भारत के प्रधान न्यायाधीश संविधान के संरक्षक की भूमिका निभाते हैं. जब कहीं से न्याय मिलने की उम्मीद नहीं रहती, तब अंतिम विकल्प यही रह जाता है कि मामला किसी तरह CJI के संज्ञान में लाया जाए. राष्ट्रीय महत्तव के विषयों पर CJI जो फैसले देते हैं, जो टिप्पणियां करते हैं, वो उनके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट की विरासत का भी हिस्सा बन जाते हैं. इसीलिए जब किसी CJI का कार्यकाल खत्म होता है, तब उनके लिए फैसलों की चर्चा होना स्वाभाविक है. CJI एनवी रमणा 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. इसीलिए सारी नज़रें आज सर्वोच्च न्यायालय की कोर्ट नंबर 1 की तरफ ही थीं. फिर आज तीन-तीन हाई प्रोफाइल मामलों की तारीख भी लगी थी - पेगसस मामला, बिलकिस बानो मामला और प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट से जुड़ा मामला. सो आज दिन की बड़ी खबर इन तीन मामलों में SC की सुनवाई के नाम ही रहेगी.
जाने से पहले चीफ जस्टिस एनवी रमना ने किन अहम मामलों की सुनवाई की?
CJI के रिटायरमेंट से पहले आज सुप्रीम कोर्ट में कई अहम मुद्दों पर सुनवाई हुई.

बड़ी खबर आज एक नहीं, कई हैं. और सब की सब सुप्रीम कोर्ट से है. आज दिन सुप्रीम कोर्ट में सामान्य दिनों की तरह ही था. मगर गतिविधियां और सुनवाई आम दिनों से काफी तेज और रोचक. सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 25 अगस्त को चीफ जस्टिस एन वी रमना का सेकेंड लास्ट डे था. वो 26 अगस्त को रिटायर हो जाएंगे. मगर जाते-जाते CJI रमना ने कुछ बड़ी लकीरें खींचने की कोशिश की. एक तरह से कहा जाए तो इंडियन ज्यूडीशरी पर अपनी छाप छोड़ने की कोशिश की. जिन मामलों की उम्मीद भी नहीं की जा रही थी, उनको अलग-अलग बेंच के साथ बैठकर चीफ जस्टिस रमना सुना. टिप्पणी की. नोटिस इश्यू किए. तो बारी-बारी से हम सारी अहम सुनवाई को संक्षेप में बताएंगे. पहले क्रम समझ लीजिए.
1. कोर्ट खुलते ही चीफ जस्टिस ने ठंडे बस्ते में पडे़ पेगसस के मामले को सुना
2. दूसरे नंबर पर पीएम मोदी की सिक्योरिटी ब्रीच के मामले को सुना, जो पंजाब में हुआ था.
3. तीसरे नंबर पर चीफ जस्टिस रमना ने PMLA एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आई रिव्यू पिटीशन को सुना.
4. चौथे नंबर पर बिलकिस बानो के मामले पर सुनवाई हुई.
तो कुल 4 बड़े मैटर जाते-जाते चीफ जस्टिस ने सुने. इसके अलावा 28 रेगुलर मैटर्स को भी सुना. जिसमें झारखंड के विधायकों के पास से मिले नोटों का मामला भी था. हम अपना ध्यान 4 बड़े और हाईप्रोफाइल मामलों पर ही केंद्रीत रखते हैं.
