कौन था जॉन और वो उस द्वीप पर क्यों गया? जॉन अमेरिका के वॉशिंगटन का ईसाई धर्म प्रचारक था. दुनिया के कई हिस्सों में घूम चुका था. माना जाता है कि वो इस द्वीप पर पहुंचकर कबीले के लोगों को ईसाई धर्म से जोड़ना चाहता था. इसी मकसद से वो अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में पोर्ट ब्लेयर पहुंचा.

ये नवंबर 2005 की फोटो है. तस्वीर में जो द्वीप दिख रहा है, वही है नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड. ये अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणपूर्वी हिस्से में पड़ता है. अंडमान-निकोबार में कोई 572 द्वीप हैं. इनमें से बस 37 पर आबादी है. बाकी घने जंगलों से ढके हैं. इनमें से कुछ ही द्वीपों पर जाने की इजाजत है लोगों को (फोटो: AP)
द्वीप पर कैसे पहुंचा जॉन ? जॉन ने कुछ लोकल मछुआरों को पैसे दिए. तकरीबन 25 हजार रुपये. उनसे कहा कि वो किसी तरह उसे नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पहुंचा दें. इस द्वीप पर जाना या जाने की कोशिश करना प्रतिबंधित है. न केवल द्वीप पर, बल्कि इसके चारों तरफ के कुछ किलोमीटर का इलाका भी बफर ज़ोन में आता है. इसके आगे एंट्री नहीं हो सकती. मगर पैसों के लालच में मछुआरों ने जॉन की मदद की. 14 नवंबर की बात है. जॉन ने एक नाव किराए पर ली. शाम होने के बाद जॉन द्वीप के लिए रवाना हुआ. आधी रात के करीब ये लोग द्वीप के पास पहुंच गए. मछुआरे वहीं रुक गए. अगली सुबह जॉन अकेला ही एक डोंगी पर बैठकर द्वीप तक गया. वो साथ में कुछ तोहफे- जैसे मछलियां और फुटबॉल वगैरह भी ले गया. गिफ्ट देकर वह कबीलेवालों से दोस्ती करना चाहता था. मछुआरे एक सुरक्षित दूरी पर रुककर जॉन का इंतजार करने लगे. उस पूरे दिन यानी 15 नवंबर को जॉन द्वीप पर रहा. यहां उसके और कबीले के बाशिंदों के बीच क्या हुआ, ये किसी को नहीं मालूम.
जॉन की सबसे बड़ी बेवकूफी 16 नवंबर को जॉन तैरकर उन मछुआरों के पास पहुंचा, जो उसका इंतजार कर रहे थे. मछुआरों ने देखा, जॉन घायल है. उसके शरीर पर जख्म थे. चोट के निशान थे. उन्होंने उसे वापस चलने को कहा. मगर वो नहीं माना. उसने मछुआरों को अपनी लिखी 13 पन्नों की एक चिट्ठी दी. और फिर द्वीप पर लौट गया.

इस द्वीप पर जाकर यहां रहने वाले लोगों को ईसाई बनाना, उन्हें ईसा मसीह का उपदेश देना जॉन अपना फर्ज मान रहा था. उसको लग रहा था कि वो कबीलेवालों का उद्धार करने जा रहा है. सोशल मीडिया पर कुछ लोग उसे सच्चा ईसाई बता रहे हैं. वो सच्चा ईसाई था या नहीं, वो जाने. मगर इसमें कोई शक नहीं कि जॉन नासमझ था. उसकी मौत का दोष उसी के माथे है.
उसकी मौत के बारे में कैसे पता चला? जॉन की मां ने भारत स्थित वाणिज्य दूतावास से संपर्क किया. उन्होंने वहां अपने बेटे के बारे में बताया. उनसे ही पता चला कि जॉन नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड गया था. और फिर उसकी कोई खबर नहीं है. अमेरिकी दूतावास के मार्फत ये बात स्थानीय पुलिस और प्रशासन तक पहुंची. पुलिस ने जॉन की मदद करने वाले मछुआरों को पकड़ लिया. कुल मिलाकर पांच मछुआरे और उनके साथ दो और लोग अरेस्ट किए गए. उन्होंने बताया कि जॉन मारा गया है.
मछुआरों ने क्या बताया? उनके मुताबिक, 17 नवंबर की सुबह उन्होंने देखा कि कबीले के लोग एक लाश को किनारे पर दफना रहे हैं. कपड़े वगैरह देखकर ऐसा लग रहा था कि जिसे दफनाया जा रहा है, वो जॉन ही है. माना जा रहा है कि कबीलेवालों ने तीर मारकर जॉन की जान ली है.

