दूरी बनाए रखी. हिमालय से प्रेम ऐसा कि कश्मीर से नॉर्थ ईस्ट तक पर्वत श्रंखला चल के पूरी कर डाली.

तो आप का ब्याह कैसे हुआ?

इस पर जवाब मिला विमला जी से. बताया कि वो उस समय गांधी जी की सहयोगी सरला बेन के साथ काम करती थीं. जब बहुगुणा जी ने शादी की बात रखी तो रिश्ता पक्का सिद्धांतों और गांधीवाद को कॉन्टिन्यू करने के बाद ही हुआ. इसके बाद सरकारों के काम करने के तरीकों और उनको फैसले लेने पर मजबूर करने के तरीकों पर बात हुई. साथ ही ये बात भी हुई कि आखिर क्यों हिंदुस्तान में चिपको आंदोलन का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. बात पहाड़ की खराब होती सेहत की भी हुई. और ये भी कि पहाड़ का विकास मॉडल ऐसा हो ज़मीन का पानी चोटी तक पहुंचे. चिपको आंदोलन के  क्रूर कुल्हाड़े की बातों से होते हुए आज की माइनिंग और टिहरी की दुर्दशा को न रोक पाने की कसक में कुछ घंटे निकले मगर सुंदरलाल जी के साथ मुलाकात याद रहेगी, साथ ही ये सच भी वो गांधीवाद को जीवन में उतारने वाली उस पीढ़ी से हैं जो अभी भी उस दौर को जी रही है, उम्र के नौवें दशक में पूरे जोश के साथ. जोश की ही एक मिसाल थी कि जब चलते चलते तस्वीर खींचने की बात की तो विमला जी ने कहा पहले तैयार हो लूं, अच्छा लगना चाहिए मुझे.
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