पेगसस मामलापेगसस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच में CJI एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली थे. सुनवाई से पहले आपको पेगसस मामले का हल्का सा रीकैप दे देते हैं. 2019 में अमेरिका के सैन फैंसिस्को में एक मुकदमा चल रहा था. इसमें सुनवाई के वक्त वॉट्सएप ने खुलासा किया था कि भारत में भी पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ पेगसस नाम के एक सायबर हथियार का इस्तेमाल हुआ था. पेगसस एक मालवेयर है. सादी भाषा में आप इसे वायरस कह सकते हैं. इज़रायल की कंपनी NSO ग्रुप द्वारा बनाया ये मालवेयर जासूसी के काम आता है. इसके ज़रिए वॉट्सएप जैसी सुरक्षित मानी जाने वाली मैसेजिंग सेवाओं को भी हैक किया जा सकता है. फोन के ज़रिए आपकी सारी गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है. ज़्यादातर मालवेयर तभी काम करते हैं जब शिकार किसी लिंक या तस्वीर पर क्लिक कर दे. लेकिन पेगसस शिकार के बिना कुछ किए उसके फोन में घुस सकता है.
2019 में कुछ हो हल्ला हुआ, लेकिन बात आई गई हो गई. असली बवाल खड़ा हुआ जुलाई 2021 में, जब पेगसस प्रोजेक्ट सामने आया. एमनेस्टी इंटरनैशनल ने दुनिया भर के मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर एक सीरीज़ चलाई जिसमें पेगसस द्वारा पत्रकारों, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की कथित जासूसी का भांडाफोड़ हुआ. भारत से पेगसस प्रोजेक्ट में समाचार वेबसाइट ''द वायर'' शामिल थी. इसकी रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भारत में कम से कम 300 फोन नंबर्स को पेगसस द्वारा जासूसी के लिये चुना गया था. इनमें मौजूदा सूचना प्रोद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव, कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी और उनके करीबी, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और देशभर के कम से कम 40 नामचीन पत्रकारों के नंबर थे.
जासूसी के लिए चुने जाने से जासूसी की पुष्टि नहीं हो जाती. लेकिन पेगसस प्रोजेक्ट का दावा था कि कुछ मोबाइल नंबर्स को वाकई हैक कर लिया गया था और फॉरेंसिक जांच में जासूसी के सबूत भी मिले.
मॉनसून सत्र से ठीक पहले हुए इस खुलासे ने राजनीति में भूचाल ला दिया. सरकार कहती तो रही कि उसने नियमों के विरुद्ध कोई काम नहीं किया. लेकिन उसने कभी सीधे नहीं बताया कि भारतीय एजेंसियों द्वारा पेगसस का इस्तेमाल हुआ या नहीं. तमाम हाई प्रोफाइल मामलों की तरह इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में अनेक याचिकाएं लगीं. इनपर सुनवाई करते हुए 27 अक्टूबर को CJI एनवी रमणा, जस्टिस सूर्याकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने एक टेकनीकल कमेटी बना दी. इसके सदस्य थे -
- नेशनल फॉरेंसिक साइंसेज़ यूनिवर्सिटी के डीन डॉ नवीन कुमार चौधरी
- अमृत विश्वविद्यापीठम के डॉ प्रबहरण
- आईआईटी बॉम्बे के डॉ अश्विन अनिल गुमास्ते
इस कमेटी की निगरानी के लिए तीन और सदस्य नियुक्त किए गए.
- सेवानिवृत्त जस्टिस आरवी रवींद्रन (अध्यक्ष)
- पूर्व IPS आलोक जोशी
- सायबर सेक्योरिटी एक्सपर्ट डॉ सुदीप ओबेरॉय.
इस कमेटी को पेगसस मामले में जासूसी के आरोपों पर जांच का काम दिया गया था. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को एक सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को सौंप दिया था. और आज के दिन इस रिपोर्ट को न्यायालय ने रिकॉर्ड पर लिया. माने इसे सुनवाई में शामिल कर लिया. CJI ने केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा,
''कमेटी ने कहा है कि भारत सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया. आपका जो स्टैंड यहां था, वही कमेटी के भी सामने रहा.''
इसपर तुषार मेहता ने कहा,
''मुझे इसकी जानकारी नहीं है.''