मारे जाने से पहले जॉन ने मछुआरों को ये चिट्ठी दी थी. इसमें उसने अपने परिवार के लिए मेसेज छोड़ा है. नीचे दस्तखत की जगह पर देखिए. जगह के नाम पर उसने नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड लिखा है. चिट्ठी पर 16 नवंबर की तारीख दर्ज है. इसके अगले दिन मछुआरों ने देखा कि कबीलेवाले उसकी लाश घसीटकर किनारे पर लाए और उसे वहां दफना दिया.
जॉन कैसे मरा, ये जॉन का लिखा पढ़कर ही पता चलता है जॉन ने मछुआरों को जो जर्नल थमाया था, उसमें उसने थोड़ा सा बताया है कि कबीले के बाशिंदों और उसके बीच क्या हुआ. जॉन ने लिखा है-
मैंने उनकी आवाज सुनी. मैंने उनके तीर के निशाने से दूर रहने की कोशिश की. लेकिन अफसोस, ऐसा करने का मतलब था कि मैं उनकी तरफ से आ रही आवाज भी नहीं सुन पा रहा था. इसीलिए मैं उनके पास गया. मैं जितना देख पा रहा था, उससे लगा कि वो छह लोग हैं. वो मुझपर चीख रहे थे. वो जो कह रहे थे, मैंने उसकी नकल करके उनसे बात करने की कोशिश की. मगर वो ज्यादातर वक्त हंसते रहे. शायद वो मुझे गालियां दे रहे थे. या मेरी बेइज्जती कर रहे थे. मुझे एक आदमी नजर आया. उसने सिर पर सफेद रंग का कोई मुकुट पहना हुआ था. शायद फूल रहे होंगे. वो उनका लीडर लग रहा था. वो भी मुझपर चीख रहा था. वो सबसे ऊंचे पत्थर पर चढ़कर मुझपर चीख रहा था. इससे लगा कि वो उनका लीडर है.जॉन ने आगे लिखा है कि जब उसने कबीले के लोगों को तीर मारने की तैयारी करते देखा, तो वो डर गया. घबराहट में उसने एक मछली उनकी तरफ फेंकी. शायद इससे वो लोग और नाराज हो गए. जॉन लिखता है-
मुझे दुख है कि जब मैंने उन्हें धनुष पर तीर चढ़ाते हुए देखा, तो मैं परेशान हो गया. मैंने मछली उठाई और उनकी ओर फेंक दी. वो मेरी तरफ बढ़ते रहे. उन्होंने मुझे तीर मारा. करीब 10 साल का था वो बच्चा, जिसने तीर से मुझ पर वार किया. उसका कद बाकियों से छोटा था. बाकी लोग वयस्क लग रहे थे. एक बच्चे ने मुझ पर तीर चलाया. मैंने हाथ में जो बाइबल पकड़ा हुआ था, ठीक उसके ऊपर तीर मारा उसने.जॉन घायल था. मगर जिंदा था. शायद इसके बाद कबीले के लोगों ने उस पर और हमले किए, जिससे उसकी मौत हो गई.
अगर आप (शायद ईश्वर ) चाहते हैं कि मैं तीर से मारा जाऊं, तो ठीक है. हालांकि मैं सोचता हूं कि मैं जिंदा ज्यादा काम आ सकता हूं. मैं मरना नहीं चाहता. क्या यहां से लौट जाने में समझदारी होगी? मैं अब भी अमेरिका लौट सकता हूं. यहां रुकने पर मरना तय लग रहा है. हे ईश्वर, मैं मरना नहीं चाहता. अगर मैं मर गया, तो मेरी जगह कौन लेगा? कौन मेरा काम पूरा करेगा? हे प्रभु, मुझे अपने माता-पिता की बहुत याद आ रही है. एक छोटे बच्चे ने आज मुझे तीर क्यों मारा? फादर, उसे माफ कर दीजिए. इस द्वीप पर रहने वाले उन सभी लोगों को माफ कर दीजिए जिन्होंने मुझे मारने की कोशिश की.

ये है भारत का नक्शा. इसमें पूरब की तरफ, नीचे की ओर जहां लाल रंग का पिन है, वहीं पर है ये नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड. 2006 में दो मछुआरे भी यहां गए थे. वो भी मारे गए थे.
धर्म प्रचार के लिए मरना भी मंजूर था जॉन ने चिट्ठी में अपने परिवार के लिए लिखा है-
आपको शायद लगे कि मैं पागल हूं. मगर मुझे लगता है कि कबीले के लोगों के पास जाकर उन्हें ईसा मसीह की शरण में लाना बेहद जरूरी है. अगर मैं मारा जाता हूं, तो उन पर नाराज न हों. न ही ईश्वर पर गुस्सा करें. ईश्वर ने आपके लिए जो रास्ता तय किया, उस पर चलकर अपनी जिंदगी जीते रहें. मैं उस दुनिया में आपसे मिलूंगा. मेरा इस द्वीप पर जाना कोई बेवकूफी नहीं है. मैं उन्हें ईश्वर (ईसा मसीह) की उपासना करते हुए देखना चाहता हूं.