न्यायालय ने ये नोट किया, कि कमेटी के मुताबिक जांच के लिए दिए गए 29 डिवाइस में से 5 में मालवेयर होने के सबूत मिले. लेकिन ये स्पष्ट नहीं हो पाया कि ये मालवेयर पेगसस था या नहीं. जिन लोगों ने अपने डिवाइस जांच के लिए दिए थे, उन्होंने रिपोर्ट को जारी न करने का आग्रह किया था. इसीलिए पूरी रिपोर्ट को पब्लिक न करने का निर्णय लिया जा सकता है. न्यायालय ने कहा कि वो रिपोर्ट के संपादित अंश को जारी करने पर विचार करेगा.
कानूनी मामलों की रिपोर्टिंग करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक रिपोर्ट के तीन हिस्से हैं. इनमें मालवेयर की जानकारी, रीसर्च मटेरियल और जांच के लिए दिए गए मोबाइल फोन्स की जानकारी दर्ज है. कमेटी के मुखिया जस्टिस रवींद्रन ने एक रिपोर्ट में नागरिकों की निजता की सुरक्षा, इसके लिए आवश्यक विधायी कदम, शिकायत निवारण के लिए व्यस्था, और भविष्य में उठाए जाने कदमों का उल्लेख किया है. इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा.
पीएम सिक्योरिटी ब्रीच मामलादूसरा मामला पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में हुई चूक से जुड़ा है. दरअसल इस साल 5 जनवरी के दिन पीएम मोदी को पंजाब के फिरोज़पुर में एक रैली करनी थी. दिल्ली से निकलकर पीएम मोदी रैली के लिए बठिंडा के भिसियाना एयरबेस पर पहुंचे. यहां से राष्ट्रीय शहीद स्मारक हुसैनवाला तक मोदी को हेलिकॉप्टर से जाना था. लेकिन बारिश और खराब मौसम के चलते सड़क के रास्ते जाना तय हुआ. प्रधानमंत्री का काफिला राष्ट्रीय शहीद स्मारक हुसैनवाला से करीब 30 किमी पहले एक फ्लाइओवर पर पहुंचा तो मालूम चला कि आगे आंदोलनकारी किसानों ने रास्ता रोक रखा है. करीब 15 से 20 मिनट तक इंतजार करने के बाद मोदी को बिना रैली किए वापस बठिंडा लौटना पड़ा. और रैली को रद्द कर दिया गया.
इसे पीएम मोदी की सुरक्षा में गंभीर चूक की तरह देखा गया. मामले को लेकर लॉयर्स वॉइस नाम की संस्था सुप्रीम कोर्ट पहुंची और निष्पक्ष जांच की मांग की थी. मामले की जांच के लिए 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक कमिटी का गठन किया था. इस कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा को दी गई थी. कमेटी में केंद्र और राज्य सरकार के भी अधिकारियों को रखा गया था. अब इस कमेटी ने पंजाब में पीएम मोदी की सुरक्षा में हुई चूक के लिए फिरोजपुर के तत्कालीन एसपी हरमनदीप सिंह हंस को जिम्मेदार बताया है.
सुनवाई के दौरान कमेटी की रिपोर्ट पढ़ते हुए सीजेआई रमन्ना ने बताया कि फिरोजपुर के एसएसपी को दो घंटे पहले बताया गया था कि प्रधानमंत्री उस मार्ग में प्रवेश करेंगे, उसके बाद भी वह सुरक्षा व्यवस्था ठीक नहीं कर पाए. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट से ये भी बताया कि राज्य के एडिशनल डीजीपी जी. नागेश्वर राव ने सुबह 10.20 पर पीएम का रूट बदलने की सूचना दे दी थी, राव ने हरमनदीप सिंह को कई निर्देश भी दिए थे. एसएसपी हरमनदीप के पास लगभग 2 घंटे का पर्याप्त समय था, उनके पास काफी सुरक्षाकर्मी भी थे लेकिन उन्होंने पीएम के यात्रा मार्ग में उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं की.
कमेटी ने पीएम की सुरक्षा से जुड़ी 'ब्लू बुक' की समय-समय पर समीक्षा की सिफारिश की है. इसके साथ ही देश के पुलिस अधिकारियों को VVIP's की सुरक्षा को लेकर बेहतर ट्रेनिंग देने पर भी जोर दिया है. फिलहाल इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए कमेटी अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेगी. 5 जनवरी को जब पीएम मोदी की सिक्योरिटी में चूक हुई थी, उस वक्त पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी. चरणजीत चन्नी उस सरकार के सीएम थे. पीएम मोदी का काफिला 20 मिनट तक एक फ्लाईओवर पर फंसा रहा. हालांकि चन्नी ने इसे सुरक्षा चूक मानने से इनकार कर दिया था. चन्नी का कहना था कि पीएम को कोई खरोंच नहीं आई, तो फिर उनकी जान को खतरा कैसे हो गया.
5 जनवरी की घटना के बाद पीएम मोदी कल पहली बार पंजाब के दौरे पर आए थे. कल फिरोजपुर वाली घटना पर सीएम भगवंत मान ने दुख जताया और कहा कि यह दुख की बात है कि सुरक्षा चूक की वजह से पीएम मोदी को पिछली बार वापस लौटना पड़ा. उनकी सुरक्षा के लिए पूरे बंदोबस्त करना सरकार का फर्ज है.
बिलकिस बानो गैंगरेप मामलाअब आ जाते हैं तीसरी बड़ी सुनवाई पर जिसपर सबकी निगाहें थीं. बेंच चेंज हुई. अब चीफ जस्टिस रमना के साथ सुनवाई के लिए , जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रमनाथ आ गए. याचिका सीपीआईएम की नेता सुभाषिनी अली, फिल्म निर्माता रेवती लौल और पूर्व प्रोफेसर और कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा की तरफ से दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए. पहुंचते ही कपिल सिब्बल ने याचिका के पन्ने पलटे. दलील की शुरुआत बिलिकस बानों से जुड़ी घटना के बारे में बताते हुए की. कहा-
दंगों में बड़ी संख्या में गांव के लोगों की जान गई...मुसलमानों का पलायन हुआ..अभियोजक और उसके परिवार के सदस्य गांव-गांव भाग गए. 28 फरवरी की रात उसकी चचेरी बहन ने एक बच्ची को जन्म दिया. 3 मार्च 2002 को वो एक गांव जा रहे थे. एक समूह ''मुसलमानों को मारो...चिल्लाते हुए आया, उनके हाथ में लाठियां और धारदार हथियार थे.''
इस पर चीफ जस्टिस रमना ने टिप्पणी करते हुए कहा-
ये सारे तथ्य याचिका में लिखे हुए हैं.
कपिल सिब्बल ने फिर कहा-
14 लोगों की हत्या हुई, गर्भवती महिला का गैंगरेप हुआ. उसके 3 महीने की बच्ची को जमीन पर पटक कर मार दिया गया.
इस पर जस्टिस अजय रस्तोगी ने पूछा-
उन्होंने जो कुछ भी किया, उन्हें दोषी ठहराया जा चुका है. सवाल ये है कि क्या वो वो सजा माफी के लायक हैं या नहीं? We are only concerned if remission was in the parameters of law.
मतलब ये कि हमारी इकलौती चिंता ये है कि उन्हें जो छूट दी गई, वो कानून के मुताबिक थी या नहीं ? मतलब ये कि कानून के मानकों पर गुजरात सरकार के फैसले को तौला जा रहा था. जस्टिस रस्तोगी ने ये भी पूछा कि केवल इसलिए ये कहना कि अपराध भयानक था, इसलिए छूट गलत है, क्या सही है?
इस सवाल पर वकील सिब्बल कुछ बोलते इससे पहले चीफ जस्टिस रमना ने एक बात साफ की. उन्होंने कहा-
हम इस फैसले में पार्टी नहीं हैं, मैंने कहीं पढ़ा कि कोर्ट ने रिहाई की अनुमति दी. जबकि ऐसा नहीं है, कोर्ट ने सरकार से सिर्फ विचार करने को कहा था.