जॉन को घूमने का बहुत शौक था. उसने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर खुद को एक्सप्लोरर लिखा है. ये भी लिखा है कि वो एक बार सांप के काटने से बच गया था. ये इंस्टाग्राम पर पोस्ट की गई उसकी आखिरी तस्वीर है. (फोटो: इंस्टाग्राम)
चिट्ठी पढ़कर भावुक क्यों नहीं होना चाहिए हो सकता है कि आप चिट्ठी पढ़कर इमोशनल हो जाएं. किसी का भी यूं बेबात मारा जाना दुखी करता है. मगर इसका दोष कबीले को नहीं दिया जा सकता. वो हमारी-आपकी सभ्यता, हमारे कानून नहीं जानते. उनकी अपनी दुनिया है. वो उसी दुनिया में अपने तरीके से जी रहे हैं. हमारा-आपका वहां जाना, चाहे वो नेक इरादे से ही हो, उनको अच्छा नहीं लगता. उनके लिए जॉन आक्रमणकारी था. जॉन ये सब जानता था. फिर भी वो कानून तोड़कर वहां गया. उसके पास बच निकलने का मौका था. मगर धर्म प्रचार की सनक में वो नहीं लौटा. हकीकत में उसने कबीले में घुसने की भूल की. ये एक तरह से आत्महत्या है.

ये फोटो भी जॉन ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट की. वो दुनिया में कई जगहों पर घूम चुका था. अंडमान-निकोबार आया, तो अपने साथ एक वॉटरप्रूफ बाइबल लेकर आया. जॉन ने मरने से पहले जो जर्नल लिखा है, उसमें उसने बताया है कि कबीले के एक बच्चे ने ठीक उसके बाइबल पर निशाना साधकर उसे तीर मारा (फोटो: इंस्टाग्राम)
लाश की तलाश पुलिस ने जॉन की हत्या का केस दर्ज किया है. एफआईआर में जॉन के सात मददगारों के नाम व 'अज्ञात' यानी कबीले के लोग हैं. मगर कबीले के लोगों पर केस नहीं चल सकता. उनसे संपर्क करने की कोशिश करना भी गैरकानूनी है. पुलिस फिलहाल जॉन की लाश की तलाश कर रही है. विशेषज्ञों व कोस्टगार्ड की हेल्प ली जा रही है. मगर ये लोग द्वीप के ज्यादा नजदीक नहीं जा रहे. डर है कहीं कबीले के लोग भड़क न जाएं. प्रशासन मसले को संवेदनशील तरीके से हैंडल कर रहा है. अमेरिकी वाणिज्य दूतावास भी लगातार स्थानीय प्रशासन के संपर्क में है.

ये है जॉन के परिवार का बयान. उन्होंने जॉन की मदद करने वाले लोगों को रिहा किए जाने की अपील की है (फोटो: इंस्टाग्राम)
जॉन के परिवार ने क्या कहा है? जॉन की फैमिली ने अरेस्ट किए गए सातों लोगों को छोड़ने की अपील की है. उनका कहना है कि जॉन अपनी मर्जी से द्वीप पर गया था. इसीलिए उसकी मदद करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. वो जॉन की हत्या करने वालों को भी माफ कर चुके हैं.

नीली टी शर्ट पहने मुस्कुरा रहा ये शख्स है जॉन ऐलन चाऊ.
कबीलों की हिफाजत जरूरी क्यों ? मानते हैं कि पहला-पहला इंसान अफ्रीका में कहीं विकसित हुआ. वहीं से निकलकर लोग बाहर फैले. ये जो कबीला है, वो उन्हीं शुरुआती मानवों के वंशज हैं. ये अब भी कमोबेश वैसे ही जिंदगी जीते हैं. जैसे आदिमानव शिकार वगैरह करके जीते थे. वही लाइफ स्टाइल इनकी भी है. दुनिया में बहुत कम ही कबीले हैं इनके जैसे, तो बाहरी सभ्यता से बिल्कुल अलग-थलग रह रहे हैं. ये काफी वलनरेबल लोग हैं. भारत सरकार ने सालों तक इनसे संपर्क की कोशिश की. 1967 से 90 के दशक तक कई बार कई तरीकें से लगे रहे. लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. फिर सरकार ने इनकी जिंदगी में किसी भी तरह से दखलंदाजी न करने का फैसला लिया. इनकी हिफाजत के लिए खास कानून बनाए. समय-समय पर द्वीप के ऊपर से प्लेन उड़ाकर देख लिया जाता है कि ये लोग ठीक हैं कि नहीं. सरकार इसको 'हैंड्स ऑफ-आईज़ ऑन' पॉलिसी कहती है. मतलब दूर रहकर उनका ध्यान रखो.