जस्टिस रमना ने ये टिप्पणी इसलिए की क्योंकि जस्टिस रस्तोगी और जस्टिस विक्रमनाथ उस बेंच के हिस्सा थे, जिसने मई में बिलकिस के दोषियों की रिहाई को गुजरात सरकार से विवेक पर छोड़ा था. इसके बाद CJI रमना ने गुजरात सरकार के वकील से जवाब दाखिल करने के लिए कहा. इस पर गुजरात सरकार के वकील ने कहा-
ये याचिका मेंटेनेबल नहीं है. माने सुनी जाने लायक नहीं है, याचिका लगाने वाले स्ट्रेंजर्स यानी अजनबी हैं.
एक तरफ से कहने का मतलब ये था कि जिन लोगों याचिका लगाई वो इस केस में पार्टी नहीं हैं, तो याचिका को ना सुना जाए.
इस पर जस्टिस रस्तोगी ने भी पूछा कि आजीवन कारावास के दोषियों को अक्सर छूट दी जाती है, इसमें अपवाद क्या है? कोर्ट ने पूछा,
"हमें यह देखना होगा कि क्या इस मामले में छूट देते समय दिमाग लगाया गया, क्या आप कह रहे हैं कि छूट नहीं दी जा सकती."
इस पर वकील कपिल सिब्बल ने कहा,
“हम केवल यह देखना चाहते हैं कि क्या दिमाग का इस्तेमाल हुआ था?”
दलीलों के बीच चीफ जस्टिस ने कहा-
नोटिस जारी किया जाए.
गुजरात सरकार के वकील ने तुरंत कहा-
इसमें दोषियों को पार्टी नहीं बनाया गया है.
चीफ जस्टिस ने याचिका कर्ता के वकील सिब्बल की तरफ देखते हुए पूछा-
आपने दोषियों को पक्षकार क्यों नहीं बनाया है?
सिब्बल ने छूटते ही कहा-
हमने राज्य के फैसले को चुनौती दी है.
CJI ने कहा-
मगर दोषी इससे प्रभावित हैं.
तब सिब्बल ने कहा कि वो दोषियों को पक्षकार बनाने पर राज़ी हैं. इसके बाद चीफ जस्टिस रमना ने मामले पर आज की सुनवाई में अंतिम टिप्पणी करते हुए कहा- मामले में 11 दोषियों को पार्टी बनाया जाए. साथ ही केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों को नोटिस जारी कर पूछा कि किस आधार पर रिहाई की गई? दो हफ्ते के अंदर सरकारों को जवाब देना होगा. मामले की लिस्टिंग 2 हफ्ते बाद की गई है. तब उसकी सुनवाई नए चीफ जस्टिस यूयू ललित की बेंच करेगी.
PMLA मामलाइस मामले की सुनवाई खत्म हुई. CJI थोड़ी ही देर में PMLA मामले पर सुनवाई करने बैठ गए. ये चौथा बड़ा मामला था, इस बार बेंच बदल गई. जस्टिस रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की जगह अब बेंच में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार आ गए. इसमें याचिकाकर्ता कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम हैं. ये रिव्यू पेटीशन है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई थी कि वो PMLA की संवैधानिक वैधता बनाए रखने के अपने फैसले की समीक्षा करे.
शीर्ष अदालत ने बीती 27 जुलाई को ये जजमेंट दिया था जिसमें केंद्रीय जांच एजेंसी ED की शक्तियों और अधिकारों को कायम रखा गया था. आज CJI एनवी रमना, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने ओपन कोर्ट में रिव्यू पिटिशन यानी पुनर्विचार याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया.
पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए वही बेंच बैठती है जिसने मामले पर ऑरिजिनल जजमेंट दिया था. हालांकि PMLA पर फैसला देने वाली बेंच में शामिल जस्टिस एएम खानविलकर 29 जुलाई को रिटायर हो गए थे. इसलिए अब CJI एनवी रमना के नेतृत्व में रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई हुई. PMLA के अलग-अलग प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए इसमें संशोधन की मांग के साथ 242 याचिकाएं दायर की गई थीं.
दरअसल, ED मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की रिपोर्ट ECIR यानी Enforcement Case Information Report के तौर पर दर्ज करती है. फैसले में कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की थी. कहा था कि ECIR को FIR के बराबर नहीं माना जा सकता, इसे हर केस में संबंधित व्यक्ति को देना अनिवार्य नहीं है और अगर ED गिरफ्तारी के समय उसके कारण बता भर देती है तो ये काफी होगा. हालांकि फैसले में कोर्ट ने इस सवाल को छोड़ दिया कि क्या PMLA में संशोधन Finance Acts के जरिये किए जाएंगे? अब 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, तो कहा कि ECIR न सौंपने वाले बिन्दु पर फिर से विचार किया जा सकता है.
PMLA मामले में पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र को नोटिस जारी किया. CJI ने कहा- हम सिर्फ 2 पहलू को दोबारा विचार लायक मानते हैं:-
* ECIR की रिपोर्ट आरोपी को न देने का प्रावधान
* खुद को निर्दोष साबित करने का ज़िम्मा आरोपी पर होने का प्रावधान
हालांकि केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा,
'समीक्षा के लिए रिकॉर्ड में साफ़-साफ़ गड़बड़ी होनी चाहिए. और यह एकमात्र अधिनियम नहीं है, बल्कि यह भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुसार है.'
लेकिन कोर्ट याचिका पर सुनवाई को तैयार है. बेंच ने PMLA को लेकर दिए 27 जुलाई के फैसले की कुछ बातों पर चिंता जाहिर की थी. इनके मुताबिक ED अधिकारियों को ये अधिकार है कि वे ट्रायल से पहले ही संबंधित व्यक्ति की संपत्ति अपने कब्जे में कर सकते हैं. बुधवार को कोर्ट ने विशेष मामलों के संबंध में इस अधिकार को लेकर चिंता जताई. कोर्ट ने कहा कि इस पर अलग से व्याख्या करने की जरूरत है, वर्ना इसे लेकर और याचिकाएं आने की संभावना बढ़ जाएगी. अब तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अंतरिम सुरक्षा देने के अपने आदेश को भी 4 सप्ताह के लिए बढ़ा दिया. मामले में अगली सुनवाई 4 हफ्ते बाद होगी तब तक केंद्र को अपना जवाब दाखिल करना होगा.
तो ये कुल चार हाईप्रोफाइल मामले थे जिसे अपने सेकेंड लास्ट वर्किंग डे पर चीफ जस्टिस रमना ने सुना. ये जानकारी आप तक लाने में हमने लीगल मामलों को कवर करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ और बार एंड बेंच की मदद ली. और सबसे ज्यादा मदद हमारी अनीषा माथुर ने की. इंडिया टुडे ग्रुप के लिए लीगल रिपोर्टर हैं. महत्वपूर्ण सुनवाइयों के बाद चीफ जस्टिस रमना दिल्ली हाईकोर्ट गए. चुंकि वो दिल्ली हाईकोर्ट के भी चीफ जस्टिस रह चुके हैं तो उन्हें वहा फेयरवेल दिया गया.
दिल्ली हाईकोर्ट में मिले फेयरवेल के बाद अब कल यानी 26 अगस्त को CJI रमना को सुप्रीम कोर्ट में विदाई दी जाएगी. कल ही नए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित चार्ज भी लेंगे.
वीडियो: रिटायरमेंट से पहले चीफ जस्टिस NV रमना ने पेगासस, PM सुरक्षा, बिलकिस बानो, ED पर बड़ा काम कर दिया