2004 में आए सुनामी के समय सरकार को इस कबीले की काफी चिंता थी. इन तक मदद पहुंचाने की कोशिश की गई. कितना नुकसान हुआ है, इसका जायज़ा लेने एक विमान आइलैंड के ऊपर से गुजरा. उसी समय की फोटो है ये. कबीले का एक सदस्य तीर-कमान लेकर प्लेन की तरफ निशाना साधने की कोशिश कर रहा है (फोटो: इंडियन कोस्ट गार्ड)
इनकी सुरक्षा के लिए क्या कानून हैं? फॉरेनर्स (रिस्ट्रिक्टेड एरियाज़) ऑर्डर, 1963 के तहत अंडमान-निकोबार के कुछ द्वीपों को छोड़कर बाकी जगहों पर लोगों के जाने पर पाबंदी है. 13 ऐसे द्वीप हैं, जिनपर पर्यटकों को रुकने-ठहरने की इजाजत है. बाकी 11 द्वीप ऐसे हैं, जहां बस दिन में घूम सकते हैं. ये कबीला अंडमान एंड निकोबार (प्रॉटेक्शन ऑफ ऐबऑरिजनल ट्राइब्स) रेगुलेशन, 1956 के तहत भी प्रॉटेक्टेड है. इनकी सुरक्षा के लिए कानून बनाया गया. बाहरी लोगों को द्वीप से दूर रखने के लिए आइलैंड के चारों तरफ पांच किलोमीटर के इलाके का एक बफर जोन बनाया गया.नियम के मुताबिक, द्वीप तो क्या आप इस बफर जोन को भी नहीं लांघ सकते हैं.

जिस तरह जॉन की मौत हुई, वो काफी दर्दनाक है. मगर ये समझना होगा कि जॉन न तो हीरो था और न विक्टिम. उसका द्वीप पर जाना ही गलत था. इससे सबक लेकर सरकार को इन द्वीपों की सुरक्षा के लिए और कड़े नियम बनाने चाहिए. ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए (फोटो: इंस्टाग्राम)
हम सबके लिए सबक माना जाता है कि कबीले के लोग बाहरी संपर्क में आए, तो उनको संक्रमण हो सकता है. नई-नई बीमारियां हो सकती हैं. उनकी संख्या बेहद कम है. उनके लिए जोखिम बढ़ जाएगा. उनका अस्तित्व दांव पर लग सकता है. इस नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती. पहले भी इसी तरह कई कबीलों का नामो-निशान मिट चुका है. अंडमान के ही कुछ कबीले खत्म हो चुके हैं. ऐमजॉन रिवर फॉरेस्ट में भी ऐसे कुछ कबीले रहते हैं. उन पर भी खत्म हो जाने का खतरा है. दूर क्यों जाना, आप आदिवासी समाज के साथ हुआ खिलवाड़ ही देख लीजिए.
ये कबीले इंसानी इतिहास, उसके विकास के सफर की सबसे कीमती निशानियों में से हैं. ये तमाशा नहीं हैं कि उन्हें कौतुहल से देखा जाए. ये म्यूजियम में रखा इतिहास का कोई निर्जीव टुकड़ा या शोपीस भी नहीं हैं. न ही ये असभ्य हैं. इनकी अपनी सभ्यता है. बल्कि इनकी नज़र से देखें, तो हम असभ्य और आक्रमणकारी लगेंगे. जॉन ने जो किया, वो शायद हमारे लिए और सरकार के लिए सबक है. नियम और सख्त किए जाएं, जिससे कोई सीमा लांघकर उन तक पहुंचने और उनको परेशान करने की कोशिश न करे. आपके पास अगर कोहिनूर हो, तो आप उसकी हिफाजत कैसे करेंगे? सरकार को उससे भी कहीं ज्यादा मुस्तैदी से इन कबीलों की हिफाजत करनी चाहिए.
आदिवासी भीलों का वो हथियार जिसने मुगलों की सेना के दांत खट्टे कर दिए थे